देहरादून: केदारनाथ धाम में साल 2013 में आई आपदा को 7 साल पूरे हो चुके हैं. आपदा के बाद केदार घाटी में धीरे-धीरे विकास की हो रहा है. लेकिन 7 साल बीत जाने के बाद भी केदारनाथ में पुनर्निर्माण का काम खत्म नहीं हुआ है. फिलहाल केदार घाटी में आदिगुरु शंकराचार्य की समाधि स्थल, तीर्थ पुरोहितों के क्षतिग्रस्त घरों सहित अन्य बुनियादी सुविधाओं का तेजी से निर्माण किया जा रहा है, जो इस साल के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है. केदारनाथ में हो रहे पुनर्निर्माण कार्यों में 3 प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया गया है. हमारी इस खास रिपोर्ट में जानिए केदार घाटी में पुनर्निर्माण कार्यों की स्थिति क्या है.
उत्तराखंड में 16 जून 2013 को केदारनाथ धाम में आई जल-प्रलय के जख्म आज भी हरे हैं. लेकिन पीएम मोदी की पहल से केदारनाथ धाम का स्वरूप जरूर बदल गया है. केदार घाटी में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शुमार है. यही वजह है कि पीएम मोदी दिल्ली से ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस प्रोजेक्ट पर नजर रखे हुए हैं. लिहाजा केदारनाथ के पुनर्निर्माण कार्यों के तीन प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया गया है.
ये भी पढ़ें: प्राइवेट लैब की मजबूरी, कोरोना टेस्टिंग से दूरी, जानिए वजह
शंकराचार्य के समाधि स्थल का पुनर्निर्माण
केदारनाथ मंदिर के पीछे बन रहे आदिगुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल के पुनर्निर्माण का काम तेजी से हो रहा है. कोरोना वायरस के कारण निर्माण कार्यों की तेजी में गिरावट आई है. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि 31 दिसंबर 2020 तक आदिगुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल के पुनर्निर्माण कार्य पूरा किया जाना है. फिलहाल समाधि स्थल के फाउंडेशन का काम ही पूरा हुआ है. अब निर्माण टीम को समाधि स्थल के ऊपरी भाग का निर्माण करना है.
क्षतिग्रस्त घरों का निर्माण
2013 में आई आपदा के बाद पूरी केदारघाटी तहस-नहस हो गई थी. जिसके बाद से लगातार राज्य सरकार और केंद्र सरकार केदारनाथ के पुनर्निर्माण का कार्य करा रही है. केदार घाटी में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य चल रहे हैं, लेकिन अभी तक तीर्थ पुरोहितों के आवास से जुड़े निर्माण कार्य पूरे नहीं हो सके हैं. निर्माण टीम अभी तक दो ब्लॉक का काम पूरा कर चुकी है और जल्द ही बाकी बचे कार्यों को भी पूरा कर लिया जाएगा.
यात्रियों के लिए व्यवस्था
आपदा के बाद केदार घाटी में तीन ध्यान गुफा निर्माणाधीन है. इसके साथ ही संगम स्थल पर श्रद्धालु स्नान और पूजा-अर्चना कर सकें, इसकी व्यवस्था भी राज्य सरकार कर रही है. मंदाकिनी नदी के तट पर देश-विदेश से आने वाले यात्रियों के लिए सुविधा का इंतजाम किया जा रहा है. ताकि बारिश और बर्फबारी के दौरान श्रद्धालुओं को दिक्कतों का सामना न करना पड़े. इसके साथ ही मंदाकिनी तट के पास दुकानदारों के लिए भी व्यवस्था की जाएगी. ताकि मुख्य मार्ग पर दुकानों की वजह से भीड़ न जमा हो सके और पूजा-पाठ के बाद श्रद्धालु मंदाकिनी नदी के तट पर दुकानों का लुत्फ भी उठा सकें.
केदारघाटी में इंटरप्रिटेशन सेंटर
केदार घाटी में सरस्वती पुल का निर्माण पूरा हो गया है. ऐसे में अब भैरव मंदिर जाने में श्रद्धालुओं को आसानी होगी. इसके साथ ही सरस्वती घाट पर श्रद्धालुओं के स्नान के लिए घाटों का निर्माण किया जा रहा है. केदार घाटी में एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक, यात्रियों के लिए हॉस्पिटल, म्यूजियम और इंटरप्रिटेशन सेंटर बनाया जाएगा. इटरप्रिटेशन सेंटर में केदार घाटी में प्राचीन समय में किए गए विकास कार्यों के साथ आपदा के बाद हुए पुनर्निर्माण कार्यों की पूरी जानकारी प्रदर्शित की जाएगी.
