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22 साल बाद भरेगी FRI के ऐतिहासिक भवन की दरारें, 16 करोड़ की लागत से सुधरेगी स्थिति - Historical Forest Research Center Latest News

ऐतिहासिक वन अनुसंधान केंद्र (FRI) के भवन में आई दरारों को भरने का काम 22 साल बाद शुरू होने जा रहा है. इसके लिए पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 16 करोड़ 86 लाख रुपए स्वीकृत किए हैं. केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) को इसकी जिम्मेदारी दी गई है.

Forest Research Institute:
22 साल बाद भरेंगी ऐतिहासिक भवन की दरारें
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Published : Sep 16, 2021, 5:40 PM IST

देहरादून: विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखने वाली देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (FRI) के ऐतिहासिक भवन में 2 दशक पहले आई दरार को भरने की कवायद शुरू कर दी गई है. 1999 चमोली में आए 6.6 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप के दौरान FRI बिल्डिंग के एक हिस्से में दरारें आई थीं. हालांकि ब्रिटिश काल में तैयार हुआ यह ऐतिहासिक भवन 1929 में शैली ग्रीक रोमन और औपनिवेशिक तकनीक से निर्माण होने के कारण आज भी काफी हद तक मजबूती से खड़ा है, लेकिन अब FRI के जिस हिस्से में 22 साल पहले भूकंप के चलते दरारें आई थीं, उसे दुरुस्त करने का निर्माण कार्य केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) (रुड़की) द्वारा प्रारंभ किया जा रहा है.

वन अनुसंधान केंद्र FRI से मिली जानकारी के मुताबिक इसके लिए पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 16 करोड़ 86 लाख रुपए स्वीकृत किए गए हैं. दरारों को भरने के कार्य के लिए पहले चरण में सीपीडब्ल्यूडी को 2 साल का समय दिया गया है. जिसमें उसे 2 करोड़ रुपए तत्काल और तीन करोड़ रुपए जल्द ही निर्माण भुगतान के रूप में जारी किए जा रहे हैं.

22 साल बाद भरेंगी ऐतिहासिक भवन की दरारें

ईटीवी भारत ने दिखाई थी ग्राउंड रिपोर्ट: बता दें ईटीवी भारत ने साल 2019 देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान भवन में आई दरारों की मरम्मत को लेकर ग्राउंड रिपोर्ट की थी. उस वक्त संस्थान विशेषज्ञ और उच्च पदाधिकारियों द्वारा जल्द ही दरारों को विशेष तकनीक केंद्रीय इंजीनियरों के माध्यम से मरम्मत कराने की बात कही गई थी.

पढ़ें- रुड़की में बाइक सवार दंपति और बच्चे को ट्रक ने कुचला, बाप-बेटे की मौत

30 मीटर से अधिक भवन के हिस्से में दरारें: भारतीय वन अनुसंधान एफआरआई के मुताबिक भवन के पिछले हिस्से में 1999 में चमोली में आए भूकंप के दौरान काफी लंबी-लंबी दरारें आई थीं. इसके साथ ही FRI की बिल्डिंग के कुछ अन्य हिस्सों में भी हल्की दरारें आईं. भवन के मुख्य हिस्से के पीछे लगभग 12 से 14 मीटर मोटाई और तकरीबन 30 मीटर की लंबाई में यह दरारें आई हैं. जिन्हें मरम्मत करने का कार्य केंद्रीय कार्य संस्था सीपीडब्ल्यूडी द्वारा शुरू किया जा रहा है.

विशेष तकनीक उपलब्ध होने के कारण मरम्मत में हुई देरी: भारतीय वन अनुसंधान केंद्र के महानिदेशक एएस रावत के मुताबिक एफआरआई भवन में 22 साल पहले दरार आने के बावजूद उसे मरम्मत न करने के पीछे विशेष तकनीक न होना एक प्रमुख वजह रही. जिस ग्रीक रोमन औपनिवेशिक तकनीक से यह भवन ब्रिटिश काल में 1929 को तैयार किया गया. उस तकनीक निर्माण कार्य से छेड़छाड़ करना जोखिम भरा था. ऐसे में जिस तकनीक से इस भवन का निर्माण किया गया है. उसी तकनीक से ही इसकी मरम्मत की जानी थी. इसी के चलते अब इन दरारों को भरने का जिम्मा विशेषज्ञों को दिया गया है.

पढ़ें- चुनाव प्रभारियों के स्वागत में भीड़ नहीं जुटा पाई BJP, ये है आगे का कार्यक्रम

अब केंद्रीय संस्थान सीपीडब्ल्यूडी रुड़की के विशेष सलाहकारों और सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) के तकनीक विशेषज्ञों की सहयोग से भवन की दरारों को भरने का कार्य CPWD द्वारा शुरू किया जा रहा है. इस पूरे मरम्मत कार्य की निगरानी FRI के सिविल इंजीनियर विंग के प्रमुख राजेंद्र गोपाल को दी गई है.

पढ़ें- गढ़वाल यूनिवर्सिटी में CBI का छापा, कॉलेजों की सम्बद्धता के कागजात खंगाले

क्यों खास है FRI: वन अनुसंधान संस्थान का भवन बहुत शानदार है. इसमें एक संग्रहालय भी है. इसकी स्थापना 1906 में इंपीरियल फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट के रूप में की गई थी. यह इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट रिसर्च एंड एडूकेशन के अंतर्गत एक प्रमुख संस्थान है. इसकी शैली ग्रीक-रोमन वास्तुकला है. इसके मुख्य भवन को राष्ट्रीय विरासत घोषित किया जा चुका है. इसका उद्घघाटन 1921 में किया गया था. यह वन से संबंधित हर प्रकार के अनुसंधान के लिए में प्रसिद्ध है.

