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डर, तनाव और अकेलेपन में दफन संवेदनाएं, अपने ही छोड़ रहे साथ - Uttarakhand Corona News

दून मेडिकल कॉलेज में ही ऐसे करीब 5 से 6 केस सामने आ चुके हैं, जहां मरीज को अस्पताल में छोड़ने के बाद परिजन उन्हें भूल गए.

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डर, तनाव और अकेलेपन में दफन हो रही संवेदनाएं
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Published : May 6, 2021, 3:19 PM IST

देहरादून: कोरोना संक्रमण जैसी महामारी के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बेहतर हालातों की जरूरत तो है ही साथ ही इस दौरान अपनों का साथ भी बेहद जरूरी है. इस बीमारी में न केवल अपने साथ छोड़ रहे हैं, बल्कि समाज भी सहयोग करने में कुछ हिचकिचा रहा है. अस्पतालों में आ रहे मामलों को देख कर तो कुछ ऐसा ही लग रहा है, जहां महामारी के डर से लोग अपनों को ही छोड़ रहे हैं. ऐसे हालातों में स्वास्थ्य कर्मचारी ही देवदूत बनकर इनकी सेवा कर रहे हैं.

देहरादून के सरकारी अस्पतालों में ऐसे कुछ मरीज समाज की नकारात्मक सोच को जाहिर कर रहे हैं, जिन्हें उनके अपनों ने किसी तरह अस्पताल तो पहुंचा दिया है, लेकिन इसके बाद वे अपने मरीज की खैर-खबर लेने कभी अस्पताल नहीं पहुंचे. दून मेडिकल कॉलेज में ही ऐसे 5 से 6 केस सामने आ चुके हैं, जहां मरीज को अस्पताल में छोड़ने के बाद परिजन उन्हें भूल गए.

पढ़ें- 70 साल में मिली स्वास्थ्य संरचना की विरासत पर्याप्त नहीं, राजनीति न करें : कोरोना पर सुप्रीम कोर्ट

एक मामला तो ऐसा भी है कि जहां मरीज की मौत होने के बाद शव लेने तक कोई नहीं पहुंचा. जानकार इसे कोविड-19 के डर के रूप में भी देख रहे हैं. कुछ लोगों का मानना है कि ऐसा परिवार के दूसरे सदस्यों के भी बीमार होने के और सक्षम न होने के कारण भी हो सकता है.

पढ़ें- कोरोनाकाल में संवेदनहीन हुए सांसद! मिन्नत का भी असर नहीं

बरहाल, दून अस्पताल में कुछ समय पहले भर्ती हुआ लड्डू सरकार अब पहले से ठीक महसूस कर रहा है. चिकित्सकों की दिन-रात मेहनत के बाद उसके स्वास्थ्य में सुधार भी है, लेकिन जिस व्यक्ति ने उसे भर्ती कराया न तो उसकी तरफ से उसकी पिछले कई दिनों से खैर-खबर ली गई और न ही उसके परिजनों का कोई पता है. इसी तरह कोलकाता निवासी एक व्यक्ति जिसे दून अस्पताल में भर्ती कराया गया उसकी मौत के बाद कोई भी उसकी जानकारी लेने नहीं आया. यहां तक की शव को लेकर भी कोई पूछताछ नहीं की गई.

पढ़ें- रामनगर: 4 कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत से क्षेत्र में दहशत

यह हालत तब हैं जब महामारी में किसी भी व्यक्ति को अपनों की सबसे ज्यादा जरूरत है. हालांकि दून मेडिकल कॉलेज के पीआरओ महेंद्र भंडारी कहते हैं कि ऐसे लोगों की देखरेख के लिए भी अस्पताल पूरी तरह तैयार है. उनके स्वास्थ्य के पूरी तरह से बेहतर हो जाने तक अस्पताल में हर तरह की व्यवस्था ऐसे लोगों के लिए की गई है.

