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नहीं रहे IAS केशव देसी राजू, जिनके चलते उत्तराखंड में साकार हुई 108 एंबुलेंस सेवा

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Published : Sep 5, 2021, 2:47 PM IST

Updated : Sep 5, 2021, 4:45 PM IST

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पोते और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव केशव देसी राजू का शनिवार को निधन हो गया. देसी राजू 1978 बैच के अधिकारी थे. वह अविवाहित थे. उनकी छवि काफी सख्त और ईमानदार अधिकारी की थी.

former IAS officer Keshav Desi Raju passed away
former IAS officer Keshav Desi Raju passed away

देहरादून: देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन के पोते और पूर्व स्वास्थ्य सचिव केशव देसीराजू का शनिवार को निधन हो गया. वह उत्तराखंड कैडर के आईएएस अधिकारी थे. उत्तराखंड कैडर के 1978 बैच के आईएएस अधिकारी केशव देसी राजू उत्तराखंड के इतिहास में अब तक के सबसे ज्यादा ईमानदार और जन भावनाओं से जुड़े अधिकारी माने जाते हैं. लेकिन उत्तराखंड के जनमानस पर आज भी उनकी ईमानदारी की छवि बरकरार है. बता दें कि, पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव केशव देसी राजू का 66 वर्ष की आयु में चेन्नई में निधन हो गया.

वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा बताते हैं कि वह उनके करीबियों में से एक थे. उनके निधन की सूचना से उत्तराखंड के लोग स्तब्ध हैं. केशव देसी राजू की कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि उत्तराखंड के अब तक के इतिहास में देसीराजू सबसे ईमानदार और जमीनी मूल्यों को समझने वाले अधिकारी थे.

108 एंबुलेंस सेवा स्थापना में वजीर की भूमिका में देसी राजू: उत्तराखंड में एमरजेंसी सेवा 108 की स्थापना का श्रेय भले ही राजनेताओं ने लिया हो. लेकिन केशव देसी राजू के साथ काम करने वाले बताते हैं कि 108 को उत्तराखंड में स्थापित करने की पूरी रणनीति और दूरदर्शिता केशव देसीराजू की ही थी. केशव देसी राजू को जानने वाले लोग बताते हैं कि वह उत्तराखंड के विषम भौगोलिक परिस्थितियों से वाकिफ थे और यहां के पहाड़ जैसे जीवन से भी वह बहुत करीबी से नाता रखते थे.

यही वजह थी कि 108 जैसी सर्विस उन्होंने दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने के लिए एक विजन रखा और उसको अमलीजामा पहना है. साल 2008 में शुरू हुई 108 सेवा के तत्कालीन संचालन करने वाली कंपनी EMRI के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनूप नौटियाल बताते हैं कि पूर्व आईएएस अधिकारी केशव देसी राजू एक मानवीय दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे और 108 की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

पढे़ं- पूर्व राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन के पोते और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव केशव देसी राजू का निधन

भवाली टीबी सेनेटोरियम नहीं बिकने दिया: साल 1950 के बाद उत्तराखंड के भवाली में टीबी के मरीजों के लिए बनाए गए सेनेटोरियम को बिकने नहीं किया. राजनीतिक दबाव के कारण एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर तो कर दिए. लेकिन आज भी उन्हीं की वजह से यह मामला कोर्ट में अटका हुआ है. हिमानी कंपनी को भवाली टीबी हॉस्पिटल नहीं मिल पाया है.

बता दें, नैनीताल जनपद के भवाली में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1912 में टीबी सेनेटोरियम अस्पताल की स्थापना की थी. पंडित नेहरू ने इस अस्पताल को तब बनाया था, जब देश में टीबी एक महामारी के रूप में थी और टीबी लाइलाज बीमारी मानी जाती थी.

उस वक्त बड़े के लोग तो टीबी के इलाज के लिए देश के बाहर चले जाते थे. लेकिन आम जनता के लिए कोई सुविधा नहीं थी. इस दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन को टीबी हुआ और डॉक्टरों ने की सलाह पर उन्होंने भवाली में मौजूद बांज के जंगलों के बीच टीबी रोगियों के अनुकूल वातावरण वाली जगह पर टीबी अस्पताल की स्थापना की.

