देहरादून: उत्तराखंड में पुलों के टूटने की घटना ने जहां एक तरफ लोगों में खौफ पैदा कर दिया है. वहीं, दूसरी तरफ प्रदेश में पुलों के धराशायी होने पर राजनीति शुरू हो गई है. प्रदेश की जर्जर पुलों को लेकर कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया है.
उत्तराखंड में एक के बाद एक पुलों के टूटने की घटनाओं ने लोगों में भय पैदा कर दिया है. ऐसा इसीलिए, क्योंकि प्रदेश में पिछले कुछ समय में ही 30 से ज्यादा छोटे-बड़े पुलों के टूटने की खबरें सामने आई हैं. अकेले देहरादून में ही 3 पुल क्षतिग्रस्त हुए हैं. 27 अगस्त को रानीपोखरी पुल टूटने के बाद प्रदेश में पुलों को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि राज्य सरकार पिछले कई सालों से पुलों का ऑडिट नहीं करवा रही है. जबकि पूर्व में उनकी सरकार में यह ऑडिट होता रहा है. उन्होंने कहा इसको लेकर लोगों की सुरक्षा को देखते हुए न केवल ऑडिट होना चाहिए, बल्कि इस ऑडिट को सार्वजनिक भी किया जाना चाहिए.
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रानीपोखरी पुल हादसे के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत ने सबसे पहले रविवार को मौके पर जाकर जायजा लिया. हरीश रावत के बाद रविवार शाम उत्तरकाशी से लौटते हुए पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत भी पुल का जायजा लेने पहुंचे. इतना ही नहीं सोमवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अधिकारियों के साथ मौके पर ही टूटे पुल का निरीक्षण कर जरूरी दिशा-निर्देश दिए हैं.
उत्तराखंड में जर्जर पुलों की स्थिति: लोक निर्माण विभाग ने वर्ष 2019 में 235 पुलों को लेकर सुरक्षा रिपोर्ट मांगी थी. ताकि इन पुलों की सुरक्षा को लेकर उचित कदम उठाए जा सकें. ये रिपोर्ट्स कहां हैं और इन रिपोर्ट पर कितना कुछ काम हुआ, इसकी कोई जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है.
उत्तराखंड में 27 पुलों की हालत काफी खराब है. इनमें पैदल और झूला पुल भी शामिल हैं. निर्माण के वक्त गुणवत्ता से समझौता और रखरखाव-मरम्मत में ढिलाई तो पुलों के टूटने की वजह है ही, इसके साथ ही पुलों के नीचे नदियों में बेतरतीब खनन भी पुलों के ध्वस्त होने का प्रमुख कारण बन रहा है. देहरादून में हाल ही में तीन पुल टूट चुके हैं. जून में देहरादून-रायपुर-थानो रूट पर बड़ासी पुल का एक हिस्सा ढह गया था. इसमें एनएच के तीन इंजीनियरों को सस्पेंड किया गया था.
सरकार को घेर रहा विपक्ष: उत्तराखंड में चुनावी साल में विपक्ष हर मुद्दे पर सरकार को घेर रहा है. बीते 27 अगस्त को ऋषिकेश के रानीपोखरी में पुल के ढहने के बाद कांग्रेस से लेकर आप ने इसको चुनावी मुद्दा बना दिया है. पुल ढहने के तुरंत बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत ने सोशल मीडिया के जरिए पुल के गिरने पर बीजेपी सरकार को कटघरे में लेते हुए इसके पीछे खनन को भी दोषी माना था. हरीश रावत ने एक बार फिर पुल के गिरने के पीछे खनन होने को ही मुख्य कारण माना है. हरीश रावत ने सरकार से इसकी ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक करने की भी मांग की.
रानीपोखरी का पुराना पुल जो काफी मजबूत दिखाई देता था, टूट गया. टूटने के दो ही कारण हो सकते हैं. एक उसके चारों तरफ हो रहा अवैध खनन और दूसरा यह हो सकता है कि उसका सेफ्टी ऑडिट न हुआ हो और पुल कमजोर हो गया हो. लेकिन जहां तक मुझे लगता है, ये पुल खनन के कारण टूटा है. इसी तरीके से एक पुल पहले गौला में भी टूटा था और भी बहुत सारे जगह जो पुलों को क्षति हुई है, ज्यादातर मामलों में मामला पुल क्षेत्र में हो रहे खनन का सामने आया है और यहां भी जिस तरीके से भाजपा राज में खनन का बोलबाला हो रहा है, यह उसकी एक बानगी लगती है. इंजीनियर्स की जांच केवल आईवॉश न हो, इसलिए आवश्यक है कि किसी बाहरी एजेंसी से, जो उत्तर प्रदेश से बाहर की एजेंसी हो उससे जांच करवाई जाए. ताकि एक बार यह तो पता चले कि टूटने का कारण क्या है. यदि खनन इसका कारण निकलता है, तो फिर एक बार जितने खनन पट्टे पुलों के नजदीक दिये गये हैं, उन पर पुनर्विचार करना आवश्यक है.- हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री