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आपदा के लिए कितना तैयार उत्तराखंड, क्या बैठकों से जीतेंगे 'जंग'? - disaster management uttarakhand

उत्तराखंड में नदियां, पर्वत, बुग्याल और तमाम झरने देखने में जितने सुंदर और मनमोहक हैं, उतने ही नाजुक और संवेदनशील भी. ETV BHARAT अपनी स्पेशल रिपोर्ट में उत्तराखंड में आपदा से निपटने की जमीनी तैयारियों को बता रहा है.

Disaster in Uttarakhand
उत्तराखंड, आपदा और तैयारियां
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Published : Jul 7, 2020, 5:05 PM IST

Updated : Jul 8, 2020, 5:01 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड हर साल आपदा की मार झेल रहा है लेकिन इससे निपटने के इंतजाम बैठक से बाहर ही नहीं आ पाते हैं. मॉनसून के सीजन में पूरे प्रदेश से लैंडस्लाइड, बादल फटने की घटनाएं सामने आती रहती हैं. सवाल ये है कि क्या मात्र बैठकों के जरिए ही विभाग को अलर्ट जारी कर आपदा से जंग जीती जा सकती है? ETV BHARAT अपनी स्पेशल रिपोर्ट के जरिए आपदा से लड़ने के लिए नए रोड मैप और रणनीतियों की जरूरतों को बता रहा है.

उत्तराखंड हिमालय के ऐसे छोर पर बसा है जहां आपदाओं का आना निश्चित है लेकिन इससे बचने का तंत्र बनाने के लिए जनता और शासन दोनों को आगे आना पड़ेगा. उत्तराखंड अपने गठन के 20 सालों में भी आपदाओं से कोई सबक नहीं ले पाया है. अभी 2013 में आई केदार आपदा के जख्म भरे भी न थे कि साल दर साल आपदाएं कहीं न कहीं अपना प्रभाव दिखा ही रही हैं. मॉनसून आते ही उत्तराखंड सरकार आपदा से निपटने के लिए अधिकारियों को मुस्तैद कर देती है. प्रदेश के सभी डीएम अपने जिलों में आपदा प्रबंधन अधिकारियों एक्टिव कर देते हैं. आपदा प्रबंधन कंट्रोल रूम और राज्य स्तरीय कंट्रोल रूम में तैनात कर्मचारियों चौबीसों घंटों अलर्ट पर रखा जाता है लेकिन नतीजा सिर्फ बैठकों तक ही सिमट कर रह जाता है.

ये भी पढ़ें: भिखारी, मौसम और 'मार', जीवन यापन पर बड़ा सवाल

उत्तराखंड के पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी के मुताबिक, आपदा की तैयारी उत्तराखंड के लिए एक बड़ी चुनौती है जिसे अभी तक गंभीरता से नहीं लिया गया है. जब मॉनसून सीजन आता है तो बैठकों का दौर शुरू हो जाती है और मुख्यमंत्री के सामने तैयारियों का दम भरा जाता है. स्थिति सामान्य होते ही सब कुछ भुला दिया जाता है. अधिकारी इस बात को भूल जाते हैं कि उत्तराखंड में आपदा किसी न किसी रूप में हमेशा आती रहेगी. ऐसे में आपदा प्रबंधन विभाग की स्थिति कुछ ठीक नहीं है.

आपदा के लिए कितना तैयार उत्तराखंड.

डॉ. अनिल जोशी के मुताबिक, उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन विभाग खुद ही 'आपदाग्रस्त' है. आपदा प्रबंधन विभाग के पास उतने संसाधन ही नहीं हैं. इसके साथ ही आपदा प्रबंधन विभाग की एक टीम मात्र तीन-चार महीने के लिए ही तय की जाती है. यही वजह है कि राज्य सरकार का ध्यान आपदा प्रबंधन विभाग पर ज्यादा नहीं रहता है. ऐसे में जबतक सरकार आपदा विभाग को गंभीरता से नहीं लेती, तबतक मॉनसून में आपदा को लेकर उस तरह की तैयारियां नहीं हो पाएंगी.

अनिल जोशी के मुताबिक, उत्तराखंड सरकार को गांव के पंचायत तंत्र को मजबूत करना चाहिये क्योंकि आपदा के दौरान गांव के लोग ही सबसे ज्यादा पीड़ित होते हैं. ऐसे में सरकार अगर पंचायतों को मजबूत करेगी तो पंचायत स्तर पर ग्रामीण ही आपदा से निपटने में सक्षम होंगे. लिहाजा, राज्य सरकार को पंचायतों, प्राइमरी स्कूल आदि को जोड़कर एक ऐसा पैकेज तैयार करना होगा जिसके पास पर्याप्त व्यवस्थाएं, संसाधन और आपदा से लड़ने के लिए जरूरी उपकरणों की उपलब्धता हो.

