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उत्तराखंड के 'चाणक्य' का टूटा तिलिस्म, लगातार तीसरी बड़ी हार, क्या पहाड़ में खोया जनाधार?

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Published : May 23, 2019, 6:00 PM IST

Updated : May 23, 2019, 6:25 PM IST

पूर्व सीएम हरीश रावत ने राजनीतिक अखाड़े में अच्छे-अच्छे पहलवानों को पानी पिलाया है. उनकी राजनीतिक कुशलता ही है कि वे हार के बाद भी प्रदेश की सियासत में पूरे दम-खम के साथ मैदान में डटे रहते हैं, जो विरोधियों को भी सोचने को मजबूर कर देती है.

पूर्व सीएम हरीश रावत.

देहरादून: पूर्व सीएम हरीश रावत की गिनती कद्दावर नेताओं में होती है. जिन्हें उत्तराखंड की सियासत में 'चाणक्य' भी कहा जाता है. हरीश रावत को सियासत में कई बार हार का मुंह देखना पड़ा है, लेकिन कहा जाता है कि वे हार के बाद हमेशा मजबूती से उभरते हैं. जिसकी तस्दीक उनका राजनीतिक सफरनामा कर रहा है. लेकिन इस बार नैनीताल सीट से जनता ने उन्हें फिर नकार दिया है. जिससे उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठना लाजिमी है.

उल्लेखनीय है कि पूर्व सीएम हरीश रावत ने राजनीतिक अखाड़े में अच्छे-अच्छे पहलवानों को पानी पिलाया है. उनकी राजनीतिक कुशलता ही है कि वे हार के बाद भी प्रदेश की सियासत में पूरे दम-खम के साथ मैदान में डटे रहते हैं, जो विरोधियों को भी सोचने को मजबूर कर देती है. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव की हार हरदा के राजनीतिक करियर की दिशा तय करेगा, क्योंकि उम्र के लिहाज से भी दूसरी पंक्ति के नेताओं के मन में आगे बढ़ने की चाहत हिलोरे मार रही है. वहीं इसी के इतर सवाल उठ रहा है कि प्रदेश की राजनीति के 'चाणक्य' कहे जाने वाले हरदा का तिलिस्म टूट रहा है जो उन्हें राजनीतिक हासिये पर खड़ा कर रहा है.

वहीं पूर्व सीएम हरीश रावत का जीत और हार से चोली दामन का साथ रहा है. 1980 में पहली बार अल्मोड़ा से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए. यहां से वे तीन बार लगातार 1980, 1984, 1989 में जीते लेकिन, फिर चार बार लगातार 1991, 1996, 1998, 1999 में हार का मुंह भी देखना पड़ा. जिसके बाद दस सालों के बाद फिर 2009 में हरिद्वार से लोकसभा का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में जीत हासिल करने के बाद केंद्र सरकार में मंत्री पद से नवाजे गए. जिसके बाद 2016 में हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए. साथ ही मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत विधानसभा चुनाव में हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण के साथ ही किच्छा विधानसभा से भी चुनाव हारे थे.

राजनीतिक सफर

  • साल 1980 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गए.
  • इससे पहले उन्हें यूथ कांग्रेस के जिलाध्यक्ष चुने गए थे.
  • 1980-84 में हरीश रावत ने 7वें लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर संसद पहुंचे थे.
  • 1984-89: 8वें लोकसभा चुनाव में दूसरी बार लोकसभा सदस्‍य चुने गये.
  • 1989: 9वें लोकसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार लोकसभा सदस्‍य चुने गये.
  • 23 मार्च1990 को उन्हें कमेटी ऑन ऑफिसयल लैंग्‍वेज के सदस्‍य चुने गये.
  • साल 1990 में जनसंचार मंत्रालय के कमेटी में सदस्‍य चुने गये.
  • साल 2001 से 2007 तक वो उत्‍तराखंड कांग्रेस कमेटी की अध्‍यक्ष रहे.
  • 2002 उन्हें राज्‍यसभा सांसद चुना गया.
  • 2009 में 15वें लोकसभा चुनाव में चौथी बार लोकसभा सदस्‍य चुने गये.
  • साल 2009 से 18 जनवरी 2011 में हरीश रावत राज्‍य मंत्री चुने गये.
  • 2012 में हरीश रावत केंद्र की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री बने.
  • 2016 में हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने

.

