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क्या पाताल में समा जाएगा जोशीमठ? ऐतिहासिक विरासत ज्योर्तिमठ पर भी खतरा

आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली माने जाने वाले जोशीमठ पर खतरा मंडरा रहा है. भू धंसाव की वजह से जिस कल्पवृक्ष के नीचे गुफा के अंदर बैठकर शंकराचार्य ने ज्ञान की प्राप्ति की थी. आज उस कल्पवृक्ष का अस्तित्व मिटने की कगार पर है. इसके अलावा ज्योर्तिमठ मंदिर के गर्भगृह में भी दरारें दिखाई दे रही हैं, जो साफ संकेत दे रही हैं कि अब एक विरासत खतरे में है.

Joshimath land subsidence
खतरे में जोशीमठ
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Published : Jan 8, 2023, 2:57 PM IST

ऐतिहासिक विरासत पर भी मंडराया खतरा.

देहरादूनः उत्तराखंड का पौराणिक और ऐतिहासिक जोशीमठ शहर आज खतरे में है. जोशीमठ एक विरासत को भी समेटे हुए है. यह वही जगह है, जहां आदि गुरु शंकराचार्य ने तप किया था. इसके अलावा जोशीमठ सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, लेकिन दरारों की वजह से सब कुछ खत्म होने की कगार पर है. लोगों के घरों के साथ अब भगवान के दर को भी आगोश में ले रही है. जिससे इस ऐतिहासिक नजर के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है.

एक शहर नहीं एक विरासत है जोशीमठः उत्तराखंड के जोशीमठ शहर का इतिहास हजारों साल पुराना है. आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने ही जोशीमठ को धार्मिक पहचान दी थी. शंकराचार्य ने यहां पर स्थित कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी. इसके बाद एक पीठ की स्थापना भी की, जिसका नाम ज्योर्तिमठ रखा गया. जिसके नाम से आज इस शहर को जोशीमठ कहा जाता है. इसी ज्योतिष मठ के अधीन बदरीनाथ धाम आता है. जिसकी वजह से जोशीमठ की महत्वता और बढ़ जाती है.

कहीं मिट न जाए ये ऐतिहासिक जगहः जोशीमठ में दरारों से वो स्थान भी अछूता नहीं रहा, जिसने इसे शहर को पहचान दिलाई. वर्तमान में स्थिति ये हो गई है कि आदि गुरु शंकराचार्य का तपस्थली भी इस दरार की भेंट चढ़ चुका है. लगातार सड़क और ज्योर्तिमठ मंदिर में दरारें आ रही हैं. मंदिर के गर्भगृह से लेकर प्रांगण में दरार ही नजर आ रही है. जिस वृक्ष के नीचे शंकराचार्य ने तपस्या की थी, वो कल्पवृक्ष भी अब खतरे में है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं को चिंता सता रही है कि पौराणिक और ऐतिहासिक मंदिर जमींदोज न हो जाए.

शंकराचार्य ने पीएम सीएम को लिखा पत्रः इस दरार की चपेट में आसपास के सैकड़ों छोटे-बड़े मंदिर भी आ रहे हैं. शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के ज्योर्तिमठ में भी यह दरारें आ गई हैं. हालात खराब होने से पहले ही अपने सारे कार्यक्रम छोड़कर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जोशीमठ के लिए रवाना हो गए हैं. शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को इस पूरे मामले से अवगत कराया है. समस्या की मूल जड़ में जाकर यह देखना बेहद जरूरी है कि आखिरकार ये सब क्यों हो रहा है? इसे किस तरह से रोका जा सकता है. शंकराचार्य का कहना है कि फिलहाल वो अपने आश्रम में ही रुक कर पूरी व्यवस्था देखेंगे और वहां के लोगों का साथ देंगे.

6 जनवरी को धराशायी हो गया था एक मंदिरः बीती 6 जनवरी को जोशीमठ में ही एक मंदिर धराशायी हो गया था. इस मंदिर का बड़ा हिस्सा एक आवासीय भवन पर आ गिरा. इसके बाद से ही लोगों की चिंता ज्यादा बढ़ गई. उन्हें डर है कि अब सब कुछ तबाह हो जाएगा. कुछ लोग इसे अनहोनी का संकेत भी करार दे रहे हैं.

क्या कहते हैं तीर्थ पुरोहितः बदरीनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित आशुतोष डिमरी कहते हैं कि जोशीमठ को बचाना बेहद जरूरी है. इस समस्या का अगर समाधान खोजा गया होता तो शायद आज बहुत कुछ बचाया जा सकता था. उन्होंने कहा है कि सरकार को अब बेहद जल्द काम शुरू करना होगा, क्योंकि हर दिन इन दरारों का बढ़ना ऐतिहासिक शहर पर संकट के बादल मंडरा रहा है. आशुतोष डिमरी कहते हैं कि अगर जोशीमठ के साथ कुछ हुआ तो विश्व भर के हिंदुओं की आस्था को भी ठेस पहुंचेगी.