एशिया में अपनी तरह के इकलौते संस्थान के रूप में यह दुनिया भर में प्रख्यात है. 2000 एकड़ में फैला एफआरआई का डिजाइन विलियम लुटियंस द्वारा किया गया था. इसमें 7 संग्रहालय हैं और तिब्बत से लेकर सिंगापुर तक सभी तरह के पेड़-पौधे यहां पर हैं. तभी तो इसे देहरादून की पहचान और गौरव कहा जाता है.

देहरादून: विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखने वाली देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (FRI) के ऐतिहासिक भवन में 2 दशक पहले आई दरार को भरने की कवायद शुरू कर दी गई है. 1999 चमोली में आए 6.6 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप के दौरान FRI बिल्डिंग के एक हिस्से में दरारें आई थीं. हालांकि ब्रिटिश काल में तैयार हुआ यह ऐतिहासिक भवन 1929 में शैली ग्रीक रोमन और औपनिवेशिक तकनीक से निर्माण होने के कारण आज भी काफी हद तक मजबूती से खड़ा है, लेकिन अब FRI के जिस हिस्से में 22 साल पहले भूकंप के चलते दरारें आई थीं, उसे दुरुस्त करने का निर्माण कार्य केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) (रुड़की) द्वारा प्रारंभ किया जा रहा है.

वन अनुसंधान केंद्र FRI से मिली जानकारी के मुताबिक इसके लिए पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 16 करोड़ 86 लाख रुपए स्वीकृत किए गए हैं. दरारों को भरने के कार्य के लिए पहले चरण में सीपीडब्ल्यूडी को 2 साल का समय दिया गया है. जिसमें उसे 2 करोड़ रुपए तत्काल और तीन करोड़ रुपए जल्द ही निर्माण भुगतान के रूप में जारी किए जा रहे हैं.

22 साल बाद भरेंगी ऐतिहासिक भवन की दरारें

ईटीवी भारत ने दिखाई थी ग्राउंड रिपोर्ट: बता दें ईटीवी भारत ने साल 2019 देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान भवन में आई दरारों की मरम्मत को लेकर ग्राउंड रिपोर्ट की थी. उस वक्त संस्थान विशेषज्ञ और उच्च पदाधिकारियों द्वारा जल्द ही दरारों को विशेष तकनीक केंद्रीय इंजीनियरों के माध्यम से मरम्मत कराने की बात कही गई थी.

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30 मीटर से अधिक भवन के हिस्से में दरारें: भारतीय वन अनुसंधान एफआरआई के मुताबिक भवन के पिछले हिस्से में 1999 में चमोली में आए भूकंप के दौरान काफी लंबी-लंबी दरारें आई थीं. इसके साथ ही FRI की बिल्डिंग के कुछ अन्य हिस्सों में भी हल्की दरारें आईं. भवन के मुख्य हिस्से के पीछे लगभग 12 से 14 मीटर मोटाई और तकरीबन 30 मीटर की लंबाई में यह दरारें आई हैं. जिन्हें मरम्मत करने का कार्य केंद्रीय कार्य संस्था सीपीडब्ल्यूडी द्वारा शुरू किया जा रहा है.

विशेष तकनीक उपलब्ध होने के कारण मरम्मत में हुई देरी: भारतीय वन अनुसंधान केंद्र के महानिदेशक एएस रावत के मुताबिक एफआरआई भवन में 22 साल पहले दरार आने के बावजूद उसे मरम्मत न करने के पीछे विशेष तकनीक न होना एक प्रमुख वजह रही. जिस ग्रीक रोमन औपनिवेशिक तकनीक से यह भवन ब्रिटिश काल में 1929 को तैयार किया गया. उस तकनीक निर्माण कार्य से छेड़छाड़ करना जोखिम भरा था. ऐसे में जिस तकनीक से इस भवन का निर्माण किया गया है. उसी तकनीक से ही इसकी मरम्मत की जानी थी. इसी के चलते अब इन दरारों को भरने का जिम्मा विशेषज्ञों को दिया गया है.

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अब केंद्रीय संस्थान सीपीडब्ल्यूडी रुड़की के विशेष सलाहकारों और सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) के तकनीक विशेषज्ञों की सहयोग से भवन की दरारों को भरने का कार्य CPWD द्वारा शुरू किया जा रहा है. इस पूरे मरम्मत कार्य की निगरानी FRI के सिविल इंजीनियर विंग के प्रमुख राजेंद्र गोपाल को दी गई है.

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क्यों खास है FRI: वन अनुसंधान संस्थान का भवन बहुत शानदार है. इसमें एक संग्रहालय भी है. इसकी स्थापना 1906 में इंपीरियल फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट के रूप में की गई थी. यह इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट रिसर्च एंड एडूकेशन के अंतर्गत एक प्रमुख संस्थान है. इसकी शैली ग्रीक-रोमन वास्तुकला है. इसके मुख्य भवन को राष्ट्रीय विरासत घोषित किया जा चुका है. इसका उद्घघाटन 1921 में किया गया था. यह वन से संबंधित हर प्रकार के अनुसंधान के लिए में प्रसिद्ध है.

एशिया में अपनी तरह के इकलौते संस्थान के रूप में यह दुनिया भर में प्रख्यात है. 2000 एकड़ में फैला एफआरआई का डिजाइन विलियम लुटियंस द्वारा किया गया था. इसमें 7 संग्रहालय हैं और तिब्बत से लेकर सिंगापुर तक सभी तरह के पेड़-पौधे यहां पर हैं. तभी तो इसे देहरादून की पहचान और गौरव कहा जाता है.

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