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उत्तराखंड आयुर्वेद विवि में नियुक्तियों पर जवाब तलब, VC बोले- हम तो करेंगे भर्तियां

उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नियुक्तियों पर पेंच फंसा है. शासन ने विश्वविद्यालय के कुलपति से अब तक हुई नियुक्तियों और 2014 से लगातार आ रही विज्ञप्ति के मामले पर जवाब-तलब किया है. दरअसल विवि ने 8 साल में नियुक्ति की 7 विज्ञप्तियां निकालीं.

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Published : Aug 5, 2021, 1:29 PM IST

Updated : Aug 5, 2021, 2:45 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नियुक्तियों का ऐसा मामला फंसा हुआ है कि इसे सुनकर आप भी भौचक्के के रह जाएंगे. अंदाजा लगाइए कि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए साल 2014 से अब तक 7 बार विज्ञप्ति निकल चुकी है लेकिन आज तक इस पर भर्ती नहीं हो पाई. हैरानी की बात यह है कि अब शासन ने विश्वविद्यालय से अब तक हुई नियुक्तियों और 2014 से लगातार आ रही विज्ञप्ति के मामले पर जवाब-तलब किया, तो विश्वविद्यालय के कुलपति बोले, हम तो नियुक्ति करके ही रहेंगे.

आयुर्वेद विश्वविद्यालय से कुछ दिन पहले ही शासन ने 13 बिंदुओं पर जवाब-तलब किया है. इनमें अधिकतर मामले विश्वविद्यालय में नियुक्ति से जुड़े हैं और एक मामला प्रोफेसर पद पर सीधी भर्ती के लिए जारी की गई विज्ञप्ति से भी जुड़ा है. हैरानी की बात यह है कि शासन के इस पत्र के बाद कुलपति सुनील जोशी ने अब यह साफ कर दिया है कि वह प्रोफेसर पद पर नियुक्ति करके ही रहेंगे.

दरअसल, उन्हें लगता है कि इस नियुक्ति को रोकने के लिए कुछ लोग साजिश रच रहे हैं. बहरहाल, यह तो जांच का विषय है लेकिन यह सच है कि आयुर्वेद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद को लेकर अब तक जिस तरह की प्रक्रिया रही है, वह गंभीर सवाल खड़े करती है.

ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आयुर्वेद विश्वविद्यालय में साल 2014 से अब 2021 तक इन्हीं पदों के लिए करीब 7 बार विज्ञप्ति निकाली जा चुकी है. विश्वविद्यालय की तरफ से 7 बार जारी विज्ञप्ति में हर बार आरक्षण रोस्टर को बदल दिया जाता है. यही नहीं हर बार पदों की संख्या में भी बदलाव कर दिया जाता है. जाहिर है कि इस तरह रोस्टर और पदों की संख्या हर बार बदले जाने से विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर सवाल तो खड़े होते ही हैं.

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उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद पर रोस्टर और पदों की संख्या को लेकर जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार साल 2014 में कुल 24 पदों के लिए विज्ञप्ति जारी की गई. इसमें 16 सामान्य जाति, 4 अनुसूचित जाति, एक अनुसूचित जनजाति और तीन ओबीसी के रूप में रोस्टर तय किया गया.

30 मई, 2015 को दूसरी बार विज्ञप्ति में गुरुकुल और ऋषिकुल कैंपस के लिए कुल 23 पदों के लिए विज्ञप्ति जारी हुई. इसमें 15 सामान्य जाति, चार अनुसूचित जाति और एक अनुसूचित जनजाति और तीन ओबीसी के लिए रोस्टर था. उधर, मेन कैंपस के लिए इसके अतिरिक्त दो सामान्य जाति के लिए भी विज्ञप्ति निकाली गईं.

31 दिसंबर, 2016 को तीसरी बार विज्ञप्ति निकली और 36 पदों के लिए आवेदन मांगे गए. इसमें आरक्षण रोस्टर 20 सामान्य जाति, 8 अनुसूचित जाति, 6 ओबीसी और 2 अनुसूचित जनजाति रखा गया.