दरारों की मुख्य वजहः चमोली जिले के जिस जगह पर यह दरारें आ रही है. ऐसा नहीं है यह हाल ही में ऐसा हुआ हो. साल 2019 में फरवरी महीने में आई रैणी आपदा और ग्लेशियर टूटने की घटना के बाद दरार आने की संख्या में इजाफा हुआ है. इस आपदा में कई लोग काल कवलित हो गए थे. इसी ग्लेशियर के टूटने के बाद जोशीमठ के नैनी गांव से लेकर सुनील गांव तक कई गांव में यह दरार अचानक से दिखने लगी थी.

जानकार मानते हैं कि उत्तराखंड के जोशीमठ में हो रहे अत्यधिक निर्माण और निर्माणाधीन प्रोजेक्टों की वजह से गांव में यह दरारें दिख रही हैं. हालांकि, आईआईटी रुड़की और देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी इन गांव में जाकर कई बार रिसर्च कर चुका है. लगातार वैज्ञानिक इस पूरी बेल्ट पर अध्ययन कर रहे हैं. भूकंप के लिहाज से भी जोशीमठ जोन-5 में आता है.

ऐसे में इन नाजुक पहाड़ों पर अत्यधिक बारिश होने पर भूस्खलन की की घटनाएं देखने को मिल रही है. लगातार मिट्टी और भूस्खलन का नीचे दरकना भी दरारों की मुख्य वजह बनता है. साल 2013 में आई आपदा के दौरान भी जोशीमठ में 17 और 19 अक्टूबर के बीच 190 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई थी. जो काफी ज्यादा थी. अब जोशीमठ में दरार काफी ज्यादा हो गए हैं. ऐसे में अगर बारिश होती है तो दरारें में पानी घुस जाने की वजह सैलाब आने से इनकार नहीं किया जा सकता है.

पहले भी मिश्रा कमेटी ने बताई थी वजहः बता दें कि साल 1976 में जब इस इलाके में भूस्खलन की पहली घटना रिकॉर्ड हुई थी. तब उत्तर प्रदेश सरकार ने मिश्रा कमेटी का गठन किया था. इस कमेटी ने भी उस वक्त जोशीमठ में पहाड़ों में दरारें आने की बात को माना था. रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ और आसपास के कई जिलों में प्राकृतिक जंगल लगातार काटे जा रहे हैं. सड़कों का निर्माण हो रहा है. पेड़ कटने की वजह से भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं.

एक समय था, जब जोशीमठ के आसपास के पहाड़ों पर हरे भरे पेड़ दिखाई देते थे, लेकिन अब यह पहाड़ पूरी तरह से पथरीले दिखाई देते हैं. इतना ही नहीं आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए विभागों ने इस पूरे क्षेत्र में कई तरह के निर्माण किए हैं. बड़े-बड़े वाहनों का पहाड़ों पर जाना भी इसकी एक मुख्य वजह है. इतना ही नहीं प्रोजेक्ट के लिए पहाड़ों पर विस्फोट करना और अच्छा ड्रेनेज सिस्टम न होना भूस्खलन की मुख्य वजह है.

ऐतिहासिक विरासत पर भी मंडराया खतरा.

देहरादूनः उत्तराखंड का पौराणिक और ऐतिहासिक जोशीमठ शहर आज खतरे में है. जोशीमठ एक विरासत को भी समेटे हुए है. यह वही जगह है, जहां आदि गुरु शंकराचार्य ने तप किया था. इसके अलावा जोशीमठ सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, लेकिन दरारों की वजह से सब कुछ खत्म होने की कगार पर है. लोगों के घरों के साथ अब भगवान के दर को भी आगोश में ले रही है. जिससे इस ऐतिहासिक नजर के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है.

एक शहर नहीं एक विरासत है जोशीमठः उत्तराखंड के जोशीमठ शहर का इतिहास हजारों साल पुराना है. आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने ही जोशीमठ को धार्मिक पहचान दी थी. शंकराचार्य ने यहां पर स्थित कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी. इसके बाद एक पीठ की स्थापना भी की, जिसका नाम ज्योर्तिमठ रखा गया. जिसके नाम से आज इस शहर को जोशीमठ कहा जाता है. इसी ज्योतिष मठ के अधीन बदरीनाथ धाम आता है. जिसकी वजह से जोशीमठ की महत्वता और बढ़ जाती है.

कहीं मिट न जाए ये ऐतिहासिक जगहः जोशीमठ में दरारों से वो स्थान भी अछूता नहीं रहा, जिसने इसे शहर को पहचान दिलाई. वर्तमान में स्थिति ये हो गई है कि आदि गुरु शंकराचार्य का तपस्थली भी इस दरार की भेंट चढ़ चुका है. लगातार सड़क और ज्योर्तिमठ मंदिर में दरारें आ रही हैं. मंदिर के गर्भगृह से लेकर प्रांगण में दरार ही नजर आ रही है. जिस वृक्ष के नीचे शंकराचार्य ने तपस्या की थी, वो कल्पवृक्ष भी अब खतरे में है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं को चिंता सता रही है कि पौराणिक और ऐतिहासिक मंदिर जमींदोज न हो जाए.

