देहरादून: खलंगा युद्ध स्मारक (Khalanga War Memorial) नालापानी में बलभद्र खलंगा विकास समिति (Balabhadra Khalanga Development Committee) ने 48 वां स्थापना दिवस मनाया. इस दौरान गोर्खाली समुदाय ने सेनानायक बलभद्र थापा को योगदान को याद किया. बता दें कि सन 1814 के अक्टूबर और नवंबर माह में अंग्रेजों और गोरखाओं के बीच नालापानी देहरादून में भीषण युद्ध हुआ था. जिसमें बलभद्र थापा की बहादुरी (Bravery of Balabhadra Thapa) के सामने अंग्रेजों ने भी घुटने टेक दिए थे.
वीर बलभद्र थापा की बहादुरी को गोर्खाली समुदाय (Gorkhali community) आज भी याद करता है. देहरादून के नालापानी प्रवृत्ति असला के सबसे ऊंचे शिखर पर सेनानायक बलभद्र थापा और उनके वीर सैनिकों का खलंगा किला आज भी खड़ा है. बलभद्र खलंगा विकास समिति सचिव प्रभा ने बताया कि सन 1814 में सेनापति बलभद्र थापा के नेतृत्व में गढ़वाली, कुमाऊंनी और स्थानीयों ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया.
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वीर बलभद्र थापा ने तीन बार अंग्रेजों के आक्रमण को पूरी तरह से विफल कर दिया. इस युद्ध को बलभद्र थापा ने केवल अपने 600 सैनिकों के साथ अंग्रेजी सेना को खदेड़ दिया. थापा के सेना में बच्चे और महिलाएं भी शामिल थी. उन्होंने यह युद्ध प्राचीन हथियार, सीमित संख्या में भरवा बंदूक, धनुष बाण भाला बरछी और कुकरी के बूते लड़ा. इतना ही नहीं, आधुनिक हथियारों और गोला बारूद से लैस अंग्रेजों की 3500 से अधिक सैनिको को कई बार परास्त किया.
बलभद्र थापा ने युद्ध में अंग्रेजों के आक्रमण को ना केवल विफल किया, बल्कि उसके सेनानायक जनरल जिलेसकी को मार गिराया, लेकिन अंग्रेजों ने सागर ताल में पानी के एकमात्र स्रोत को बंद कर दिया. जिससे भोजन और पानी का अभाव हो गया. वहीं, ज्यादा सैनिकों के घायल होने की स्थिति को देखते हुए 30 नवंबर 1814 को बलभद्र थापा अपने 70 सैनिकों के साथ खलंगा का अकेला छोड़कर हिमाचल की ओर पलायन कर गए.