पौड़ी / देहरादून: राज्य बनने के 18 साल बाद भी सबसे बड़ी समस्या पलायन के दंश से उत्तराखंड को मुक्ति नहीं मिल सकी है. हालात ये हैं कि राज्य के लगभग साढ़े 3 लाख से ज्यादा घर आज वीरानी का दंश झेल रहे हैं. हैरत की बात ये है कि जिस जिले से राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर देश के उच्च पदों पर आसीन बड़ी हस्तियां आती हैं, वही जिला पलायन से सबसे ज्यादा ग्रसित है. यही एक कारण रहा कि पहली बार पौड़ी को कैबिनेट बैठक के लिये चुना गया.
शनिवार को पौड़ी में पहली बार मंत्रिपरिषद व मंत्रिमंडल बैठक का आयोजन एकसाथ किया गया था. बैठक में पलायन को लेकर विशेष चर्चा की गयी. पहाड़ के गांवों से लगातार हो रहे पलायन पर मुख्यमंत्री काफी चिंतित नजर आए. कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने जानकारी दी कि सीएम ने सभी विभागों से कहा है कि वो ये सुनिश्चित करें कि जो योजनाएं उनके द्वारा चलाई जा रही हैं, उन योजनाओं से कितने बेरोजगारों को रोजगार दिया जा रहा है और कितने लोगों को रोजगार दिया जा सकता है. मुख्यमंत्री ने बताया कि गांव से पलायन कर चुके 70 प्रतिशत लोग उत्तराखंड के शहरी क्षेत्र में ही बसे है.
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गौर हो कि केवल पौड़ी में ही 300 से ज्यादा गांव खाली हो चुके हैं. पहाड़ में पलायन का मुख्य कारण रोजगार है, क्योंकि प्रदेश में खेती के अलावा रोजगार का कोई मुख्य साधन नहीं है. उत्तराखंड के जिन गांव में आज कोई नहीं बचा, उनको भूतिया गांव कहा जाने लगा है. इस बार पलायन आयोग ने सरकार के समक्ष पलायन को रोकने के लिए कुछ सुझाव और सिफारिश रखी है. उत्तराखंड पलायन आयोग ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने रिपोर्ट पेश की. इस रिपोर्ट के अनुसार, अल्मोड़ा जिले से अबतक 70 हजार लोग पलायन कर चुके हैं.
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भिकियासैंण-चौखुटिया और स्याल्दे ब्लॉक में सबसे ज्यादा पलायन हुआ है. वहीं, महेश्वरी की 646 पंचायतों में 16207 लोग स्थाई रूप से अपना गांव छोड़ चुके हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 73 फीसदी परिवारों की मासिक आय 5 हजार से कम बताई गई है. साथ ही पलायन का कारण मूलभूत सुविधाओं का अभाव होना सामने आया है. वहीं, पलायन करने वाले 42.2 फीसदी युवा में वो शामिल हैं, जिनकी उम्र 26 से 35 साल के बीच है.
पलायन आयोग के अनुसार, इस बार भी पौड़ी और अल्मोड़ा जिलों से पलायन अधिक हुआ है. पौड़ी में कुछ विकासखंड ऐसे हैं, जहां से सबसे अधिक पलायन हुआ है.