पढ़ें- ईटीवी भारत रियलिटी चेक : सांसद ने देर रात सुनी फरियाद, पेश की नजीर


पिछले दिनों कुछ मामले आपातकालीन सेवा देने वाली एंबुलेंस के सामने भी आए हैं. जहां कोविड-19 मरीज की सहायता करने वाला घरों में कोई नहीं था. आस-पड़ोस के लोग भी ऐसे मरीजों की मदद करने में हिचकिचाहट करते नजर आए. जिसके बाद एंबुलेस चालकों की मदद से ही ऐसे मरीजों को अस्पताल पहुंचाया जाता रहा है.

देहरादून: कोरोना संक्रमण जैसी महामारी के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बेहतर हालातों की जरूरत तो है ही साथ ही इस दौरान अपनों का साथ भी बेहद जरूरी है. इस बीमारी में न केवल अपने साथ छोड़ रहे हैं, बल्कि समाज भी सहयोग करने में कुछ हिचकिचा रहा है. अस्पतालों में आ रहे मामलों को देख कर तो कुछ ऐसा ही लग रहा है, जहां महामारी के डर से लोग अपनों को ही छोड़ रहे हैं. ऐसे हालातों में स्वास्थ्य कर्मचारी ही देवदूत बनकर इनकी सेवा कर रहे हैं.

देहरादून के सरकारी अस्पतालों में ऐसे कुछ मरीज समाज की नकारात्मक सोच को जाहिर कर रहे हैं, जिन्हें उनके अपनों ने किसी तरह अस्पताल तो पहुंचा दिया है, लेकिन इसके बाद वे अपने मरीज की खैर-खबर लेने कभी अस्पताल नहीं पहुंचे. दून मेडिकल कॉलेज में ही ऐसे 5 से 6 केस सामने आ चुके हैं, जहां मरीज को अस्पताल में छोड़ने के बाद परिजन उन्हें भूल गए.

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एक मामला तो ऐसा भी है कि जहां मरीज की मौत होने के बाद शव लेने तक कोई नहीं पहुंचा. जानकार इसे कोविड-19 के डर के रूप में भी देख रहे हैं. कुछ लोगों का मानना है कि ऐसा परिवार के दूसरे सदस्यों के भी बीमार होने के और सक्षम न होने के कारण भी हो सकता है.

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बरहाल, दून अस्पताल में कुछ समय पहले भर्ती हुआ लड्डू सरकार अब पहले से ठीक महसूस कर रहा है. चिकित्सकों की दिन-रात मेहनत के बाद उसके स्वास्थ्य में सुधार भी है, लेकिन जिस व्यक्ति ने उसे भर्ती कराया न तो उसकी तरफ से उसकी पिछले कई दिनों से खैर-खबर ली गई और न ही उसके परिजनों का कोई पता है. इसी तरह कोलकाता निवासी एक व्यक्ति जिसे दून अस्पताल में भर्ती कराया गया उसकी मौत के बाद कोई भी उसकी जानकारी लेने नहीं आया. यहां तक की शव को लेकर भी कोई पूछताछ नहीं की गई.

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यह हालत तब हैं जब महामारी में किसी भी व्यक्ति को अपनों की सबसे ज्यादा जरूरत है. हालांकि दून मेडिकल कॉलेज के पीआरओ महेंद्र भंडारी कहते हैं कि ऐसे लोगों की देखरेख के लिए भी अस्पताल पूरी तरह तैयार है. उनके स्वास्थ्य के पूरी तरह से बेहतर हो जाने तक अस्पताल में हर तरह की व्यवस्था ऐसे लोगों के लिए की गई है.

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पिछले दिनों कुछ मामले आपातकालीन सेवा देने वाली एंबुलेंस के सामने भी आए हैं. जहां कोविड-19 मरीज की सहायता करने वाला घरों में कोई नहीं था. आस-पड़ोस के लोग भी ऐसे मरीजों की मदद करने में हिचकिचाहट करते नजर आए. जिसके बाद एंबुलेस चालकों की मदद से ही ऐसे मरीजों को अस्पताल पहुंचाया जाता रहा है.

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