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22 जुलाई 2017 को चौथी बार विज्ञप्ति जारी हुई और इसमें कुल 15 पदों के लिए आवेदन मांगे गए. इसमें सात सामान्य जाति, पांच अनुसूचित जाति और तीन ओबीसी के पद थे.

मामला यहीं नहीं थमा. अब 5 अगस्त 2017 को फिर प्रोफेसर पद के लिए विज्ञप्ति आई. इसमें 16 पदों के लिए आवेदन मांगे गए. इसमें 8 सामान्य जाति, पांच अनुसूचित जाति और तीन ओबीसी के लिए पद थे.

अगली विज्ञप्ति 11 फरवरी 2020 को भी जारी की गई. इसमें 26 पदों के लिए आवेदन मांगे गए. इसके तहत 7 सामान्य जाति, 8 अनुसूचित जाति, सात ओबीसी, एक अनुसूचित जनजाति और तीन गरीबी रेखा से नीचे के आवेदकों के लिए थे.

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अब एक बार फिर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद के लिए विज्ञप्ति निकाली गई है, जो कि 9 जुलाई 2021 को निकाली गई. इसमें कुल 16 पदों के लिए विज्ञप्ति निकाली गई. इसमें सात सामान्य वर्ग, एक गरीबी रेखा से नीचे के आवेदक के लिए, तीन ओबीसी और पांच अनुसूचित जाति वर्ग के आवेदकों के लिए पद रखे गये हैं.

इस मामले में आरोग्य भारती के अध्यक्ष विनोद कुमार मित्तल ने विश्वविद्यालय पर बड़ा आरोप लगाते हुए विज्ञप्ति के जरिए नियुक्ति में धांधली करने का आरोप लगाया है. यही नहीं, इनकी तरफ से पदों की संख्या में छेड़छाड़ करने और रोस्टर में भी मनमाफिक काम करने और कुछ लोगों को फायदा देने का भी आरोप लगाया गया. उनकी तरफ से कहा गया है कि जो नियुक्ति के रोस्टर और पदों में बार-बार छेड़छाड़ की जा रही है, इसीलिए कोर्ट में इस मामले पर बार-बार विज्ञापन को रद्द किया जा रहा है.

आरोप तो यहां तक है कि विश्वविद्यालय में नियुक्ति के लिए कोई नियम ही नहीं हैं और इसके लिए समिति का गठन करने के साथ ही नियम बनाने के भी पूर्व में निर्देश दिए गए थे. इसके बावजूद नियुक्ति के लिए कोई नियम नहीं बनाए गए हैं. उधर, विश्वविद्यालय के कुलपति सुनील जोशी का कहना है कि विश्वविद्यालय के अपने नियम हैं. शासन से मंजूरी की विश्वविद्यालय को कोई आवश्यकता नहीं है.

विश्वविद्यालय के कुलपति सुनील जोशी ने कहा कि अभी कोई भी नियुक्ति नहीं हुई है. बेवजह विज्ञप्ति को रुकवाने के लिए कुछ लोग गलत आरोप लगा रहे हैं. उन्होंने कहा कि यदि गलती होगी तो लोग कोर्ट जा सकते हैं. सुनील जोशी कहते हैं कि पूर्व में जो कुछ भी हुआ है उसके लिए वह जिम्मेदार नहीं हैं. सबसे बड़ी बात उन्होंने कही कि अब वह इस भर्ती को करा कर ही रहेंगे.

कुल मिलाकर जिस तरह से शासन ने पुरानी भर्तियों में अनियमितता की रिपोर्ट मांगी है और मौजूदा नियुक्ति की विज्ञप्ति मामले पर भी आख्या मांगी गई है, उसे लगता है कि इस बार शासन भी आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नियुक्तियों को लेकर हो रहे विवाद पर गंभीर है. लगातार अनियमितताओं को लेकर विवादों में रहने वाले विश्वविद्यालय की पूरी जांच शासन स्तर पर की जाएगी.

