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वनाग्नि रोकने के लिए वन महकमे के सामने चुनौतियां कम नहीं, तैयारियों में जुटा

फायर सीजन में आग पर काबू पाना वन विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती होता है. हालांकि, उत्तराखंड में बीते 15 फरवरी से फायर सीजन शुरू हो गया था. इस बीच 350 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें 400 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जल चुके हैं.

forest fire
फायर सीजन
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Published : Feb 27, 2021, 9:29 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड के जंगल फायर सीजन की शुरूआत के साथ ही जंगल धधकने लगे हैं. राज्य में 15 फरवरी के बाद से ही 350 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें 400 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जल चुके हैं. मौजूदा इन आंकड़ों से जाहिर है कि इस बार फायर सीजन के दौरान जंगलों में आग की घटनाएं ज्यादा होनी संभावित है. वन विभाग के अनुसार यह प्रदेश में बदल रहे मौसम को बताया जा रहा है.

बता दें कि, राज्य में साल भर फायर सीजन के रूप में वन विभाग अपनी तैयारियों को जुटाने में लगा है. हालांकि 15 फरवरी से फायर सीजन शुरू हो चुका है और इसके लिए विभाग की तरफ से कर्मियों की ड्यूटी समेत तमाम दूसरी जरूरी तैयारियों को किया गया है. इसके बावजूद इस बार उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाओं के बढ़ने की आशंका लगाई जा रही है. ऐसा मौसम के बदलते के कारण माना जा रहा है. दरअसल, इस बार सर्दियों में भी वनाग्नि की घटनाएं बेहद ज्यादा हुई है और इस बार गर्मी के ज्यादा होने की भविष्यवाणी के बीच वनों में आग की घटनाओं के बढ़ने की उम्मीद है. आंकड़ों पर गौर करें तो यह साफ होता है कि हर दूसरे या तीसरे साल वनों में आग की घटनाएं ज्यादा देखी जाती हैं. पिछले साल लॉकडाउन और मौसम की वजह से इन घटनाओं में कुछ कमी रही थी लेकिन इस बार मौसम इसके अनुकूल नहीं दिखाई दे रहा है.

राज्य में हर साल औसतन 2,000 हेक्टेयर से ज्यादा वन क्षेत्र आग की घटनाओं की भेंट चल रहा है. साल 2012 में 2500 हेक्टेयर जंगल आग की घटनाओं से प्रभावित हुआ था. इसके करीब 3 सालों तक इन घटनाओं में कमी देखी गई थी. इसके बाद लगातार 3 सालों तक आग की घटनाएं 500 या इससे कम ही रही थी, जिसमें 1,000 हेक्टेयर से कम जंगल ही प्रभावित हुए थे. लेकिन 2016 में यह आंकड़ा 4,000 हेक्टेयर से ज्यादा पहुंच गया था. इसके बाद 2017, 18 और 19 में भी वनों में आग की घटनाएं 1,000 हेक्टेयर से ज्यादा रही थी. 2018 में यह आंकड़ा 4,400 हेक्टेयर था जबकि 2019 में करीब 3,000 हेक्टेयर आग की घटना से प्रभावित हुआ. साल 2020 कोविड-19 से प्रभावित रहा और इस साल पिछले 10 सालों में सबसे कम जंगल जले साल 2020 में महज 172 हेक्टेयर जंगलों में ही आग लगी. लेकिन अब इस साल फायर सीजन में कम बारिश और गर्मी के ज्यादा होने के कारण आग की घटनाओं के बढ़ने की आशंका है. जिसे वन विभाग भी एक बड़ी चुनौती मान रहा है.

पढ़ें: सवालों के घेरे में सचिवालय संघ शपथ ग्रहण समारोह, कारण बताओ नोटिस जारी

इस बार जंगलों में आग की घटनाओं को लेकर सरकार कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत वनाग्नि को लेकर पिछले 1 महीने में दो बैठक ले चुके हैं. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के स्तर पर जिला प्रशासन और वन विभाग के बीच संबंध में बढ़ते जाने के निर्देश दिए जाने समेत बजट को लेकर भी विशेष प्रावधान किए गए हैं. इसमें 35 मास्टर कंट्रोल रूम 1498 ट्रू स्टेशन और 200 से ज्यादा वॉच टावर वनाग्नि को लेकर संसाधन के रूप में जुटाए गए हैं. यही नहीं इसके लिए बेहतर से बेहतर तकनीक को भी अपनाए जाने की कोशिश कर की जा रही है और फील्ड कर्मियों को आग लगने की स्थिति में बेहतर उपकरण दिए जाने के लिए भी काम किया जा रहा है.

