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हेलंग चारापत्ती विवाद को 2 महीने पूरे, बीरबल की खिचड़ी हुई रिपोर्ट, सरकार की मंशा पर सवाल - हेलंग चरपट्टी विवाद का समाधान नहीं

हेलंग चारापत्ती विवाद दो माह बाद भी नहीं सुलझा है. चमोली के हेलंग में उपजे विवाद को आज पूरे दो महीने हो गए हैं. बावजूद इसके सरकार अभी तक ना तो ये बता पाई है कि क्या महिला की गलती थी और ना ही ये बता पाई है कि जवान दोषी हैं. कमोबेश मामला अब ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा है.

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Published : Sep 15, 2022, 1:35 PM IST

Updated : Sep 15, 2022, 7:47 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड ही नहीं, देश भर में सुर्खियां बटोरने वाले हेलंग चारापत्ती विवाद (Helang Charapatti controversy) पर 2 महीने बाद भी धामी सरकार के हाथ खाली हैं. मामले में स्थानीय लोगों और तमाम संगठनों के निशाने पर रहने वाली भाजपा सरकार की गंभीरता कुछ कम नजर आ रही है. खास बात यह है कि मामला ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के हक-हकूक से जुड़ा होने के चलते प्रदेश भर की निगाहें भी इसपर टिकी हुई हैं. उधर जंगलों से खत्म होते अधिकारों के बीच हेलंग विवाद पर सरकार का कदम हक-हकूक की नई बहस को शुरू करने का काम करेगा. एक रिपोर्ट.

जंगलों की सुरक्षा और उनके संवर्धन में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले ग्रामीण अपने अधिकारों को खो रहे हैं. शायद इसीलिए समय-समय पर वन क्षेत्र में हक-हकूक को लेकर आवाजें उठती हुई सुनाई देती हैं. हालांकि, सरकारों का इस तरफ कुछ खास ध्यान नहीं जाता, लेकिन उत्तराखंड के चमोली जिले में हेलंग चारापत्ती विवाद ने ग्रामीणों के इस दर्द को पूरे देश के सामने बयां किया है. इसी साल 15 जुलाई को हेलंग में 3 महिलाओं के साथ हुई घटना वायरल वीडियो के जरिए पूरे देश ने देखी.

हेलंग चारापत्ती विवाद को 2 महीने पूरे.

प्रियंका गांधी ने की आलोचनाः इसके बाद तो वायरल वीडियो पर देश भर से इस घटना की खूब निंदा हुई. आलोचना करने वालों में प्रियंका गांधी वाड्रा भी थीं. जिन्होंने ग्रामीण महिलाओं के हक को इस तरह छीने जाने पर अपनी प्रतिक्रिया दी. तमाम संगठनों के साथ स्थानीय महिलाओं ने सड़कों पर आकर पुलिस के साथ सीआईएसएफ के जवानों के प्रति अपना रोष व्यक्त किया.
ये भी पढ़ेंः हेलंग चारापत्ती विवाद में जुड़ा नया मामला, इस नई शिकायत पर शासन ने जारी किया पत्र

दरअसल यह घटना केवल 3 महिलाओं या एक गांव से जुड़ी नहीं थी. यह एक ऐसा मुद्दा था जिसने उत्तराखंड ही नहीं देश भर में वन क्षेत्रों पर स्थानीय लोगों के अधिकारों की बहस को शुरू किया. तमाम विरोध के दबाव में आई धामी सरकार ने मामले की जांच गढ़वाल कमिश्नर को दी. इसके बाद कमिश्नर से लेकर जिलाधिकारी तक मामले को सुलझाने के लिए ग्रामीणों से मिलते हुए नजर आए. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस सामान्य से मामले पर 2 महीने बीतने के बाद भी जांच पूरी नहीं हुई है.

जांच जारी है: ईटीवी भारत ने गढ़वाल कमिश्नर सुशील कुमार से जब इस जांच पर सवाल पूछा तो उन्होंने जांच के अंतिम चरण में होने की बात कह दी. सुशील कुमार ने कहा कि उनके द्वारा वन विभाग के अधिकारियों से मिलकर वन क्षेत्र में स्थानीय लोगों के हक हकूक को लेकर अधिकारों की जानकारी ली गई है और जल्द रिपोर्ट तैयार कर ली जाएगी.

