देहरादून: उत्तराखंड में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है, जहां एक ओर स्वास्थ्य विभाग डॉक्टरों और नर्सों की कमी से जूझ रहा है तो वहीं चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में कर्मचारियों और अधिकारियों की भी भारी कमी है. जिसके चलते जनता को पर्याप्त स्वास्थ्य उठाएं उपलब्ध नहीं हो पाती है. यही नहीं पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति काफी दयनीय है. इन सबके बीच राज्य सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए हर साल बजट को बढ़ाने का प्रावधान करती रही है. बावजूद इसके धनराशि खर्च करने में स्वास्थ्य विभाग हमेशा ही फिसड्डी साबित हुई है.
यू तो स्वास्थ्य सुविधाएं इंसान की मूलभूत सुविधाओं में शुमार है, लेकिन स्थिति यह है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में अभी भी प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में तमाम लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं. यही नहीं समय-समय पर ऐसी घटनाएं भी सामने आती हैं. जब प्रसव पीड़ा के दौरान महिला को स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पाती है, जिससे जच्चा-बच्चा के जीवन पर आफत बन पड़ती है.
हालांकि, राज्य सरकार भी इस बात को मान रही है कि अभी भी स्वास्थ्य विभाग में एक बड़ा बदलाव करने की जरूरत है. यही वजह है कि राज्य सरकार स्वास्थ्य विभाग को बेहतर किए जाने को लेकर कई बड़े कदम भी उठाती रही है, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है. जिसका खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ता है.
राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति: सरकार जनता को प्रभावी और सुगम चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए त्रिस्तरीय चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध करा रही हैं. उत्तराखंड राज्य में चिकित्सा सुविधाओं की गुणवत्ता सुधारने और चिकित्सा इकाईयों में एकरूपता स्थापित किये जाने के लिए राज्य में स्थापित तमाम चिकित्सा इकाइयों को आईपीएएस मानक के तहत स्थापित किए गए है. उत्तराखंड में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, उपचारात्मक प्रतिरोधात्मक प्रतिबंधक, प्रोत्साहन और पुनर्वास जैसी सेवाएं 13 जिला चिकित्सालयों, 21 उप जिला चिकित्सालय, 79 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 52 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र टाइप-बी, 525 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र टाईप-ए, 25 अन्य चिकित्सा इकाइयों के सात ही 1896 उप केन्द्रों के माध्यम से दी जा रही है.
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धनराशि खर्च करने में फिसड्डी महकमा: किसी भी राज्य के लिए स्वास्थ्य महकमा काफी महत्वपूर्ण विभाग होता है, क्योंकि यह सीधे तौर पर जनता से जुड़ी हुई है. यही वजह है कि राज्य सरकार हर साल स्वास्थ्य महकमे के लिए बजट के प्रावधान को बढ़ाते रहती है. ताकि जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हो सके. इसी क्रम में उत्तराखंड राज्य में भी हर साल स्वास्थ्य विभाग के लिए अलॉट होने वाले बजट को बढ़ाया जाता है, लेकिन आलम यह है कि स्वास्थ्य विभाग बजट को खर्च करने में फिसड्डी साबित होता रहा है.
वित्तीय वर्ष 2021-22 की बात करें तो राज्य सेक्टर योजनाओं के लिए 1475.65 करोड़ रुपए से ज्यादा का प्रावधान किया गया था, लेकिन विभाग मात्र 1155.71 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाई. इसी क्रम में केंद्र पोषित योजनाओं के तहत 1051.58 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, जिसमें से विभाग मात्र 628.42 करोड रुपए ही खर्च कर पाई.
इसलिए नहीं हुआ बजट खर्च: स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर राजेश कुमार ने बताया कि बजट खर्च न होने के कई कारण हैं. हालांकि, जब उन्हें स्वास्थ्य विभाग का चार्ज मिला, उसके बाद उन्होंने देखा की कार्यदायी संस्था बदल रही है, लेकिन पुरानी कार्यदायी संस्था के पास ही बजट था. जिसके बाद पुरानी कार्यदायी संस्था से बजट वापिस मंगाया गया, जिसके चलते बजट खर्च और काम होने में देरी हुई है. साथ ही कहा कि वर्तमान समय से जितने भी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स है, चाहे मेडिकल हेल्थ या मेडिकल एजुकेशन से जुड़े हुए हो उन प्रोजेक्ट्स को फास्ट ट्रैक मोड पर चलाया जा रहा हैं. ऐसे में आने वाले समय में इन प्रोजेक्ट्स में तेजी दिखेगी. साथ ही कहा कि कोई भी विभाग जरूरत से ज्यादा बजट की मांग करती है, जिसके चलते भी कई बार विभागों के बजट बच जाते है.