वैसे गंभीर आरोप यह भी लगाया गया है कि विश्वविद्यालय में रोस्टर को लेकर कमेटी ने जो सिफारिशें की थीं, उस सिफारिश को भी दरकिनार किया गया है. हालांकि, कुलपति सुनील जोशी किसी भी गलती को सुधारने की बात कह रहे हैं.

देहरादून: उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नियुक्तियों का ऐसा मामला फंसा हुआ है कि इसे सुनकर आप भी भौचक्के के रह जाएंगे. अंदाजा लगाइए कि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए साल 2014 से अब तक 7 बार विज्ञप्ति निकल चुकी है लेकिन आज तक इस पर भर्ती नहीं हो पाई. हैरानी की बात यह है कि अब शासन ने विश्वविद्यालय से अब तक हुई नियुक्तियों और 2014 से लगातार आ रही विज्ञप्ति के मामले पर जवाब-तलब किया, तो विश्वविद्यालय के कुलपति बोले, हम तो नियुक्ति करके ही रहेंगे.

आयुर्वेद विश्वविद्यालय से कुछ दिन पहले ही शासन ने 13 बिंदुओं पर जवाब-तलब किया है. इनमें अधिकतर मामले विश्वविद्यालय में नियुक्ति से जुड़े हैं और एक मामला प्रोफेसर पद पर सीधी भर्ती के लिए जारी की गई विज्ञप्ति से भी जुड़ा है. हैरानी की बात यह है कि शासन के इस पत्र के बाद कुलपति सुनील जोशी ने अब यह साफ कर दिया है कि वह प्रोफेसर पद पर नियुक्ति करके ही रहेंगे.

दरअसल, उन्हें लगता है कि इस नियुक्ति को रोकने के लिए कुछ लोग साजिश रच रहे हैं. बहरहाल, यह तो जांच का विषय है लेकिन यह सच है कि आयुर्वेद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद को लेकर अब तक जिस तरह की प्रक्रिया रही है, वह गंभीर सवाल खड़े करती है.

ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आयुर्वेद विश्वविद्यालय में साल 2014 से अब 2021 तक इन्हीं पदों के लिए करीब 7 बार विज्ञप्ति निकाली जा चुकी है. विश्वविद्यालय की तरफ से 7 बार जारी विज्ञप्ति में हर बार आरक्षण रोस्टर को बदल दिया जाता है. यही नहीं हर बार पदों की संख्या में भी बदलाव कर दिया जाता है. जाहिर है कि इस तरह रोस्टर और पदों की संख्या हर बार बदले जाने से विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर सवाल तो खड़े होते ही हैं.

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उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद पर रोस्टर और पदों की संख्या को लेकर जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार साल 2014 में कुल 24 पदों के लिए विज्ञप्ति जारी की गई. इसमें 16 सामान्य जाति, 4 अनुसूचित जाति, एक अनुसूचित जनजाति और तीन ओबीसी के रूप में रोस्टर तय किया गया.

30 मई, 2015 को दूसरी बार विज्ञप्ति में गुरुकुल और ऋषिकुल कैंपस के लिए कुल 23 पदों के लिए विज्ञप्ति जारी हुई. इसमें 15 सामान्य जाति, चार अनुसूचित जाति और एक अनुसूचित जनजाति और तीन ओबीसी के लिए रोस्टर था. उधर, मेन कैंपस के लिए इसके अतिरिक्त दो सामान्य जाति के लिए भी विज्ञप्ति निकाली गईं.

31 दिसंबर, 2016 को तीसरी बार विज्ञप्ति निकली और 36 पदों के लिए आवेदन मांगे गए. इसमें आरक्षण रोस्टर 20 सामान्य जाति, 8 अनुसूचित जाति, 6 ओबीसी और 2 अनुसूचित जनजाति रखा गया.

पढ़ें- सिंगल इंजन हेलीकॉप्टर से हेली सेवा शुरू करने की मिली अनुमति, पर्यटन को लगेंगे पंख

22 जुलाई 2017 को चौथी बार विज्ञप्ति जारी हुई और इसमें कुल 15 पदों के लिए आवेदन मांगे गए. इसमें सात सामान्य जाति, पांच अनुसूचित जाति और तीन ओबीसी के पद थे.

