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नजूल नीति पर सरकार का बड़ा दांव, विधायक राजकुमार ठुकराल की प्रतिज्ञा हुई पूरी

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Published : Dec 10, 2021, 3:20 PM IST

प्रदेश में नजूल भूमि पर रहे लोगों के लिए राहत भरी खबर है. नजूल भूमि पर रह रहे लोगों के खिलाफ साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से जो खतरा बना हुआ था, उसे अब उत्तराखंड सरकार विधानसभा में विधेयक लाकर दूर करने जा रही है.

Nazul land issue in Uttarakhand
उत्तराखंड में नजूल भूमि मुद्दा

देहरादून: उत्तराखंड में नजूल भूमि (Nazul land issue in Uttarakhand) पर मालिकाना हक को लेकर धामी सरकार ने बड़ा दांव खेला है. विधानसभा में उत्तराखंड नजूल भूमि प्रबंधन, व्यवस्थापन एवं निस्तारण विधेयक 2021 को सदन के पटल पर रखा गया, जिसके चलते हाई कोर्ट ने 2018 में नजूल नीति खारिज (High court rejected the Nazul policy) करने से प्रदेश के हजारों परिवारों पर मंडरा रहे खतरे को सरकार ने दूर करने का काम किया है.

नजूल भूमि पर रह रहे लोगों के खिलाफ साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से जो खतरा बना हुआ था, उसे अब उत्तराखंड सरकार विधानसभा में विधेयक लाकर दूर करने जा रही है. धामी सरकार के आखिरी विधानसभा सत्र के दूसरे दिन इससे जुड़े विधेयक सदन के पटल पर रखा. सरकार इस पर कानून लाने जा रही है, जिसके बाद नजूल भूमि में रह रहे लोगों को यहां का मालिकाना हक मिल सकेगा.

नजूल नीति पर राजकुमार ठुकराल

बता दें, 19 जून, साल 2018 में हाईकोर्ट ने नजूल नीति को खारिज कर दिया था, जिसके बाद प्रदेश भर के हजारों परिवारों पर इसका असर पड़ रहा था. इस मामले में हाईकोर्ट ने हजारों मकानों को तोड़े जाने आदेश दिए थे, इसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश स्टे किया और इसके फौरन बाद राज्य सरकार ने कैबिनेट में नजूल नीति को मंजूरी दी.

पढ़ें- उत्तराखंड विधानसभा में गरम हुआ विपक्ष तो गरज पड़े हरक, पढ़िए आज का पूरा लेखा जोखा

अब विधानसभा सत्र में भी विधेयक को सदन के पटल पर रखा गया है. इस मामले पर रुद्रपुर के विधायक राजकुमार ठुकराल पहले ही नजूल नीति के पक्ष में कानून बनाने की मांग करते रहे हैं. ऐसा ना होने पर विधायक का चुनाव नहीं लड़ने तक की भी बात कह चुके हैं. ऐसे में आप जब सरकार इसको लेकर कानून बनाने जा रही है, तो विधायक राजकुमार ठुकराल ने सरकार का धन्यवाद दिया है.

ये है पूरा मामलाः दरअसल, साल 2009 में उत्तराखंड सरकार नजूल नीति लेकर आई. इसके तहत सरकार ने लीज और कब्जे की भूमि को फ्री होल्ड करने की प्रक्रिया शुरू की थी. हालांकि, इस आदेश को उत्तराखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट ने 2018 में नजूल नीति को गलत करार देते हुए निरस्त कर दिया. साथ ही कहा कि जिन लोगों के हकों में फ्री होल्ड इस नीति के तहत किया है, उसको भी निरस्त कर नजूल भूमि को सरकार के खाते में निहित करें. कोर्ट ने सरकार से कहा कि कोई नई नीति सरकार नहीं ला सकती है.

हाईकोर्ट के फैसले को रुद्रपुर की सुनीता ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर चुनौती दी. उन्होंने एसएलपी के जरिए कहा कि भूमि के लोगों को उत्तराखंड सरकार की पॉलिसी में फ्री होल्ड किया गया था. लेकिन, भूमि के लोगों को बगैर सुने हाईकोर्ट ने आदेश पारित कर दिया. हालांकि, उत्तराखंड सरकार ने भी हाईकोर्ट के इसी फैसले को चुनौती दी. उत्तराखंड सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के साथ निरस्त करने की मांग की थी.