क्या है हेलंग चारापत्ती विवादः चमोली जिले के जोशीमठ क्षेत्र में हेलंग चारापत्ती विवाद आज के ही दिन 2 महीने पहले हुआ था. 15 जुलाई 2022 को जब कुछ महिलाएं चारापत्ती लेकर लौट रही थी, तभी कुछ पुलिसकर्मियों और सीआईएसएफ के जवानों ने उन्हें रोक लिया और उनसे चारापत्ती वापस ले ली. यही नहीं, आरोप है कि इसके बाद इन तीन महिलाओं को करीब 6 घंटे तक पहले पुलिस की गाड़ी और फिर थाने में हिरासत में रखा गया. इतना ही नहीं, आरोप है कि इसके बाद इनका 250 रुपये का चालान काटा गया और इसका भुगतान होने के बाद उन्हें छोड़ा गया.
ये भी पढ़ेंः 'जिन महिलाओं ने उत्तराखंड को संवारा, उन्हें ही रोका जा रहा', हेलंग मामले में प्रियंका ने सरकार को घेरा

इस दौरान कुछ लोगों ने इसका वीडियो बना लिया और सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया. बताया गया है कि जिस जगह से यह चारा पत्ती लाई गई थी, वहां पर प्रशासन ने टीएचडीसी को खेल का मैदान बनाने की अनुमति दी है और इसे प्रतिबंधित किया है. जबकि महिलाओं का कहना था कि वह सालों से यहां से चारापत्ती लाती है, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई.

हेलंग विवाद से महिलाओं में आक्रोशः उत्तराखंड राज्य निर्माण में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा है और महिलाओं के साथ हुई इस घटना का वीडियो आने के बाद सबसे ज्यादा आक्रोश महिलाओं में ही दिखाई दिया. इस मामले का राज्य महिला आयोग ने संज्ञान लिया और जिलाधिकारी को फौरन इसकी जांच के लिए कहा गया. यही नहीं, इस पूरी घटना के दौरान महिलाओं के साथ मौजूद 1 बच्चे को भी हिरासत में रखे जाने की खबर के बाद राज्य बाल संरक्षण आयोग ने भी इसको लेकर नोटिस जारी किया. इस मामले पर आसपास के गांव के लोगों ने इन महिलाओं के पक्ष में आते हुए आंदोलन शुरू किया और यह आंदोलन चमोली जिला मुख्यालय से लेकर देहरादून और नैनीताल तक फैल गया.

UKD ने बनाई जांच कमेटीः राज्य सरकार ने इस मामले पर निष्पक्ष जांच की बात कह कर मामले को कुछ समय के ठंडा तो कर दिया लेकिन 2 महीने तक भी इस पर जांच पूरी नहीं हो पाई है. हालांकि, उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल ने अपने स्तर पर एक fact-finding (सही तथ्य जांचने) के लिए 2 सदस्यीय कमेटी बनाई. इसमें सीनियर एडवोकेट डीके जोशी और वरिष्ठ पत्रकार रमेश पांडे शामिल थे. जिन्होंने 24 जुलाई को स्थानीय लोगों से मुलाकात कर इस पूरे मामले पर अपनी रिपोर्ट दी है.
ये भी पढ़ेंः हेलंग घस्यारी बदसलूकी का मामला फिर गर्माया, नैनीताल की सड़कों पर उतरे राज्य आंदोलनकारी

