देहरादून: उत्तराखंड में चारधाम यात्रा पूरे शबाब पर है. लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस बार चारधाम यात्रा में पहुंच रहे हैं. ऐसे में चारधाम यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले शहरों के सामने सबसे बड़ी चुनौती कूड़ा निस्तारण की है. बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री पहुंचने वाले श्रद्धालु बड़ी मात्रा में प्लास्टिक, चिप्स के पैकेट, बिसलरी की बोतलें और न जाने क्या-क्या लेकर यहां पहुंचते हैं, जिनका इस्तेमाल करने के बाद वे इसे ऐसे ही खुले में फेंक देते हैं. ये कोई नहीं सोचता कि इतनी भीड़ चारधाम यात्रा पर आ रही है, वो जो कूड़ा छोड़ रहे हैं वो लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई से आखिरकार जा कहां रहा है? हर दिन जमा होने वाले इस सॉलिड वेस्ट को कैसे मैनेज किया जाता है, यात्रा मार्गों पर इसे लेकर क्या व्यवस्थाएं हैं, जिला प्रशासन ने वेस्ट मैनेजमेंट के लिए क्या इंतजामात किए हैं. ईटीवी भारत अपनी खास रिपोर्ट में पाठकों को बता रहा है.
पहाड़ों में खुले में जलाया जा रहा कूड़ा: चारधाम और इनसे जुड़े यात्रा मार्गों पर इन दिनों कूड़े का अंबार लगा हुआ है. यात्रा पर पहुंच रहे श्रद्धालु बड़ी मात्रा में कूड़ा यात्रा मार्गों, जंगलों और नदियों में फेंक रहे हैं. जिला प्रशासन की ओर से भी चारधाम यात्रा मार्गों पर कूड़ा निस्तारण के कुछ खास इंतजामात नहीं किए गए हैं. यहां की नगर पालिकाएं भी खुले आसमान के नीचे कूड़ा जला रही हैं. कहीं कूड़े को नदियों में बहाया जा रहा है, तो कहीं जलाया जा रहा है, जिससे पहाड़ों की साफ आबोहवा दूषित हो रही है.
चौंकाने वाले सर्वे के आंकड़े: सोशल डेवलपमेंट कम्युनिटीज फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने इसे लेकर एक सर्वे किया है, जिसके अनुसार चारधाम यात्रा में एक व्यक्ति लगभग 8 किलो कचरा अलग-अलग जगहों पर कूड़ेदान या फिर कहीं इधर-उधर फेंकता है. प्रदेश में 3 मई से शुरू हुई यात्रा को 15 दिन से ज्यादा हो गये हैं. जिसमें 7 लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंच गये हैं, इस हिसाब से अंदाजा लगाया जा सकता है कि चारों धामों में कूड़े को लेकर क्या स्थिति होगी.
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बदरीनाथ-केदारनाथ में कूड़ा निस्तारण की नहीं ठोस प्लानिंग: उत्तराखंड में सबसे ज्यादा श्रद्धालु बदरीनाथ और केदारनाथ पहुंच रहे हैं. केदारनाथ पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या रिकॉर्ड में दर्ज हो रही है. यहां मंदिर के ठीक पीछे बना डंपिंग जोन केदारनाथ में कूड़ा निस्तारण की हकीकत बयां कर रहा है. केदारनाथ मंदिर से पीछे कूड़े का ढेर लगा है, जो कई सवाल खड़े करता है. हैरानी की बात यह है कि जिला प्रशासन और सरकार ने केदारनाथ में कूड़ा निस्तारण को लेकर अभी तक कोई ठोस निर्णय या प्लानिंग नहीं की है. रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मयूर दीक्षित से जब इस बारे में पूछा गया तो वो कहते हैं कि केदारनाथ में कूड़ा निस्तारण के लिए सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत काम किया जा रहा है. लेकिन, कैसे किया जा रहा है इसका उनके पास कोई जवाब नहीं है.
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चारधाम में नहीं लगा सकते प्लांट: जिलाधिकारी मयूर दीक्षित कहते हैं जिला पंचायत केदारनाथ में सफाई व्यवस्था को लेकर निर्देशित किया गया है. जिलाधिकारी इन सबके बीच चारधाम यात्रा पर आ रहे श्रद्धालुओं से भी अपील कर रहे हैं कि वे कम से कम प्लास्टिक, कचरा अपने साथ लेकर आएं. बता दें केदारनाथ में इकठ्ठा हो रहा कूड़े को खच्चरों की सहायता से नीचे लाया जाता है. इसके बाद उसे ट्रंचिंग ग्राउंड में रखा जाता है. धामों में पर्यावरण के हिसाब से किसी भी प्लांट को नहीं लगाया जा सकता है. इसलिए यहां कूड़े का निस्तारण कहां और कैसे होगा, इसकी भी फिलहाल किसी के पास सही नहीं है.
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नदियों में डाला जा रहा कूड़ा: सिर्फ चारधामों में ये हाल नहीं है, बल्कि उत्तराखंड की अधिकतर नदियों में भी कूड़ा डाला जाता है और ये काम कोई और नहीं बल्कि खुद सरकारी नुमाइंदे कर रहे हैं. उत्तराखंड के पहाड़ों की स्थिति कुछ ऐसी बनी हुई है कि राज्य गठन के 22 साल बाद भी यहां के जिम्मेदार और अधिकारी सिर्फ कूड़ा निस्तारण के लिए जगह चिन्हित करने में ही लगे हुए हैं. शायद यही कारण है कि चमोली जिला प्रशासन 22 साल बाद भी एक ऐसी जमीन की तलाश में पत्राचार ही कर रहा है.