केदारघाटी में क्या कुछ बदला
- मंदाकिनी नदी पर आस्था पथ का निर्माण.
- केदारनाथ की सुरक्षा के लिए तीन लेयर वाली सुरक्षा दीवार का निर्माण.
- केदारनाथ में दो हेलीपैड बनाए गए हैं.
- सरस्वती और अलकनांद नदी में संगम घाट निर्माण.
- रामबाड़ा से केदारनाथ के लिए नए रास्ते का निर्माण.
- केदारनाथ मंदिर परिसर का विस्तार किया गया.
- संगम से मंदिर मार्ग को 50 फीट चौड़ा किया गया.
- लिनचोली को नए पड़ाव के रूप में विकसित किया गया.
ये भी पढ़ें: केदारनाथ ने देखा हिमयुग, 13वीं सदी में बर्फ में दबा था मंदिर
ये काम अभी बाकी हैं
- रामबाड़ा से केदारनाथ रोपवे का निर्माण होना है.
- मंदिर समिति के भवनों का निर्माण होना है.
- यात्रा में पुलिस चौकी और वन विभाग की चौकी बननी है.
- ब्रह्म वाटिका का निर्माण होना है.
केदारघाटी की चुनौती
2013 में जब आपदा आई तो पर्यटन राज्य उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गई थी. भूकंप के लिहाज से प्रदेश जोन चार और पांच में शामिल है. पूरा उत्तराखंड भू-स्खलन के हिसाब से भी अति संवेदनशील है. सुरक्षा एजेंसियों ने प्रदेश में 200 से अधिक अति संवेदनशील भू-स्खलन जोन चिन्हित किए हैं.
मौसम में बदलाव के कारण मॉनसून में बहुत अधिक बारिश के मामले भी सामने आ रहे हैं. वहीं, ग्लेशियरों के पिघलने से उच्च हिमालयी क्षेत्र में नई झीलों का निर्माण भी हो रहा है और इस वजह से अचानक आने वाली बाढ़ का खतरा भी बढ़ रहा है. पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट की वजह से चारधाम को नई उड़ान मिली है. चारधाम ऑलवेदर रोड परियोजना और ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना का कार्य तेजी से हो रहा है.
2013 के आपदा में नुकसान के आंकड़े
- सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 4 हजार 400 से अधिक लोग मारे गए और लापता हो गए थे.
- 42 सौ से ज्यादा गांवों का संपर्क टूट गया था.
- 991 स्थानीय लोग अलग-अलग जगहों पर मारे गए.
- 11 हजार से अधिक मवेशी बह गए या मलबे में दब गए.
- 13 सौ हेक्टेयर भूमि बाढ़ में बह गई.
- केदारघाटी में 2 हजार 141 भवनें ध्वस्त हो गए थे.
- 100 से ज्यादा होटल ध्वस्त हो गए थे.
- केदारघाटी से 90 हजार यात्रियों को सेना ने रेस्क्यू किया.
- 30 हजार स्थानीय लोगों को पुलिस ने सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया.
- आपदा के दौरान 9 NH और 35 स्टेट हाईवे क्षतिग्रस्त हो गए थे.
- 2013 की आपदा के दौरान 2 हजार 385 सड़कों को नुकसान पहुंचा था.
- आपदा में 86 मोटर पुल और 172 पुल बह गए थे.
उत्तराखंड सरकार की तैयारियां
उत्तराखंड में आपदा से निपटने के लिए दो स्थानों पर डॉप्लर रडार लगाए जा रहे हैं. गढ़वाल मंडल में मसूरी और कुमाऊं में मुक्तेश्वर में रडार लगाए जा रहे हैं. जो स्ट्रॉम डिटेक्शन रडार है, इससे तेज बारिश, ओलावृष्टि की जानकारी करीब दो घंटे पहले ही मिल सकेगी. यह रडार 100 किमी के दायरे में होने वाली गतिविधियों का डेटा भी रिकार्ड करेगा.
इसके साथ ही उत्तराखंड में मौसम की जानकारी के लिए मौसम केंद्र स्थापित किए गए हैं. प्रदेश में भूकंप की पूर्व चेतावनी देने वाला तंत्र भी स्थापित कर दिया गया है. प्रदेश में 1200 से अधिक ग्लेशियर झीलें चिन्हित किए जा चुके हैं. लेकिन इन झीलों से आने वाले खतरे की पहचान के लिए चेतावनी का तंत्र अभी तक विकसित नहीं किया जा सका है.