ETV Bharat / state

वन्यजीवों के रेस्क्यू के तरीकों पर वन मंत्री हरक सिंह से उठाए सवाल, बोले- पुराने उपकरणों से ही किया जा रहा काम

उत्तराखंड के वन महकमे को न केवल राज्य सरकार बल्कि भारत सरकार की तरफ से भी करोड़ों का बजट आवंटित होता है. ताकि वन महकमा पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए जंगलों के संवर्धन पर काम कर सके. साथ ही वाइल्ड लाइफ के लिए आए बजट के जरिए वन्यजीवों की सुरक्षा भी पुख्ता हो सके.

wildlife
author img

By

Published : May 29, 2019, 8:28 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड वन विभाग करोड़ों के बजट के बावजूद वन्य जीवों से जुड़े महत्वपूर्ण संसाधनों को नहीं जुटा पा रहा है. हालत यह है कि प्रदेश में वन्य जीवों के रेस्क्यू के लिए सालों पुराने उपकरणों और तरीकों का ही महकमे के अधिकारी और कर्मचारी इस्तेमाल कर रहे हैं, जो वन्य जीवों के लिए घातक साबित होता है और कभी-कभी उनकी जान भी चली जाती है. ऐसा हम नहीं बल्कि खुद वन मंत्री हरक सिंह रावत मानते हैं.

पढ़ें- पहाड़ न चढ़ने वाले डॉक्टरों पर होगी कार्रवाई, स्वास्थ्य महकमे ने 44 डॉक्टरों को भेजा नोटिस

उत्तराखंड के वन महकमे को न केवल राज्य सरकार बल्कि भारत सरकार की तरफ से भी करोड़ों का बजट आवंटित होता है. ताकि वन महकमा पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए जंगलों के संवर्धन पर काम कर सके. साथ ही वाइल्ड लाइफ के लिए आए बजट के जरिए वन्यजीवों की सुरक्षा भी पुख्ता हो सके. लेकिन इस भारी-भरकम बजट और अधिकारियों की फौज के बावजूद वन्यजीवों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.

वन मंत्री हरक सिंह

हरक सिंह रावत पिछले कुछ उदाहरणों को बता कर साफ करते हैं कि कैसे वन महकमे में वन्यजीवों के रेस्क्यू पर बेहद लापरवाह रवैया अपनाया जाता है. जिसे कारण वन्यजीवों की मौत तक हो जाती है. जानकारी के अनुसार वन महकमे के द्वारा अधिकतर मामलों में रेस्क्यू किए गए घायल वन्यजीव को नहीं बचाया जा सका है और इसका सीधा कारण महकमे के पास अत्याधुनिक उपकरणों की कमी को माना गया है.

पढ़ें- देहरादून की 'मर्दानी' ने मनचले को सिखाया सबक, चप्पल-जूतों से की धुनाई

वन्यजीवों से जुड़े जानकार बताते हैं कि महकमे के पास ना तो एक्सपर्ट्स है और ना ही अत्याधुनिक उपकरण. कई बार तो वन कर्मियों द्वारा वन्यजीवों को पकड़ने की जो तस्वीरें सामने आई है उसमें वन कर्मी जाल के जरिए अप्रशिक्षित तरीके से काम करते दिखाई दिए हैं.

यही नहीं वन विभाग के पास ड्रोन कैमरे की कमी भी है. शायद यही कारण है कि वन्यजीवों को ढूंढने और रेस्क्यू करने के लिए जहां दुनियाभर में अत्याधुनिक उपकरण का इस्तेमाल किया जा रहा है वहीं उत्तराखंड में वन महकमा पुराने तरीकों को अपना रहा है. यहां तक कि वन्य जीवों को ट्रेंकुलाइज करने के लिए विभाग के पास अनुभवी लोगों की भी भारी कमी है.

देहरादून: उत्तराखंड वन विभाग करोड़ों के बजट के बावजूद वन्य जीवों से जुड़े महत्वपूर्ण संसाधनों को नहीं जुटा पा रहा है. हालत यह है कि प्रदेश में वन्य जीवों के रेस्क्यू के लिए सालों पुराने उपकरणों और तरीकों का ही महकमे के अधिकारी और कर्मचारी इस्तेमाल कर रहे हैं, जो वन्य जीवों के लिए घातक साबित होता है और कभी-कभी उनकी जान भी चली जाती है. ऐसा हम नहीं बल्कि खुद वन मंत्री हरक सिंह रावत मानते हैं.

पढ़ें- पहाड़ न चढ़ने वाले डॉक्टरों पर होगी कार्रवाई, स्वास्थ्य महकमे ने 44 डॉक्टरों को भेजा नोटिस

उत्तराखंड के वन महकमे को न केवल राज्य सरकार बल्कि भारत सरकार की तरफ से भी करोड़ों का बजट आवंटित होता है. ताकि वन महकमा पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए जंगलों के संवर्धन पर काम कर सके. साथ ही वाइल्ड लाइफ के लिए आए बजट के जरिए वन्यजीवों की सुरक्षा भी पुख्ता हो सके. लेकिन इस भारी-भरकम बजट और अधिकारियों की फौज के बावजूद वन्यजीवों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.