ये भी पढ़ें: मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के बढ़े 'कदम', युवाओं की क्षमता परखने में जुटे अधिकारी

उत्तराखंड सरकार मॉनसून की दस्तक आपदा नियंत्रण के लिए भले ही तैयार हो गई हो लेकिन मॉनसून की ठंडक में प्रदेश का सियासी पारा भी बढ़ गया है. कांग्रेस ने सरकार सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि बारिश के अलर्ट पर सरकार गंभीर नहीं है. ऐसे में सरकार की तैयारियां फेल साबित हो रही हैं. वहीं, उत्तराखंड बीजेपी त्रिवेंद्र सरकार की तैयारियों को पुख्ता बता रही है.

बीते सालों में आई प्राकृतिक आपदाओं के आंकड़े

  • साल 2014 आए आपदा में कुल 66 लोगों की मौत हो गई थी और 66 लोग घायल हुए थे. साथ ही 371 जानवरों की मौत हो गई थी. जबकि 1285.53 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2015 की आपदा में 56 लोगों की मौत और 65 लोग घायल हुए थे. इसके साथ ही 3 हजार 717 जानवरों की मौत हो गई थी. 15.479 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2016 की आपदा में 119 लोगों की मौत, 102 लोग घायल और 5 लोग लापता हो गए थे. इसके साथ ही 1 हजार 391 जानवरों की मौत हुई थी. जबकि, 112.245 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2017 की आपदा में 84 लोगों की मौत, 66 लोग घायल और 27 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1 हजार 20 जानवरों की मौत हुई थी. जबकि, 21.044 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2018 में कुल 4 हजार 330 आपदा की घटनाएं हुईं. जिसमें 101 लोगों की मौत, 53 लोग घायल और 3 लापता हुए थे. इसके साथ ही 895 जानवरों की मौत, 739 मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे. इन घटनाओं में 963.284 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2019 में 1680 घटनाओं में 102 लोगों की मौत, 91 लोग घायल और 2 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1 हजार 323 जानवरों की मौत हुई थी और 385 मकानों को क्षतिग्रस्त हो गए थे. इस दौरान 238.838 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2020 में अभी तक कुल 225 घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिसमें 7 लोगों की मौत और 15 लोग जख्मी हो गए हैं. इन घटनाओं में 186 जानवरों की मौत हो चुकी है और 53 मकान क्षतिग्रस्त हो चुके हैं.

उत्तराखंड में नदियां, पर्वत, बुग्याल और तमाम झरने देखने में जितने सुंदर और मनमोहक हैं, उतने ही नाजुक और संवेदनशील भी. इनके साथ छेड़छाड़ और जलवायु परिवर्तन से हालात बद से बदतर हो रहे हैं. ऐसे में उत्तराखंड सरकार को आपदा प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.

देहरादून: उत्तराखंड हर साल आपदा की मार झेल रहा है लेकिन इससे निपटने के इंतजाम बैठक से बाहर ही नहीं आ पाते हैं. मॉनसून के सीजन में पूरे प्रदेश से लैंडस्लाइड, बादल फटने की घटनाएं सामने आती रहती हैं. सवाल ये है कि क्या मात्र बैठकों के जरिए ही विभाग को अलर्ट जारी कर आपदा से जंग जीती जा सकती है? ETV BHARAT अपनी स्पेशल रिपोर्ट के जरिए आपदा से लड़ने के लिए नए रोड मैप और रणनीतियों की जरूरतों को बता रहा है.

उत्तराखंड हिमालय के ऐसे छोर पर बसा है जहां आपदाओं का आना निश्चित है लेकिन इससे बचने का तंत्र बनाने के लिए जनता और शासन दोनों को आगे आना पड़ेगा. उत्तराखंड अपने गठन के 20 सालों में भी आपदाओं से कोई सबक नहीं ले पाया है. अभी 2013 में आई केदार आपदा के जख्म भरे भी न थे कि साल दर साल आपदाएं कहीं न कहीं अपना प्रभाव दिखा ही रही हैं. मॉनसून आते ही उत्तराखंड सरकार आपदा से निपटने के लिए अधिकारियों को मुस्तैद कर देती है. प्रदेश के सभी डीएम अपने जिलों में आपदा प्रबंधन अधिकारियों एक्टिव कर देते हैं. आपदा प्रबंधन कंट्रोल रूम और राज्य स्तरीय कंट्रोल रूम में तैनात कर्मचारियों चौबीसों घंटों अलर्ट पर रखा जाता है लेकिन नतीजा सिर्फ बैठकों तक ही सिमट कर रह जाता है.

