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बजट विश्लेषण: बैंकों की सेहत दुरुस्त करने के लिए सरकार ने दिए 70 हजार करोड़, जानकारों ने बताया नाकाफी

सरकारी बैंकों को घाटे से उभारने के लिए न सिर्फ वित्तीय सहायत की जरुर है, बल्कि कुछ ऐसे ठोस नियम भी बनाने पड़ेंगे, जिससे बैंकों के बढ़ते एनपीए को घटाया जा सके और लोन की रिकवरी की जा सके. बिना रिकवरी के बैंक सक्षम नहीं हो सकते है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण
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Published : Jul 5, 2019, 9:19 PM IST

देहरादून: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को मोदी सरकार-2 का पहला बजट संसद में पेश किया. बजट में अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए और ऋण को प्रोत्साहन देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 70,000 करोड़ रुपए की पूंजी दी जाएगी. केंद्र सरकार की इस वित्तीय सहायता को बैंक विशेषज्ञयों ने नाकाफी बताया है.

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उत्तराखंड बैंक इंप्लाइज यूनियन के महामंत्री जगमोहन मेंहदीरत्ता ने कहा कि 1969 में जब सरकारी बैंकों का नेशनलाइजेशन हुआ था, तब से बैंक सरकार को मोटा मुनाफा कमा कर देते रहे, लेकिन पिछले कुछ सालों से बैक लगातार घाटे में जा रहे है. उसका सबसे बड़ा कारण बैंकों का बढ़ता एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) है. इन वजहों से बैंकों लोन देना बंद कर दिया था. जिस वजह से बैंकों की कैपिटल कम हो रही थी. ये खुशी की बात है कि केंद्र सरकार ने सरकारी बैंकों को घाटे से उभारने के लिए 70 हजार करोड़ दिए.

बजट विश्लेषण

सरकारी बैंकों को घाटे से उभारने के लिए न सिर्फ वित्तीय सहायता की जरुरत है, बल्कि कुछ ऐसे ठोस नियम भी बनाने पड़ेंगे, जिससे बैंकों के बढ़ते एनपीए को घटाया जा सके और लोन की रिकवरी की जा सके. बैंक बिना रिकवरी के सक्षम नहीं हो सकते हैं.

पढ़ें- चारधाम यात्रा: हर दिन बन रहा रिकॉर्ड, तीर्थयात्रियों का आंकड़ा 23 लाख के पार

वहीं, एक अन्य विशेषज्ञ के मुताबिक, सरकार बैंकों को घाटे से उभारने के लिए जो 70 हजार करोड़ रुपए की मदद दी गई है. जो नाकाफी है. इस रकम से बैकों को भला तो होगा लेकिन उद्धार नहीं हो पाएगा. बैंकों के उद्धार के लिए 2 लाख करोड़ रुपए की जरुरत है.

बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े जानकारों का यह भी कहना है कि साल में एक करोड़ से अधिक रुपए की बैंक निकासी के ऊपर 2 प्रतिशत टीडीएस लगाना भी ग्राहकों को बड़ा झटका देने के बराबर है. 5 करोड़ से ऊपर सालाना आय वालों को अवसाद फीस दी और 2 से 5 करोड़ रुपए की सालाना आय वालों पर 3 फ़ीसदी सरचार्ज का फैसला भी उचित नहीं लगता है.

देहरादून: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को मोदी सरकार-2 का पहला बजट संसद में पेश किया. बजट में अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए और ऋण को प्रोत्साहन देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 70,000 करोड़ रुपए की पूंजी दी जाएगी. केंद्र सरकार की इस वित्तीय सहायता को बैंक विशेषज्ञयों ने नाकाफी बताया है.

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उत्तराखंड बैंक इंप्लाइज यूनियन के महामंत्री जगमोहन मेंहदीरत्ता ने कहा कि 1969 में जब सरकारी बैंकों का नेशनलाइजेशन हुआ था, तब से बैंक सरकार को मोटा मुनाफा कमा कर देते रहे, लेकिन पिछले कुछ सालों से बैक लगातार घाटे में जा रहे है. उसका सबसे बड़ा कारण बैंकों का बढ़ता एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) है. इन वजहों से बैंकों लोन देना बंद कर दिया था. जिस वजह से बैंकों की कैपिटल कम हो रही थी. ये खुशी की बात है कि केंद्र सरकार ने सरकारी बैंकों को घाटे से उभारने के लिए 70 हजार करोड़ दिए.

