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असली तस्वीर! इन परिवारों तक नहीं पहुंच पाई 'सरकार', घास-फूस की झोपड़ी में रहने को मजबूर

कालसी विकासखंड के नराया गांव में अनुसूचित जाति के कई गरीब परिवार रहते हैं. जो मजदूरी कर अपना भरण पोषण करते हैं. जिसके पास न तो पक्के मकान हैं और न ही शौचालय. इन परिवारों तक सरकार की जन कल्याणकारी योजनाएं नहीं पहुंच पाई है.

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Published : Feb 7, 2020, 8:25 PM IST

vikasnagar news
गरीब परिवार

विकासनगरः आजादी के सात दशक और राज्य गठन के 20 साल बाद भी ग्रामीण इलाकों में सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पाई हैं. इसकी एक बानगी जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के नराया गांव में देखने को मिली है. जहां पर कई परिवार पक्का आशियाना न होने की वजह से घास-फूस की झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं. इतना ही नहीं ये परिवार शासन-प्रशासन से कई बार गुहार भी लगा चुके हैं, इसके बावजूद कोई उनकी सुध लेने को तैयार नहीं है. वहीं, इन परिवारों का कहना है कि उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला.

घास-फूस में रहने को मजबूर ग्रामीण.

सरकार जन कल्याणकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का लाख दावे करती है, लेकिन धरातल पर ये दावे खोखले साबित हो रहे हैं. इन योजनाओं का लाभ असल में पात्रों तक पहुंच ही नहीं रहा है. इन योजनाओं से कई परिवार भी वंचित हैं जिनमें कुछ परिवार विकासखंड कालसी के नराया गांव में रहते हैं. अनुसूचित जाति के ये गरीब परिवार मजदूरी कर अपना भरण पोषण करते हैं. जिसके पास न तो अपना पक्का मकान है न ही शौचालय.

ये भी पढ़ेंः ऐसे कैसे बनेगा डिजिटल इंडिया सरकार! टावर तो लगा दिए, पर नेटवर्क गायब

ग्रामीण हरिया ने बताया कि वो घास-फूस की झोपड़ी में गुजर बसर करते हैं. बारिश और आंधी तूफान में स्थिति काफी बिगड़ जाती है. कभी हवा का झोंका झोपड़ी की छत को उड़ा ले जाता है. बरसात के दौरान तो हालत बदतर हो जाती है. जगह-जगह से छत से पानी टपकता है. जिस कारण उनका परिवार कभी-कभी जागकर रात गुजारता है. साथ ही उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

उन्होंने कहा कि कई जनप्रतिनिधि और सरकार के अफसर आए, लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली. कई बार वो जनप्रतिनिधियों से पक्के आवास की मांग कर चुके हैं. इसके बावजूद उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला. उनका कहना है कि अब नए जनप्रतिनिधि चुनकर आए हैं. ऐसे में अब उनसे उम्मीद है कि अब उन्हें अपना पक्का आशियाना मिल पाएगा.

ये भी पढ़ेंः फलों के लिए अच्छी साबित होगी भारी बर्फबारी, भीषण गर्मी में भी नहीं पड़ेगा असर

बहरहाल, सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं से कई लोग वंचित हैं. साथ ही ये योजनाएं धरातल तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ रही है. ऐसे में सवाल उठना भी लाजिमी है कि सरकार जोर-शोर से अपनी योजनाओं को लेकर प्रचार-प्रसार तो करती है लेकिन असली पात्र तक ये योजनाएं क्यों नहीं पहुंच पाती?

विकासनगरः आजादी के सात दशक और राज्य गठन के 20 साल बाद भी ग्रामीण इलाकों में सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पाई हैं. इसकी एक बानगी जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के नराया गांव में देखने को मिली है. जहां पर कई परिवार पक्का आशियाना न होने की वजह से घास-फूस की झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं. इतना ही नहीं ये परिवार शासन-प्रशासन से कई बार गुहार भी लगा चुके हैं, इसके बावजूद कोई उनकी सुध लेने को तैयार नहीं है. वहीं, इन परिवारों का कहना है कि उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला.

घास-फूस में रहने को मजबूर ग्रामीण.

सरकार जन कल्याणकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का लाख दावे करती है, लेकिन धरातल पर ये दावे खोखले साबित हो रहे हैं. इन योजनाओं का लाभ असल में पात्रों तक पहुंच ही नहीं रहा है. इन योजनाओं से कई परिवार भी वंचित हैं जिनमें कुछ परिवार विकासखंड कालसी के नराया गांव में रहते हैं. अनुसूचित जाति के ये गरीब परिवार मजदूरी कर अपना भरण पोषण करते हैं. जिसके पास न तो अपना पक्का मकान है न ही शौचालय.

