देहरादूनः उत्तराखंड विधानसभा सत्र (Uttarakhand Assembly Session) के दौरान देहरादून के रिस्पना पुल के पास ट्रैफिक में समस्याओं से जूझते हुए आपके जेहन में ये बात जरूर आती होगी कि इस विधानसभा सत्र से आपका क्या भला होगा और क्या लेना देना है? विधानसभा सत्र में होने वाली हर एक बात का सीधा सरोकार आप से ही यानी की राज्य की जनता होता है, लेकिन कैसे?
प्रदेश की जनता का आईना होता है विधानसभा सत्रः दरअसल, विधानसभा सत्र के दौरान राज्य निर्माण का काम होता है. उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो राज्य की 70 विधानसभा सीटों से जीत कर आने वाले सभी 70 विधायक सदन के माननीय सदस्य होते हैं. इन सभी 70 विधायकों की मौलिक जिम्मेदारी होती है कि वो अपने विधानसभा क्षेत्र के साथ-साथ राज्य के महत्वपूर्ण विषयों पर सदन में चर्चा करें. इसमें एक तरफ सरकार होती है तो दूसरी तरफ सदन के बाकी सारे सदस्य. सरकार की तरफ से सरकार के सभी मंत्री जवाब देते हैं तो वहीं सदस्यों में ज्यादातर विपक्ष के विधायक सवाल उठाते हैं.
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हालांकि, अधिकार सत्ता पक्ष के सदस्यों के पास भी सवाल उठाने के उतने ही होते हैं. विधानसभा में होनी वाली हर एक चर्चा नियमों और परंपराओं के तहत होती है और सदन के अंदर होने वाली हर एक चर्चा को लिखित में सदन की कार्यवाही के रूप में नोट किया जाता है. सदन के वो महत्वपूर्ण नियम क्या होतें हैं और कैसे सदन के सदस्य अपनी बातें सदन में रखते हैं, आइए जानते हैं.
सवाल पूछने के नियम और परम्पराएंः चाहे वो देश की राजधानी में चलने वाला संसदीय सत्र हो या फिर राज्य की राजधानी में चलने वाला विधानसभा सत्र, हर एक सदन की अपनी नियमावली होती है. उत्तराखंड विधानसभा सत्र की अगर हम बात करें तो उत्तराखंड विधानसभा की तकरीबन 350 बिंदुओं की अपनी एक नियमावली है. इन सभी 350 नियमों के आधार पर विधानसभा की कार्यवाही संचालित की जाती है.
इन सभी नियमों में विधानसभा की शक्तियां विधानसभा के कर्तव्य और विधानसभा सदन के भीतर पूछे जाने वाले सवालों को लेकर भी नियम बनाए गए हैं. सवाल पूछने के लिए बनाए गए इन नियमों में से कुछ सामान्य नियम हैं. कुछ याचिकाएं हैं तो वहीं कुछ नियम बेहद गंभीर हैं, जिन नियमों के तहत सवाल को अगर विधानसभा अध्यक्ष की ओर से सुनने के लिए अनुमति दी जाती है तो इन सवालों की चर्चा से सत्ता पक्ष के लिए परेशानी भी खड़ी हो सकती है.
विधानसभा सत्र के दौरान पूरे दिन की दिनचर्या की अगर हम बात करें तो सुबह 11 बजे सदन शुरू होने पर सबसे पहले एक घंटा 20 मिनट का प्रश्नकाल होता है. जिसमें अल्प सूचित तारांकित और अतारांकित सवाल किए जाते हैं. इन सवाल-जवाब में सत्ता और विपक्ष कोई भी विधायक हिस्सा ले सकता है तो वहीं इसके अलावा कुछ और सख्त नियमों पर जैसे कि नियम 58, नियम 300 में कार्य स्थगन के प्रस्ताव पर सवाल किए जाते हैं. जिसमें चर्चा काफी गंभीरता से होती है.
नियम 310 की चर्चा से क्यों कांपती है सरकार, जानें आखिरी बार कब हुई थी चर्चाः विधानसभा सत्र के दौरान यदि नियम 310 के तहत किसी विषय पर चर्चा की मांग की जाती है तो यह काफी गंभीर माना जाता है. दरअसल, कुछ बेहद महत्वपूर्ण विषयों के लिए विधानसभा की नियमावली में नियम 310 एक ऐसा नियम रखा गया है कि इस नियम के तहत अगर विधानसभा अध्यक्ष चर्चा को स्वीकार करता है तो नियम 310 पर की जा रही चर्चा के दौरान विधानसभा सत्र के बाकी सारे नियम निलंबित कर दिए जाते हैं. यानी नियम 310 पर की जा रही चर्चा के दौरान पूरा कामकाज छोड़कर केवल उसी विषय पर चर्चा की जाएगी और यह बेहद गंभीर माना जाता है.
