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अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवसः हर चुनौती से निपटने के लिए तैयार है उत्तराखंड SDRF

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Published : Oct 13, 2019, 10:34 AM IST

Updated : Oct 13, 2019, 2:38 PM IST

आज अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस है.वर्ष 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बने उत्तराखंड SDRF की भूमिका को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है. दुनिया के बेहतरीन डिजास्टर फोर्स में शुमार SDRF ने विषम से विषम परिस्थितियों में बेहतरीन कार्य कर लाखों लोगों को मौत के मुंह से बाहर निकाला है.

अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिव

देहरादूनः देवभूमि उत्तराखंड में जितना हम में बसती हैं उतनी ही हम में देवभूमि बसती है. देवभूमि उत्तराखंड जितनी सुंदर है उतनी ही यहां प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम भी है. अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस के मौके पर आइए जानते हैं कि उत्तराखंड आपदाओं से निपटने के लिए कितना तैयार है, वह भी तब जब 2013 का बड़ा अनुभव हमारे सामने है. उत्तर प्रदेश से अलग हुआ पहाड़ी राज्य उत्तराखंड जितना खुद में असीम सुंदरता को समेटे हुए है उतनी ही यहां आपदाओं का भी बोलबाला है, जिसकी एक झलक उत्तराखंड राज्य मात्र अपनी 13 वर्ष की बाल्यावस्था में देख चुका है.

SDRF हर चुनौती से निपटने के लिए तैयार.

भौगोलिक दृष्टिकोण से उत्तराखंड राज्य जितनी विविधताओंं से भरा है उतनी ही यहां प्रकृति अपना कोहराम भी मचाती है. हर साल पूरा मानसून सीजन उत्तराखंड के लोगों के साथ-साथ राज्य सरकार की भी सांसें थामकर रखता है, तो वहीं हर साल आने वाली आपदाओं में कई जानें भी जाती हैं. आपदाओं की बात करें तो 2013 का उदाहरण हम सबके लिए सबसे बड़ा है.

2013 की आपदा ने खोल दी आंखें, भयावह था वो मंजर
16-17 जून 2013 की सुबह उत्तराखंड के केदारनाथ में खराब मौसम के साथ उजाला तो हुआ लेकिन शाम होते-होते त्रासदी का ऐसा अंधेरा छा गया जो अगली सुबह उत्तराखंड को अंदर से चकनाचूर कर चुका था. जून महीने के उस रविवार ने उत्तराखंड को ऐसे हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया जहां से उत्तराखंड अगले कई सालों तक जूझता रहा और अब 6 सालों बाद भी उत्तराखंड लगातार आपदा से जूझने के लिए तंत्र को मजबूत कर रहा है.

उस समय आपदा प्रबंधन का यह हाल था कि बचाव कार्य तो दूर की बात है, आपदा के कई दिनों बाद भी राज्य सरकार के पास नुकसान की सही जानकारी भी नहीं थी. आपदा के करीब तीन दिन बाद ही सरकार को केदारघाटी में हुए नुकसान का आंकलन लग पाया था और उसके बाद मात्र एनडीआरएफ और सेना के कंधों पर इस आपदा से उबरने की जिम्मेदारी थी. संसाधनों और कनेक्टिविटी के हालात इतने लचर थे कि केवल मीडिया रिपोर्ट्स ही सूचनाओं का एकमात्र जरिया बाकी बचा था.

बहरहाल, मात्र 13 साल की बाल्यावस्था में उत्तराखंड राज्य के सामने यह चुनौती कोई सामान्य चुनौती नहीं थी. इस तरह के हालातों का किसी ने दूर-दूर तक सोचा भी नहीं था, लिहाजा इस तरह की चुनौतियों के लिए प्रदेश का तैयार होना मुमकिन नहीं था, लेकिन इतनी बड़ी चुनौती के सामने आने के बाद राज्य सरकार ने गंभीरता दिखाते हुए इस बात को स्वीकार किया कि उत्तराखंड राज्य कोई सामान्य राज्य नहीं है, बल्कि विशेष परिस्थितियों वाला हिमालयी राज्य है, जहां इस तरह की चुनौतियों के लिए 24*7 तैयार रहना होगा.