देहरादून: पूर्व सीएम हरीश रावत की गिनती कद्दावर नेताओं में होती है. जिन्हें उत्तराखंड की सियासत में 'चाणक्य' भी कहा जाता है. हरीश रावत को सियासत में कई बार हार का मुंह देखना पड़ा है, लेकिन कहा जाता है कि वे हार के बाद हमेशा मजबूती से उभरते हैं. जिसकी तस्दीक उनका राजनीतिक सफरनामा कर रहा है. लेकिन इस बार नैनीताल सीट से जनता ने उन्हें फिर नकार दिया है. जिससे उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठना लाजिमी है.

उल्लेखनीय है कि पूर्व सीएम हरीश रावत ने राजनीतिक अखाड़े में अच्छे-अच्छे पहलवानों को पानी पिलाया है. उनकी राजनीतिक कुशलता ही है कि वे हार के बाद भी प्रदेश की सियासत में पूरे दम-खम के साथ मैदान में डटे रहते हैं, जो विरोधियों को भी सोचने को मजबूर कर देती है. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव की हार हरदा के राजनीतिक करियर की दिशा तय करेगा, क्योंकि उम्र के लिहाज से भी दूसरी पंक्ति के नेताओं के मन में आगे बढ़ने की चाहत हिलोरे मार रही है. वहीं इसी के इतर सवाल उठ रहा है कि प्रदेश की राजनीति के 'चाणक्य' कहे जाने वाले हरदा का तिलिस्म टूट रहा है जो उन्हें राजनीतिक हासिये पर खड़ा कर रहा है.

वहीं पूर्व सीएम हरीश रावत का जीत और हार से चोली दामन का साथ रहा है. 1980 में पहली बार अल्मोड़ा से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए. यहां से वे तीन बार लगातार 1980, 1984, 1989 में जीते लेकिन, फिर चार बार लगातार 1991, 1996, 1998, 1999 में हार का मुंह भी देखना पड़ा. जिसके बाद दस सालों के बाद फिर 2009 में हरिद्वार से लोकसभा का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में जीत हासिल करने के बाद केंद्र सरकार में मंत्री पद से नवाजे गए. जिसके बाद 2016 में हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए. साथ ही मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत विधानसभा चुनाव में हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण के साथ ही किच्छा विधानसभा से भी चुनाव हारे थे.

राजनीतिक सफर

  • साल 1980 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गए.
  • इससे पहले उन्हें यूथ कांग्रेस के जिलाध्यक्ष चुने गए थे.
  • 1980-84 में हरीश रावत ने 7वें लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर संसद पहुंचे थे.
  • 1984-89: 8वें लोकसभा चुनाव में दूसरी बार लोकसभा सदस्‍य चुने गये.
  • 1989: 9वें लोकसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार लोकसभा सदस्‍य चुने गये.
  • 23 मार्च1990 को उन्हें कमेटी ऑन ऑफिसयल लैंग्‍वेज के सदस्‍य चुने गये.
  • साल 1990 में जनसंचार मंत्रालय के कमेटी में सदस्‍य चुने गये.
  • साल 2001 से 2007 तक वो उत्‍तराखंड कांग्रेस कमेटी की अध्‍यक्ष रहे.
  • 2002 उन्हें राज्‍यसभा सांसद चुना गया.
  • 2009 में 15वें लोकसभा चुनाव में चौथी बार लोकसभा सदस्‍य चुने गये.
  • साल 2009 से 18 जनवरी 2011 में हरीश रावत राज्‍य मंत्री चुने गये.
  • 2012 में हरीश रावत केंद्र की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री बने.
  • 2016 में हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने

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उत्तराखंड के 'चाणक्य' का टूट रहा तिलिस्म, क्या पहाड़ में जनाधार खोते जा रहे हरदा? 

