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विधायकों से कोविड-19 के लिए पैसा मांगने को हो रहीं मिन्नतें, जानिए पूरा माजरा

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Published : May 16, 2020, 9:09 AM IST

Updated : May 16, 2020, 12:38 PM IST

कोविड-19 के संकट में आर्थिक मदद देने को तमाम संगठन और निजी संस्थाएं सामने आ रही हैं. ऐसे में उत्तराखंड सरकार ने भी कैबिनेट में फैसला लेकर विधायकों का 30% वेतन कोविड-19 के लिए दिए जाने का निर्णय लिया है. लेकिन कैबिनेट की हरी झंडी के बावजूद विधानसभा को विधायकों की मिन्नतें करने को मजबूर होना पड़ रहा है.

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विधायक से कैसे निकलेंगे पैसे

देहरादून: दुनिया के साथ भारत पर भी कोविड19 का संकट आया तो दानी लोगों ने मदद के लिए अपने खजाने खोल दिए. मदद का जज्बा ऐसा कि किसी ने अपनी पेंशन दान की तो किसी ने बुढ़ापे के लिए रखी जमा पूंजी. लेकिन इस संकट के समय भी उत्तराखंड के विधायकों का रवैया हैरान करने वाला है. क्या है कारण जानिए स्पेशल रिपोर्ट में...

विधायकों से कोविड-19 के लिए पैसा मांगने को हो रहीं मिन्नतें.
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुवाई में मंत्रिमंडल ने फैसला लिया कि विधायक अपनी 30% सैलरी कोविड-19 के लिए बनाए गए फंड में जमा करेंगे. लेकिन कैबिनेट निर्णय के कई दिनों बाद भी विधायकों को यही नहीं पता कि उन्हें अपना वेतन कैसे और किस नियम के तहत जमा करवाना है. हैरानी की बात यह है कि विधायक अभी विधानसभा के आग्रह या कहें कि मिन्नतों का ही इंतजार कर रहे हैं. भाजपा विधायक दिलीप रावत के मुताबिक उन्हें अपने वेतन को कोविड-19 फंड के रूप में देने की प्रक्रिया की ही जानकारी नहीं है. ऐसे भी विधानसभा की तरफ से पत्र मिलने के बाद वह इस काम को कर पाएंगे.

ये भी पढ़ें: आर्थिक पैकेज: तीसरी किश्त में कृषि सेक्टर पर फोकस, CM बोले- किसानों होंगे खुशहाल


कैबिनेट के फैसले के बावजूद क्या हैं अड़चनें

भले जी कैबिनेट ने विधायकों के 30% वेतन को काटे जाने के लिए निर्णय ले लिया हो लेकिन हकीकत यह है कि कैबिनेट विधायकों को ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती. यानी विधायकों के वेतन पर अनिवार्य रूप में कैबिनेट फैसला नहीं ले सकती है. विधायकों का वेतन विधानसभा के स्तर पर जारी किया जाता है. इसीलिए विधायकों की सहमति के बाद ही विधानसभा वेतन की कटौती पर फैसला ले सकती है. विधानसभा में इसके लिए बकायदा नियम भी बनाया गया है जिसके आधार पर ही वेतन को लेकर कोई भी फैसला होता है.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में भी 12 घंटे काम करेंगे श्रमिक, मिलेगा ओवरटाइम

त्रिवेंद्र कैबिनेट का यह निर्णय इसलिए भी असरदार नहीं है क्योंकि कोई भी विधायक इस फैसले को मानने से इनकार कर सकता है. विपक्षी दल कांग्रेस के विधायक भी इससे असहमति जता सकते हैं. हालांकि महामारी से लड़ने के लिए शायद ही कोई विधायक अपने वेतन का 30% देने से मना करे, लेकिन सरकार अध्यादेश लाती तो सभी विधायकों के लिए इसे फौरन मानना बाध्यकारी हो जाता. कैबिनेट फैसले के इतने दिनों बाद भी विधानसभा के विधायकों की सहमति का इंतजार नहीं करना पड़ता. विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल कहते हैं कि अध्यादेश सरकार लाती तो यह विधायकों को मानना बाध्यकारी होता. लेकिन फिलहाल विधानसभा की तरफ से विधायकों को मेल भेजकर वेतन कटौती की सहमति लेने का प्रयास किया जा रहा है.