आपदा के बाद लगातार प्रदेश सरकार ने आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण को लेकर तमाम तरह की पहल शुरू की. आज की तारीख में आपदा प्रबंधन इस तरह के हालातों से निपटने के लिए खुद को काफी हद तक तैयार मान रहा है.

बता दें कि वर्तमान में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण विभाग कितना मुस्तैद है और 6 सालों में इस तरह की दैवीय आपदाओं से निपटने के लिए क्या कुछ नया किया गया है. आपदा निदेशक पीयूष रौतेला ने आपदा प्रबंधन को लेकर तमाम बातें ईटीवी भारत को बताईं.

कितना मजबूत है उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन तंत्र
एसडीआरएफ का गठन
2013 की आपदा के बाद हालांकि हालात अचानक नियंत्रण से बाहर हुए थे, लेकिन इसके बावजूद भी राज्य सरकार के पास इन बिगड़े हुए हालातों से निपटने के लिए कुछ मजबूत रणनीति और तंत्र नहीं था. जिसकी कमी को 2013 की आपदा में सबसे ज्यादा महसूस किया गया. इस घटना के बाद राज्य सरकार द्वारा 2014 में स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स का गठन किया गया. उत्तराखंड राज्य आज उन कुछ चुनिंदा राज्यों की लिस्ट में जुड़ चुका है जिसके पास खुद की आधुनिक डिजास्टर रिस्पांस फोर्स मौजूद है.

कनेक्टिविटी में सुधार, 180 सेटेलाइट फोन, हर जिले में ड्रोन और वेदर स्टेशन की स्थापना
आपातकालीन संचार तंत्र को मजबूत किए जाने के लिए आपातकालीन परिचालन केंद्रों और प्रत्येक तहसील स्तर पर सेटेलाइट फोन उपलब्ध कराए गए. आज की तारीख में कुल 180 सैटेलाइट फोन आपदा प्रबंधन द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं.

राज्य के सभी जनपदों में जीआईएस सेल की स्थापना की गई है. आपदा के प्रभावी पर्यवेक्षण के लिए सभी जनपदों और राज्य स्तर पर 15 ड्रोन की व्यवस्था की गई है. राज्य सरकार द्वारा 107 ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन, 25 सरफेस फील्ड ऑब्जर्वेटरी, 28 ऑटोमेटिक रेन गेज और 16 स्नो गेज की स्थापना की गई है. जिसके उपयोग से ब्लॉक स्तर तक मौसम की जानकारी प्राप्त की जा सकती है.

आपदा प्रबंधन और न्यूनतम नुकसान के लिए आधारभूत सुधार
डिजास्टर रिस्पांस सिस्टम को मजबूत करने के लिए राज्य में आईआरएस लागू किया गया है. हर तहसील ब्लाक स्तर पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसके अलावा राज्य के प्रमुख विभागों के लिए विभागीय डिजास्टर मैनेजमेंट स्कीम और एसओपी को विकसित किया गया है. जनपदस्तरीय आपदा प्रबंधन कार्ययोजना को लगातार अपडेट किया जा रहा है.

राज्य में भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, त्वरित बाढ़ और औद्योगिक रिस्क के प्रति जोखिम आकलन के लिए कार्य प्रणाली तैयार की गई है. इस अध्ययन के अंतर्गत डिजास्टर रिस्क डेटाबेस बनाया गया है जिसका उपयोग आपदा के दौरान त्वरित निर्णय लेने में सहायक होगा.

आपदा के दौरान विभिन्न विभागों में समन्वय किए जाने और विभिन्न प्रकार के डेटाबेस का उपयोग त्वरित निर्णय लिए जाने के लिए क्विक रिस्पांस सिस्टम को डिवेलप किया गया है.