भवाली टीबी सेनेटोरियम की शुरूआत पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन के बहाने की गई. लेकिन इस अस्पताल से देश के न जाने कितने हजार लोग ठीक हुए. इस लिहाज से यह उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश की भी एक बड़ी धरोहर थी. यही बात उस समय के तत्कालीन प्रमुख सचिव स्वास्थ्य केशव देसी राजू के जेहन में थी. लेकिन इस अस्पताल को राजनीतिक दबाव के कारण हिमानी कंपनी को सुपुर्द किया जा रहा था, जो कि केशव देसी राजू को बिल्कुल भी रास नहीं आया.

राजनीतिक दबाव के चलते उन्हें एग्रीमेंट पर साइन तो करना पड़ा. लेकिन उनका जहन बिल्कुल भी इस बात के लिए राजी नहीं था. वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि लगातार इसी तरह के दबाव के चलते वह उत्तराखंड से दिल्ली चले गए और केंद्र में वह 2010 में सचिव स्वास्थ्य के पद पर नियुक्त हुए.

पूरा जीवन प्रशासनिक सेवाओं को समर्पित: पूर्व आईएएस अधिकारी केशव देसीराजू के करीबी रहे वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि केशव देसी राजू आजीवन अकेले रहे और उन्होंने विवाह नहीं किया. अक्सर केशव देसी राजू उत्तराखंड के पहाड़ों पर रहने वाले निम्न वर्ग के लोगों की बात करते थे. उनकी समस्याओं पर चर्चा करते थे. हर वक्त उनके जेहन में यही रहता था कि कैसे पहाड़ के जीवन को सरल बनाया जाए ?

उनके यार दोस्त जब भी उनसे उनकी शादी या फिर जीवन साथी के बारे में पूछा करते थे तो वह हमेशा यह कह कर टाल देते थे कि उनके पास काम बहुत है और जब समय मिलेगा वह इस बारे में सोचेंगे.

अल्मोड़ा के जिलाधिकारी रहे केशव देसी राजू: पूर्व आईएएस अधिकारी केशव देसीराजू का चेन्नई में निधन हो गया लेकिन उत्तराखंड में उनकी ईमानदारी और उनकी कर्तव्यनिष्ठा की छाप आज भी लोगों के जन जीवन पर अपना गहरा असर छोड़ कर गई है. केशव देसी राजू साल 1988 से 1990 तक अल्मोड़ा जिले के जिलाधिकारी रहे. इस दौरान उन्होंने पहाड़ के जीवन को बेहद करीब से देखा और खुद को जन भावनाओं से जोड़ते हुए उन्होंने अपना घर भी अल्मोड़ा में बनाया. आज भी उनका घर अल्मोड़ा में मौजूद है.

अल्मोड़ा से ही कांग्रेस के नेता और पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा बताते हैं कि केशव देसी राजू पहले ऐसे अधिकारी थे जोकि मानवीय पक्ष को आगे रखते थे. उन्होंने एक किस्सा ईटीवी भारत से साझा करते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश के समय अलवर जिले में मैग्नेटाइट की एक फैक्ट्री पर काम शुरू होना था लेकिन लोगों के विरोध शुरू कर दिया.

जब जिलाधिकारी केशव देसीराजू लोगों के बीच में पहुंचे तो उन्होंने अभूतपूर्व फैसला लेते हुए जनता के पक्ष में फैसला लिया. इस तरह से उत्तराखंड में जिस भी व्यक्ति ने केशव देसीराजू के साथ काम किया है या फिर उनके करीब रहा है केशव देसीराजू ने हर किसी के दिल पर अपनी एक गहरी छाप छोड़ी है.