बजट विश्लेषण

सरकारी बैंकों को घाटे से उभारने के लिए न सिर्फ वित्तीय सहायता की जरुरत है, बल्कि कुछ ऐसे ठोस नियम भी बनाने पड़ेंगे, जिससे बैंकों के बढ़ते एनपीए को घटाया जा सके और लोन की रिकवरी की जा सके. बैंक बिना रिकवरी के सक्षम नहीं हो सकते हैं.

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वहीं, एक अन्य विशेषज्ञ के मुताबिक, सरकार बैंकों को घाटे से उभारने के लिए जो 70 हजार करोड़ रुपए की मदद दी गई है. जो नाकाफी है. इस रकम से बैकों को भला तो होगा लेकिन उद्धार नहीं हो पाएगा. बैंकों के उद्धार के लिए 2 लाख करोड़ रुपए की जरुरत है.

बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े जानकारों का यह भी कहना है कि साल में एक करोड़ से अधिक रुपए की बैंक निकासी के ऊपर 2 प्रतिशत टीडीएस लगाना भी ग्राहकों को बड़ा झटका देने के बराबर है. 5 करोड़ से ऊपर सालाना आय वालों को अवसाद फीस दी और 2 से 5 करोड़ रुपए की सालाना आय वालों पर 3 फ़ीसदी सरचार्ज का फैसला भी उचित नहीं लगता है.

Intro:pls नोट-डेक्स-इस spl स्टोरी के विसुअल और one to one को live u 08 से भेजा गया हैं। file name-"buget special bankers"




summary_ बजट में बैंकों को मिलने वाले 70 हज़ार करोड़ के वित्तीय सहायता को बैंकरों ने माना नाकाफी, बैंकों को भरने के लिए इससे बेहतर कदम उठाने की जरूरत, बड़े कर्ज वसूली पर सख्त कदम उठाने की अपील

देश के आम बजट में सरकारी बैंकिंग क्षेत्र को घाटे से उबारने के लिए केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाले 70 हजार करोड़ के आर्थिक मदद को बैंक विशेषज्ञों ने नाकाफी बताया है बैंकों का मानना है कि घाटे से उबारने के लिए बैंकों को कम से कम दो लाख करोड़ की आरती सहायता मिलना जरूरी है इसके साथ ही बड़े कर्ज़दारों से ऋण वसूली के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत है ताकि देश की रीड की हड्डी बैंकिंग व्यवस्था पटरी पर लाई जा सके।


Body:वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा राष्ट्रीय कृत कई बैंकों को घाटे से उबारने के लिए दिए जाने वाले आर्थिक मदद को लेकर बैंक विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही कुछ हद तक बैंकों को इस मदद से राहत जरूर मिलेगी लेकिन इससे पूर्ण रूप से राहत मिलने की उम्मीद बहुत कम है।
बैंक विशेषज्ञों का मानना है कि देश में प्राइवेट बैंकों के ऊपर किसी तरह की ऋण बांटने से लेकर अन्य सरकारी व्यवस्थाओं को लेकर सरकार द्वारा कोई ठोस जिम्मेदारी नहीं तय की गई है ऐसे में निजी सेक्टर से जुड़े बैंक कई तरह की मनमानी तरीके से क्रियान्वित हो रहे हैं।


Conclusion:वही बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े जानकारों का यह भी कहना है कि साल में एक करोड़ से अधिक रुपए की बैंक निकासी के ऊपर 2% टीडीएस लगाना भी ग्राहकों को बड़ा झटका देने के बराबर है। 5 करोड़ से ऊपर सालाना आय वालों को अवसाद फीस दी और 2 से 5 करोड़ रुपए की सालाना आय वालों पर 3 फ़ीसदी सर चार्ज का फैसला भी उचित नहीं लगता है।
ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते हुए केंद्रीय बजट पर बैंकिंग क्षेत्र को उभारने के लिए वित्तीय मदद सहित अन्य बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े विषय पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए बैंक विशेषज्ञों ने किस तरह से इस बजट पर अपनी राय रखी जरा सुनिए।

one to one

paramjeet singh lamba


pls note_input_महोदय, यह किरण कांत शर्मा का मोजो मोबाइल हैं,जिसे मैं (परमजीत सिंह )इसे इस्तेमाल कर रहा हूं। मेरा मोजो मोबाइल खराब हो गया हैं, ऐसे मेरी स्टोरी इस मोजो से भेजी जा रही हैं.. ID 7200628





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