उत्तराखंड राज्य के 12,000 सरकारी भवनों में जिसमें कि स्कूल, अस्पताल, पुलिस चौकियां, पटवारी चौकियां और अन्य भवनों का रिस्क एसेसमेंट किया गया है. इसी कड़ी में राज्य के 90 अस्पतालों की रिट्रोफिटिंग परियोजनाएं तैयार की गईं हैं. 7 विद्यालयों का संरचनात्मक सुदृढ़ीकरण का कार्य किया गया है. प्रदेश की मुख्य नदी गंगा के किनारे 8 बार पूर्व चेतावनी हेतु सायरन की व्यवस्था की गई है.

नए शोध और संसाधनों में इजाफा
राज्य की प्रमुख नदियों जैसे कि मंदाकिनी, भागीरथी, अलकनंदा, काली नदी में मोरफोलॉजी अध्ययन किया गया है. उत्तराखंड रिवर डेवलपमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम यानी यूआरएमआईएस को क्रियान्वित किया गया है. भारत मौसम विज्ञान विभाग, कर्नाटक राज्य आपदा प्रबंधन केंद्र और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र के साथ समझौता किया गया है.

उत्तराखंड राज्य के भवन निर्माण बाइलॉज का राज्य के दृष्टिगत विकास किए जाने हेतु विस्तृत अध्ययन किया गया है. राज्य के अंतर्गत विभिन्न भूस्खलन क्षेत्रों का अध्ययन कर उनके सुदृढ़ीकरण प्रयोजना को तैयार किया जा रहा है. एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और आपदा प्रबंधन विभाग की रिसर्च एंड रेस्क्यू टीम के साथ ही भूस्खलन संभावित स्थानों पर मलबा हटाने के लिए उपकरणों की व्यवस्था की गई है. चमोली और रुद्रप्रयाग जनपदों का विस्तृत भूगर्भीय अध्ययन किया गया है.

जन सहभागिता और जनजागरुकता
राज्य के समस्त महिला एवं युवक मंगल दलों के लिए पांच सदस्य आपदा प्रबंधन संबंधित प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी है. 10 दिवसीय समयावधि की 652 सर्च एन्ड रेस्क्यू ट्रेनिंग, 1,600 स्वयंसेवकों का खोज एवं बचाव, प्राथमिक चिकित्सा में ट्रेनिंग, सात दिवसीय समयवधि की 56 राजमिस्त्री ट्रेनिंग, 1,514 राज्य में स्त्रियों का भूकंप सुरक्षित भवन निर्माण में ट्रेनिंग और इन ट्रेनिंग को निरंतरता में करने के लिए 4 संस्थानों के साथ अनुबंध किया गया है.

जनपद स्तर और राज्य स्तरीय अभ्यासों का आयोजन किया गया है. 400 विद्यालयों में आपदा प्रबंधन योजना तैयार कर ली गई है. आपदा प्रबंधन संबंधित विभिन्न विषयों पर 7 राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है आपदा जागरुकता हेतु प्रचार-प्रसार सामग्री की भी व्यवस्था की गई है.

देहरादूनः देवभूमि उत्तराखंड में जितना हम में बसती हैं उतनी ही हम में देवभूमि बसती है. देवभूमि उत्तराखंड जितनी सुंदर है उतनी ही यहां प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम भी है. अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस के मौके पर आइए जानते हैं कि उत्तराखंड आपदाओं से निपटने के लिए कितना तैयार है, वह भी तब जब 2013 का बड़ा अनुभव हमारे सामने है. उत्तर प्रदेश से अलग हुआ पहाड़ी राज्य उत्तराखंड जितना खुद में असीम सुंदरता को समेटे हुए है उतनी ही यहां आपदाओं का भी बोलबाला है, जिसकी एक झलक उत्तराखंड राज्य मात्र अपनी 13 वर्ष की बाल्यावस्था में देख चुका है.

SDRF हर चुनौती से निपटने के लिए तैयार.