इंद्रेश मैखुरी ने भी संभाली कमान: इस घटना के बाद उत्तराखंड के जन आंदोलनों के नायक इंद्रेश मैखुरी ने भी सरकार और घटना में लिप्त अफसरों कर्मचारियों की कड़ी आलोचना की. इंद्रेश मैखुरी खुद पीड़ित महिलाओं से मिले और अभी भी वो इस मामले को लेकर पूरे राज्य में कैंपेन चला रहे हैं. नैनीताल में हेलंग की घटना के विरोध में बड़ा कार्यक्रम भी किया गया. इंद्रेश मैखुरी का कहना है कि पहाड़ के लोगों का हर कदम पर शोषण हो रहा है. डॉक्टर पहाड़ के अस्पतालों में नहीं आते. शिक्षक स्कूलों में पढ़ाना नहीं चाहते हैं. पहाड़ की जुझारू माताएं बहनें जिन जंगलों को उन्होंने अपने हाथों से पाला पोसा है वहां से चारा पत्ती लाती हैं तो सरकारी मुलाजिम उनके दुश्मन बने हुए हैं.

सीनियर एडवोकेट डीके जोशी कहते हैं कि उनकी रिपोर्ट से साफ है कि प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए टीएचडीसी को चार आपत्ति क्षेत्र में खेल का मैदान बनाने की अनुमति दी है और रिपोर्ट में रिटायर्ड हाईकोर्ट के जज की अगुवाई में मामले की जांच की संस्तुति की गई है.

वैसे तो वन कानून बेहद सख्त है और इसके चलते कई बार विकास कार्यों के साथ ही स्थानीय लोगों को भी इसका नुकसान झेलना पड़ता है. सबसे ज्यादा दिक्कत उन लोगों को आती है जिनकी कई पीढ़ियां इन वन क्षेत्रों के आस पास रहती आ रही हैं और वनों की सुरक्षा के साथ संवर्धन के लिए काम करने के बावजूद इन्हें इनकी जरूरत को पूरा करने के लिए भी वनों में नहीं घुसने दिया जाता. लेकिन वन कानून में भी स्थानीय या ग्रामीणों को कुछ हक और हकूक दिए गए हैं.

वन क्षेत्र में ग्रामीणों को अधिकारः प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल कहते हैं कि ग्रामीणों को वन क्षेत्र में दिए जाने वाले अधिकारों को लेकर जोरा वर्किंग प्लान में मौजूद है और यह सरकार में नोटिफाई भी है. कुछ जगहों पर स्थानीय लोगों को हक हकूक दिए गए हैं. इसमें नोटिफाई स्थानों पर चारापत्ती का उपयोग करने, जलौनी लकड़ी ले जाने और गौशाला या घर बनाने के लिए टिंबर की भी अनुमति दी गई है.

देहरादूनः उत्तराखंड ही नहीं, देश भर में सुर्खियां बटोरने वाले हेलंग चारापत्ती विवाद (Helang Charapatti controversy) पर 2 महीने बाद भी धामी सरकार के हाथ खाली हैं. मामले में स्थानीय लोगों और तमाम संगठनों के निशाने पर रहने वाली भाजपा सरकार की गंभीरता कुछ कम नजर आ रही है. खास बात यह है कि मामला ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के हक-हकूक से जुड़ा होने के चलते प्रदेश भर की निगाहें भी इसपर टिकी हुई हैं. उधर जंगलों से खत्म होते अधिकारों के बीच हेलंग विवाद पर सरकार का कदम हक-हकूक की नई बहस को शुरू करने का काम करेगा. एक रिपोर्ट.

जंगलों की सुरक्षा और उनके संवर्धन में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले ग्रामीण अपने अधिकारों को खो रहे हैं. शायद इसीलिए समय-समय पर वन क्षेत्र में हक-हकूक को लेकर आवाजें उठती हुई सुनाई देती हैं. हालांकि, सरकारों का इस तरफ कुछ खास ध्यान नहीं जाता, लेकिन उत्तराखंड के चमोली जिले में हेलंग चारापत्ती विवाद ने ग्रामीणों के इस दर्द को पूरे देश के सामने बयां किया है. इसी साल 15 जुलाई को हेलंग में 3 महिलाओं के साथ हुई घटना वायरल वीडियो के जरिए पूरे देश ने देखी.

हेलंग चारापत्ती विवाद को 2 महीने पूरे.

