देहरादून: उत्तराखंड की जानी मानी शख्सियत पंडित नैन सिंह रावत का परिवार इन दिनों आर्थिक संकट से जूझ रहा है. सूबे के पर्यटक मंत्री सतपाल महाराज ने सोमवार को नैन सिंह रावत की प्रपौत्र बहु की आर्थिक मदद की. साथ ही उन्होंने आश्वासन दिया है कि परिवार की माली हालत सुधारने के लिए वे परिवार के सदस्य को केंद्र और राज्य सरकार से स्थाई नौकरी दिलाने की कोशिश करेंगे.
सतपाल महाराज ने कहा कि हिमालय गौरव पंडित नैन सिंह रावत की 7वीं पीढ़ी वर्तमान समय में बहुत ही दयनीय स्थिति में जीवन यापन कर रहे हैं. यही नहीं पंडित नैन सिंह रावत की पीढ़ी के कविंद्र सिंह ने बहुउद्देशीय साधन सहकारी समिति लिमिटेड मदकोट विकासखंड मुनस्यारी से साल 2019 में 95 हजार रुपए का लोन लिया था, लेकिन माली हालत ठीक न होने के चलते वे लोन अदा नहीं कर पा रहे हैं.
पंडित नैन सिंह के परिवार की माली हालत को देखते हुए कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने अपनी संस्था मानव सेवा उत्थान समिति के माध्यम से कविंद्र सिंह को 76,208 रुपए का चेक दिया है.
मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि कविंद्र सिंह अस्थाई नौकरी कर रहे हैं. कविंद्र सिंह को परमानेंट नौकरी दिलाने के लिए वे केंद्र और राज्य सरकार से बात करेंगे. ताकि पंडित नैन सिंह रावत के परिजनों को आर्थिक तंगी से न जूझना पड़े .
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यही नहीं सतपाल महाराज ने कहा कि उत्तराखंड के गौरव पंडित नैन सिंह रावत का नाम इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों और विश्व भर के मानचित्र में सदा बना रहेगा. नैन सिंह ने नेपाल से होते हुए तिब्बत तक के व्यापारिक मार्ग का मानचित्र किसी आधुनिक उपकरण के तैयार किया था. ऐसे में अब वह बॉलीवुड से पंडित नैन सिंह रावत के ऊपर फिल्म बनाने को लेकर बातचीत करेंगे. ताकि उत्तराखंड के गौरव पंडित नैन सिंह रावत को पूरी दुनिया जान सके.
कौन थे पंडित नैन सिंह रावत
नैन सिंह रावत ने (1830-1895) 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों के लिये हिमालय के क्षेत्रों की खोजबीन की. नैन सिंह रावत मूलरूप से पिथौरागढ़ जनपद के मुनस्यारी तहसील के रहने वाले थे. उन्होंने नेपाल से होते हुए तिब्बत तक के व्यापारिक मार्ग का मानचित्र बनाया था. उन्होंने ही सबसे पहले ल्हासा की स्थिति तथा ऊंचाई ज्ञात की और तिब्बत से बहने वाली मुख्य नदी त्सांगपो (Tsangpo) के बहुत बड़े भाग का मानचित्रण भी किया. उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें पंडित की उपाधि से नवाजा गया.
पिथौरागढ़ जिले में हुआ था जन्म
पंडित नैन सिंह रावत का जन्म उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील स्थित मिलम गांव में 21 अक्तूबर 1830 को हुआ था. उनके पिता अमर सिंह को लोग 'लाटा बूढ़ा' के नाम से जानते थे. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हासिल की लेकिन आर्थिक तंगी के कारण जल्द ही पिता के साथ भारत और तिब्बत के बीच चलने वाले पारंपरिक व्यापार से जुड़ गए थे. इससे उन्हें अपने पिता के साथ तिब्बत के कई स्थानों पर जाने और उन्हें समझने का मौका मिला. उन्होंने तिब्बती भाषा सीखी जिससे आगे उन्हें काफी मदद मिली. हिन्दी और तिब्बती के अलावा उन्हें फारसी और अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान था. इस महान अन्वेषक, सर्वेक्षक और मानचित्रकार ने अपनी यात्राओं की डायरियां भी तैयार की थी. उन्होंने अपनी जिंदगी का अधिकतर समय खोज और मानचित्र तैयार करने में बिताया.
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पंडित नैन सिंह और उनके भाई 1863 में जीएसटी (ग्रेट ट्रिग्नोमेट्रिकल सर्वे) से जुड़े और उन्होंने विशेष तौर पर नैन सिंह 1875 तक तिब्बत की खोज में लगे रहे. नैन सिंह और उनके भाई मणि सिंह को तत्कालीन शिक्षा अधिकारी एडमंड स्मिथ की सिफारिश पर कैप्टेन थामस जार्ज मोंटगोमेरी ने जीएसटी के तहत मध्य एशिया की खोज के लिये चयनित किया था. उनका वेतन 20 रूपये प्रति माह था. इन दोनों भाइयों को ग्रेट ट्रिग्नोमेट्रिकल सर्वे के देहरादून स्थित कार्यालय में दो साल तक प्रशिक्षण भी दिया गया था.
ल्हासा और मानसरोवर झील का नक्शा तैयार किया था
पंडित नैन सिंह ने काठमांडो से लेकर ल्हासा और मानसरोवर झील का नक्शा तैयार किया. इसके बाद वह सतलुज और सिंध नदी के उद्गम स्थलों तक गये. उन्होंने 1870 में डगलस फोर्सिथ के पहले यरकंड यानी काशगर मिशन और बाद में 1873 में इसी तरह के दूसरे मिशन में हिस्सा लिया था.