देहरादून: उत्तराखंड के जंगल फायर सीजन की शुरूआत के साथ ही जंगल धधकने लगे हैं. राज्य में 15 फरवरी के बाद से ही 350 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें 400 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जल चुके हैं. मौजूदा इन आंकड़ों से जाहिर है कि इस बार फायर सीजन के दौरान जंगलों में आग की घटनाएं ज्यादा होनी संभावित है. वन विभाग के अनुसार यह प्रदेश में बदल रहे मौसम को बताया जा रहा है.

बता दें कि, राज्य में साल भर फायर सीजन के रूप में वन विभाग अपनी तैयारियों को जुटाने में लगा है. हालांकि 15 फरवरी से फायर सीजन शुरू हो चुका है और इसके लिए विभाग की तरफ से कर्मियों की ड्यूटी समेत तमाम दूसरी जरूरी तैयारियों को किया गया है. इसके बावजूद इस बार उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाओं के बढ़ने की आशंका लगाई जा रही है. ऐसा मौसम के बदलते के कारण माना जा रहा है. दरअसल, इस बार सर्दियों में भी वनाग्नि की घटनाएं बेहद ज्यादा हुई है और इस बार गर्मी के ज्यादा होने की भविष्यवाणी के बीच वनों में आग की घटनाओं के बढ़ने की उम्मीद है. आंकड़ों पर गौर करें तो यह साफ होता है कि हर दूसरे या तीसरे साल वनों में आग की घटनाएं ज्यादा देखी जाती हैं. पिछले साल लॉकडाउन और मौसम की वजह से इन घटनाओं में कुछ कमी रही थी लेकिन इस बार मौसम इसके अनुकूल नहीं दिखाई दे रहा है.

राज्य में हर साल औसतन 2,000 हेक्टेयर से ज्यादा वन क्षेत्र आग की घटनाओं की भेंट चल रहा है. साल 2012 में 2500 हेक्टेयर जंगल आग की घटनाओं से प्रभावित हुआ था. इसके करीब 3 सालों तक इन घटनाओं में कमी देखी गई थी. इसके बाद लगातार 3 सालों तक आग की घटनाएं 500 या इससे कम ही रही थी, जिसमें 1,000 हेक्टेयर से कम जंगल ही प्रभावित हुए थे. लेकिन 2016 में यह आंकड़ा 4,000 हेक्टेयर से ज्यादा पहुंच गया था. इसके बाद 2017, 18 और 19 में भी वनों में आग की घटनाएं 1,000 हेक्टेयर से ज्यादा रही थी. 2018 में यह आंकड़ा 4,400 हेक्टेयर था जबकि 2019 में करीब 3,000 हेक्टेयर आग की घटना से प्रभावित हुआ. साल 2020 कोविड-19 से प्रभावित रहा और इस साल पिछले 10 सालों में सबसे कम जंगल जले साल 2020 में महज 172 हेक्टेयर जंगलों में ही आग लगी. लेकिन अब इस साल फायर सीजन में कम बारिश और गर्मी के ज्यादा होने के कारण आग की घटनाओं के बढ़ने की आशंका है. जिसे वन विभाग भी एक बड़ी चुनौती मान रहा है.

पढ़ें: सवालों के घेरे में सचिवालय संघ शपथ ग्रहण समारोह, कारण बताओ नोटिस जारी

इस बार जंगलों में आग की घटनाओं को लेकर सरकार कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत वनाग्नि को लेकर पिछले 1 महीने में दो बैठक ले चुके हैं. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के स्तर पर जिला प्रशासन और वन विभाग के बीच संबंध में बढ़ते जाने के निर्देश दिए जाने समेत बजट को लेकर भी विशेष प्रावधान किए गए हैं. इसमें 35 मास्टर कंट्रोल रूम 1498 ट्रू स्टेशन और 200 से ज्यादा वॉच टावर वनाग्नि को लेकर संसाधन के रूप में जुटाए गए हैं. यही नहीं इसके लिए बेहतर से बेहतर तकनीक को भी अपनाए जाने की कोशिश कर की जा रही है और फील्ड कर्मियों को आग लगने की स्थिति में बेहतर उपकरण दिए जाने के लिए भी काम किया जा रहा है.

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