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कर्मचारियों और अधिकारियों की कमी: उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग तो पहले से ही डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग में तैनात क, ख, ग और घ श्रेणी के तहत अधिकारियों और कर्मचारियों की भी भारी कमी है. स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में अधिकारियों और कर्मचारियों के कुल 14976 पद स्वीकृत है, जिसके सापेक्ष मात्र 8068 कर्मचारी और अधिकारी तैनात है. यानी 6908 पद कर्मचारियों और अधिकारियों के खाली पड़े हुए है. जिसके चलते स्वास्थ्य विभाग को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
इस बारे में स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर राजेश कुमार ने बताया कि अभी करीब 3000 नर्सों की कमी है, जिसमे से करीब 2600 पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. हालांकि, भर्ती मामले पर अभी शासन के स्तर से कार्रवाई चल रही है. इसके साथ ही सीएचओ के 880 पद के साथ ही एएनएम के खाली पड़े पदों को भी जल्द भर लिया जाएगा.
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मानव संसाधन प्रबंधन के लिहाज से नहीं है कोई पॉलिसी: मानव संसाधन प्रबंधन के लिहाज से स्वास्थ्य महकमे के पास कोई भी ट्रांसफर पॉलिसी नहीं है, जिसके चलते डॉक्टरों के ट्रांसफर में विभाग को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं. हालांकि, विभाग पीपीपी मॉडल से भर्ती पर विचार कर रहा है, जिससे मानव संसाधन प्रबंधन में आने वाली दिक्कतों को काफी हद तक दूर किया जा सकता है.
वही, स्वास्थ्य सचिव ने बताया गया कि ह्यूमन रिसोर्स के संबंध में जो पहले से ही नियमावली बनी हुई है, उस नियमावली के तहत ही भर्तियां की जा रही हैं. इसके अलावा सेवा नियमावली के जो प्रावधान है, उन प्रावधानों का भी पालन किया जा रहा है. हालांकि मानव संसाधन प्रबंधन के लिहाज से पॉलिसी बनाई जा सकती है, लेकिन वर्तमान समय में आपके पास तमाम गाइडलाइन है, जिसका पालन करते हुए रिक्त पदों को भरा जा रहा है.
पीपीडी मोड पर फोक्स: प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर किए जाने के लिए निजी क्षेत्र को भी आकर्षित किए जाने पर स्वास्थ्य महकमा विचार कर रहा है. इस संबंध में स्वास्थ्य सचिव आर राजेश कुमार का कहना है कि फिलहाल विभाग की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं.
क्योंकि पीपीपी मोड में मुख्य रूप से सुपर स्पेशियलिटी के क्षेत्र में विभाग ओपन है, ताकि प्राइवेट पार्टनर को भी इनवाइट करें. हालांकि हाल ही में हुए चिंतन शिविर के दौरान भी तमाम बिंदुओं पर भी चर्चा की गई है, जिस पर जल्द ही काम शुरू किया जाएग.
बजट खर्च करने में स्वास्थ्य विभाग की स्थिति: वित्तीय वर्ष 2021-22 में विभाग को राज्य सेक्टर योजनाओं के तहत 1475 करोड़ 65 लाख 61 हजार रुपए के बजट का प्रावधान किया गया था. जिसमे से मार्च 2022 तक 1440 करोड़ 08 लाख 13 हजार रुपए की धनराशि अवमुक्त की गई, लेकिन विभाग 1155 करोड़ 71 लाख 89 हजार रुपए ही खर्च कर पाई है.
वित्तीय वर्ष 2021-22 में विभाग को केंद्र पोषित योजनाओं के तहत 1051 करोड़ 58 लाख 35 हजार रुपए के बजट का प्रावधान किया गया था. जिसमे से मार्च 2022 तक 685 करोड़ 05 लाख 63 हजार रुपए की धनराशि अवमुक्त की गई. लेकिन विभाग 628 करोड़ 42 लाख 46 हजार रुपए ही खर्च कर पाई है.
कर्मचारियों की स्थिति: स्वास्थ्य विभाग के 'क' श्रेणी में 1323 पद स्वीकृत है, जिसमें से 643 पद रिक्त है. स्वास्थ्य विभाग के 'ख' श्रेणी में 2018 पद स्वीकृत है, जिसमे से 520 पद रिक्त है. स्वास्थ्य विभाग के 'ग' श्रेणी में 11019 पद स्वीकृत है, जिसमे से 5386 पद रिक्त है. स्वास्थ्य विभाग के 'घ' श्रेणी में 616 पद स्वीकृत है, जिसमे से 351 पद रिक्त है.