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धधकते जंगलों की चुनौती के बीच पर्यटन को बढ़ाने में जुटा वन महकमा

उत्तराखंड वन विभाग पिछले दिनों ऊंचे हिमालय क्षेत्रों में ट्रैकिंग को लेकर नियमों को सरल करने की कोशिशों में जुटा है. इसके लिए बकायदा पीसीसीएफ अधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी भी गठित की गई.

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Published : Feb 22, 2021, 7:59 PM IST

Forest department
Forest department

देहरादून: फायर सीजन आते ही उत्तराखंड में जंगलों के धधकने का सिलसिला शुरू हो चुका है. इस बीच जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं और वैज्ञानिकों के वन्यजीवों को लेकर इंसानों की दखल अंदाजी पर चिंता के बीच वन विभाग हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ाने की कोशिशों में जुटा है. वन्यजीवों को लेकर गंभीर चुनौतियों के बीच वन विभाग का यह प्रयास चर्चा और चिंतन का विषय बन गया है.

उत्तराखंड वन विभाग पिछले दिनों ऊंचे हिमालय क्षेत्रों में ट्रैकिंग को लेकर नियमों को सरल करने की कोशिशों में जुटा रहा, इसके लिए बकायदा पीसीसीएफ अधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी भी गठित की गई. इसके अलावा वन विभाग स्नो लेपर्ड टूर के लिए भी पूरा प्लान तैयार कर चुका है. मार्च के दूसरे हफ्ते से बजट सत्र के ठीक बाद इसको शुरू करने के प्रयास हैं, लेकिन इस बीच वन विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती फॉरेस्ट फायर को लेकर है.

पढ़ें- दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों से CM त्रिवेंद्र, उत्तराखंड को मिली भारत नेट 2.0 की स्वीकृति

फायर सीजन आने के बाद से ही उत्तराखंड वन विभाग में वनाग्नि को लेकर चिंताएं काफी ज्यादा बढ़ गई हैं. फायर सीजन शुरू होने के बाद करीब साढ़े 300 मामले जंगलों में आग के सामने आ चुके हैं और इसमें 400 हेक्टेयर जंगल भी प्रभावित हुआ है. इसके पीछे शुष्क मौसम तो वजह है ही साथ ही खुद वन विभाग और स्थानीय लोगों के साथ ही पर्यटक भी वनों में आग के लिए जिम्मेदार माने जाते रहे हैं.

फायर सीजन में वन विभाग की इस बड़ी चुनौती के बीच वन विभाग पर्यटकों की आमद पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. विभाग की पहली कोशिश ट्रैकिंग रूट पर ज्यादा से ज्यादा ट्रैकर्स को आने के लिए प्रोत्साहित करना है.

एक तरफ वन विभाग ट्रैकिंग रूट पर पर्यटकों को आकर्षित करना चाहता है, तो दूसरी तरफ स्नो लेपर्ड टूर के जरिए भी पर्यटकों को उच्च हिमालयी क्षेत्रों में लाने की कोशिश है. यूं तो 3 मार्च से प्रदेश में इस तरह का पहला टूर शुरू किया जा रहा था, लेकिन बजट सत्र के कारण अब मार्च के दूसरे सप्ताह में सत्र के बाद इसे शुरू करवाया जाएगा. यह सब तब है जब वैज्ञानिक उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटकों की मौजूदगी के कारण वन्यजीवों के सामान्य जन जीवन में दखल अंदाजी की बात कहता रहा है.

देहरादून: फायर सीजन आते ही उत्तराखंड में जंगलों के धधकने का सिलसिला शुरू हो चुका है. इस बीच जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं और वैज्ञानिकों के वन्यजीवों को लेकर इंसानों की दखल अंदाजी पर चिंता के बीच वन विभाग हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ाने की कोशिशों में जुटा है. वन्यजीवों को लेकर गंभीर चुनौतियों के बीच वन विभाग का यह प्रयास चर्चा और चिंतन का विषय बन गया है.

उत्तराखंड वन विभाग पिछले दिनों ऊंचे हिमालय क्षेत्रों में ट्रैकिंग को लेकर नियमों को सरल करने की कोशिशों में जुटा रहा, इसके लिए बकायदा पीसीसीएफ अधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी भी गठित की गई. इसके अलावा वन विभाग स्नो लेपर्ड टूर के लिए भी पूरा प्लान तैयार कर चुका है. मार्च के दूसरे हफ्ते से बजट सत्र के ठीक बाद इसको शुरू करने के प्रयास हैं, लेकिन इस बीच वन विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती फॉरेस्ट फायर को लेकर है.

पढ़ें- दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों से CM त्रिवेंद्र, उत्तराखंड को मिली भारत नेट 2.0 की स्वीकृति

फायर सीजन आने के बाद से ही उत्तराखंड वन विभाग में वनाग्नि को लेकर चिंताएं काफी ज्यादा बढ़ गई हैं. फायर सीजन शुरू होने के बाद करीब साढ़े 300 मामले जंगलों में आग के सामने आ चुके हैं और इसमें 400 हेक्टेयर जंगल भी प्रभावित हुआ है. इसके पीछे शुष्क मौसम तो वजह है ही साथ ही खुद वन विभाग और स्थानीय लोगों के साथ ही पर्यटक भी वनों में आग के लिए जिम्मेदार माने जाते रहे हैं.

फायर सीजन में वन विभाग की इस बड़ी चुनौती के बीच वन विभाग पर्यटकों की आमद पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. विभाग की पहली कोशिश ट्रैकिंग रूट पर ज्यादा से ज्यादा ट्रैकर्स को आने के लिए प्रोत्साहित करना है.

एक तरफ वन विभाग ट्रैकिंग रूट पर पर्यटकों को आकर्षित करना चाहता है, तो दूसरी तरफ स्नो लेपर्ड टूर के जरिए भी पर्यटकों को उच्च हिमालयी क्षेत्रों में लाने की कोशिश है. यूं तो 3 मार्च से प्रदेश में इस तरह का पहला टूर शुरू किया जा रहा था, लेकिन बजट सत्र के कारण अब मार्च के दूसरे सप्ताह में सत्र के बाद इसे शुरू करवाया जाएगा. यह सब तब है जब वैज्ञानिक उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटकों की मौजूदगी के कारण वन्यजीवों के सामान्य जन जीवन में दखल अंदाजी की बात कहता रहा है.

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