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पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों का माननीयों पर नहीं पड़ता असर, जानिए क्या है वजह

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Published : Jun 30, 2020, 2:41 PM IST

देश में पेट्रोल-डीजल के दाम इन दिनों आसमान छू रहे हैं. कोरोना काल में अधिक संख्या में लोग बेरोजगार हो चुके हैं, ऊपर से सरकार आए दिन पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी कर रही है. ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का देश भर में विरोध-प्रदर्शन जारी है.

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पेट्रोल-डीजल के बढ़े दामों से बेफिक्र अधिकारी.

देहरादून: भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम इन दिनों आसमान छू रहे हैं. कोरोना काल में अधिक संख्या में लोग बेरोजगार हो चुके हैं, ऊपर से सरकार आए दिन पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी कर रही है. ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ता देश भर में विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन माननीयों पर इन बढ़ी हुई कीमतों का कोई खास असर नहीं पड़ता दिख रहा है. यही नहीं शासन के बड़े अधिकारी भी पेट्रोल डीजल की बढ़ी कीमतों से बेफिक्र हैं. आइए जानते हैं सरकारी सुविधाओं से लैस माननीयों का पेट्रोल-डीजल पर बेफिक्री का कारण...

पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों का माननीयों पर नहीं पड़ता असर.
पिछले तीन हफ्ते में पेट्रोल-डीजल के दाम करीब 10 रुपये तक बढ़ गए हैं. उत्तराखंड में पेट्रोल के दाम 81.70 रुपये तो डीजल 72.96 पैसे तक जा पहुंचा है. अब हालात ये हैं कि जनता की जेब आसमान छूती कीमतों के कारण खाली होने लगी है, लेकिन इसका माननीय और अधिकारियों पर कुछ भी असर नहीं दिखाई दे रहा है. ऐसा कहने की वजह पेट्रोल-डीजल को लेकर माननीयों की निश्चिन्तता है. दरअसल, राज्य में विधायक, दायित्वधारी, मंत्री, सांसद और खुद मुख्यमंत्री भी यात्रा के लिए पेट्रोल-डीजल की सरकारी सुविधा से लैस हैं. यही नहीं बड़े अधिकारियों को भी सरकारी सुविधाएं मिली हैं. यानी पेट्रोल-डीजल की कीमतें कितनी भी बढ़ जाएं माननीयों, अधिकारियों को कभी इसका टोटा नहीं होता.

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इतना मिलता है भत्ता

उत्तराखंड में विधायकों को कुल 27000 रुपये की रकम पेट्रोल के रूप में दी जाती है. मासिक खर्चे के रूप में देखा जाए तो 71 विधायकों के लिहाज से कुल करीब 19 लाख 17 हजार रुपये सरकार विधायकों के पेट्रोल-डीजल पर ही खर्च करती है. वहीं दायित्व धारियों को उनके यातायात के लिए कुल करीब 60 हजार दिए जाते हैं. जबकि प्रदेश में त्रिवेंद्र सरकार ने कम से कम 50 से ज्यादा दायित्वधारी बना दिए हैं. अनुमानत सरकार 30 लाख से ज्यादा इनपर खर्च करती है.

उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्रियों और सांसदों को अनलिमिटेड पेट्रोल-डीजल मिल रहा है. जिससे लाखों रुपये का भार सरकार पर आता है. खुद सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी बताते हैं कि पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ने से माननीय और अधिकारियों पर नहीं बल्कि उल्टा सरकार पर ही खर्च उठाने का दबाव बढ़ेगा. सरकार की ओर से पेट्रोल-डीजल के बढ़ाये गए दामों के विरोध का काउंटर किया जा रहा है. विपक्ष के महंगाई पर उठाए सवाल को बेवजह का विरोध बताया जा रहा है. भाजपा विधायक धन सिंह नेगी कहते हैं कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के आधार पर तय होती हैं. साथ ही कहा कि जनप्रतिनिधियों को भी आम लोगों के लिए डीजल की बढ़ी कीमतों से हो रही समस्या को लेकर पूरी चिंता है.

यह भी पढ़ें: बीजेपी की आज चार वर्चुअल रैलियां, डॉ. निशंक और अजय भट्ट करेंगे संबोधित

उत्तराखंड में देखा जाए तो करीब 100 करोड़ से ज्यादा रुपए यातायात की सुविधाओं में खर्च हो जाता है, जोकि वीवीआइपी और अतिविशिष्ट पदों से जुड़े लोगों को दिया जाता है. सरकार द्वारा दी गई इन सुविधाओं का विरोध नहीं बल्कि सरकार को आम लोगों की भावनाएं समझाने के लिए ये एक तरीका इस्तेमाल किया जा रहा है. क्योंकि जिस तेजी से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ रहे हैं, उससे आने वाले दिनों में न केवल सड़क पर निकलना मुश्किल होगा, बल्कि खाने पीने की चीजें भी आम लोगों की थाली से दूर हो जाएंगी.