वन मंत्री हरक सिंह

हरक सिंह रावत पिछले कुछ उदाहरणों को बता कर साफ करते हैं कि कैसे वन महकमे में वन्यजीवों के रेस्क्यू पर बेहद लापरवाह रवैया अपनाया जाता है. जिसे कारण वन्यजीवों की मौत तक हो जाती है. जानकारी के अनुसार वन महकमे के द्वारा अधिकतर मामलों में रेस्क्यू किए गए घायल वन्यजीव को नहीं बचाया जा सका है और इसका सीधा कारण महकमे के पास अत्याधुनिक उपकरणों की कमी को माना गया है.

पढ़ें- देहरादून की 'मर्दानी' ने मनचले को सिखाया सबक, चप्पल-जूतों से की धुनाई

वन्यजीवों से जुड़े जानकार बताते हैं कि महकमे के पास ना तो एक्सपर्ट्स है और ना ही अत्याधुनिक उपकरण. कई बार तो वन कर्मियों द्वारा वन्यजीवों को पकड़ने की जो तस्वीरें सामने आई है उसमें वन कर्मी जाल के जरिए अप्रशिक्षित तरीके से काम करते दिखाई दिए हैं.

यही नहीं वन विभाग के पास ड्रोन कैमरे की कमी भी है. शायद यही कारण है कि वन्यजीवों को ढूंढने और रेस्क्यू करने के लिए जहां दुनियाभर में अत्याधुनिक उपकरण का इस्तेमाल किया जा रहा है वहीं उत्तराखंड में वन महकमा पुराने तरीकों को अपना रहा है. यहां तक कि वन्य जीवों को ट्रेंकुलाइज करने के लिए विभाग के पास अनुभवी लोगों की भी भारी कमी है.

Intro:कृपया file visuals प्रयोग करें।

उत्तराखंड वन विभाग करोड़ों के बजट के बावजूद वन्यजीवों से जुड़े महत्वपूर्ण संसाधनों को नहीं जुटा पा रहा है... हालत यह है कि प्रदेश में वन्यजीवों के रेस्क्यू के लिए सालों साल पुराने उपकरणों और तरीकों का ही महकमे के अधिकारी और कर्मचारी इस्तेमाल कर रहे हैं जो वन्यजीवों की जान पर खतरा बन गया है। देखिये ये खास रिपोर्ट......




Body:उत्तराखंड के वन महकमे को न केवल राज्य सरकार बल्कि भारत सरकार की तरफ से भी करोड़ों का बजट आवंटित होता है ताकि वन महकमा पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए जंगलों के संवर्धन पर काम कर सके साथ ही वाइल्डलाइफ के लिए आए बजट के जरिए वन्यजीवों की सुरक्षा भी पुख्ता हो सके लेकिन इस भारी-भरकम बजट और अधिकारियों की फौज के बावजूद वन्यजीवों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। ऐसा हम नहीं बल्कि खुद वन मंत्री हरक सिंह रावत मानते हैं... हरक सिंह रावत पिछले कुछ उदाहरणों को बता कर साफ करते हैं कि कैसे वन महकमे में वन्यजीवों के रेस्क्यू पर बेहद लापरवाह रवैया अपनाया जाता है जिसे कारण वन्यजीवों की मौत तक हो जाती है। जानकारी के अनुसार वन महकमे के द्वारा अधिकतर मामलों में रेस्क्यू किए गए घायल वन्यजीव को नहीं बचाया जा सका है और इसका सीधा कारण महकमे के पास अत्याधुनिक उपकरणों की कमी को माना गया है।

बाइट- हरक सिंह रावत वन मंत्री उत्तराखंड

वन्यजीवों से जुड़े जानकार बताते हैं कि महकमे के पास ना तो एक्सपर्ट्स है और ना ही अत्याधुनिक उपकरण..... कई बार तो वन कर्मियों द्वारा वन्यजीवों को पकड़ने की जो तस्वीरें सामने आई है उसमें वन कर्मी जाल के जरिए अप्रशिक्षित तरीके से कामकरते दिखाई दिए हैं। यही नहीं वन विभाग के पास ड्रोन कैमरे की कमी भी साफ देखने को मिलती है। शायरी कारण है कि वन्यजीवों को ढूंढने और रेस्क्यू करने के लिए जहां दुनियाभर में अत्याधुनिक उपकरण का इस्तेमाल किया जा रहा है वहीं उत्तराखंड में वन महकमा उन्हीं पुराने तरीकों को अपना रहा है यहां तक कि वन्यजीवों को ट्रेंकुलाइज करने के लिए भी पूरी तरह से एक्सपटाइज महकमे के पास नही है।


Conclusion:उत्तराखंड में तमाम जगहों से रेस्क्यू की आने वाली तस्वीरें यह बताती है कि वन कर्मी रेस्क्यू के दौरान मिनिमम सावधानियों और जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पाते ना तो उनके पास खुद की सुरक्षा से जुड़े तमाम उपकरण दिखाई देते हैं और ना ही वन्य जीव को रेस्क्यू करने के लिए जरूरी उपकरणों कि समय पर मौजूदगी ही दिखाई देती है। हालांकि पिछले कुछ समय में रेस्क्यू के दौरान मारे गए घायल वन्यजीवों को लेकर आ वन महकमे ने गंभीरता दिखाते हुए कुछ पर जांच भी शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि अब आने वाले समय में अत्याधुनिक उपकरण खरीद कर वन्यजीवों की जान के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाएगा।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.