विकासनगरः आजादी के सात दशक और राज्य गठन के 20 साल बाद भी ग्रामीण इलाकों में सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पाई हैं. इसकी एक बानगी जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के नराया गांव में देखने को मिली है. जहां पर कई परिवार पक्का आशियाना न होने की वजह से घास-फूस की झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं. इतना ही नहीं ये परिवार शासन-प्रशासन से कई बार गुहार भी लगा चुके हैं, इसके बावजूद कोई उनकी सुध लेने को तैयार नहीं है. वहीं, इन परिवारों का कहना है कि उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला.
सरकार जन कल्याणकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का लाख दावे करती है, लेकिन धरातल पर ये दावे खोखले साबित हो रहे हैं. इन योजनाओं का लाभ असल में पात्रों तक पहुंच ही नहीं रहा है. इन योजनाओं से कई परिवार भी वंचित हैं जिनमें कुछ परिवार विकासखंड कालसी के नराया गांव में रहते हैं. अनुसूचित जाति के ये गरीब परिवार मजदूरी कर अपना भरण पोषण करते हैं. जिसके पास न तो अपना पक्का मकान है न ही शौचालय.
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ग्रामीण हरिया ने बताया कि वो घास-फूस की झोपड़ी में गुजर बसर करते हैं. बारिश और आंधी तूफान में स्थिति काफी बिगड़ जाती है. कभी हवा का झोंका झोपड़ी की छत को उड़ा ले जाता है. बरसात के दौरान तो हालत बदतर हो जाती है. जगह-जगह से छत से पानी टपकता है. जिस कारण उनका परिवार कभी-कभी जागकर रात गुजारता है. साथ ही उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
उन्होंने कहा कि कई जनप्रतिनिधि और सरकार के अफसर आए, लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली. कई बार वो जनप्रतिनिधियों से पक्के आवास की मांग कर चुके हैं. इसके बावजूद उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला. उनका कहना है कि अब नए जनप्रतिनिधि चुनकर आए हैं. ऐसे में अब उनसे उम्मीद है कि अब उन्हें अपना पक्का आशियाना मिल पाएगा.
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बहरहाल, सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं से कई लोग वंचित हैं. साथ ही ये योजनाएं धरातल तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ रही है. ऐसे में सवाल उठना भी लाजिमी है कि सरकार जोर-शोर से अपनी योजनाओं को लेकर प्रचार-प्रसार तो करती है लेकिन असली पात्र तक ये योजनाएं क्यों नहीं पहुंच पाती?