मसूरी: शिफन कोर्ट के बेघर 84 परिवार 19 नंवबर से नगर पालिका परिषद के परिसर में विस्थापन की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरना प्रर्दशन करेंगे. मसूरी के एक होटल के सभागार में आयोजित बैठक में निर्णय लिया गया कि जब तक मसूरी शिफन कोर्ट के बेघर 84 परिवारों का नगर पालिका प्रशासन जमीन या आवास उपलब्ध नहीं करा देता, तब तक वह नगर पालिका परिषद के प्राग्रण में अनिश्चितकालीन धरना प्रर्दशन करते रहेंगे.
शिफन कोर्ट आवासहीन निर्बल मजदूर वर्ग एवं अनुसूचित जाति संघर्ष समिति के संयोजक प्रदीप भंडारी और अध्यक्ष संजय टम्टा ने कहा कि नगर पालिका परिषद ने झूठे तथ्यों के आधार पर शिफन कोर्ट के 84 गरीब मजदूर परिवारों को 20 नवंबर 2020 को जबरन हटाकर उनके अवासों को ध्वस्त कर दिया गया था. उन्होंने कहा कि मसूरी नगर पालिका परिषद द्वारा शासन प्रशासन व न्यायालय को पूरी तरह गुमराह किया गया है. उन्होंने बताया कि शिफन कोर्ट परिवारों को खुद नगर पालिका परिषद ने बहुआवासीय भवन बनाकर 80 साल पहले साल 1939 में दिए गए थे.
पढ़ें- सरकार से आरपार की लड़ाई के मूड में शिफन कोर्ट के बेघर, 19 से देंगे बेमियादी धरना
उन्होंने कहा कि 20 अगस्त 2020 और उससे पहले नगर प्रशासन, पालिका प्रशासन व मसूरी विधायक गणेश जोशी ने वादा किया था कि वे 15 दिन के भीतर हमें विधिवत आवास उपलब्ध करा देंगे. नगर पालिका अध्यक्ष अनुज गुप्ता और मसूरी विधायक गणेश जोशी ने दर्जनों बार आवास उपलब्ध कराने के वादे किये जो पूरी तरह झूठे व छलावे साबित हुए हैं. सवा साल बाद भी शिफन कोर्ट के लोग सड़कों और हवाघरों में जानवरों के आवास में रात बिताने को मजबूर हैं. साधनों के अभाव में उनके बच्चों भविष्य अंधकार में है. सभी संबंधित संस्थाएं, आयोग और सरकार असंवेदनशील बनी हुई हैं.
क्या है शिफन कोर्ट विवाद: बता दें, पुरुकुल को मसूरी से जोड़ने के लिए कुछ साल पहले पर्यटन विभाग ने यहां रोपवे बनाने की योजना तैयार की थी. सरकार से इसको मंजूरी मिलने के बाद रोपवे निर्माण के लिए फ्रांस की एक कंपनी से करार भी कर लिया था. लेकिन ऐन वक्त पर मसूरी में लाइब्रेरी बस स्टैंड के नीचे बसी अवैध मजदूर बस्ती शिफन कोट ने इस काम में रोड़ा अटका दिया था. यह बस्ती नगर पालिका मसूरी की जमीन पर बसी हुई थी. जिसके बाद पुलिस और प्रशासन ने जबरन शिफन कोर्ट से अतिक्रमण को पूरी तरह से मुक्त करवा दिया.