इस पर चर्चा को लेकर हर एक सरकार बचना चाहती है तो वहीं दूसरी तरफ विधानसभा अध्यक्ष का भी यह विवेक होता है कि वो छोटे विषय को नहीं, बल्कि बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय को ही इस नियम में स्वीकार करते हैं. उत्तराखंड के इतिहास की अगर बात करें तो अब तक केवल दो बार ही नियम 310 के तहत चर्चा की गई है, जिसमें से पहली दफा जब एनडी तिवारी सरकार के दौरान देश में सुनामी आई थी. दूसरी बार साल 2013 में जब केदारनाथ आपदा आई थी. उसके बाद भी नियम 310 के तहत विधानसभा सत्र में चर्चा को स्वीकार किया गया था.
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एक साल में 60 दिन चलना चाहिए सदनः वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जय सिंह रावत के शब्दों में विधानसभा प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत होती है. विधानसभा में राज्य के अतीत से लिए गए अनुभव पर चर्चा करते हुए प्रदेश के भविष्य को तय किया जाता है. उत्तराखंड की एक करोड़ की आबादी और उनकी भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है, उत्तराखंड विधानसभा. विधानसभा इसलिए विशेष है, क्योंकि इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही आते हैं. यानी बिना विपक्ष के विधानसभा की परिकल्पना अधूरी है.
नियम ये है कि साल के 365 दिनों में से कम से कम 60 दिन से ज्यादा सदन चलना चाहिए. लेकिन वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि उत्तराखंड में 7 दिन के बजाय 20 दिन भी पूरे साल भर में सदन नहीं चल पाता है. वहीं, इसके अलावा विधानसभा में पूछे जाने वाले हर एक सवाल का जवाब संतुष्टि से मिलना भी एक स्वस्थ विधानसभा का बड़ा मानक होता है.
विधानसभा की शक्तियां अपने आप में सुप्रीम, पीठ का सम्मान सर्वोपरिः हमारे संविधान के तीन मजबूत स्तंभ माने गए हैं कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका. इन तीनों की विशेषता ये होती है कि यह अपने आप में स्वतंत्र और पावरफुल होती हैं. इसी तरह से विधानसभा विधायिका में आती है और विधानसभा सत्र के दौरान या फिर विधानसभा में विधानसभा अध्यक्ष की अपनी कुछ विशेष शक्तियां होती हैं. यही वजह है कि विधानसभा या फिर विधानसभा सदन के दौरान जिस पीठ पर विधानसभा अध्यक्ष विराजमान होते हैं, उस पीठ का संसदीय परंपराओं में बेहद सम्मान किया जाता है और पीठ की अवमानना बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं होती है.
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत के अनुसार विधानसभा सदन में आदर सम्मान का विशेष तौर से ध्यान रखा जाता है. उन्होंने बताया कि विधानसभा की जो पीठ होती है, उसको इंगित नहीं किया जा सकता है. यानी उसकी तरफ उंगली नहीं दिखाई जा सकती है. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष की तरफ पीठ नहीं की जा सकती है. विधानसभा में विधानसभा अध्यक्ष का जो फैसला होता है, वो सर्वोच्च होता है. जिसमें ना तो न्यायपालिका यानी कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है और ना ही कार्यपालिका यानी शासन हस्तक्षेप कर सकता है.
यही वजह है कि विधानसभा परिसर में जैसे ही कोई सदस्य प्रवेश करता है तो वो विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों की परिधि में आज जाता है. इस दौरान कोई विधायक हो या फिर कोई मंत्री हो सरकार की ओर से उसे मुहैया कराए गए सुरक्षाकर्मी किसी भी तरह का हथियार परिसर में नहीं ला सकते हैं. विधानसभा परिसर में सुरक्षा के लिए विधानसभा के अपने मार्शल होते हैं और सबसे रोचक बात यह है कि कई बार किसी विधायक के खिलाफ जब कोर्ट से वारंट जारी होता है या फिर किसी भी तरह का कोई कानून उस पर लागू हो रहा होता है, अगर वो किसी तरह से विधानसभा परिसर के अंदर आ जाता है तो उस पर वह कानून लागू नहीं होते हैं.
इतिहास में पहली दफा विधायिका में हुआ था न्यायपालिका का हस्तक्षेपः यह कहा जाता है कि भारत के संविधान के तीनों स्तंभ- कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका अपने आप में स्वतंत्र और मजबूत हैं, लेकिन देशकाल परिस्थितियों में जब कभी भी इनमें से कोई भी स्तंभ कमजोर होता है तो दूसरा स्तंभ उस पर हावी होने का प्रयास करता है. ऐसा ही एक उदाहरण देश के इतिहास में पहली दफा उत्तराखंड में तब घटा जब 2016 में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार गिरी और कमजोर हो चुकी विधायिका के इस मामले को न्यायालय की शरण में ले जाया गया. तब पहली दफा ऐसा हुआ था कि विधायिका में न्यायपालिका ने हस्तक्षेप किया था.
