देहरादूनः उत्तराखंड आबकारी विभाग की पॉलिसी एक बार फिर औंधे मुंह गिरती नजर आ रही है. राज्य भर में 622 देसी और अंग्रेजी शराब की लाइसेंसी दुकानों के लिए नए वित्तीय वर्ष 2021-22 की आवंटन प्रक्रिया ई-टेंडरिंग के तहत शुरू हो चुकी है. पहले चरण में बुधवार को आबकारी अधिकारियों के तमाम प्रयासों के बावजूद कुल 492 दुकानों का ही आवंटन हो सका. जबकि 130 देसी व अंग्रेजी शराब की दुकानों के खरीदार नहीं मिल सके. इन लाइसेंसी दुकानों के लिए आवेदन ही नहीं आए.
बुधवार को हुए शराब के दुकानों के आवंटन के बाद अब दूसरे चरण की प्रक्रिया के तहत गुरुवार यानी आज फिर शराब की दुकानों के खरीदारों की तलाश की जा रही है. हालांकि यह इतना आसान भी नजर नहीं आ रहा है. पिछले वर्ष भी काफी संख्या में शराब की दुकानें खरीदार न मिल पाने के कारण आवंटित नहीं हो सकी थी. जबकि नए वित्त वर्ष में लाइसेंसी शराब की दुकानों का अधिभार पिछले वर्ष के मुकाबले नई पॉलिसी के तहत कम कर दिया गया है. दुकानों में शराब रखने का कोटा भी बढ़ा दिया गया है ताकि आबकारी नीति को पटरी पर लाया जा सके.
ये भी पढ़ेंः MDDA क्षेत्र में स्वीकृत विकास कार्यों में से 50 फीसदी ही हुए पूरे
राजधानी दून में भी दुकानों की आवंटन प्रक्रिया 100 फीसदी नहीं
सबसे हैरानी की बात यह है कि राज्य की राजधानी देहरादून में भी आबकारी अधिकारी 100% लाइसेंसी शराब की दुकानों को बेचने में पिछले साल की तरह असफल नजर आ रहे हैं. बता दें कि देहरादून में 94 देसी व अंग्रेजी लाइसेंसी दुकानें मौजूद हैं. लेकिन लाख प्रयासों के बावजूद इस बार भी पहले चरण में 9 दुकानों को खरीदार नहीं मिल सके हैं. जानकारी के मुताबिक देहरादून जिले का निर्धारित राजस्व लक्ष्य 501 करोड़ रखा गया है. लेकिन यह तभी सफल हो सकता है जब 100 प्रतिशत दुकानों का आवंटन होगा. जबकि पिछले वर्ष 2020-21 में भी कई दुकानें आवंटित नहीं हो सकी थी.
2020-21 के मुकाबले नए वित्तीय वर्ष में आबकारी राजस्व का लक्ष्य घटाया
बता दें कि नए वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए आबकारी विभाग ने 3200 करोड़ रुपए का राजस्व हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. हालांकि यह लक्ष्य 2020-21 के 3500 करोड़ के मुकाबले 300 करोड़ कम का है. ऐसे में इस बात के साफ संकेत नजर आ रहे हैं कि राज्य गठित होने के 20 साल के उपरांत भी आबकारी विभाग शराब की लाइसेंसी दुकानें आवंटित करने वाली नीति सफल रूप से बनाने में नाकाम साबित हुआ है. ऐसे में आबकारी विभाग की पॉलिसी और अधिकारियों के कार्यशैली पर सवाल उठना स्वभाविक है.