हल्द्वानी: भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले इंडियन फोरेस्ट सर्विसेज यानि IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी एक बार फिर चर्चाओं में हैं. संजीव चतुर्वेदी ने केंद्रीय लोकपाल की अन्वेषण शाखा में अपनी प्रतिनियुक्ति की मांग के लिए केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी है. संजीव चतुर्वेदी के लोकपाल में प्रतिनियुक्ति मांगें जाने पर केंद्र से राज्य तक की सियासत एक बार फिर गरमा गई है. बता दें कि संजीव अबतक 19 मुकदमे और दर्जन भर से ज्यादा ट्रांसफर झेल चुके हैं.
आइएफएस संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि वो देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करना चाहते हैं, जिसको लेकर उन्होंने केंद्रीय लोकपाल में प्रतिनियुक्ति मांगी है. उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने कई मामले उजागर किए हैं. ऐसे में वो चाह रहे हैं कि उनको केंद्र के लोकपाल में प्रतिनियुक्ति दी जाए क्योंकि लोकपाल अन्वेषण शाखा में पद भी खाली है.
अपने आवेदन में संजीव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई का सिलसिलेवार ब्यौरा भी दिया है. उनका कहना है कि वो केंद्रीय सेवा के एकमात्र ऐसे अधिकारी हैं जिनके अलग-अलग चार मामलों में राष्ट्रपति ने आदेश पारित किए हैं. उत्तराखंड से कुल 13 अफसरों को एक समय पर प्रतिनियिुक्ति दी जा सकती है. इस समय 9 अफसर प्रतिनियुक्ति पर हैं और लोकपाल में भी पद खाली हैं.
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वहीं, इससे पहले साल 2012 से लेकर 2014 तक IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के मुख्य सतर्कता अधिकारी के तौर पर कार्यरत रहे. इन दो सालों के दौरान वो AIIMS में 200 से ज्यादा भ्रष्टाचार के मामलों को सामने लेकर आए थे, जिसमें IAS अधिकारी विनीत चौधरी से लेकर IPS अधिकारी शैलेश यादव तक पर इसकी आंच आई थी. विवाद बढ़ने पर संजीव चतुर्वेदी को एम्स में मुख्य सतर्कता अधिकारी के पद से हटाकर उप निदेशक बना दिया गया था. इसी दौरान अरविंद केजरीवाल ने संजीव को दिल्ली मुख्यमंत्री कार्यालय में विशिष्ट अधिकारी के रूप में नियुक्त करने की मांग की थी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह की संस्था वाली चयन समिति ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. समिति का कहना था कि संजीव ने अभी तीन साल का कूलिंग पीरियड पूरा नहीं किया है.
इस विवाद के बाद केंद्र सरकार ने उनकी इस मांग को ठुकरा दिया था और संजीव को उत्तराखंड भेज दिया था. चार महीने बाद संजीव को यहां वन अनुसंधान केंद्र में नियुक्ति मिली.
हरियाणा में भी रहा दबदबा
हरियाणा में उनके कार्यकाल के दौरान 2008 से 2014 के बीच उनके पक्ष में राष्ट्रपति के चार आदेश पारित किए गए थे. भ्रष्टाचार के कई मामलों को उजागर करने के लिए उन्हें परेशान किया गया. इसके बाद अगस्त 2015 में उन्हें हरियाणा से उत्तराखंड कैडर में भेज दिया गया था. उन्होंने एम्स में भ्रष्टाचार के करीब 200 मामलों की जांच की थी.
अवमानना मामले में मिली थी बड़ी जीत
हल्द्वानी एफटीआई में वन संरक्षक उत्तराखंड के पद पर तैनात संजीव ने केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (कैट कोर्ट) में दो प्रार्थना पत्र दाखिल किए थे. एक में उन्होंने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार द्वारा उनकी चरित्र पंजिका में किए गये जीरो अंकन मामले में दिया गया हलफनामा झूठा है. संजीव ने इस मामले में आपराधिक केस चलाने का आदेश पारित करने की प्रार्थना की थी. दरअसल, 2015-16 की उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट( एसीआर) को शून्य कर दिया गया था. दूसरे मामले में उन्होंने कहा था कि एम्स दिल्ली में घपलों को उजागर करने पर उन्हें निशाना बनाया गया. 2014 में उनके द्वारा एम्स में अनियमितता के 13 मामले पकड़े गए, जिसके बाद उन्हें एम्स से ही हटा दिया गया. कैट की कोर्ट ने दोनों मामलों में जवाब दाखिल करने के आदेश पारित किए.
11 जनवरी 2017 को उन्होंने एसीआर शून्य कर देने के मामले में उत्तराखंड स्थित नैनीताल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट ने नैनीताल कैट जाने की सलाह दी. बाद में नैनीताल कैट ने स्वास्थ्य मंत्रालय और एम्स को नोटिस जारी किया. इस पर सरकार ने दिसंबर 2017 में दिल्ली कैट में केस ट्रांसफर करने की अपील की. नैनीताल और दिल्ली कैट में समानांतर मामला चलता रहा. इस बीच 27 जुलाई 2018 को दिल्ली कैट के चेयरमैन ने नैनीताल कैट की खंडपीठ की कार्यवाही पर छह महीने के रोक लगा दी, जिस पर संजीव चतुर्वेदी नैनीताल हाई कोर्ट गए. कोर्ट ने कैट चेयरमैन के आदेश को अधिकार क्षेत्र से बाहर का मानते हुए न केवल उन्हें नोटिस जारी किया, बल्कि केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय और एम्स प्रशासन पर बदले की भावना से की गई कार्रवाई बताते हुए 25 हजार का जुर्माना लगाया. बाद में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने गए स्वास्थ्य मंत्रालय और एम्स पर और 25 हजार का जुर्माने लगाया गया. इसके बाद संजीव ने 26 जून को हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी.
रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए ही उन्हें 2015 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गयाथा. हरियाणा में वन सेवा और एम्स में मुख्य सतर्कता अधिकारी रहते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार के कई मामलों का पर्दाफाश किया है.