भौगोलिक दृष्टिकोण से उत्तराखंड राज्य जितनी विविधताओंं से भरा है उतनी ही यहां प्रकृति अपना कोहराम भी मचाती है. हर साल पूरा मानसून सीजन उत्तराखंड के लोगों के साथ-साथ राज्य सरकार की भी सांसें थामकर रखता है, तो वहीं हर साल आने वाली आपदाओं में कई जानें भी जाती हैं. आपदाओं की बात करें तो 2013 का उदाहरण हम सबके लिए सबसे बड़ा है.

2013 की आपदा ने खोल दी आंखें, भयावह था वो मंजर
16-17 जून 2013 की सुबह उत्तराखंड के केदारनाथ में खराब मौसम के साथ उजाला तो हुआ लेकिन शाम होते-होते त्रासदी का ऐसा अंधेरा छा गया जो अगली सुबह उत्तराखंड को अंदर से चकनाचूर कर चुका था. जून महीने के उस रविवार ने उत्तराखंड को ऐसे हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया जहां से उत्तराखंड अगले कई सालों तक जूझता रहा और अब 6 सालों बाद भी उत्तराखंड लगातार आपदा से जूझने के लिए तंत्र को मजबूत कर रहा है.

उस समय आपदा प्रबंधन का यह हाल था कि बचाव कार्य तो दूर की बात है, आपदा के कई दिनों बाद भी राज्य सरकार के पास नुकसान की सही जानकारी भी नहीं थी. आपदा के करीब तीन दिन बाद ही सरकार को केदारघाटी में हुए नुकसान का आंकलन लग पाया था और उसके बाद मात्र एनडीआरएफ और सेना के कंधों पर इस आपदा से उबरने की जिम्मेदारी थी. संसाधनों और कनेक्टिविटी के हालात इतने लचर थे कि केवल मीडिया रिपोर्ट्स ही सूचनाओं का एकमात्र जरिया बाकी बचा था.

बहरहाल, मात्र 13 साल की बाल्यावस्था में उत्तराखंड राज्य के सामने यह चुनौती कोई सामान्य चुनौती नहीं थी. इस तरह के हालातों का किसी ने दूर-दूर तक सोचा भी नहीं था, लिहाजा इस तरह की चुनौतियों के लिए प्रदेश का तैयार होना मुमकिन नहीं था, लेकिन इतनी बड़ी चुनौती के सामने आने के बाद राज्य सरकार ने गंभीरता दिखाते हुए इस बात को स्वीकार किया कि उत्तराखंड राज्य कोई सामान्य राज्य नहीं है, बल्कि विशेष परिस्थितियों वाला हिमालयी राज्य है, जहां इस तरह की चुनौतियों के लिए 24*7 तैयार रहना होगा.

आपदा के बाद लगातार प्रदेश सरकार ने आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण को लेकर तमाम तरह की पहल शुरू की. आज की तारीख में आपदा प्रबंधन इस तरह के हालातों से निपटने के लिए खुद को काफी हद तक तैयार मान रहा है.

बता दें कि वर्तमान में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण विभाग कितना मुस्तैद है और 6 सालों में इस तरह की दैवीय आपदाओं से निपटने के लिए क्या कुछ नया किया गया है. आपदा निदेशक पीयूष रौतेला ने आपदा प्रबंधन को लेकर तमाम बातें ईटीवी भारत को बताईं.

कितना मजबूत है उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन तंत्र
एसडीआरएफ का गठन
2013 की आपदा के बाद हालांकि हालात अचानक नियंत्रण से बाहर हुए थे, लेकिन इसके बावजूद भी राज्य सरकार के पास इन बिगड़े हुए हालातों से निपटने के लिए कुछ मजबूत रणनीति और तंत्र नहीं था. जिसकी कमी को 2013 की आपदा में सबसे ज्यादा महसूस किया गया. इस घटना के बाद राज्य सरकार द्वारा 2014 में स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स का गठन किया गया. उत्तराखंड राज्य आज उन कुछ चुनिंदा राज्यों की लिस्ट में जुड़ चुका है जिसके पास खुद की आधुनिक डिजास्टर रिस्पांस फोर्स मौजूद है.