प्रियंका गांधी ने की आलोचनाः इसके बाद तो वायरल वीडियो पर देश भर से इस घटना की खूब निंदा हुई. आलोचना करने वालों में प्रियंका गांधी वाड्रा भी थीं. जिन्होंने ग्रामीण महिलाओं के हक को इस तरह छीने जाने पर अपनी प्रतिक्रिया दी. तमाम संगठनों के साथ स्थानीय महिलाओं ने सड़कों पर आकर पुलिस के साथ सीआईएसएफ के जवानों के प्रति अपना रोष व्यक्त किया.
ये भी पढ़ेंः हेलंग चारापत्ती विवाद में जुड़ा नया मामला, इस नई शिकायत पर शासन ने जारी किया पत्र

दरअसल यह घटना केवल 3 महिलाओं या एक गांव से जुड़ी नहीं थी. यह एक ऐसा मुद्दा था जिसने उत्तराखंड ही नहीं देश भर में वन क्षेत्रों पर स्थानीय लोगों के अधिकारों की बहस को शुरू किया. तमाम विरोध के दबाव में आई धामी सरकार ने मामले की जांच गढ़वाल कमिश्नर को दी. इसके बाद कमिश्नर से लेकर जिलाधिकारी तक मामले को सुलझाने के लिए ग्रामीणों से मिलते हुए नजर आए. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस सामान्य से मामले पर 2 महीने बीतने के बाद भी जांच पूरी नहीं हुई है.

जांच जारी है: ईटीवी भारत ने गढ़वाल कमिश्नर सुशील कुमार से जब इस जांच पर सवाल पूछा तो उन्होंने जांच के अंतिम चरण में होने की बात कह दी. सुशील कुमार ने कहा कि उनके द्वारा वन विभाग के अधिकारियों से मिलकर वन क्षेत्र में स्थानीय लोगों के हक हकूक को लेकर अधिकारों की जानकारी ली गई है और जल्द रिपोर्ट तैयार कर ली जाएगी.

क्या है हेलंग चारापत्ती विवादः चमोली जिले के जोशीमठ क्षेत्र में हेलंग चारापत्ती विवाद आज के ही दिन 2 महीने पहले हुआ था. 15 जुलाई 2022 को जब कुछ महिलाएं चारापत्ती लेकर लौट रही थी, तभी कुछ पुलिसकर्मियों और सीआईएसएफ के जवानों ने उन्हें रोक लिया और उनसे चारापत्ती वापस ले ली. यही नहीं, आरोप है कि इसके बाद इन तीन महिलाओं को करीब 6 घंटे तक पहले पुलिस की गाड़ी और फिर थाने में हिरासत में रखा गया. इतना ही नहीं, आरोप है कि इसके बाद इनका 250 रुपये का चालान काटा गया और इसका भुगतान होने के बाद उन्हें छोड़ा गया.
ये भी पढ़ेंः 'जिन महिलाओं ने उत्तराखंड को संवारा, उन्हें ही रोका जा रहा', हेलंग मामले में प्रियंका ने सरकार को घेरा

इस दौरान कुछ लोगों ने इसका वीडियो बना लिया और सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया. बताया गया है कि जिस जगह से यह चारा पत्ती लाई गई थी, वहां पर प्रशासन ने टीएचडीसी को खेल का मैदान बनाने की अनुमति दी है और इसे प्रतिबंधित किया है. जबकि महिलाओं का कहना था कि वह सालों से यहां से चारापत्ती लाती है, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई.

हेलंग विवाद से महिलाओं में आक्रोशः उत्तराखंड राज्य निर्माण में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा है और महिलाओं के साथ हुई इस घटना का वीडियो आने के बाद सबसे ज्यादा आक्रोश महिलाओं में ही दिखाई दिया. इस मामले का राज्य महिला आयोग ने संज्ञान लिया और जिलाधिकारी को फौरन इसकी जांच के लिए कहा गया. यही नहीं, इस पूरी घटना के दौरान महिलाओं के साथ मौजूद 1 बच्चे को भी हिरासत में रखे जाने की खबर के बाद राज्य बाल संरक्षण आयोग ने भी इसको लेकर नोटिस जारी किया. इस मामले पर आसपास के गांव के लोगों ने इन महिलाओं के पक्ष में आते हुए आंदोलन शुरू किया और यह आंदोलन चमोली जिला मुख्यालय से लेकर देहरादून और नैनीताल तक फैल गया.

