देहरादून: अभी कुछ समय पहले ही कृषि एवं सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने कहा था कि प्रदेश में पहले स्वैच्छिक चकबंदी और फिर अनिवार्य चकबंदी लागू की जाएगी. उनका कहना था कि कृषि को बढ़ावा देकर गांवों से पलायन रोकने पर सरकार गंभीरता से काम कर रही है और इसके लिए ही सरकार ने चकबंदी लागू करने का निर्णय लिया है. कृषि मंत्री की इसी बात पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तंज कसा है.
सोशल मीडिया पर सक्रियता के मामले में सरकार को भी पछाड़ने वाले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बीजेपी सरकार पर वार करने का फिर एक नया मुद्दा ढूंढा है. इस बार उन्होंने कृषि मंत्री गणेश जोशी के 'अनिवार्य चकबंदी' बयान को संदर्भ बनाकर उनके पुराने 'पाप' को नए पुण्य से माफ किए की बात कही है. हालांकि, इस दौरान हरदा उनकी सरकार के कार्यकाल के दौरान की गयी पहल को याद दिलाना नहीं भूले.
सोशल मीडिया पर लिखे एक पोस्ट में हरीश रावत कहते हैं कि, वो मंत्री गणेश जोशी से बेहद नाराज हैं. इस नाराजगी का कारण 2016 में हुआ वो घटनाक्रम है जिसमें विधानसभा के समक्ष हुई धक्का-मुक्की में घुड़सवार पुलिस के घोड़े शक्तिमान की टांग टूट गई थी और फिर उसकी मौत हो गई थी. घोड़े की मौत का आरोप बीजेपी नेताओं पर लगा था, जिसमें गणेश जोशी भी शामिल थे. हरदा कहते हैं कि, अगर जोशी अब कोई बड़ा पुण्य करते हैं तो उनका ये पाप भी माफ हो जाएगा, और ये पुण्य होगा राज्य में अनिवार्य चकबंदी लागू करना.
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हरीश रावत कहते हैं कि, राज्य में अनिवार्य चकबंदी की घोषणा एक साहसपूर्ण नीतिगत निर्णय है. इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस सरकार के समय किए गये कार्यों को भी गिनवाया. हरदा ने कहा कि, उनकी सरकार ने 2016 में पर्वतीय चकबंदी का कानून बनाया है, नियमावली भी तैयार की गई है. उनकी सरकार ने क्लस्टर बेस्ड एग्रीकल्चर को बढ़ावा देने के लिए पारस्परिक तौर पर जमीनों की अदला-बदली और लीजिंग की पॉलिसी बनाकर भी रखी है. कृषि में बड़े बाधक बनने वाले जमीनों के अनेक प्रकार के वर्गीकरण को भी लगभग समाप्त किया है. भूमिहीनों को भूमि के अधिकार का निर्णय भी कांग्रेस सरकार ने किया व उसको लागू किया.
हरीश रावत आगे लिखते हैं कि, उनकी सरकार के समय भूमि सुधार को एक एजेंडे के रूप में आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया था, लेकिन समय की कमी के कारण वो भूमि का नया बंदोबस्त नहीं कर पाए और चकबंदी क्रियान्वित नहीं हो पाई जबकि उन्होंने चकबंदी का कैडर भी बनाया और रैवन्यू कैडर को भी सशक्त किया. पटवारी भर्ती आदि से लेकर के कानूनगो, नायब तहसीलदारों आदि के पदोन्नति के मामलों को भी सेटल किया.
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मंत्री गणेश जोशी को संबोधित करते हुए पूर्व सीएम ने लिखा कि, राज्य के सामने जमीन का नया बंदोबस्त और अनिवार्य चकबंदी, ये दो बड़ी चुनौतीपूर्ण समस्याएं हैं. यदि वर्तमान सरकार इसका समाधान निकालती है तो वो मंत्री जी को जरूर बधाई देंगे.
पहले भी हुई है अनिवार्य चकबंदी की पहल: गौर हो कि, उत्तराखंड में अनिवार्य चकबंदी लागू करने की पहल पहले भी की गई है. अविभाजित उत्तर प्रदेश में रहते हुए 1990 में भी पहाड़ी क्षेत्र के लिए अनिवार्य चकबंदी का फैसला लिया गया था, लेकिन यह धरातल में नहीं उतर पाया. चकबंदी के तहत बिखरे खेतों को चकों में विभक्त कर उसका समान रूप से वितरण किया जा सकेगा. दरअसल, उत्तराखंड की कृषि व्यवस्था मैदानी व पर्वतीय हिस्सों में बंटी है. मैदानी इलाकों में सभी साधन उपलब्ध हैं, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में खेती बिखरी है. किसी का एक खेत घर के पास है तो दूसरा एक किमी दूर, यानी एक तो बिखरी खेती और ऊपर से जंगली जानवरों और मौसम की मार. इन सब परिस्थितियों के चलते पहाड़ में लोग खेती से विमुख हो रहे हैं और नतीजा बंजर खेत बढ़ रहे हैं. कृषि का दायरा घटने से पशुपालन पर भी मार पड़ी है.
आसान नहीं चकबंदी: केवल कह देने भर से नहीं होगा, यहां सबसे बड़ी दिक्कत चकों का बंटवारा करना होगा. चक बंटवारे में किसी के खाते में सिंचित उपजाऊ भूमि आ सकती है और किसी को बंजर मिल सकती है. एक खेत के कई दावेदार भी सामने आ सकते हैं क्योंकि भूमि का बंदोबस्त नहीं हुआ है. चकबंदी की राह के सामने काफी चुनौतियां हैं लेकिन सरकार चाहे तो इसका हल निकाला जा सकता है.