देहरादून: आम जिंदगी में भी अमूमन ऐसी तमाम घटनाएं लोगों के साथ घटित हो जाती हैं, जिसको लेकर लोग काफी आश्चर्यचकित हो जाते हैं. चमोली जिले के जोशीमठ स्थित रैणी गांव में आई आपदा से कुछ घंटे पहले अलकनंदा नदी में मौजूद मछलियां किनारों की ओर भागने लगी थी. जिसको देखर लोग हैरान रह गए थे.
देवभूमि में त्रासदी आने से पहले रुद्रप्रयाग जिले के लाशू गांव के अलकनंदा नदी के किनारे एक ऐसी घटना घटी हुई. जिसे देखकर लोग काफी हैरान हो गए थे, क्योंकि अलकनंदा नदी में मौजूद मछलियां अचानक नदी के किनारे आने लगी थी. मछलियां नदी की धार को छोड़ किनारे आ रही थी. जिसके बाद मछलियों को पकड़ने के लिए लाशू गांव के ग्रामीण नदी किनारे जुट गए. उस दौरान मछलियों को पकड़ना बेहद आसान था, क्योंकि लोग हाथ से ही मछलियों को पकड़ रहे थे. यह घटना 7 फरवरी की सुबह 9 बजे की है.
मछलियां पकड़ने दौड़ पड़े लोग
जब ग्रामीण मछलियों को पकड़ने में इतने व्यस्त हो गए कि उन्होंने इस बात पर गौर नहीं किया कि अलकनंदा नदी का रंग मटमैला हो गया है. नदी किनारे ऐसी घटना पहली बार हुई जब खुद मछलियां नदी की धार छोड़कर किनारे आने लगी, मछलियों को किनारे आता देख ग्रामीणों में काफी उत्साहित हो गए कि वह आसानी से मछलियों को पकड़ सकते हैं. ग्रामीण मछलियों को पकड़ने के लिए नदी किनारे भी पहुंच गए. लेकिन कोई ये नहीं समझ सके कि अचानक मछलियों के किनारे आने की असल वजह क्या है.
नदी के किनारे मछलियों की आने की घटना, अलकनंदा नदी के लाशू गांव में नहीं हुआ बल्कि अलकनंदा नदी किनारे बसे तमाम गांवों में भी ऐसी घटना देखी गई. लेकिन कोई भी आने वाली त्रासदी को समझ नहीं सका. उसके एक से डेढ़ घंटे बाद कुदरत का कहर टूट पड़ा.
क्या है मछलियों का लेटरल लाइन
लेटरल लाइन, मछलियों का रास्ता होता है. जो बहाव के अनुसार मछलियों द्वारा बनाया गया होता है. मछलियों की लेटरल लाइन बेहद संवेदनशील होती हैं. मछलियां नदी के भीतर इसी लेटरल लाइन के जरिए अपना संतुलन रखती हैं. मछलियां साफ-सुथरी पानी में रहती हैं, लेकिन जब पानी का बहाव बदलता है या फिर पानी मटमैला हो जाता है तो उस दौरान मछलियां किनारों की ओर भागने लगती हैं. बीते दिन रैणी गांव में आई त्रासदी से पहले भी यहीं हुआ. जब पानी का बहाव बदला तो मछलियों की लेटरल लाइन टूट गई, और मछलियां नदी के किनारों की ओर भागने लगी.
साल 2013 में भी मिले थे संकेत.साल 2013 में भी मिले थे संकेत.
माना जाता है कि एवलॉन्च, लैंडस्लाइड और भूकंप जैसी आने वाली आपदा से पहले मछलियों के साथ ही अन्य जीव-जंतुओं को इसका पूर्वानुमान हो जाता है. हालांकि, चमोली में आई आपदा से पहले जहां मछलियों अलकनंदा नदी के किनारे भागने लगी थी तो वहीं, साल 2013 में केदारघाटी में आई भीषण आपदा के दौरान भी कुछ ऐसा ही हुआ था. साल 2013 में आई भीषण आपदा के कुछ दिन पहले ही हरिद्वार में एक साथ बहुत अधिक बंदरों का झुंड देखा गया था. हालांकि इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिल पाया था की किन वजहों से ये बंदर आपदा से पहले नीचे की तरफ रुख किए थे.
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लाइव साइंस की रिपोर्ट के अनुसार, आपदा से पहले जीव जंतुओं और मछलियों ने दिए थे संकेत
- साल 1960 में मोरक्को में आए भूकंप से कुछ घंटे पहले हजारों पशु-पक्षियों ने शहर छोड़ दिया था.
- साल 1963 में यूगोस्लाविया में आए भीषण भूकंप से पहले पशु-पक्षियों नहीं बहुत जगह छोड़ दी थी.
- साल 1975 में चीन के हाइचेंग में भूकंप आने से एक महीना पहले ही सांप अपने बिल से बाहर निकलने लगे थे.
- साल 2009 में इटली में भूकंप आने से पहले तालाब में मौजूद मेढ़कों ने तालाब छोड़, तालाब के किनारे आ गए थे.
- साल 2010 में चिली में आए भूकंप आपदा से पहले दर्जनों मछलियां समुद्र तट पर आ गई थी.
साल 2011 में जापान के तोहोकू में भूकंप आने से पहले उत्तर पूर्वी तट पर मछलियां आ गई थी.बता दें कि ईटीवी भारत इस दावे की पुष्टि नहीं करता है, ऐसा लोगों द्वारा कहा जा रहा है, जो शोध का विषय है.