कनेक्टिविटी में सुधार, 180 सेटेलाइट फोन, हर जिले में ड्रोन और वेदर स्टेशन की स्थापना
आपातकालीन संचार तंत्र को मजबूत किए जाने के लिए आपातकालीन परिचालन केंद्रों और प्रत्येक तहसील स्तर पर सेटेलाइट फोन उपलब्ध कराए गए. आज की तारीख में कुल 180 सैटेलाइट फोन आपदा प्रबंधन द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं.

राज्य के सभी जनपदों में जीआईएस सेल की स्थापना की गई है. आपदा के प्रभावी पर्यवेक्षण के लिए सभी जनपदों और राज्य स्तर पर 15 ड्रोन की व्यवस्था की गई है. राज्य सरकार द्वारा 107 ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन, 25 सरफेस फील्ड ऑब्जर्वेटरी, 28 ऑटोमेटिक रेन गेज और 16 स्नो गेज की स्थापना की गई है. जिसके उपयोग से ब्लॉक स्तर तक मौसम की जानकारी प्राप्त की जा सकती है.

आपदा प्रबंधन और न्यूनतम नुकसान के लिए आधारभूत सुधार
डिजास्टर रिस्पांस सिस्टम को मजबूत करने के लिए राज्य में आईआरएस लागू किया गया है. हर तहसील ब्लाक स्तर पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसके अलावा राज्य के प्रमुख विभागों के लिए विभागीय डिजास्टर मैनेजमेंट स्कीम और एसओपी को विकसित किया गया है. जनपदस्तरीय आपदा प्रबंधन कार्ययोजना को लगातार अपडेट किया जा रहा है.

राज्य में भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, त्वरित बाढ़ और औद्योगिक रिस्क के प्रति जोखिम आकलन के लिए कार्य प्रणाली तैयार की गई है. इस अध्ययन के अंतर्गत डिजास्टर रिस्क डेटाबेस बनाया गया है जिसका उपयोग आपदा के दौरान त्वरित निर्णय लेने में सहायक होगा.

आपदा के दौरान विभिन्न विभागों में समन्वय किए जाने और विभिन्न प्रकार के डेटाबेस का उपयोग त्वरित निर्णय लिए जाने के लिए क्विक रिस्पांस सिस्टम को डिवेलप किया गया है.

उत्तराखंड राज्य के 12,000 सरकारी भवनों में जिसमें कि स्कूल, अस्पताल, पुलिस चौकियां, पटवारी चौकियां और अन्य भवनों का रिस्क एसेसमेंट किया गया है. इसी कड़ी में राज्य के 90 अस्पतालों की रिट्रोफिटिंग परियोजनाएं तैयार की गईं हैं. 7 विद्यालयों का संरचनात्मक सुदृढ़ीकरण का कार्य किया गया है. प्रदेश की मुख्य नदी गंगा के किनारे 8 बार पूर्व चेतावनी हेतु सायरन की व्यवस्था की गई है.

नए शोध और संसाधनों में इजाफा
राज्य की प्रमुख नदियों जैसे कि मंदाकिनी, भागीरथी, अलकनंदा, काली नदी में मोरफोलॉजी अध्ययन किया गया है. उत्तराखंड रिवर डेवलपमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम यानी यूआरएमआईएस को क्रियान्वित किया गया है. भारत मौसम विज्ञान विभाग, कर्नाटक राज्य आपदा प्रबंधन केंद्र और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र के साथ समझौता किया गया है.

उत्तराखंड राज्य के भवन निर्माण बाइलॉज का राज्य के दृष्टिगत विकास किए जाने हेतु विस्तृत अध्ययन किया गया है. राज्य के अंतर्गत विभिन्न भूस्खलन क्षेत्रों का अध्ययन कर उनके सुदृढ़ीकरण प्रयोजना को तैयार किया जा रहा है. एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और आपदा प्रबंधन विभाग की रिसर्च एंड रेस्क्यू टीम के साथ ही भूस्खलन संभावित स्थानों पर मलबा हटाने के लिए उपकरणों की व्यवस्था की गई है. चमोली और रुद्रप्रयाग जनपदों का विस्तृत भूगर्भीय अध्ययन किया गया है.

