देहरादून: कोरोना के कहर और लॉकडाउन की तमाम बंदिशों के बाद आज मंत्रोच्चारण और पूरे विधि-विधान से भगवान केदारनाथ के कपाट खोले गये. बहुत ही सीमित लोगों को मौजदूगी में 6 बजकर 10 मिनट पर पूरे विधि विधान से केदारधाम में बाबा केदार की डोली स्थापित की गई. केदारनाथ के रावल भीमाशंकर लिंग, केदारनाथ लिंग के वेदपाठियों ने कपाट खुलने की रश्मों को निभाया. केदार धाम में फिलहाल बर्फ की मोटी चादर बिछी दिख रही है, जिससे यहां काफी ठंड है. उत्तराखंड के उच्च गढ़वाल हिमालयी क्षेत्र में स्थित गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया पर खोल दिए गए थे, जिसके साथ ही चारधाम यात्रा शुरू हो गई, अब चार धामों के नाम से प्रसिद्ध धाम बदरीनाथ के कपाट 15 मई को खुलेंगे.
इससे पहले देर शाम बाबा केदार की डोली की चल विग्रह डोली केदारधाम पहुंची थी, रात्रि वित्राम के बाद तय लग्न और मंत्रोंच्चार के साथ सुबह शुभ मुहूर्त पर बाबा केदार के कपाट को दर्शनों के लिए खोला गया. अब छ महीनों तक केदारनाथ में भगवान भोले की पूजा होगी.
लॉकडाउन के कारण नहीं पहुंचे श्रद्धालु
भगवान केदारनाथ के कपाट सीमित लोगों की मौजूदगी में खोले गये. अन्य वर्षों की तरह इस साल धाम में कपाट खुलने के मौके पर श्रद्धालुओं को आने की अनुमति नहीं दी गई. लॉकडाउन और कोरोना के कहर को देखते हुए ये फैसला लिया गया. इसके साथ ही धाम में सोशल डिस्टेंसिंग का भी विशेष ख्याल रखा जा रहा है.
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इससे पहले ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान भैरवनाथ की विशेष पूजा अर्चना संपन्न की गई. इस दौरान सामाजिक दूरी का पूरी तरह पालन किया गया. इस आयोजन को महज केदारनाथ के मुख्य पुजारी शिवशंकर लिंग और अन्य पुजारियों ने किया. जिसके बाद बाबा केदार की पंचमुखी डोली ऊखीमठ से केदारधाम के लिए रवाना हुई थी. कोरोना संक्रमण के चलते डोली को गाड़ी से एक ही दिन में गौरीकुंड पहुंचाया गया.
2013 में बाधित हुई थी केदारनाथ की पूजा
इस बार लॉकडाउन और कोरोना के कारण केदारधाम की यात्रा भी प्रभावित हुई है. फिलहाल एहतियात के तौर यहां श्रद्धालुओं के आने पर रोक है. जिसके कारण एक बार फिर से बहुत ही सादगी से भगवान केदार के कपाट खोले गये. इससे पहले जून 2013 में आई आपदा के वक्त केदाराथ में पूजा बाधित हुई थी. तब पुजारी भगवान केदार की मूर्ति को लेकर ऊखीमठ आ गए थे. सितंबर में सफाई के बाद दोबारा केदारधाम में पूजा शुरू की गई थी. जिसके बाद कपाट परंपरा मुतबिक बंद किए गए थे.
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हिमालय की गोद में बसे भगवान शिव की भक्ति का यह धाम खूबसूरत प्राकृतिक अलौकिक दृश्यों के साथ-साथ तमाम पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है.
केदारधाम की दिव्यजोत के दर्शन हैं पुण्यदायी
केदारनाथ धाम के बारे में कथा प्रचलित है कि शीतकाल में जब भी केदारनाथ के कपाट जब बंद होते हैं तब मंदिर में पूजा की जिम्मेदारी देवताओं की होती है. शीतताल में मंदिर के कपाट बंद होने के समय अखंड दीप को जलाकर रख दिया जाता है, गर्मियों में जब कपाट खोले जाते हैं तो ये दिव्य जोत जलती हुई मिलती है. केदारधाम की इस दिव्यजोत के दर्शनों को बहुत ही पुण्यदायी माना जाता है. जिसके कारण कपाट खुलने के मौके पर सैकड़ों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. मगर इस बार देशव्यापी लॉकडाउन और कोरोना के कहर के कारण यहां श्रद्धालुओं के आने पर फिलहाल रोक लगाई गई है. उम्मीद जताई जा रही है लॉकडाउन खुलने और कोरोना के संक्रमण खत्म होने के बाद यहां पहले की तरह श्रद्धालुओं की तांता लगेगा.
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केदारधाम दिलाता है मोक्ष
केदारनाथ को भगवान शिव का दूसरा निवास स्थान माना जाता है. पौराणिक कथाओं में इसके महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है. शिवपुराण में भी इसकी महिमा के बारे में बताया गया है कि यहां मृत्यु को प्राप्त करने वाले भक्तों के लिए सीधे मोक्ष के द्वार खुलते हैं और उन्हें शिवलोक में स्थान मिलता है.भगवान शिव के द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से केदारनाथ की खोज सबसे पहले पांडवों ने की थी.
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केंद्र सरकार के निर्देशों पर यात्रा का संचालन कर रही सरकार
देशभर में कोरोना संकट के बीच राज्य सरकार ने 26 अप्रैल से चार धाम यात्रा शुरु कर दी है. 26 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खोलने के बाद आज भगवान केदारनाथ के कपाट भी खोल दिये गये हैं. लॉकडाउन के कारण बदली तिथि के हिसाब से 15 मई को बदरीनाथ के कपाट खोले जाएंगे. यात्रा को राज्य सरकार केंद्र के दिशा-निर्देशों के अनुपालन से ही संचालित कर रही है.