देहरादून: लोकसभा चुनाव में राजकीय शिक्षक संघ अपने मत का प्रयोग नहीं करेगा, क्योंकि लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर हड़ताल कर रहे राजकीय शिक्षक संघ ने अपने परिवार सहित बहिष्कार का निर्णय लिया है. राजकीय शिक्षक संघ, उत्तराखंड के बैनर तले तमाम शिक्षक 35 सूत्रीय मांग को लेकर लंबे समय से अड़े हुए हैं. चार अगस्त को शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत और शिक्षक संघ के पदाधिकारियों की बैठक हुई थी, तभी 35 में से 33 मांगों पर सहमति बनी थी. साथ ही अगले दो महीने में चार मुख्य मांगों पर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन अब तीन महीने का समय बीत जाने के बाद राजकीय शिक्षक संघ 6 नवंबर को शिक्षा निदेशालय में तालाबंदी करेगा.
शिक्षा निदेशालय में की जाएगी तालाबंदी: राजकीय शिक्षक संघ के अनुसार अगर सरकार 6 नवंबर तक इन चार मांग पत्रों पर निर्णय नहीं लेती है, तो तालाबंदी की जाएगी. साथ ही इस संघ से जुड़े करीब 24 हजार शिक्षक 6 नवंबर को लोकसभा चुनाव में मतदान ना करने और अपने परिजनों के साथ ही रिश्तेदारों को मतदान करने से रोकने की शपथ लेंगे. दरअसल, प्रदेश भर में हजारों की संख्या में शिक्षक मौजूद हैं. जिसमें से करीब 24 हजार शिक्षक अकेले राजकीय शिक्षक संघ से जुड़े हुए हैं. ऐसे में अगर ये शिक्षक खुद और अपने परिवार के साथ-साथ रिश्तेदारों को मतदान करने से रोकते हैं, तो यह आंकड़ा लाखों में पहुंच जाएगा.
मतदान का बहिष्कार करने पर चुनाव पर पड़ेगा फर्क: उत्तराखंड में चुनाव स्थितियों की बात करें तो-
- प्रदेश के करीब 82 लाख मतदाता हैं.
- हर चुनाव में लगभग 60 फीसदी तक मतदान होता है.
- करीब 50 लाख मतदाता चुनाव में मतदान करते हैं.
- ऐसे में अगर करीब ढाई लाख लोग मतदान से बहिष्कार करते हैं, तो इसका चुनाव में फर्क जरूर पड़ेगा.
- इसके साथ ही पार्टियों के समीकरण पर भी फर्क पड़ेगा.
- यही नहीं, चुनाव के दौरान शिक्षकों की ड्यूटी भी लगाई जाती है. अगर शिक्षक मतदान के साथ ही चुनावी ड्यूटी का भी बहिष्कार करते हैं, तो इसका असर चुनाव पर भी पड़ सकता है. यही वजह है कि शिक्षक संघ, अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाता नजर आ रहा है.
प्रांतीय अध्यक्ष ने शिक्षकों की अनदेखी करने का लगाया आरोप: राजकीय शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष राम सिंह चौहान ने बताया कि 35 सूत्रीय मांगों को लेकर कई बार मंत्री और अधिकारियों से मुलाकात कर चुके हैं. 4 अगस्त को मंत्री, अधिकारियों और शिक्षक संघ के बीच बैठक की गई थी और शिक्षकों की मांगों पर चर्चा की गई थी. उस दौरान शिक्षा मंत्री की ओर से चार मांगों को अगले दो महीने में पूरा करने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन वर्तमान समय में 3 महीने का वक्त बीत गया है, अभी तक उस पर कोई निर्णय नहीं हुई है. लिहाजा, शिक्षकों की लगातार अनदेखी की जा रही है, जिसके चलते शिक्षा निर्देशालय के तालाबंदी का निर्णय लिया गया है.
2024 में मतदान नहीं करेगा राजकीय शिक्षक संघ: उन्होंने कहा कि शिक्षकों ने यह भी निर्णय लिया है कि 6 नवंबर को सभी शिक्षक इस बाबत शपथ लेंगे कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में ना तो खुद मतदान करेंगे, बल्कि अपने परिजनों और रिश्तेदारों को भी मतदान करने से मना करेंगे. हालांकि, ऐसे में मतदान ना करने वालों की संख्या करीब ढाई लाख (2.5 लाख) होने की संभावना है. जिन चार मांगों पर सहमति बनी थी उसमें- शिक्षकों की पदोन्नति, यात्रा अवकाश, अंतर मंडलीय स्थानांतरण और वेतन विसंगतियों का मामला शामिल है. वहीं, हरियाणा के तबादला एक्ट को लागू करने के सवाल पर प्रांतीय अध्यक्ष ने कहा कि उत्तराखंड राज्य की जब खुद की नीति है तो फिर दूसरे राज्यों का क्यों मुंह ताकना पड़ रहा है.
BJP प्रदेश अध्यक्ष ने सरकार पर दबाव बनाने का लगाया आरोप: वहीं, शिक्षकों के मतदान से बहिष्कार किए जाने के ऐलान पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा कि भाजपा सरकार में कर्मचारियों की मांगों का समाधान हुआ है. यही वजह है कि अब उत्तराखंड में कर्मचारियों के धरने प्रदर्शन नहीं होते हैं. हालांकि, जहां तक शिक्षकों की मांग की बात है तो उनके मांगों को भी पूरा किया जाएगा, लेकिन लोकसभा चुनाव को देखते हुए ऐसा कई बार देखने को मिलता है कि चुनाव के समय कर्मचारी संगठन सरकार पर दबाव बनाने का काम करते हैं.
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करन माहरा ने BJP के खिलाफ वोट करने की दी नसीहत: कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि मतदान का अधिकार सभी का है. ऐसे में मतदान न करने की बजाय शिक्षकों को जिससे नाराजगी है उसके खिलाफ मतदान करना चाहिए, क्योंकि अगर मतदान नहीं करेंगे तो किसको दंडित करेंगे. उन्होंने कहा कि संविधान में लोगों को मतदान का अधिकार इसलिए दिया गया है कि जिस सिस्टम से परेशान हो उसके खिलाफ मतदान करना है.
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