जन सहभागिता और जनजागरुकता
राज्य के समस्त महिला एवं युवक मंगल दलों के लिए पांच सदस्य आपदा प्रबंधन संबंधित प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी है. 10 दिवसीय समयावधि की 652 सर्च एन्ड रेस्क्यू ट्रेनिंग, 1,600 स्वयंसेवकों का खोज एवं बचाव, प्राथमिक चिकित्सा में ट्रेनिंग, सात दिवसीय समयवधि की 56 राजमिस्त्री ट्रेनिंग, 1,514 राज्य में स्त्रियों का भूकंप सुरक्षित भवन निर्माण में ट्रेनिंग और इन ट्रेनिंग को निरंतरता में करने के लिए 4 संस्थानों के साथ अनुबंध किया गया है.

जनपद स्तर और राज्य स्तरीय अभ्यासों का आयोजन किया गया है. 400 विद्यालयों में आपदा प्रबंधन योजना तैयार कर ली गई है. आपदा प्रबंधन संबंधित विभिन्न विषयों पर 7 राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है आपदा जागरुकता हेतु प्रचार-प्रसार सामग्री की भी व्यवस्था की गई है.

Intro:Special Story on---
international day for natural disaster reduction---

Note- इस खबर की वीसुअल बाइट FTP से (uk_deh_02_international_day_for_natural_disaster_reduction_kitne_teyar_ham_pkg_7205800) नाम से भेजी गई है।

एंकर- देवभूमि उत्तराखंड में जितना हम में बसती हैं उतनी ही हम में देवभूमि बसती है। देवभूमि उत्तराखंड जितनी सुंदर है उतना ही यहां प्राकृतिक आपदाओं का भी जोखिम है। अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस के मौके पर आइए जानते हैं उत्तराखंड आपदाओं से निपटने के लिए कितना तैयार है वह भी तब जब 2013 का बड़ा अनुभव हमारे सामने है। जानते हैं उत्तराखंड राज्य आपदाओं के लिए कितना तैयार है....


Body:वीओ- उत्तर प्रदेश राज्य से अलग हुआ पहाड़ी राज्य उत्तराखंड जितना खुद में असीम सुंदरता को समेटे हुए हैं उतनी यहां आपदाओं का भी बोलबाला है, जिसकी एक झलक उत्तराखंड राज्य मात्र अपनी 13 वर्ष की बाल्यावस्था में देख चुका है। भौगोलिक दृष्टिकोण से उत्तराखंड राज्य जितनी विविधता भरा है उतना ही यहां प्रकृति अपना कोहराम भी मचाती है। हर साल पूरा मानसून सीजन उत्तराखंड के लोगों के साथ-साथ राज्य सरकार की सांसे थाम कर रखता है। तो वहीं हर साल आने वाली आपदाओं में कई जाने भी जाती है। आपदाओं की बात करें तो 2013 का उदाहरण हम सब के लिए सबसे बड़ा है।

2013 की आपदा ने खोल दी आंख भयावय था वो मंजर---
16 जून 2013 की सुबह उत्तराखंड के केदारनाथ में खराब मौसम के साथ उजाला तो हुआ लेकिन शाम होते-होते त्रासदी का ऐसा अंधेरा छा गया जो अगली सुबह उत्तराखंड को अंदर से चकनाचूर कर चुका था। जून महीने के उस रविवार ने उत्तराखंड को ऐसे हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया जहां से उत्तराखंड अगले कई सालों तक जूझता रहा और अब 6 सालों बाद भी उत्तराखंड लगातार आपदा से जूझने के लिए तंत्र को मजबूत कर रहा है। उस समय आपदा प्रबंधन का यह हाल था कि बचाव कार्य तो दूर की बात है, आपदा के कई दिनों बाद भी राज्य सरकार के पास नुकसान की भी जानकारी नहीं थी आपदा के करीब 3 दिन बाद सरकार को केदारघाटी में हुए नुकसान का आकलन लग पाया था और उसके बाद मात्र एनडीआरएफ और सेना के कंधों पर इस आपदा से उबरने की जिम्मेदारी थी संसाधनों और कनेक्टिविटी के हालात इतने लचर थे कि केवल मीडिया रिपोर्ट्स ही सूचनाओं का एकमात्र जरिया बाकी बचा था।