ये भी पढ़ें: 'कड़कनाथ' दूर करेगा 'कड़की', प्रवासियों के लिए प्लान तैयार

प्रदेश में जिस कैबिनेट ने वेतन का 30% 1 साल तक कोविड-19 के लिए जमा करने का निर्णय लिया उसी कैबिनेट के कई मंत्रियों ने अब तक अपनी सहमति नहीं दी है। जबकि 70 विधायकों में से 90% से भी ज्यादा विधायक ऐसे हैं जिन्होंने लिखित रूप से विधानसभा को वेतन काटे जाने पर हामी नहीं भरी है।। उत्तराखंड राज्य विधानसभा सदस्यों की उपलब्धियां एवं पेंशन अधिनियम 2008 की धारा 24 के तहत विधायकों के वेतन को लेकर नियम तय है।

देहरादून: दुनिया के साथ भारत पर भी कोविड19 का संकट आया तो दानी लोगों ने मदद के लिए अपने खजाने खोल दिए. मदद का जज्बा ऐसा कि किसी ने अपनी पेंशन दान की तो किसी ने बुढ़ापे के लिए रखी जमा पूंजी. लेकिन इस संकट के समय भी उत्तराखंड के विधायकों का रवैया हैरान करने वाला है. क्या है कारण जानिए स्पेशल रिपोर्ट में...

विधायकों से कोविड-19 के लिए पैसा मांगने को हो रहीं मिन्नतें.
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुवाई में मंत्रिमंडल ने फैसला लिया कि विधायक अपनी 30% सैलरी कोविड-19 के लिए बनाए गए फंड में जमा करेंगे. लेकिन कैबिनेट निर्णय के कई दिनों बाद भी विधायकों को यही नहीं पता कि उन्हें अपना वेतन कैसे और किस नियम के तहत जमा करवाना है. हैरानी की बात यह है कि विधायक अभी विधानसभा के आग्रह या कहें कि मिन्नतों का ही इंतजार कर रहे हैं. भाजपा विधायक दिलीप रावत के मुताबिक उन्हें अपने वेतन को कोविड-19 फंड के रूप में देने की प्रक्रिया की ही जानकारी नहीं है. ऐसे भी विधानसभा की तरफ से पत्र मिलने के बाद वह इस काम को कर पाएंगे.

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कैबिनेट के फैसले के बावजूद क्या हैं अड़चनें

भले जी कैबिनेट ने विधायकों के 30% वेतन को काटे जाने के लिए निर्णय ले लिया हो लेकिन हकीकत यह है कि कैबिनेट विधायकों को ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती. यानी विधायकों के वेतन पर अनिवार्य रूप में कैबिनेट फैसला नहीं ले सकती है. विधायकों का वेतन विधानसभा के स्तर पर जारी किया जाता है. इसीलिए विधायकों की सहमति के बाद ही विधानसभा वेतन की कटौती पर फैसला ले सकती है. विधानसभा में इसके लिए बकायदा नियम भी बनाया गया है जिसके आधार पर ही वेतन को लेकर कोई भी फैसला होता है.

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त्रिवेंद्र कैबिनेट का यह निर्णय इसलिए भी असरदार नहीं है क्योंकि कोई भी विधायक इस फैसले को मानने से इनकार कर सकता है. विपक्षी दल कांग्रेस के विधायक भी इससे असहमति जता सकते हैं. हालांकि महामारी से लड़ने के लिए शायद ही कोई विधायक अपने वेतन का 30% देने से मना करे, लेकिन सरकार अध्यादेश लाती तो सभी विधायकों के लिए इसे फौरन मानना बाध्यकारी हो जाता. कैबिनेट फैसले के इतने दिनों बाद भी विधानसभा के विधायकों की सहमति का इंतजार नहीं करना पड़ता. विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल कहते हैं कि अध्यादेश सरकार लाती तो यह विधायकों को मानना बाध्यकारी होता. लेकिन फिलहाल विधानसभा की तरफ से विधायकों को मेल भेजकर वेतन कटौती की सहमति लेने का प्रयास किया जा रहा है.

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प्रदेश में जिस कैबिनेट ने वेतन का 30% 1 साल तक कोविड-19 के लिए जमा करने का निर्णय लिया उसी कैबिनेट के कई मंत्रियों ने अब तक अपनी सहमति नहीं दी है। जबकि 70 विधायकों में से 90% से भी ज्यादा विधायक ऐसे हैं जिन्होंने लिखित रूप से विधानसभा को वेतन काटे जाने पर हामी नहीं भरी है।। उत्तराखंड राज्य विधानसभा सदस्यों की उपलब्धियां एवं पेंशन अधिनियम 2008 की धारा 24 के तहत विधायकों के वेतन को लेकर नियम तय है।

Last Updated : May 16, 2020, 12:38 PM IST
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