देहरादून: उत्तराखंड सरकार इन दिनों एक अजीब सी उलझन में है. एक तरफ जोशीमठ आपदा जल विद्युत परियोजनाओं के अस्तित्व को लेकर नए सवाल खड़े कर रही है. दूसरी तरफ ऊर्जा संकट से जूझते उत्तराखंड में हालात दिनों दिन बिगड़ रहे हैं. यह स्थिति तब है जब उत्तराखंड प्राकृतिक जल धाराओं की क्षमता के अनुसार बिजली उत्पादन से बड़ा राजस्व कमाने तक की हैसियत रखता है. लेकिन जमींदोज होते जोशीमठ शहर ने एक बार फिर जल विद्युत परियोजनाओं के भविष्य पर विचार करने के लिए सभी को मजबूर कर दिया है. वो भी तब जब जल विद्युत परियोजनाओं के सिवाय राज्य के पास बिजली उत्पादन के लिए कोई दूसरा बड़ा विकल्प नहीं दिखाई देता.
जोशीमठ भू धंसाव ने बड़े पावर प्रोजेक्ट्स पर उठाए सवाल: कोई भी परियोजना और विकास कार्य मानव जीवन के अस्तित्व से जरूरी नहीं हो सकते. इसी तर्क के साथ उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं का समय समय पर विरोध होता रहा है. हालांकि इसके बावजूद बेहद धीमी रफ्तार में कुछ नई परियोजनाओं पर काम भी हो रहा है. लेकिन जोशीमठ में भू धंसाव की स्थिति ने फिर एक बार जल विद्युत परियोजनाओं के विरोध को बढ़ा दिया है. खास बात यह है कि एक तरफ परियोजनाओं के खिलाफ उत्तराखंड में माहौल बन रहा है. दूसरी तरफ राज्य ऊर्जा संकट के कठिन दौर से गुजर रहा है. स्थिति यह है कि राज्य को केंद्र के सामने गुहार लगाने के लिए अपने अफसर दिल्ली भेजने पड़ रहे हैं. केंद्र की कुछ राहत के चलते राज्य बिजली कटौती से बचने का रास्ता ढूंढ रहा है. अब जानिए कि उत्तराखंड के लिए इस समय बिजली संकट कैसे मुंह बाए खड़ा है.
उत्तराखंड में बिजली की डिमांड 46 मिलियन यूनिट रोजाना: उत्तराखंड में सर्दी बढ़ने के साथ बिजली की डिमांड करीब 46 मिलियन यूनिट प्रतिदिन तक पहुंच गई है. उत्तराखंड में 13 मिलियन यूनिट बिजली का प्रतिदिन का उत्पादन किया जा रहा है. केंद्रांश से राज्य को 15 मिलियन यूनिट प्रतिदिन बिजली मिल रही है. उत्तराखंड 12 मिलियन यूनिट तक खुले बाजार से बिजली खरीद रहा है. 6 से 8 मिलियन यूनिट प्रतिदिन बिजली की कमी राज्य के लिए परेशानी बनी हुई है. इस कमी को पूरा करने के लिए राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 3 से 4 घंटे की कटौती हो रही है. औद्योगिक क्षेत्रों में भी 1 से 2 घंटे की अघोषित कटौती जानकारी में आ रही है.
जल विद्युत परियोजनाओं पर ज्यादा दबाव: गैस और कोयले पर आधारित ऊर्जा प्लांट फिलहाल परेशानी में हैं. ऐसे में जल विद्युत परियोजनाओं पर ही सबसे ज्यादा बिजली उपलब्ध कराने का दबाव है. इन स्थितियों पर बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि उत्तराखंड में जल परियोजनाओं का विरोध पहले भी हुआ है. इनसे होने वाले नुकसान को फोकस भी किया जाता रहा है. इसके बावजूद उन विकल्पों पर काम नहीं किया जाता, जिनसे इन खतरों को कम किया जा सकता है. विकल्प के रूप में राजीव नयन बहुगुणा सुरंग रहित परियोजनाओं और सुरंग बनाने के लिए विश्वव्यापी हाईटेक तकनीकों का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं.
उत्तराखंड में 86 जल विद्युत परियोजनाओं से बन रही बिजली: जानकारी के अनुसार देश में करीब 24 फ़ीसदी बिजली की आपूर्ति जल विद्युत परियोजनाओं से की जाती है. जिसमें उत्तराखंड अहम रोल निभाता है. राज्य में फिलहाल 25 जल विद्युत परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं. इनमें 6 बड़ी परियोजनाएं हैं तो 19 लघु परियोजना निर्माणरत है. हालांकि राज्य में करीब छोटी बड़ी 86 जल विद्युत परियोजनाएं हैं, जिनसे बिजली उत्पादन किया जा रहा है. इसमें अधिकतर परियोजनाएं या तो निजी क्षेत्र की हैं, या फिर केंद्र की हैं. ऐसे में राज्य को बिजली का कुछ अंश ही मिल पाता है. या उसे निजी क्षेत्र से एमओयू के तहत बिजली खरीदनी होती है. हालांकि जोशीमठ में विभिन्न घरों में आई दरारों के बाद विशेषज्ञ बड़े बांधों के निर्माण से बचने की सलाह देते हुए नजर आते हैं और ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए छोटी परियोजनाओं पर ही निर्भरता बढ़ाने की सलाह देते हैं.
ऊर्जा प्रदेश में ही हो रही बिजली की कटौती: उत्तराखंड में समय के साथ बिजली की डिमांड बढ़ रही है. इसीलिए डिमांड पूरी न कर पाने के कारण आज राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कई घंटों की बिजली कटौती का सामना लोगों करना पड़ रहा है. यही नहीं हालात अब यहां तक बन गए हैं कि बिजली कटौती अब औद्योगिक क्षेत्र में करने की भी जरूरत महसूस होने लगी है. हालांकि केंद्र से मिली मदद कुछ समय के लिए राज्य को जरूर कुछ राहत दे सकती है, लेकिन इससे उत्तराखंड बड़े समय तक बिजली संकट के खतरे से खुद को नहीं बचा सकता. ऐसी स्थिति में किसी बड़े और महत्वपूर्ण विकल्प की तरफ जाना बेहद जरूरी है. इसके लिए छोटी जल विद्युत परियोजनाएं महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं.
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छोटी परियोजनाएं और हाईटेक तकनीक अपनाने की सलाह: विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि उद्योग धंधे बढ़ेंगे तो राज्य में बिजली की डिमांड और भी ज्यादा बढ़ जाएगी. लिहाजा जल विद्युत परियोजनाओं को पूरी तरह से बॉयकॉट करने का नुकसान राज्य को हो सकता है. ऐसे में छोटी परियोजनाओं और हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल कर परियोजनाओं को स्थापित करना राज्य के पास अब एकमात्र विकल्प रह गया है.