देहरादून: भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम इन दिनों आसमान छू रहे हैं. कोरोना काल में अधिक संख्या में लोग बेरोजगार हो चुके हैं, ऊपर से सरकार आए दिन पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी कर रही है. ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ता देश भर में विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन माननीयों पर इन बढ़ी हुई कीमतों का कोई खास असर नहीं पड़ता दिख रहा है. यही नहीं शासन के बड़े अधिकारी भी पेट्रोल डीजल की बढ़ी कीमतों से बेफिक्र हैं. आइए जानते हैं सरकारी सुविधाओं से लैस माननीयों का पेट्रोल-डीजल पर बेफिक्री का कारण...

पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों का माननीयों पर नहीं पड़ता असर.
पिछले तीन हफ्ते में पेट्रोल-डीजल के दाम करीब 10 रुपये तक बढ़ गए हैं. उत्तराखंड में पेट्रोल के दाम 81.70 रुपये तो डीजल 72.96 पैसे तक जा पहुंचा है. अब हालात ये हैं कि जनता की जेब आसमान छूती कीमतों के कारण खाली होने लगी है, लेकिन इसका माननीय और अधिकारियों पर कुछ भी असर नहीं दिखाई दे रहा है. ऐसा कहने की वजह पेट्रोल-डीजल को लेकर माननीयों की निश्चिन्तता है. दरअसल, राज्य में विधायक, दायित्वधारी, मंत्री, सांसद और खुद मुख्यमंत्री भी यात्रा के लिए पेट्रोल-डीजल की सरकारी सुविधा से लैस हैं. यही नहीं बड़े अधिकारियों को भी सरकारी सुविधाएं मिली हैं. यानी पेट्रोल-डीजल की कीमतें कितनी भी बढ़ जाएं माननीयों, अधिकारियों को कभी इसका टोटा नहीं होता.

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इतना मिलता है भत्ता

उत्तराखंड में विधायकों को कुल 27000 रुपये की रकम पेट्रोल के रूप में दी जाती है. मासिक खर्चे के रूप में देखा जाए तो 71 विधायकों के लिहाज से कुल करीब 19 लाख 17 हजार रुपये सरकार विधायकों के पेट्रोल-डीजल पर ही खर्च करती है. वहीं दायित्व धारियों को उनके यातायात के लिए कुल करीब 60 हजार दिए जाते हैं. जबकि प्रदेश में त्रिवेंद्र सरकार ने कम से कम 50 से ज्यादा दायित्वधारी बना दिए हैं. अनुमानत सरकार 30 लाख से ज्यादा इनपर खर्च करती है.

उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्रियों और सांसदों को अनलिमिटेड पेट्रोल-डीजल मिल रहा है. जिससे लाखों रुपये का भार सरकार पर आता है. खुद सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी बताते हैं कि पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ने से माननीय और अधिकारियों पर नहीं बल्कि उल्टा सरकार पर ही खर्च उठाने का दबाव बढ़ेगा. सरकार की ओर से पेट्रोल-डीजल के बढ़ाये गए दामों के विरोध का काउंटर किया जा रहा है. विपक्ष के महंगाई पर उठाए सवाल को बेवजह का विरोध बताया जा रहा है. भाजपा विधायक धन सिंह नेगी कहते हैं कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के आधार पर तय होती हैं. साथ ही कहा कि जनप्रतिनिधियों को भी आम लोगों के लिए डीजल की बढ़ी कीमतों से हो रही समस्या को लेकर पूरी चिंता है.

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उत्तराखंड में देखा जाए तो करीब 100 करोड़ से ज्यादा रुपए यातायात की सुविधाओं में खर्च हो जाता है, जोकि वीवीआइपी और अतिविशिष्ट पदों से जुड़े लोगों को दिया जाता है. सरकार द्वारा दी गई इन सुविधाओं का विरोध नहीं बल्कि सरकार को आम लोगों की भावनाएं समझाने के लिए ये एक तरीका इस्तेमाल किया जा रहा है. क्योंकि जिस तेजी से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ रहे हैं, उससे आने वाले दिनों में न केवल सड़क पर निकलना मुश्किल होगा, बल्कि खाने पीने की चीजें भी आम लोगों की थाली से दूर हो जाएंगी.

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