शंकराचार्य ने पीएम सीएम को लिखा पत्रः इस दरार की चपेट में आसपास के सैकड़ों छोटे-बड़े मंदिर भी आ रहे हैं. शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के ज्योर्तिमठ में भी यह दरारें आ गई हैं. हालात खराब होने से पहले ही अपने सारे कार्यक्रम छोड़कर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जोशीमठ के लिए रवाना हो गए हैं. शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को इस पूरे मामले से अवगत कराया है. समस्या की मूल जड़ में जाकर यह देखना बेहद जरूरी है कि आखिरकार ये सब क्यों हो रहा है? इसे किस तरह से रोका जा सकता है. शंकराचार्य का कहना है कि फिलहाल वो अपने आश्रम में ही रुक कर पूरी व्यवस्था देखेंगे और वहां के लोगों का साथ देंगे.

6 जनवरी को धराशायी हो गया था एक मंदिरः बीती 6 जनवरी को जोशीमठ में ही एक मंदिर धराशायी हो गया था. इस मंदिर का बड़ा हिस्सा एक आवासीय भवन पर आ गिरा. इसके बाद से ही लोगों की चिंता ज्यादा बढ़ गई. उन्हें डर है कि अब सब कुछ तबाह हो जाएगा. कुछ लोग इसे अनहोनी का संकेत भी करार दे रहे हैं.

क्या कहते हैं तीर्थ पुरोहितः बदरीनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित आशुतोष डिमरी कहते हैं कि जोशीमठ को बचाना बेहद जरूरी है. इस समस्या का अगर समाधान खोजा गया होता तो शायद आज बहुत कुछ बचाया जा सकता था. उन्होंने कहा है कि सरकार को अब बेहद जल्द काम शुरू करना होगा, क्योंकि हर दिन इन दरारों का बढ़ना ऐतिहासिक शहर पर संकट के बादल मंडरा रहा है. आशुतोष डिमरी कहते हैं कि अगर जोशीमठ के साथ कुछ हुआ तो विश्व भर के हिंदुओं की आस्था को भी ठेस पहुंचेगी.

दरारों की मुख्य वजहः चमोली जिले के जिस जगह पर यह दरारें आ रही है. ऐसा नहीं है यह हाल ही में ऐसा हुआ हो. साल 2019 में फरवरी महीने में आई रैणी आपदा और ग्लेशियर टूटने की घटना के बाद दरार आने की संख्या में इजाफा हुआ है. इस आपदा में कई लोग काल कवलित हो गए थे. इसी ग्लेशियर के टूटने के बाद जोशीमठ के नैनी गांव से लेकर सुनील गांव तक कई गांव में यह दरार अचानक से दिखने लगी थी.

जानकार मानते हैं कि उत्तराखंड के जोशीमठ में हो रहे अत्यधिक निर्माण और निर्माणाधीन प्रोजेक्टों की वजह से गांव में यह दरारें दिख रही हैं. हालांकि, आईआईटी रुड़की और देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी इन गांव में जाकर कई बार रिसर्च कर चुका है. लगातार वैज्ञानिक इस पूरी बेल्ट पर अध्ययन कर रहे हैं. भूकंप के लिहाज से भी जोशीमठ जोन-5 में आता है.

ऐसे में इन नाजुक पहाड़ों पर अत्यधिक बारिश होने पर भूस्खलन की की घटनाएं देखने को मिल रही है. लगातार मिट्टी और भूस्खलन का नीचे दरकना भी दरारों की मुख्य वजह बनता है. साल 2013 में आई आपदा के दौरान भी जोशीमठ में 17 और 19 अक्टूबर के बीच 190 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई थी. जो काफी ज्यादा थी. अब जोशीमठ में दरार काफी ज्यादा हो गए हैं. ऐसे में अगर बारिश होती है तो दरारें में पानी घुस जाने की वजह सैलाब आने से इनकार नहीं किया जा सकता है.

पहले भी मिश्रा कमेटी ने बताई थी वजहः बता दें कि साल 1976 में जब इस इलाके में भूस्खलन की पहली घटना रिकॉर्ड हुई थी. तब उत्तर प्रदेश सरकार ने मिश्रा कमेटी का गठन किया था. इस कमेटी ने भी उस वक्त जोशीमठ में पहाड़ों में दरारें आने की बात को माना था. रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ और आसपास के कई जिलों में प्राकृतिक जंगल लगातार काटे जा रहे हैं. सड़कों का निर्माण हो रहा है. पेड़ कटने की वजह से भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं.

एक समय था, जब जोशीमठ के आसपास के पहाड़ों पर हरे भरे पेड़ दिखाई देते थे, लेकिन अब यह पहाड़ पूरी तरह से पथरीले दिखाई देते हैं. इतना ही नहीं आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए विभागों ने इस पूरे क्षेत्र में कई तरह के निर्माण किए हैं. बड़े-बड़े वाहनों का पहाड़ों पर जाना भी इसकी एक मुख्य वजह है. इतना ही नहीं प्रोजेक्ट के लिए पहाड़ों पर विस्फोट करना और अच्छा ड्रेनेज सिस्टम न होना भूस्खलन की मुख्य वजह है.

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