केंद्रीय मंत्रियों ने जताया शोक: केशव देसी राजू के निधन पर केंद्रीय मंत्रियों ने शोक जताया है. राजस्थान के मुख्यमंत्री ट्वीट करते हुए लिखा कि 'वs एक प्रतिष्ठित, सौम्य और रचनात्मक विचारक और महान प्रख्यात व्यक्ति थे. वह एक महान शिक्षाविद् और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन के पोते भी थे, जिनकी जयंती आज शिक्षक दिवस के रूप में मनाई जा रही है'.

देहरादून: देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन के पोते और पूर्व स्वास्थ्य सचिव केशव देसीराजू का शनिवार को निधन हो गया. वह उत्तराखंड कैडर के आईएएस अधिकारी थे. उत्तराखंड कैडर के 1978 बैच के आईएएस अधिकारी केशव देसी राजू उत्तराखंड के इतिहास में अब तक के सबसे ज्यादा ईमानदार और जन भावनाओं से जुड़े अधिकारी माने जाते हैं. लेकिन उत्तराखंड के जनमानस पर आज भी उनकी ईमानदारी की छवि बरकरार है. बता दें कि, पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव केशव देसी राजू का 66 वर्ष की आयु में चेन्नई में निधन हो गया.

वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा बताते हैं कि वह उनके करीबियों में से एक थे. उनके निधन की सूचना से उत्तराखंड के लोग स्तब्ध हैं. केशव देसी राजू की कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि उत्तराखंड के अब तक के इतिहास में देसीराजू सबसे ईमानदार और जमीनी मूल्यों को समझने वाले अधिकारी थे.

108 एंबुलेंस सेवा स्थापना में वजीर की भूमिका में देसी राजू: उत्तराखंड में एमरजेंसी सेवा 108 की स्थापना का श्रेय भले ही राजनेताओं ने लिया हो. लेकिन केशव देसी राजू के साथ काम करने वाले बताते हैं कि 108 को उत्तराखंड में स्थापित करने की पूरी रणनीति और दूरदर्शिता केशव देसीराजू की ही थी. केशव देसी राजू को जानने वाले लोग बताते हैं कि वह उत्तराखंड के विषम भौगोलिक परिस्थितियों से वाकिफ थे और यहां के पहाड़ जैसे जीवन से भी वह बहुत करीबी से नाता रखते थे.

यही वजह थी कि 108 जैसी सर्विस उन्होंने दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने के लिए एक विजन रखा और उसको अमलीजामा पहना है. साल 2008 में शुरू हुई 108 सेवा के तत्कालीन संचालन करने वाली कंपनी EMRI के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनूप नौटियाल बताते हैं कि पूर्व आईएएस अधिकारी केशव देसी राजू एक मानवीय दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे और 108 की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

पढे़ं- पूर्व राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन के पोते और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव केशव देसी राजू का निधन

भवाली टीबी सेनेटोरियम नहीं बिकने दिया: साल 1950 के बाद उत्तराखंड के भवाली में टीबी के मरीजों के लिए बनाए गए सेनेटोरियम को बिकने नहीं किया. राजनीतिक दबाव के कारण एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर तो कर दिए. लेकिन आज भी उन्हीं की वजह से यह मामला कोर्ट में अटका हुआ है. हिमानी कंपनी को भवाली टीबी हॉस्पिटल नहीं मिल पाया है.

बता दें, नैनीताल जनपद के भवाली में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1912 में टीबी सेनेटोरियम अस्पताल की स्थापना की थी. पंडित नेहरू ने इस अस्पताल को तब बनाया था, जब देश में टीबी एक महामारी के रूप में थी और टीबी लाइलाज बीमारी मानी जाती थी.

उस वक्त बड़े के लोग तो टीबी के इलाज के लिए देश के बाहर चले जाते थे. लेकिन आम जनता के लिए कोई सुविधा नहीं थी. इस दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन को टीबी हुआ और डॉक्टरों ने की सलाह पर उन्होंने भवाली में मौजूद बांज के जंगलों के बीच टीबी रोगियों के अनुकूल वातावरण वाली जगह पर टीबी अस्पताल की स्थापना की.