बहरहाल मात्र 13 साल की बाल्यावस्था में उत्तराखंड राज्य के सामने यह चुनौती कोई सामान्य चुनौती नहीं थी। इस तरह के हालातों का किसी ने दूर-दूर तक सोचा नहीं था, लिहाजा स्वभाविक है कि इस तरह की चुनौतियों के लिए प्रदेश का तैयार होना मुमकिन नहीं था। लेकिन इतनी बड़ी चुनौती के सामने आने के बाद राज्य सरकार ने गंभीरता दिखाते हुए इस बात को स्वीकार किया कि उत्तराखंड राज्य कोई सामान्य राज्य नहीं है। बल्कि विशेष परिस्थितियों वाला हिमालय राज्य है। जहां इस तरह की चुनौतियों के लिए 24 घंटा तैयार रहना होगा। आपदा के बाद लगातार प्रदेश सरकार ने आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण को लेकर तमाम तरह की पहल शुरू की। आज की तारीख में आपदा प्रबंधन इस तरह के हालातों से निपटने के लिए खुद को काफी हद तक तैयार मान रहा है।
आइए आपको बताते हैं कि आज की तारीख में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण विभाग कितना मुस्तैद है और 6 सालों में इस तरह की दैवीय आपदाओं से निपटने के लिए क्या कुछ नया किया गया है। आपदा निदेशक पीयूष रौतेला ने आपदा प्रबंधन को लेकर तमाम बातें ईटीवी भारत को बताई।

बाइट- पीयूष रौतेला, निदेशक आपदा प्रबंधन


कितना मजबूत है उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन तंत्र---

1- एसडीआरएफ का गठन ----
13 की आपदा के बाद हालांकि हालत अचानक नियंत्रण से बाहर हुए थे लेकिन इसके बावजूद भी राज्य सरकार के पास इन बिगड़े हुए हालातों से निपटने के लिए कुछ मजबूत रणनीति और तंत्र नहीं था। जिसकी कमी को 13 की आपदा में सबसे ज्यादा महसूस किया गया और इस घटना के बाद राज्य सरकार द्वारा 2014 में स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स का गठन किया गया। उत्तराखंड राज्य आज उन कुछ चुनिंदा राज्यों की लिस्ट में जुड़ चुका है जिनके पास खुद की आधुनिक डिजास्टर रिस्पांस फोर्स मौजूद है।

2- कनेक्टिविटी में सुधार 180 सेटेलाइट फोन हर जिले में ड्रोन और वेदर स्टेशन की स्थापना--
आपातकालीन संचार तंत्र को मजबूत किए जाने के लिए आपातकालीन परिचालन केंद्रों और प्रत्येक तहसील स्तर पर सेटेलाइट फोन उपलब्ध कराए गए। आज की तारीख में कुल 180 सैटेलाइट फोन आपदा प्रबंधन द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं। राज्य के सभी जनपदों में जीआईएस सेल की स्थापना की गई है। आपदा के प्रभावी पर्यवेक्षण के लिए सभी जनपदों और राज्य स्तर पर 15 ड्रोनों की व्यवस्था की गई है। राज्य सरकार द्वारा 107 ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन, 25 सरफेस फील्ड ऑब्जर्वेटरी, 28 ऑटोमेटिक रेन गेज और 16 स्नो गेज की स्थापना की गई है। जिसके उपयोग से ब्लॉक स्तर तक मौसम की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

