देहरादून: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर राजनीतिक दलों ने चुनावी जीत के समीकरणों पर काम शुरू कर दिया है. यूं तो प्रदेश में चौथी विधानसभा के लिए हुए 2017 के चुनाव कांग्रेस के लिहाज से बेहद खराब साबित हुए, लेकिन अगले साल होने वाले चुनाव में भी बीजेपी कैंडिडेट इतनी आसानी से ही जीत हासिल कर पाएंगे, यह मुश्किल दिखाई दे रहा है. प्रदेश में राजनीतिक समीकरणों पर कैसे हैं हालात? समझिए
उत्तराखंड में 70 विधानसभाओं पर होने वाले चुनाव हमेशा ही बेहद दिलचस्प रहते हैं. साल 2017 के चुनाव को छोड़ दिया जाए तो 2002, 2007 और 2012 के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस काफी करीबी मुकाबले में दिखाई दिए थे. हालांकि, 2017 में प्रचंड बहुमत के दौरान भाजपाई उम्मीदवारों ने काफी आसान और बड़ी जीत प्रदेश में हासिल की लेकिन आने वाले चुनाव भाजपाइयों के लिए इतने आसान नहीं होने वाले हैं.
राज्य में भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी बेहद ज्यादा है. ऐसे कई मुद्दे हैं, जिस पर चुनाव के दौरान भाजपा के उम्मीदवारों को जनता के सामने जवाब देना काफी मुश्किल होगा. महंगाई, रोजगार और किसानों की नाराजगी से लेकर पिछले 5 सालों में 3 मुख्यमंत्री बदलने से भी भाजपा के खिलाफ जनता का आक्रोश काफी ज्यादा है. राज्य में मौजूदा कैबिनेट के सदस्यों की सीटों का ही आकलन करें तो कई दिग्गजों को चुनाव जीतने के लिए भारी पसीना बहाना पड़ेगा. भाजपा सरकार की कैबिनेट को लेकर जानिए क्या है राजनीतिक समीकरण.
खटीमा विधानसभा सीट: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से शुरुआत करें तो खटीमा से जीत कर आने वाले इस युवा विधायक को साल 2017 में 29,383 वोट मिले थे, जबकि इनके प्रतिद्वंदी जिन्हें हाल ही में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है. ऐसे युवा नेता भुवन कापड़ी 26,734 वोट पाने में कामयाब रहे. इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के रमेश राणा ने 17,770 वोट पाए. जाहिर है इस सीट पर पुष्कर धामी की जीत को आसान करने में बीएसपी ने अहम रोल निभाया और मोदी की प्रचंड लहर में भी मात्र 2600 वोटों से ही करीब धामी जीत सके. यानी 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा.
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नरेंद्र नगर विधानसभा सीट: टिहरी जनपद की नरेंद्र नगर विधानसभा से सुबोध उनियाल को 24,104 वोट मिले, जबकि निर्दलीय ओम गोपाल ने 19,132 वोट बटोरे. कांग्रेस के हिमांशु बिज्लवान 4,328 वोट ही पा सके. इससे पहले ओम गोपाल रावत सुबोध उनियाल को इस विधानसभा से चुनाव हरा चुके हैं. यानी ओम गोपाल ने अगर कांग्रेस का दामन थामा तो सुबोध उनियाल का जीतना मुश्किल हो जाएगा.
मसूरी विधानसभा सीट: मसूरी विधानसभा सीट से गणेश जोशी को मोदी लहर में 41,092 वोट मिले, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी गोदावरी 29,084 वोट पाने में सफल रही. यह वह सीट है जहां गणेश जोशी ने अपना दबदबा बरकरार रखा है. गणेश जोशी इस सीट को 2022 में फिर जीत पाएंगे, इसकी उम्मीद लगाई जा रही है.
हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा: हरिद्वार ग्रामीण से यतिस्वरानंद को 44,872 वोट मिले जबकि, उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस के हरीश रावत 32,645 वोट पा सके. मोदी लहर में हरीश रावत जैसे नेताओं को भी हार का मुंह देखना पड़ा. इस सीट पर मुकर्रम ने बहुजन समाजवादी पार्टी के टिकट पर 18,371 वोट पाए. इस तरह बहुजन समाजवादी पार्टी इस सीट पर कांग्रेस के लिए एक बड़ी मुश्किल है और कांग्रेस प्रत्याशी की हार की वजह भी बनती है. बीएसपी और मुस्लिम उम्मीदवार इसी तरह 2022 में भी वोट काटते हैं, तो भाजपा के अतिक्रमण के लिए यहां जीत आसान हो जाएगी.
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श्रीनगर विधानसभा सीट: श्रीनगर से विधायक धन सिंह रावत को 30,816 वोट मिले, जबकि गणेश गोदियाल जो कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं उनको 22,118 वोट मिले. ऐसे में श्रीनगर सीट भी भाजपा के लिए सबसे मुश्किल भरी है. यानी इस सीट पर मौजूदा समीकरण और भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी धन सिंह रावत की हार की वजह बन सकती है.