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देहरादून:  पूर्व सीएम हरीश रावत की गिनती कद्दावर नेताओं में होती है. जिन्हें उत्तराखंड की सियासत में 'चाणक्य' भी कहा जाता है. हरीश रावत को सियासत में कई बार हार का मुंह देखना पड़ा है, लेकिन कहा जाता है कि वे हार के बाद हमेशा मजबूती से उभरते हैं. जिसकी तस्दीक उनका राजनीतिक सफरनामा कर रहा है. लेकिन इस बार नैनीताल सीट से जनता ने उन्हें फिर नकार दिया है. जिससे उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठना लाजिमी है. 

उल्लेखनीय है कि पूर्व सीएम हरीश रावत ने राजनीतिक अखाड़े में अच्छे-अच्छे पहलवानों को पानी पिलाया है. उनकी राजनीतिक कुशलता ही है कि वे हार के बाद भी प्रदेश की सियासत में पूरे दम-खम के साथ मैदान में डटे रहते हैं, जो विरोधियों को भी सोचने को मजबूर कर देती है. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव की हार हरदा के राजनीतिक करियर की दिशा तय करेगा, क्योंकि उम्र के लिहाज से भी दूसरी पंक्ति के नेताओं के मन में आगे बढ़ने की चाहत हिलोरे मार रही है. वहीं इसी के इतर सवाल उठ रहा है कि प्रदेश की राजनीति के 'चाणक्य' कहे जाने वाले हरदा का तिलिस्म टूट रहा है जो उन्हें राजनीतिक हासिये पर खड़ा कर रहा है.  

वहीं पूर्व सीएम हरीश रावत का जीत और हार से चोली दामन का साथ रहा है. 1980 में पहली बार अल्मोड़ा से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए. यहां से वे तीन बार लगातार 1980, 1984, 1989 में जीते लेकिन, फिर चार बार लगातार 1991, 1996, 1998, 1999 में हार का मुंह भी देखना पड़ा. जिसके बाद दस सालों के बाद फिर 2009 में हरिद्वार से लोकसभा का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में जीत हासिल करने के बाद केंद्र सरकार में मंत्री पद से नवाजे गए.  जिसके बाद 2016 में हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए. साथ ही मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत विधानसभा चुनाव में हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण के साथ ही किच्छा विधानसभा से भी चुनाव हारे थे. 

राजनीतिक सफर 

- साल 1980 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गए.

- इससे पहले उन्हें यूथ कांग्रेस के जिलाध्यक्ष चुने गए थे.

-  1980-84 में हरीश रावत ने 7वें लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर संसद पहुंचे थे.

- 1984-89: 8वें लोकसभा चुनाव में दूसरी बार लोकसभा सदस्‍य चुने गये.

- 1989: 9वें लोकसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार लोकसभा सदस्‍य चुने गये.

- 23 मार्च1990 को उन्हें कमेटी ऑन ऑफिसयल लैंग्‍वेज के सदस्‍य चुने गये.

-  साल 1990 में जनसंचार मंत्रालय के कमेटी में सदस्‍य चुने गये।

-  साल 2001 से 2007 तक वो उत्‍तराखंड कांग्रेस कमेटी की अध्‍यक्ष रहे.

- 2002 उन्हें  राज्‍यसभा सांसद चुना गया.

-  2009 में 15वें लोकसभा चुनाव में चौथी बार लोकसभा सदस्‍य चुने गये.

-   साल 2009 से 18 जनवरी 2011 में हरीश रावत राज्‍य मंत्री चुने गये.

- 2012 में हरीश रावत केंद्र की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री बने.

- 2016 में हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने.

 


Conclusion:
Last Updated : May 23, 2019, 6:25 PM IST
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