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त्रिवेंद्र सरकार में आए 'लापता' इंवेस्टर्स खोजेंगे धामी, चुनाव से पहले फिर होगा कॉन्क्लेव

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Published : Sep 16, 2021, 5:53 PM IST

Updated : Sep 16, 2021, 10:54 PM IST

उत्तराखंड 2018 इन्वेस्टर्स समिट में 1.25 लाख करोड़ का एमओयू साइन हुआ था, लेकिन इसके बावजूद प्रदेश से निवेश गायब है. वर्तमान में केवल 13 हजार करोड़ का ही निवेश प्रदेश में हुआ है. ऐसे में अक्टूबर में सरकार एक बार फिर से मसूरी में उद्योगपतियों को जुटाने के लिए मसूरी में इन्वेस्टर्स कॉन्क्लेव करने जा रही है, जिसको लेकर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं.

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अक्टूबर में होगा कॉन्क्लेव

देहरादून: इस महीने मसूरी में होने वाले इन्वेस्टर्स कॉन्क्लेव को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है. अब यह कॉन्क्लेव अक्टूबर माह के दूसरे सप्ताह में होगा. वहीं, उत्तराखंड में इससे पहले भी देहरादून में 2018 में इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया गया था. जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हुए थे और हजारों करोड़ों का सरकार और कंपनियों के बीच एमओयू भी हुआ था.

इन्वेस्टर्स समिट में खर्च हुए 60 करोड़: उत्तराखंड में निवेश और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने पीएम मोदी की अध्यक्षता में इन्वेस्टर्स का आयोजन किया था. इस आयोजन में करीब 60 करोड़ का खर्च आया था. इस इन्वेस्टर्स समिट में बड़े-बड़े उद्योगपति उत्तराखंड आए थे. फिर चाहे अमूल ब्रांड हो या फिर अडानी-अंबानी ग्रुप. सभी ने इस इन्वेस्टर्स समिट में रुचि दिखाई थी. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस इन्वेस्टर्स समिट का शुभारंभ किया था.

1.25 लाख करोड़ का हुआ था: एमओयू इस इन्वेस्टर्स समिट में मुख्य रूप से ऊर्जा, पर्यटन, अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर, बायोटेक्नोलॉजी, कृषि एवं बागवानी, विनिर्माण उद्योग, आईटी, हेल्थ केयर और आयुष वेलनेस सेक्टर को शामिल किया गया था. क्योंकि, इन सेक्टर्स में निवेश की काफी संभावनाएं हैं. हालांकि, उस दौरान उम्मीद की जा रही थी कि करीब 80 हजार करोड़ तक निवेश पर एमओयू साइन हो जाएगा. खास बात यह रही कि उत्तराखंड में निवेश के लिए उद्योगपतियों ने इच्छा जाहिर की थी. इस कारण उम्मीद से ज्यादा यानी करीब 1.25 लाख करोड़ रुपए के प्रस्ताव पर एमओयू साइन हुए थे.

'लापता' इंवेस्टर्स खोजेंगे धामी

ये भी पढ़ें: गंगा पूजन के साथ कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के दूसरे चरण का ऐलान, जानें रणनीति

इन क्षेत्रों में हुआ था MoU: इसमें ऊर्जा के क्षेत्र में 40707.24 करोड़, पर्यटन के क्षेत्र में 15362.72 करोड़, अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में 14286.69 करोड़, बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में 125 करोड़, कृषि एवं बागवानी के क्षेत्र में 96.5 करोड़, विनिर्माण उद्योग के क्षेत्र में 17191 करोड़, आईटी के क्षेत्र में 4628 करोड़, हेल्थ केयर के क्षेत्र में 16890 करोड़ और आयुष वेलनेस के क्षेत्र में 1751.55 करोड़ रुपये के प्रस्ताव पर एमओयू साइन किये गए. यानी, इस इन्वेस्टर्स समिट के बदौलत 673 निवेश प्रस्तावों पर एमओयू हुए.

केवल 13 हजार करोड़ हुए निवेश: वहीं, उद्योग मंत्री गणेश जोशी का कहना है कि 2018 में उत्तराखंड इन्वेस्टर्स समिट में 1 लाख 24 हजार के एमओयू साइन किए गए थे. इसके सापेक्ष में अभी तक केवल 13 हजार करोड़ का ही निवेश प्रदेश में आया है. हालांकि, इस बीच कोविड-19 और लॉकडाउन की दुश्वारियां के चलते निवेश की रफ्तार में थोड़ा कमी जरूर आई है, लेकिन सरकार का दावा है कि प्रदेश में इन्वेस्टर्स समिट का सकारात्मक असर हुआ है.