क्या है नजूल भूमिः सरकार के कब्जे की ऐसी भूमि जिसका उल्लेख राजस्व रिकॉर्ड में नहीं है. ऐसी भूमि का रिकॉर्ड निकायों के पास होता है. जानकारी के मुताबिक, देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर के अलावा नैनीताल जिले के तराई क्षेत्र में सबसे ज्यादा नजूल भूमि है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में 3,92,204 हेक्टेयर नजूल भूमि है. इस भूमि के बहुत बड़े हिस्से पर करीब 2 लाख से ज्यादा लोग काबिज हैं.

देहरादून: उत्तराखंड में नजूल भूमि (Nazul land issue in Uttarakhand) पर मालिकाना हक को लेकर धामी सरकार ने बड़ा दांव खेला है. विधानसभा में उत्तराखंड नजूल भूमि प्रबंधन, व्यवस्थापन एवं निस्तारण विधेयक 2021 को सदन के पटल पर रखा गया, जिसके चलते हाई कोर्ट ने 2018 में नजूल नीति खारिज (High court rejected the Nazul policy) करने से प्रदेश के हजारों परिवारों पर मंडरा रहे खतरे को सरकार ने दूर करने का काम किया है.

नजूल भूमि पर रह रहे लोगों के खिलाफ साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से जो खतरा बना हुआ था, उसे अब उत्तराखंड सरकार विधानसभा में विधेयक लाकर दूर करने जा रही है. धामी सरकार के आखिरी विधानसभा सत्र के दूसरे दिन इससे जुड़े विधेयक सदन के पटल पर रखा. सरकार इस पर कानून लाने जा रही है, जिसके बाद नजूल भूमि में रह रहे लोगों को यहां का मालिकाना हक मिल सकेगा.

नजूल नीति पर राजकुमार ठुकराल

बता दें, 19 जून, साल 2018 में हाईकोर्ट ने नजूल नीति को खारिज कर दिया था, जिसके बाद प्रदेश भर के हजारों परिवारों पर इसका असर पड़ रहा था. इस मामले में हाईकोर्ट ने हजारों मकानों को तोड़े जाने आदेश दिए थे, इसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश स्टे किया और इसके फौरन बाद राज्य सरकार ने कैबिनेट में नजूल नीति को मंजूरी दी.

पढ़ें- उत्तराखंड विधानसभा में गरम हुआ विपक्ष तो गरज पड़े हरक, पढ़िए आज का पूरा लेखा जोखा

अब विधानसभा सत्र में भी विधेयक को सदन के पटल पर रखा गया है. इस मामले पर रुद्रपुर के विधायक राजकुमार ठुकराल पहले ही नजूल नीति के पक्ष में कानून बनाने की मांग करते रहे हैं. ऐसा ना होने पर विधायक का चुनाव नहीं लड़ने तक की भी बात कह चुके हैं. ऐसे में आप जब सरकार इसको लेकर कानून बनाने जा रही है, तो विधायक राजकुमार ठुकराल ने सरकार का धन्यवाद दिया है.

ये है पूरा मामलाः दरअसल, साल 2009 में उत्तराखंड सरकार नजूल नीति लेकर आई. इसके तहत सरकार ने लीज और कब्जे की भूमि को फ्री होल्ड करने की प्रक्रिया शुरू की थी. हालांकि, इस आदेश को उत्तराखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट ने 2018 में नजूल नीति को गलत करार देते हुए निरस्त कर दिया. साथ ही कहा कि जिन लोगों के हकों में फ्री होल्ड इस नीति के तहत किया है, उसको भी निरस्त कर नजूल भूमि को सरकार के खाते में निहित करें. कोर्ट ने सरकार से कहा कि कोई नई नीति सरकार नहीं ला सकती है.

हाईकोर्ट के फैसले को रुद्रपुर की सुनीता ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर चुनौती दी. उन्होंने एसएलपी के जरिए कहा कि भूमि के लोगों को उत्तराखंड सरकार की पॉलिसी में फ्री होल्ड किया गया था. लेकिन, भूमि के लोगों को बगैर सुने हाईकोर्ट ने आदेश पारित कर दिया. हालांकि, उत्तराखंड सरकार ने भी हाईकोर्ट के इसी फैसले को चुनौती दी. उत्तराखंड सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के साथ निरस्त करने की मांग की थी.

क्या है नजूल भूमिः सरकार के कब्जे की ऐसी भूमि जिसका उल्लेख राजस्व रिकॉर्ड में नहीं है. ऐसी भूमि का रिकॉर्ड निकायों के पास होता है. जानकारी के मुताबिक, देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर के अलावा नैनीताल जिले के तराई क्षेत्र में सबसे ज्यादा नजूल भूमि है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में 3,92,204 हेक्टेयर नजूल भूमि है. इस भूमि के बहुत बड़े हिस्से पर करीब 2 लाख से ज्यादा लोग काबिज हैं.

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