3- आपदा प्रबंधन और न्यूनतम नुकसान के लिए आधारभूत सुधार---
डिजास्टर रिस्पांस सिस्टम को मजबूत करने के लिए राज्य में आईआरएस लागू किया गया है और हर तहसील ब्लाक स्तर पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके अलावा राज्य के प्रमुख विभागों के लिए विभागीय डिजास्टर मैनेजमेंट स्कीम और एसओपी को विकसित किया गया है। जनपद स्तरीय आपदा प्रबंधन कार्ययोजना का लगातार को लगातार अपडेट किया जा रहा है। राज्य में भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, त्वरित बाढ़ और औद्योगिक रिस्क के प्रति घातकता और जोखिम आकलन के लिए कार्य प्रणाली तैयार की गई है। इस अध्ययन के अंतर्गत डिजास्टर रिस्क डेटाबेस बनाया गया है जिसका उपयोग आपदा के दौरान त्वरित निर्णय लेने में सहायक होगा। आपदा के दौरान विभिन्न विभागों में समन्वय किए जाने और विभिन्न प्रकार के डेटाबेस का उपयोग त्वरित निर्णय लिए जाने के लिए क्विक रिस्पांस सिस्टम को डिवेलप किया गया है। उत्तराखंड राज्य के 12000 सरकारी भवनों में जिसमें कि स्कूल, अस्पताल, पुलिस चौकियां, पटवारी चौकियां और अन्य भवनों का रिस्क एसेसमेंट किया गया है। इसी कड़ी में राज्य के 90 अस्पतालों की रिट्रोफिटिंग परियोजनाएं तैयार की गई है। 7 विद्यालयों का संरचनात्मक सुदृढ़ीकरण का कार्य किया गया है। प्रदेश की मुख्य नदी गंगा के किनारे 8 बार पूर्व चेतावनी हेतु सायरन की व्यवस्था की गई है।

4- नए शोध और संसाधनों में इजाफा---
राज्य की प्रमुख नदियों जैसे कि मंदाकिनी भागीरथी अलकनंदा काली नदी में मोरफ़ोलॉजी अध्ययन किया गया है। उत्तराखंड रिवर डेवलपमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम यानी यूआरएमआईएस को क्रियान्वित किया गया है। भारत मौसम विज्ञान विभाग, कर्नाटका राज्य आपदा प्रबंधन केंद्र और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (इसरो) के साथ समझौता किया गया है। उत्तराखंड राज्य के भवन निर्माण बाइलॉज का राज्य के दृष्टिगत विकास किए जाने हेतु विस्तृत अध्ययन किया गया है। राज्य के अंतर्गत विभिन्न भूस्खलन क्षेत्रों का अध्ययन कर उनके सुदृढ़ीकरण प्रयोजना को तैयार किया जा रहा है। एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और आपदा प्रबंधन विभाग की रिसर्च एंड रेस्क्यू टीम के साथ ही भूस्खलन संभावित स्थानों पर मलबा हटाने के लिए उपकरणों की व्यवस्था की गई है। चमोली और रुद्रप्रयाग जनपदों का विस्तृत भूगर्भीय अध्ययन किया गया है।

5- जन सहभागिता और जन जागरूकता--
राज्य के समस्त महिला एवं युवक मंगल दलों के लिए पांच सदस्य आपदा प्रबंधन संबंधित प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी है। 10 दिवसीय समयावधि की 652 सर्च एन्ड रेस्क्यू ट्रेनिंग, 1600 स्वयंसेवकों का खोज एवं बचाव, प्राथमिक चिकित्सा में ट्रेनिंग, सात दिवसीय समयवधि की 56 राजमिस्त्री ट्रेनिंग, 1514 राज्य में स्त्रियों का भूकंप सुरक्षित भवन निर्माण में ट्रेनिंग और इन ट्रेनिंग को निरंतरता में करने के लिए 4 संस्थानों के साथ अनुबंध किया गया है। जनपद स्तर और राज्य स्तरीय अभ्यासों का आयोजन किया गया है। 400 विद्यालयों में आपदा प्रबंधन योजना तैयार कर ली गई है। आपदा प्रबंधन संबंधित विभिन्न विषयों पर 7 राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है आपदा जागरूकता हेतु प्रचार-प्रसार सामग्री की भी व्यवस्था की गई है।

पीटीसी धीरज देहरादून


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Last Updated : Oct 13, 2019, 2:38 PM IST
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