कांग्रेस ने उठाए सवाल: वहीं, 2018 में हुए इन्वेस्टर्स समिट को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस ने आरोप लगाए कि इन्वेस्टर्स समिट के लिए सरकार ने 60 करोड़ रुपए जनता के पैसे को बर्बाद कर दिया. कांग्रेस नेता लालचंद शर्मा ने कहा भाजपा केवल बड़े-बड़े कार्यक्रमों के जरिए दिखावा करती है, लेकिन उससे हासिल कुछ नहीं होता. इतना पैसा बर्बाद करने के बाद भी उत्तराखंड में कोई ऐसा उद्योग नजर नहीं आता, जैसा भाजपा दावा करती है.

ये भी पढ़ें: 'लापता' निवेशकों को ढूंढेगी उत्तराखंड सरकार, CM धामी को भरोसा जमेगा कारोबार

इन्वेस्टर्स समिट का दिखावा: कांग्रेस का कहना है कि आगामी कुछ महीनों में प्रदेश में चुनाव है. इसलिए एक बार फिर से सरकार इन्वेस्टर्स समित का दिखावा कर प्रदेश की बची हुई आर्थिकी को भी खत्म करना चाह रही है. सरकार जानती है कि अब दोबारा भाजपा सरकार प्रदेश में नहीं आनी है. इसलिए प्रदेश के सभी संसाधनों और आर्थिकी को खुर्द-बुर्द किया जा रहा है.

समय के साथ लोगों की टूटी उम्मीद: 2018 में जिस तरह से इन्वेस्टर्स समिट में उद्योगपतियों ने रुचि दिखाई थी. उससे जनता को प्रदेश में निवेश और रोजगार के नए अवसर आने की उम्मीद जगी थी. वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं है कि भाजपा को इस तरह के बड़े आयोजन करने में महारत हासिल है. जिस तरह से भाजपा ने प्रदेश में बड़ा निवेश आने और उससे होने वाले फायदे को लेकर दावा किया दिया था, वह समय के साथ धीरे-धीरे धरातल पर आने वाली तकनीकी समस्याओं के चलते पूरा नहीं हो पाया.

चुनावी साल में इन्वेस्टर्स कॉन्क्लेव: वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा ने कहा हालांकि सरकार ने इस इन्वेस्टर्स में उद्योगपतियों को जुटाने में कायमाब रही और करीब सवा लाख करोड़ का एमओयू भी साइन किया गया, लेकिन सरकारी तंत्र इसे अमलीजामा पहनाने में कामयाब नहीं रहा. अब एक और इन्वेस्टर्स कॉन्क्लेव की जा रही है. ऐसे में जाहिर कि चुनावी साल में एक बार फिर भाजपा एक बड़े इवेंट के रूप में जनता को मैसेज देना चाहती है, लेकिन यह कितना कारगर साबित होगा यह देखना होगा.

देहरादून: इस महीने मसूरी में होने वाले इन्वेस्टर्स कॉन्क्लेव को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है. अब यह कॉन्क्लेव अक्टूबर माह के दूसरे सप्ताह में होगा. वहीं, उत्तराखंड में इससे पहले भी देहरादून में 2018 में इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया गया था. जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हुए थे और हजारों करोड़ों का सरकार और कंपनियों के बीच एमओयू भी हुआ था.

इन्वेस्टर्स समिट में खर्च हुए 60 करोड़: उत्तराखंड में निवेश और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने पीएम मोदी की अध्यक्षता में इन्वेस्टर्स का आयोजन किया था. इस आयोजन में करीब 60 करोड़ का खर्च आया था. इस इन्वेस्टर्स समिट में बड़े-बड़े उद्योगपति उत्तराखंड आए थे. फिर चाहे अमूल ब्रांड हो या फिर अडानी-अंबानी ग्रुप. सभी ने इस इन्वेस्टर्स समिट में रुचि दिखाई थी. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस इन्वेस्टर्स समिट का शुभारंभ किया था.

1.25 लाख करोड़ का हुआ था: एमओयू इस इन्वेस्टर्स समिट में मुख्य रूप से ऊर्जा, पर्यटन, अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर, बायोटेक्नोलॉजी, कृषि एवं बागवानी, विनिर्माण उद्योग, आईटी, हेल्थ केयर और आयुष वेलनेस सेक्टर को शामिल किया गया था. क्योंकि, इन सेक्टर्स में निवेश की काफी संभावनाएं हैं. हालांकि, उस दौरान उम्मीद की जा रही थी कि करीब 80 हजार करोड़ तक निवेश पर एमओयू साइन हो जाएगा. खास बात यह रही कि उत्तराखंड में निवेश के लिए उद्योगपतियों ने इच्छा जाहिर की थी. इस कारण उम्मीद से ज्यादा यानी करीब 1.25 लाख करोड़ रुपए के प्रस्ताव पर एमओयू साइन हुए थे.