ये भी पढ़ें: भिखारी, मौसम और 'मार', जीवन यापन पर बड़ा सवाल

उत्तराखंड के पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी के मुताबिक, आपदा की तैयारी उत्तराखंड के लिए एक बड़ी चुनौती है जिसे अभी तक गंभीरता से नहीं लिया गया है. जब मॉनसून सीजन आता है तो बैठकों का दौर शुरू हो जाती है और मुख्यमंत्री के सामने तैयारियों का दम भरा जाता है. स्थिति सामान्य होते ही सब कुछ भुला दिया जाता है. अधिकारी इस बात को भूल जाते हैं कि उत्तराखंड में आपदा किसी न किसी रूप में हमेशा आती रहेगी. ऐसे में आपदा प्रबंधन विभाग की स्थिति कुछ ठीक नहीं है.

आपदा के लिए कितना तैयार उत्तराखंड.

डॉ. अनिल जोशी के मुताबिक, उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन विभाग खुद ही 'आपदाग्रस्त' है. आपदा प्रबंधन विभाग के पास उतने संसाधन ही नहीं हैं. इसके साथ ही आपदा प्रबंधन विभाग की एक टीम मात्र तीन-चार महीने के लिए ही तय की जाती है. यही वजह है कि राज्य सरकार का ध्यान आपदा प्रबंधन विभाग पर ज्यादा नहीं रहता है. ऐसे में जबतक सरकार आपदा विभाग को गंभीरता से नहीं लेती, तबतक मॉनसून में आपदा को लेकर उस तरह की तैयारियां नहीं हो पाएंगी.

अनिल जोशी के मुताबिक, उत्तराखंड सरकार को गांव के पंचायत तंत्र को मजबूत करना चाहिये क्योंकि आपदा के दौरान गांव के लोग ही सबसे ज्यादा पीड़ित होते हैं. ऐसे में सरकार अगर पंचायतों को मजबूत करेगी तो पंचायत स्तर पर ग्रामीण ही आपदा से निपटने में सक्षम होंगे. लिहाजा, राज्य सरकार को पंचायतों, प्राइमरी स्कूल आदि को जोड़कर एक ऐसा पैकेज तैयार करना होगा जिसके पास पर्याप्त व्यवस्थाएं, संसाधन और आपदा से लड़ने के लिए जरूरी उपकरणों की उपलब्धता हो.

ये भी पढ़ें: मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के बढ़े 'कदम', युवाओं की क्षमता परखने में जुटे अधिकारी

उत्तराखंड सरकार मॉनसून की दस्तक आपदा नियंत्रण के लिए भले ही तैयार हो गई हो लेकिन मॉनसून की ठंडक में प्रदेश का सियासी पारा भी बढ़ गया है. कांग्रेस ने सरकार सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि बारिश के अलर्ट पर सरकार गंभीर नहीं है. ऐसे में सरकार की तैयारियां फेल साबित हो रही हैं. वहीं, उत्तराखंड बीजेपी त्रिवेंद्र सरकार की तैयारियों को पुख्ता बता रही है.

बीते सालों में आई प्राकृतिक आपदाओं के आंकड़े

  • साल 2014 आए आपदा में कुल 66 लोगों की मौत हो गई थी और 66 लोग घायल हुए थे. साथ ही 371 जानवरों की मौत हो गई थी. जबकि 1285.53 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2015 की आपदा में 56 लोगों की मौत और 65 लोग घायल हुए थे. इसके साथ ही 3 हजार 717 जानवरों की मौत हो गई थी. 15.479 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2016 की आपदा में 119 लोगों की मौत, 102 लोग घायल और 5 लोग लापता हो गए थे. इसके साथ ही 1 हजार 391 जानवरों की मौत हुई थी. जबकि, 112.245 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2017 की आपदा में 84 लोगों की मौत, 66 लोग घायल और 27 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1 हजार 20 जानवरों की मौत हुई थी. जबकि, 21.044 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2018 में कुल 4 हजार 330 आपदा की घटनाएं हुईं. जिसमें 101 लोगों की मौत, 53 लोग घायल और 3 लापता हुए थे. इसके साथ ही 895 जानवरों की मौत, 739 मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे. इन घटनाओं में 963.284 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2019 में 1680 घटनाओं में 102 लोगों की मौत, 91 लोग घायल और 2 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1 हजार 323 जानवरों की मौत हुई थी और 385 मकानों को क्षतिग्रस्त हो गए थे. इस दौरान 238.838 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.
  • साल 2020 में अभी तक कुल 225 घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिसमें 7 लोगों की मौत और 15 लोग जख्मी हो गए हैं. इन घटनाओं में 186 जानवरों की मौत हो चुकी है और 53 मकान क्षतिग्रस्त हो चुके हैं.

उत्तराखंड में नदियां, पर्वत, बुग्याल और तमाम झरने देखने में जितने सुंदर और मनमोहक हैं, उतने ही नाजुक और संवेदनशील भी. इनके साथ छेड़छाड़ और जलवायु परिवर्तन से हालात बद से बदतर हो रहे हैं. ऐसे में उत्तराखंड सरकार को आपदा प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.

Last Updated : Jul 8, 2020, 5:01 PM IST
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