चौबट्टाखाल विधानसभा सीट: चौबट्टाखाल से भाजपा विधायक सतपाल महाराज को 20,921 वोट मिले थे. राजपाल बिष्ट ने 13,567 वोट पाए. राजपाल बिष्ट युवा चेहरा हैं, जबकि सतपाल महाराज प्रदेश में राजनीतिक रूप से एक बड़ा चेहरा हैं. लेकिन इसके बावजूद क्षेत्र में उनके खिलाफ लोगों की नाराजगी और भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल उनके लिए भी चुनाव में जीतना मुश्किल कर सकता है.
कोटद्वार विधानसभा सीट: कोटद्वार से हरक सिंह रावत ने 39,859 वोट पाए जबकि सुरेंद्र सिंह नेगी ने 28,541 दोनों ही नेता अनुभवी और सधे हुए राजनीतिज्ञ माने जाते हैं. हालांकि, हरक सिंह रावत का हर बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड है लेकिन इस बार राजनीतिक समीकरण विधानसभा में उनके खिलाफ दिखाई दे रहे हैं. इस बार हरक सिंह रावत के लिए जीतना बहुत मुश्किल होगा.
डीडीहाट विधानसभा सीट: डीडीहाट से भाजपा विधायक बिशन सिंह चुफाल एक वरिष्ठ नेता हैं और उनको 2017 में 16,875 वोट मिले थे, जबकि निर्दलीय रूप से किशन भंडारी ने 14,667 वोट झटके थे. कांग्रेस तीसरे नंबर पर 14,275 वोट पा सकी थी. मोदी लहर में करीब 2200 वोटों से ही बिशन सिंह चुफाल जीत सके, यानी इस बार उनके लिए चुनाव इतना आसान नहीं होगा और क्षेत्र में सरकार के खिलाफ रोजगार और महंगाई जैसे मुद्दे उनकी जीत का रोड़ा बनेंगे.
सोमेश्वर विधासभा सीट: सोमेश्वर से विधायक रेखा आर्य ने 2017 में 21,780 वोट पाए, जबकि कांग्रेस के राजेंद्र बुड़ाकोटी ने 21,070 वोट. मोदी लहर में भी केवल 700 वोटों से ही रेखा आर्य जीतीं थीं. इस बार उनका चुनाव में जीतना बेहद मुश्किल होगा, खासकर तब अगर प्रदीप टम्टा उनके सामने चुनाव मैदान में उतरते हैं.
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कालाढूंगी विधासभा सीट: कालाढूंगी से बंशीधर भगत ने 45,704 वोट 2017 में पाए. उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस के प्रकाश जोशी 24,829 वोट पा सके, जबकि निर्दलीय रूप से महेश शर्मा ने 11,768 वोट पाए. इस सीट पर बंशीधर भगत काफी मजबूत माने जा रहे हैं.
बाजपुर विधानसभा सीट: बाजपुर सीट से यशपाल आर्य ने 54,965 वोट पाए थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी सुनीता टम्टा ने 42,184 वोट झटके थे. इस तरह से भारी अंतर से यशपाल आर्य की जीत हुई थी. वह इस सीट पर 2022 में भी जीत को लेकर काफी आश्वस्त हैं और मजबूत स्थिति में भी है.
गदरपुर विधासभा सीट: गदरपुर सीट से अरविंद पांडे ने मोदी लहर में 41,530 वोट पाए थे और राजेंद्र पाल ने 27,424 वोट पाए थे. इस सीट पर अरविंद पांडे बेहद मजबूत उम्मीदवार हैं. बीएसपी समेत मुस्लिम प्रत्याशी उनकी जीत को आसान करते हैं. हालांकि, इस बार किसानों की नाराजगी भाजपा के लिए कुछ मुश्किल खड़ी कर सकती हैं.
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री समेत कैबिनेट के 12 सदस्य हैं. इन 12 सदस्यों में देखें तो करीब 4 से 5 ऐसे मंत्री हैं, जो बड़ा चेहरा होने के बावजूद 2022 में चुनाव जीतने को लेकर थोड़ा कमजोर दिखाई दे रहे हैं. हालांकि, भाजपा संगठन यह मानता है कि विधायकों को जिताने के लिए संगठन अपने स्तर से बूथ लेवल पर काम कर रहा है और हर हाल में 60 सीटें जीतने के लिए होमवर्क किया जा रहा है.
इस मामले में कांग्रेस का भी अपना तर्क है. कांग्रेस मानती है कि इस बार भाजपा सरकार ने जिस तरह से काम किया और भ्रष्टाचार समेत बेरोजगारी और महंगाई पर जनता के सामने सरकार बेनकाब हुई उससे भाजपा के लिए मुश्किलें बेहद ज्यादा होंगी. इन्हीं मुद्दों के सहारे कांग्रेस सत्ता की सीढ़ी चलेगी जबकि, भाजपा के विधायकों के लिए इस बार यह मुद्दा हार का कारण बन जाएंगे.
इस बार AAP भी चुनावी अखाड़े में: इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी अखाड़े में कूद रही है. ऐसे में आप के प्रत्याशी भी कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशियों के लिए काफी मुश्किल खड़ी कर सकते हैं, क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने प्रदेश की जनता से जो वादे किये हैं, उन वादों के जरिए आम आदमी पार्टी भी अपना दबदबा बना सकती है.