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ग्रामीण हरिया ने बताया कि वो घास-फूस की झोपड़ी में गुजर बसर करते हैं. बारिश और आंधी तूफान में स्थिति काफी बिगड़ जाती है. कभी हवा का झोंका झोपड़ी की छत को उड़ा ले जाता है. बरसात के दौरान तो हालत बदतर हो जाती है. जगह-जगह से छत से पानी टपकता है. जिस कारण उनका परिवार कभी-कभी जागकर रात गुजारता है. साथ ही उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

उन्होंने कहा कि कई जनप्रतिनिधि और सरकार के अफसर आए, लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली. कई बार वो जनप्रतिनिधियों से पक्के आवास की मांग कर चुके हैं. इसके बावजूद उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला. उनका कहना है कि अब नए जनप्रतिनिधि चुनकर आए हैं. ऐसे में अब उनसे उम्मीद है कि अब उन्हें अपना पक्का आशियाना मिल पाएगा.

ये भी पढ़ेंः फलों के लिए अच्छी साबित होगी भारी बर्फबारी, भीषण गर्मी में भी नहीं पड़ेगा असर

बहरहाल, सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं से कई लोग वंचित हैं. साथ ही ये योजनाएं धरातल तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ रही है. ऐसे में सवाल उठना भी लाजिमी है कि सरकार जोर-शोर से अपनी योजनाओं को लेकर प्रचार-प्रसार तो करती है लेकिन असली पात्र तक ये योजनाएं क्यों नहीं पहुंच पाती?

Intro:विकासनगर_ जौनसार बावर के नराया ग्राम पंचायत मैं गरीब परिवार आज भी घास फूस की झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं सरकार के लाख दावों के बावजूद भी पात्र लोगों को अपने पक्के आशियाने नहीं मिल पाए आज भी ये गरीब ग्रामीण पक्के आशियाने की आस लगाए बैठे हैं आखिर कब होगा इनका सपना पूरा


Body:सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने के दावे भले ही करें लेकिन यह जगजाहिर है कि इन योजनाओं का लाभ किस स्तर तक पात्र लोगों तक पहुंच पाता है इसकी बहन की उस समय देखने को मिली जब विकासखंड कालसी की ग्राम पंचायत नराया में अनुसूचित जाति के कई परिवारों के आशियाने घास फूस के के देखने को मिले जो आस लगाए बैठे हैं कि सरकार एक ना एक दिन उनके आशियाने पक्के करेगी लेकिन यह सपना कई वर्षों से यह गरीब मजदूर ग्रामीण लिए बैठे हैं कहीं जनप्रतिनिधि व सरकारें आई और चली गई लेकिन इनकी सुध ना तो जनप्रतिनिधियों ने प्ले ना ही सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं की विकास की किरण इन तक पहुंची है यह लोग आज भी आवास और शौचालय के लिए सरकार की योजना का मुंह ताक रहे हैं ग्रामीण हरिया ने बताया कि कई बार जनप्रतिनिधियों से पक्के आवास की मांग की गई लेकिन आज तक आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल पाया हम लोग मजदूरी मेहनत करके अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं और घास फूस की झोपड़ी में परिवार के साथ गुजर बसर करने को मजबूर है बारिश और आंधी तूफान में स्थिति काफी बिगड़ जाती है कभी हवा का झोंका झोपड़ी की घास की छत को उड़ा ले जाता है तो कभी बरसात के दिनों में तेज बारिश के चलते झोपड़ी में पानी टपक जाता है जिसके कारण कभी-कभी तो कई रातें परिवार संग जाग कर गुजारनी पड़ती है ऐसे में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है कहा कि अब नए जनप्रतिनिधि चुनकर आए हैं इन से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि शायद अब हमें अपना पक्का आशियाना मिल पाएगा


Conclusion:सरकारे आती-जाती रही है लेकिन सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं पात्र लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है ऐसे में जौनसार बावर के नराया ग्राम पंचायत के अनुसूचित जाति के कई परिवार आज भी अपने एक आशियाने के लिए नए चुने हुए जनप्रतिनिधियों से आस लगाए बैठे हैं देखना यह होगा कि क्या नए जनप्रतिनिधि इनके सपने साकार कर पाएंगे या फिर इन्हें टूटी फूटी घास फूस की झोपड़ियों में अपना जीवन ऐसे ही बिताने को मजबूर होना पड़ेगा

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