देहरादून: उत्तराखंड वन विभाग करोड़ों के बजट के बावजूद वन्य जीवों से जुड़े महत्वपूर्ण संसाधनों को नहीं जुटा पा रहा है. हालत यह है कि प्रदेश में वन्य जीवों के रेस्क्यू के लिए सालों पुराने उपकरणों और तरीकों का ही महकमे के अधिकारी और कर्मचारी इस्तेमाल कर रहे हैं, जो वन्य जीवों के लिए घातक साबित होता है और कभी-कभी उनकी जान भी चली जाती है. ऐसा हम नहीं बल्कि खुद वन मंत्री हरक सिंह रावत मानते हैं.
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उत्तराखंड के वन महकमे को न केवल राज्य सरकार बल्कि भारत सरकार की तरफ से भी करोड़ों का बजट आवंटित होता है. ताकि वन महकमा पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए जंगलों के संवर्धन पर काम कर सके. साथ ही वाइल्ड लाइफ के लिए आए बजट के जरिए वन्यजीवों की सुरक्षा भी पुख्ता हो सके. लेकिन इस भारी-भरकम बजट और अधिकारियों की फौज के बावजूद वन्यजीवों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.
हरक सिंह रावत पिछले कुछ उदाहरणों को बता कर साफ करते हैं कि कैसे वन महकमे में वन्यजीवों के रेस्क्यू पर बेहद लापरवाह रवैया अपनाया जाता है. जिसे कारण वन्यजीवों की मौत तक हो जाती है. जानकारी के अनुसार वन महकमे के द्वारा अधिकतर मामलों में रेस्क्यू किए गए घायल वन्यजीव को नहीं बचाया जा सका है और इसका सीधा कारण महकमे के पास अत्याधुनिक उपकरणों की कमी को माना गया है.
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वन्यजीवों से जुड़े जानकार बताते हैं कि महकमे के पास ना तो एक्सपर्ट्स है और ना ही अत्याधुनिक उपकरण. कई बार तो वन कर्मियों द्वारा वन्यजीवों को पकड़ने की जो तस्वीरें सामने आई है उसमें वन कर्मी जाल के जरिए अप्रशिक्षित तरीके से काम करते दिखाई दिए हैं.
यही नहीं वन विभाग के पास ड्रोन कैमरे की कमी भी है. शायद यही कारण है कि वन्यजीवों को ढूंढने और रेस्क्यू करने के लिए जहां दुनियाभर में अत्याधुनिक उपकरण का इस्तेमाल किया जा रहा है वहीं उत्तराखंड में वन महकमा पुराने तरीकों को अपना रहा है. यहां तक कि वन्य जीवों को ट्रेंकुलाइज करने के लिए विभाग के पास अनुभवी लोगों की भी भारी कमी है.