देहरादून: केरल में हुई गर्भवती हथिनी की मौत को लेकर देश दुनिया के बुद्धिजीवी इंसानी क्रूरता को कोस रहे हैं. कहीं इंसाफ दिलाने की बात हो रही है तो कहीं इंसान में खत्म होती इंसानियत की चर्चा हो रही है. वहीं, बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां भी गजराज के खून से जंगल लाल होते रहे हैं.
उत्तराखंड में हाथियों का जंगलों में विचरण और बेफिक्र स्वभाव उनके जीवन के लिए खतरा बन गया है. लॉकडाउन के दौरान इंसानी गतिविधियों ना होने से हाथी अब और भी मदमस्त अंदाज में एलिफेंट कॉरिडोर में बेफिक्र घूमते दिखाई दे रहे हैं, लेकिन यही बात अब इन हाथियों की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है. बात अगर राजाजी नेशनल पार्क की करें तो यहां एलिफेंट कॉरिडोर में रेलवे ट्रैक इनकी जान के लिए खतरा बना हुआ है.
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दरअसल, 350 से ज्यादा हाथियों वाले राजाजी पार्क में अक्सर हाथियों का झुंड रेलवे ट्रैक से गुजरता है और कई बार हादसे का शिकार हो जाते हैं. वहीं, इस बार हाथियों के लिए पहले से ज्यादा खतरा बढ़ गया है. क्योंकि पिछले 3 महीनों से लॉकडाउन के चलते रेल सेवा बंद है. इससे पहले भी रेलवे ट्रैक पर काम होने के कारण देहरादून-हरिद्वार ट्रैक पर ट्रेन का संचालन बंद था. कुल मिलाकर 6 महीनों से इस ट्रैक पर ट्रेनों का परिचालन बंद हैं. ऐसे में हाथियों के झुंड इन रेलवे ट्रैक पर बेफिक्र घूम रहे हैं. वहीं, अब अब अचानक रेलमार्ग खोले जाने पर हाथियों के सामान्य रूप से रेलवे ट्रैक पर घूमने और सावधान न होने के चलते दुर्घटना का खतरा बढ़ सकता है.
उत्तराखंड में हाथियों की मौत के आंकड़ों पर एक नजर-
- राज्य में पिछले 20 सालों में 400 से ज्यादा हाथियों की मौत हो चुकी है.
- इसमें 150 से ज्यादा हाथियों की मौत परिस्थियों में हुई है.
- 16 हाथियों की मौत दर्दनाक रेल हादसों की वजह से हुई है.
- साल 2019 में भी 2 हाथियों की मौत ट्रेन की चपेट में आने से हुई थी.
भले ही रेल हादसों में हाथियों की मौत इंसानों की भूल से नहीं हुई हो, लेकिन जंगलों में इंसानों की दखल से ये हाथी मारे जा रहे हैं. ऐसा राजाजी निदेशक अमित वर्मा भी मान रहे हैं कि रेलवे ट्रैक की वजह से हाथियों के लिए जान का खतरा बढ़ गया है. यहां बात केवल राजाजी के हाथियों को बचाने की नहीं, बल्कि जहां भी जंगलों के बीच से रेलवे ट्रैक स्थापित हैं, वहां विशेष ध्यान देने की जरुरत है. ताकि, अकाल मृत्यु को प्राप्त हो रहे इन गजराजों को बचाया जा सके.