उस दिन को उत्तराखंड के राजनीतिज्ञ आज भी लोकतंत्र की हत्या के रूप में देखते हैं, जब हरीश रावत की सरकार का फ्लोर टेस्ट विधानसभा में कोर्ट के प्रतिनिधित्व की मौजूदगी में किया गया. तब पहली दफा ऐसा हुआ था, जब विधानसभा सदन के भीतर कोर्ट के प्रतिनिधित्व के तौर पर न्याय सचिव को अप्वॉइंट किया गया और न्याय सचिव की मौजूदगी में ही हरीश रावत का फ्लोर टेस्ट हुआ. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की बहाली हुई.
जानकारों का कहना है कि संविधान के इन तीनों स्तंभों में संतुलन बनाए रखने के लिए तीनों स्तंभ का मजबूत होना बेहद जरूरी है. कहीं पर भी कोई कमजोर पड़ता है तो दूसरा उस पर हावी होने का प्रयास करता है. साल 2016 की एक घटना में मजबूत विधायिका अपनी शक्तियों के आधार पर निपटारा कर लेती तो सुप्रीम कोर्ट को विधानसभा में दखल देने की जरूरत नहीं पड़ती.
नये विधायकों के लिए विधानसभा में सीखने के लिए बहुत कुछः हर 5 साल में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद विधानसभा में कई नए सदस्य विधायक बनकर पहुंचते हैं. ऐसे में नए विधायकों के लिए विधानसभा में अपनी बात रखने के लिए नियमों की जानकारी के साथ ही सदन की गरिमा के साथ-साथ संसदीय परंपराओं के बारे में सीखने के लिए बहुत कुछ मिलता है. पिछले 4 बार से लगातार विधायक रहे प्रीतम सिंह पंवार बताते हैं कि विधानसभा सत्र के दौरान सदन के भीतर विधायक के कई कर्तव्य होते हैं, वो कई परंपराओं से बने हुए रहते हैं. उन्होंने बताया कि विधानसभा सदन के भीतर पीठ का सम्मान और सदन की गरिमा सर्वोपरि है.
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सदन के भीतर अपने सवाल पूछने के तरीकों में महारत रखने वाले वरिष्ठ विधायक प्रीतम सिंह पंवार (MLA Pritam Singh Panwar) बताते हैं कि सदन में आने वाले हर एक विधायक को संसदीय कार्यप्रणाली के बारे में सीखने के लिए बहुत कुछ है. उन्होंने कहा कि अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से जीत कर आने वाले हर एक विधायक की यहां मौलिक जिम्मेदारी है कि वो अपने क्षेत्र की समस्याओं को बेहद सादगी और गरिमा के साथ नियमों के अधीन रखकर सदन में उठाएं. अपनी बात रखने से पहले सदन की नियमावली और सदन की परंपरा का ज्ञान लें, ताकि संसदीय कार्य प्रणाली में वह निपुण होकर सत्ता पक्ष से बेहद खूबसूरती से सवाल कर सके.
संसदीय कार्यप्रणाली का ज्ञान चाहिए तो आ सकते हैं विधानसभाः विधानसभा सत्र के दौरान की जाने वाली सभी कार्य प्रणालियों को लेकर विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी का कहना है कि संसदीय परंपराओं को सीखने-जानने और इन नियम परंपराओं के तहत अपनी बात को सदन में रखने व सत्ता से सवाल पूछने के संबंध में सदस्यों को सीखने के लिए बहुत कुछ है. उन्होंने बताया कि संसदीय परंपराओं को लेकर जहां उनकी पूरी कोशिश होती है कि हर एक नियम कानून का बेहद सटीकता से पालन हो तो वहीं विधानसभा अध्यक्ष का यह कहना है कि विधानसभा में होने वाली कार्रवाई को लेकर आमजन को भी रुचि लेनी चाहिए.
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी (Uttarakhand Assembly Speaker Ritu Khanduri) का कहना है कि आने वाली युवा पीढ़ी और राजनीति या फिर अन्य क्षेत्रों में भी रुचि रखने वाले छात्रों को विधानसभा में होने वाली कार्यवाही को जरूर देखना चाहिए. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड की विधानसभा में उन्होंने प्रावधान रखा है कि अगर कोई विधानसभा सत्र में होने वाली कार्यवाही को देखना चाहता है तो वो उत्तराखंड विधानसभा में अपना आवेदन कर सकता है और वो दर्शक दीर्घा में बैठकर विधानसभा में होने वाली हर एक कार्यवाही को देख सकता है.