भवाली टीबी सेनेटोरियम की शुरूआत पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन के बहाने की गई. लेकिन इस अस्पताल से देश के न जाने कितने हजार लोग ठीक हुए. इस लिहाज से यह उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश की भी एक बड़ी धरोहर थी. यही बात उस समय के तत्कालीन प्रमुख सचिव स्वास्थ्य केशव देसी राजू के जेहन में थी. लेकिन इस अस्पताल को राजनीतिक दबाव के कारण हिमानी कंपनी को सुपुर्द किया जा रहा था, जो कि केशव देसी राजू को बिल्कुल भी रास नहीं आया.

राजनीतिक दबाव के चलते उन्हें एग्रीमेंट पर साइन तो करना पड़ा. लेकिन उनका जहन बिल्कुल भी इस बात के लिए राजी नहीं था. वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि लगातार इसी तरह के दबाव के चलते वह उत्तराखंड से दिल्ली चले गए और केंद्र में वह 2010 में सचिव स्वास्थ्य के पद पर नियुक्त हुए.

पूरा जीवन प्रशासनिक सेवाओं को समर्पित: पूर्व आईएएस अधिकारी केशव देसीराजू के करीबी रहे वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि केशव देसी राजू आजीवन अकेले रहे और उन्होंने विवाह नहीं किया. अक्सर केशव देसी राजू उत्तराखंड के पहाड़ों पर रहने वाले निम्न वर्ग के लोगों की बात करते थे. उनकी समस्याओं पर चर्चा करते थे. हर वक्त उनके जेहन में यही रहता था कि कैसे पहाड़ के जीवन को सरल बनाया जाए ?

उनके यार दोस्त जब भी उनसे उनकी शादी या फिर जीवन साथी के बारे में पूछा करते थे तो वह हमेशा यह कह कर टाल देते थे कि उनके पास काम बहुत है और जब समय मिलेगा वह इस बारे में सोचेंगे.

अल्मोड़ा के जिलाधिकारी रहे केशव देसी राजू: पूर्व आईएएस अधिकारी केशव देसीराजू का चेन्नई में निधन हो गया लेकिन उत्तराखंड में उनकी ईमानदारी और उनकी कर्तव्यनिष्ठा की छाप आज भी लोगों के जन जीवन पर अपना गहरा असर छोड़ कर गई है. केशव देसी राजू साल 1988 से 1990 तक अल्मोड़ा जिले के जिलाधिकारी रहे. इस दौरान उन्होंने पहाड़ के जीवन को बेहद करीब से देखा और खुद को जन भावनाओं से जोड़ते हुए उन्होंने अपना घर भी अल्मोड़ा में बनाया. आज भी उनका घर अल्मोड़ा में मौजूद है.

अल्मोड़ा से ही कांग्रेस के नेता और पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा बताते हैं कि केशव देसी राजू पहले ऐसे अधिकारी थे जोकि मानवीय पक्ष को आगे रखते थे. उन्होंने एक किस्सा ईटीवी भारत से साझा करते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश के समय अलवर जिले में मैग्नेटाइट की एक फैक्ट्री पर काम शुरू होना था लेकिन लोगों के विरोध शुरू कर दिया.

जब जिलाधिकारी केशव देसीराजू लोगों के बीच में पहुंचे तो उन्होंने अभूतपूर्व फैसला लेते हुए जनता के पक्ष में फैसला लिया. इस तरह से उत्तराखंड में जिस भी व्यक्ति ने केशव देसीराजू के साथ काम किया है या फिर उनके करीब रहा है केशव देसीराजू ने हर किसी के दिल पर अपनी एक गहरी छाप छोड़ी है.

केंद्रीय मंत्रियों ने जताया शोक: केशव देसी राजू के निधन पर केंद्रीय मंत्रियों ने शोक जताया है. राजस्थान के मुख्यमंत्री ट्वीट करते हुए लिखा कि 'वs एक प्रतिष्ठित, सौम्य और रचनात्मक विचारक और महान प्रख्यात व्यक्ति थे. वह एक महान शिक्षाविद् और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन के पोते भी थे, जिनकी जयंती आज शिक्षक दिवस के रूप में मनाई जा रही है'.

Last Updated : Sep 5, 2021, 4:45 PM IST
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