UKD ने बनाई जांच कमेटीः राज्य सरकार ने इस मामले पर निष्पक्ष जांच की बात कह कर मामले को कुछ समय के ठंडा तो कर दिया लेकिन 2 महीने तक भी इस पर जांच पूरी नहीं हो पाई है. हालांकि, उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल ने अपने स्तर पर एक fact-finding (सही तथ्य जांचने) के लिए 2 सदस्यीय कमेटी बनाई. इसमें सीनियर एडवोकेट डीके जोशी और वरिष्ठ पत्रकार रमेश पांडे शामिल थे. जिन्होंने 24 जुलाई को स्थानीय लोगों से मुलाकात कर इस पूरे मामले पर अपनी रिपोर्ट दी है.
ये भी पढ़ेंः हेलंग घस्यारी बदसलूकी का मामला फिर गर्माया, नैनीताल की सड़कों पर उतरे राज्य आंदोलनकारी

इंद्रेश मैखुरी ने भी संभाली कमान: इस घटना के बाद उत्तराखंड के जन आंदोलनों के नायक इंद्रेश मैखुरी ने भी सरकार और घटना में लिप्त अफसरों कर्मचारियों की कड़ी आलोचना की. इंद्रेश मैखुरी खुद पीड़ित महिलाओं से मिले और अभी भी वो इस मामले को लेकर पूरे राज्य में कैंपेन चला रहे हैं. नैनीताल में हेलंग की घटना के विरोध में बड़ा कार्यक्रम भी किया गया. इंद्रेश मैखुरी का कहना है कि पहाड़ के लोगों का हर कदम पर शोषण हो रहा है. डॉक्टर पहाड़ के अस्पतालों में नहीं आते. शिक्षक स्कूलों में पढ़ाना नहीं चाहते हैं. पहाड़ की जुझारू माताएं बहनें जिन जंगलों को उन्होंने अपने हाथों से पाला पोसा है वहां से चारा पत्ती लाती हैं तो सरकारी मुलाजिम उनके दुश्मन बने हुए हैं.

सीनियर एडवोकेट डीके जोशी कहते हैं कि उनकी रिपोर्ट से साफ है कि प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए टीएचडीसी को चार आपत्ति क्षेत्र में खेल का मैदान बनाने की अनुमति दी है और रिपोर्ट में रिटायर्ड हाईकोर्ट के जज की अगुवाई में मामले की जांच की संस्तुति की गई है.

वैसे तो वन कानून बेहद सख्त है और इसके चलते कई बार विकास कार्यों के साथ ही स्थानीय लोगों को भी इसका नुकसान झेलना पड़ता है. सबसे ज्यादा दिक्कत उन लोगों को आती है जिनकी कई पीढ़ियां इन वन क्षेत्रों के आस पास रहती आ रही हैं और वनों की सुरक्षा के साथ संवर्धन के लिए काम करने के बावजूद इन्हें इनकी जरूरत को पूरा करने के लिए भी वनों में नहीं घुसने दिया जाता. लेकिन वन कानून में भी स्थानीय या ग्रामीणों को कुछ हक और हकूक दिए गए हैं.

वन क्षेत्र में ग्रामीणों को अधिकारः प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल कहते हैं कि ग्रामीणों को वन क्षेत्र में दिए जाने वाले अधिकारों को लेकर जोरा वर्किंग प्लान में मौजूद है और यह सरकार में नोटिफाई भी है. कुछ जगहों पर स्थानीय लोगों को हक हकूक दिए गए हैं. इसमें नोटिफाई स्थानों पर चारापत्ती का उपयोग करने, जलौनी लकड़ी ले जाने और गौशाला या घर बनाने के लिए टिंबर की भी अनुमति दी गई है.

Last Updated : Sep 15, 2022, 7:47 PM IST
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