मामला यहीं नहीं थमा. अब 5 अगस्त 2017 को फिर प्रोफेसर पद के लिए विज्ञप्ति आई. इसमें 16 पदों के लिए आवेदन मांगे गए. इसमें 8 सामान्य जाति, पांच अनुसूचित जाति और तीन ओबीसी के लिए पद थे.

अगली विज्ञप्ति 11 फरवरी 2020 को भी जारी की गई. इसमें 26 पदों के लिए आवेदन मांगे गए. इसके तहत 7 सामान्य जाति, 8 अनुसूचित जाति, सात ओबीसी, एक अनुसूचित जनजाति और तीन गरीबी रेखा से नीचे के आवेदकों के लिए थे.

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अब एक बार फिर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद के लिए विज्ञप्ति निकाली गई है, जो कि 9 जुलाई 2021 को निकाली गई. इसमें कुल 16 पदों के लिए विज्ञप्ति निकाली गई. इसमें सात सामान्य वर्ग, एक गरीबी रेखा से नीचे के आवेदक के लिए, तीन ओबीसी और पांच अनुसूचित जाति वर्ग के आवेदकों के लिए पद रखे गये हैं.

इस मामले में आरोग्य भारती के अध्यक्ष विनोद कुमार मित्तल ने विश्वविद्यालय पर बड़ा आरोप लगाते हुए विज्ञप्ति के जरिए नियुक्ति में धांधली करने का आरोप लगाया है. यही नहीं, इनकी तरफ से पदों की संख्या में छेड़छाड़ करने और रोस्टर में भी मनमाफिक काम करने और कुछ लोगों को फायदा देने का भी आरोप लगाया गया. उनकी तरफ से कहा गया है कि जो नियुक्ति के रोस्टर और पदों में बार-बार छेड़छाड़ की जा रही है, इसीलिए कोर्ट में इस मामले पर बार-बार विज्ञापन को रद्द किया जा रहा है.

आरोप तो यहां तक है कि विश्वविद्यालय में नियुक्ति के लिए कोई नियम ही नहीं हैं और इसके लिए समिति का गठन करने के साथ ही नियम बनाने के भी पूर्व में निर्देश दिए गए थे. इसके बावजूद नियुक्ति के लिए कोई नियम नहीं बनाए गए हैं. उधर, विश्वविद्यालय के कुलपति सुनील जोशी का कहना है कि विश्वविद्यालय के अपने नियम हैं. शासन से मंजूरी की विश्वविद्यालय को कोई आवश्यकता नहीं है.

विश्वविद्यालय के कुलपति सुनील जोशी ने कहा कि अभी कोई भी नियुक्ति नहीं हुई है. बेवजह विज्ञप्ति को रुकवाने के लिए कुछ लोग गलत आरोप लगा रहे हैं. उन्होंने कहा कि यदि गलती होगी तो लोग कोर्ट जा सकते हैं. सुनील जोशी कहते हैं कि पूर्व में जो कुछ भी हुआ है उसके लिए वह जिम्मेदार नहीं हैं. सबसे बड़ी बात उन्होंने कही कि अब वह इस भर्ती को करा कर ही रहेंगे.

कुल मिलाकर जिस तरह से शासन ने पुरानी भर्तियों में अनियमितता की रिपोर्ट मांगी है और मौजूदा नियुक्ति की विज्ञप्ति मामले पर भी आख्या मांगी गई है, उसे लगता है कि इस बार शासन भी आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नियुक्तियों को लेकर हो रहे विवाद पर गंभीर है. लगातार अनियमितताओं को लेकर विवादों में रहने वाले विश्वविद्यालय की पूरी जांच शासन स्तर पर की जाएगी.

वैसे गंभीर आरोप यह भी लगाया गया है कि विश्वविद्यालय में रोस्टर को लेकर कमेटी ने जो सिफारिशें की थीं, उस सिफारिश को भी दरकिनार किया गया है. हालांकि, कुलपति सुनील जोशी किसी भी गलती को सुधारने की बात कह रहे हैं.

Last Updated : Aug 5, 2021, 2:45 PM IST
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