देहरादून: प्रदेश के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं तक कोरोना काल में मिड डे मील योजना का लाभ पहुंचाने के लिए सरकार पैसा बच्चों के खाते में डाल रही है. मगर वास्तविक स्थिति यह है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले लगभग 10% बच्चों के खातों में मिड डे मील का पैसा नहीं पहुंच पा रहा है. इसमें ज्यादातर पड़ोसी राज्यों के प्रवासी बच्चे शामिल हैं.
बता दें कि शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले 6.67 लाख बच्चे मिड-डे मील योजना से लाभान्वित होते हैं. वर्तमान कोरोना काल में प्रदेश के साथ ही उत्तर प्रदेश, बिहार और पड़ोसी देश नेपाल के कई मजदूर परिवारों के लगभग 66 हजार बच्चे अपने अभिभावकों के साथ अपने घरों को लौट चुके हैं. वहीं इनमें कुछ ऐसे बच्चे भी हैं जिनके पास अपना बैंक अकाउंट तक नहीं है. इस स्थिति में इन बच्चों तक कड़ी मशक्कत के बाद मिड डे मील योजना का पैसा पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है.
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समग्र शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती बताते हैं कि कोरोना काल में सबसे बड़ी चुनौती प्रवासी छात्रों तक मिड डे मील का पैसा पहुंचाने की है. इसकी बड़ी वजह इन बच्चों का बैंक एकाउंट न होना है. ऐसे में इस तरह के प्रवासी बच्चों को स्कूल मैनेजमेंट समिति (एसएमसी) चेक के माध्यम से मिड डे मील का पैसा भेजने का प्रयास कर रही है.
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गौरतलब है कि कोरोनाकाल में मिड डे मील योजना के तहत प्राइमरी के छात्रों को प्रति मील प्रतिदिन के हिसाब से 4.79 रुपए दिए जाते हैं. इस तरह प्रति माह के हिसाब से प्राइमरी के छात्रों के खातों में लगभग 144 रुपए भेजे जाते हैं. इसके साथ ही उच्च प्राथमिक के छात्रों को प्रति मील प्रतिदिन के हिसाब से 7.18 रुपए दिये जा रहा हैं. इस तरह उच्च प्राथमिक के छात्रों के खाते में प्रति माह लगभग 215 रुपए तक मिड डे मील योजना के बजट से भेजे जाते हैं. हाल ही में इस वित्तीय वर्ष के लिए भी राज्य को मिड डे मील का बजट मिल चुका है. इस बार यह बजट 208 करोड़ का है.