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बदरीनाथ, गोपेश्वर चमोली और आसपास के इलाकों का कूड़ा इकट्ठा कर उसे कैसे डंप किया जाता है, इसका भगवान ही मालिक है. ये हाल सिर्फ चमोली या रुद्रप्रयाग का नहीं है, श्रीनगर भी इसमें शामिल है. श्रीनगर चारधाम यात्रा का मुख्य पड़ाव है. यहां यात्रा के दौरान अच्छी खासी भीड़ होती है. मगर यहां भी खुले में ही कूड़े को जलाया जाता है.
चारधाम यात्रा मार्ग की स्थिति:-
- चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, श्रीनगर में कोई बड़ा कूड़ा निस्तारण प्लांट नहीं है.
- पहाड़ों में लगभग सभी जगह पर कॉमप्रेक्टर प्लांट लगे हुए हैं. ये प्लांट प्लास्टिक की बोतल को सिर्फ कंप्रेस करते हैं.
- चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, श्रीनगर जैसे शहरों में कूड़ा निस्तारण प्लांट लगाने की तैयारी चल रही है.
- इन शहरों में कूड़ा निस्तारण प्लांट लगाने के लिए टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है.
- इन शहरों में सभी कूड़ा ट्रंचिंग ग्राउंड में डाला जाता है, जिसके बाद जमा कूड़े को आग लगा दी जाती है.
- कम्पोस्टिंग प्लांट (कूड़ा निस्तारण प्लांट) देहरादून और हरिद्वार में ही लगे हुए हैं.
बारिश और तेज हवाओं के सहारे अधिकारी: उत्तरकाशी, चमोली और रुद्रप्रयाग जहां पर भी कूड़ा नदियों के पास डाला जा रहा है. उसका सबसे बड़ा प्रमुख कारण एक ही होता है कि 6 या महीने 8 महीने तक वहां कूड़ा इकट्ठा होता है. मानसून में वह कूड़ा वहां गायब हो जाता है. ऐसा नहीं है कि यह बात प्रशासन को पता नहीं है बल्कि प्रशासन खुद इस बात का इंतजार करता है कि पहाड़ों में कब बारिश और तेज हवाएं चलें, ताकि कूड़ा नदियों में चला जाए, क्योंकि उत्तराखंड में कितनी तेज और किस हद तक बारिश होती है ये बात किसी से छुपी नहीं है. जो बारिश अपने साथ मलबा-पत्थर-पहाड़ लेकर नदियों में समा जाती है वो शहरों के कूड़े को भी बहाकर अपने साथ नदियों में ले जाती है.
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अलकनंदा और भागीरथी में जाने वाला कूड़ा देवप्रयाग से आगे गंगा में समाहित हो जाता है और इस कूड़े का पता ऋषिकेश में भले ही इतना न लगे लेकिन हरिद्वार के ज्वालापुर, डाम कोठी, नीलधारा जैसी नदियों में बने बांध और किनारों पर इकट्ठा होकर गंगा की बदहाली, प्रशासन की लापरवाही और भक्तों द्वारा धामों में फेंके गए कचरे की पूरी कहानी बयां करता है.
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बुग्यालों पर खतरा: क्या गंगा और क्या अलकनंदा, भागीरथी सभी नदियों में बहता कूड़ा शासन-प्रशासन के वेस्ट मैनेजमेंट की पोल खोलता नजर आता है. पहाड़ों के बुग्यालों को भी कूड़ा बदसूरत कर रहा है. पर्यावरणविद राघवेंद्र बद्री इसे लेकर काफी चिंतित दिखाई देते हैं. वो कहते हैं कि, धामों में इकट्ठा होने वाला कूड़ा न केवल धार्मिक स्थलों की साख को बट्टा लगा रहा है बल्कि यहां के पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहा है. कूड़े के कारण बुग्यालों का घास खत्म हो रही है. जिससे पहाड़ों का संतुलन बिगड़ रहा है. प्रशासन को इस पर ध्यान देना होगा, नहीं तो आने वाला समय बहुत ही कष्टकारी होने वाला है.
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गंगा से निकलता है टनों कचरा: वहीं, हरिद्वार में कई संस्थाएं गंगा में से कचरा निकालने का काम करती हैं. इसके साथ ही सरकारी संस्थाएं भी इस काम में लगी रहती हैं. उत्तर प्रदेश सरकार सिंचाई के लिए हर साल में दो बार गंगा को बंद करती है. ताकि गंगा नदी में आने वाली कचरे को साफ किया जा सके. इस साफ-सफाई के दौरान गंगा से टनों कूड़ा कचरा निकलता है. हरिद्वार में तीर्थ पुरोहित और गंगा सभा के महामंत्री तन्मय वशिष्ठ कहते हैं कि, कुछ अंधविश्वास और धार्मिक मान्यताओं को लेकर नदियों में कपड़ों और दूसरी चीजें फेंकते हैं. उनको लगता है कि ऐसा करने से शायद उन्हें कोई फायदा होगा, मगर ऐसा नहीं है. ऐसा करने से सिर्फ नदियां गंदी होती हैं.
जिम्मेदार बनें अधिकारी: तन्मय वशिष्ठ कहते हैं, आज प्राकृतिक की गोद में बसे चारों धाम गंगा और तमाम धार्मिक स्थल तभी सुरक्षित और महफूज होंगे. जब यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी जिम्मेदारियों को समझेंगे. वो कहते हैं इसके लिए सरकारों को भी जागरुक होने की जरूरत है. कूड़ा निस्तारण, स्वच्छता और तमाम चीजों के लिए अभियान चलाये जाने की जरुरत है. चारधाम यात्रा के समय में तो सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है.