'लापता' इंवेस्टर्स खोजेंगे धामी

ये भी पढ़ें: गंगा पूजन के साथ कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के दूसरे चरण का ऐलान, जानें रणनीति

इन क्षेत्रों में हुआ था MoU: इसमें ऊर्जा के क्षेत्र में 40707.24 करोड़, पर्यटन के क्षेत्र में 15362.72 करोड़, अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में 14286.69 करोड़, बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में 125 करोड़, कृषि एवं बागवानी के क्षेत्र में 96.5 करोड़, विनिर्माण उद्योग के क्षेत्र में 17191 करोड़, आईटी के क्षेत्र में 4628 करोड़, हेल्थ केयर के क्षेत्र में 16890 करोड़ और आयुष वेलनेस के क्षेत्र में 1751.55 करोड़ रुपये के प्रस्ताव पर एमओयू साइन किये गए. यानी, इस इन्वेस्टर्स समिट के बदौलत 673 निवेश प्रस्तावों पर एमओयू हुए.

केवल 13 हजार करोड़ हुए निवेश: वहीं, उद्योग मंत्री गणेश जोशी का कहना है कि 2018 में उत्तराखंड इन्वेस्टर्स समिट में 1 लाख 24 हजार के एमओयू साइन किए गए थे. इसके सापेक्ष में अभी तक केवल 13 हजार करोड़ का ही निवेश प्रदेश में आया है. हालांकि, इस बीच कोविड-19 और लॉकडाउन की दुश्वारियां के चलते निवेश की रफ्तार में थोड़ा कमी जरूर आई है, लेकिन सरकार का दावा है कि प्रदेश में इन्वेस्टर्स समिट का सकारात्मक असर हुआ है.

कांग्रेस ने उठाए सवाल: वहीं, 2018 में हुए इन्वेस्टर्स समिट को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस ने आरोप लगाए कि इन्वेस्टर्स समिट के लिए सरकार ने 60 करोड़ रुपए जनता के पैसे को बर्बाद कर दिया. कांग्रेस नेता लालचंद शर्मा ने कहा भाजपा केवल बड़े-बड़े कार्यक्रमों के जरिए दिखावा करती है, लेकिन उससे हासिल कुछ नहीं होता. इतना पैसा बर्बाद करने के बाद भी उत्तराखंड में कोई ऐसा उद्योग नजर नहीं आता, जैसा भाजपा दावा करती है.

ये भी पढ़ें: 'लापता' निवेशकों को ढूंढेगी उत्तराखंड सरकार, CM धामी को भरोसा जमेगा कारोबार

इन्वेस्टर्स समिट का दिखावा: कांग्रेस का कहना है कि आगामी कुछ महीनों में प्रदेश में चुनाव है. इसलिए एक बार फिर से सरकार इन्वेस्टर्स समित का दिखावा कर प्रदेश की बची हुई आर्थिकी को भी खत्म करना चाह रही है. सरकार जानती है कि अब दोबारा भाजपा सरकार प्रदेश में नहीं आनी है. इसलिए प्रदेश के सभी संसाधनों और आर्थिकी को खुर्द-बुर्द किया जा रहा है.

समय के साथ लोगों की टूटी उम्मीद: 2018 में जिस तरह से इन्वेस्टर्स समिट में उद्योगपतियों ने रुचि दिखाई थी. उससे जनता को प्रदेश में निवेश और रोजगार के नए अवसर आने की उम्मीद जगी थी. वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं है कि भाजपा को इस तरह के बड़े आयोजन करने में महारत हासिल है. जिस तरह से भाजपा ने प्रदेश में बड़ा निवेश आने और उससे होने वाले फायदे को लेकर दावा किया दिया था, वह समय के साथ धीरे-धीरे धरातल पर आने वाली तकनीकी समस्याओं के चलते पूरा नहीं हो पाया.

चुनावी साल में इन्वेस्टर्स कॉन्क्लेव: वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा ने कहा हालांकि सरकार ने इस इन्वेस्टर्स में उद्योगपतियों को जुटाने में कायमाब रही और करीब सवा लाख करोड़ का एमओयू भी साइन किया गया, लेकिन सरकारी तंत्र इसे अमलीजामा पहनाने में कामयाब नहीं रहा. अब एक और इन्वेस्टर्स कॉन्क्लेव की जा रही है. ऐसे में जाहिर कि चुनावी साल में एक बार फिर भाजपा एक बड़े इवेंट के रूप में जनता को मैसेज देना चाहती है, लेकिन यह कितना कारगर साबित होगा यह देखना होगा.

Last Updated : Sep 16, 2021, 10:54 PM IST
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