देहरादून: बदरीनाथ की आरती से जुड़ी पांडुलिपियों को संरक्षित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं. उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसेक) इसकी प्रमाणिकता को भी जांचा जा चुका है. ऐसे में अब संस्कृति विभाग को ठाकुर धन सिंह के प्रपौत्र की सहमति का इंतजार है, ताकि बदरीनाथ की आरती को संरक्षित किया जा सके.
बदरीनाथ की आरती से जुड़ी पांडुलिपि को मुख्यमंत्री के निर्देशों के बाद संस्कृति विभाग संरक्षित करने की दिशा में तैयारी कर रहा है. हालांकि पांडुलिपि को खराब होने से बचाने के लिये संस्कृति विभाग द्वारा केमिकल के माध्यम से इसे सुरक्षित किया गया है. लेकिन अभी इसे पूरी तरह संरक्षित करने का काम बाकी है. बता दें कि भगवान बदरी विशाल की आरती को लेकर यह तय हो चुका है कि इसे किसी मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति ने नहीं बल्कि रुद्रप्रयाग के ठाकुर धन सिंह बर्थवाल ने साल 1881 में लिखा था.
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पांडुलिपि के रचयिता ठाकुर धन सिंह के प्रपौत्र महेंद्र सिंह इसे संस्कृति विभाग में सुरक्षित नहीं करवाना चाहते, बल्कि वह इन पांडुलिपियों को मंदिर समिति को देना चाहते हैं. संस्कृति विभाग की निदेशक बीना भट्ट ने जानकारी देते हुए कहा कि उनके द्वारा महेंद्र सिंह से संपर्क किया गया है. उनसे पांडुलिपि के संरक्षण को लेकर सहमति मांगी गई है. लेकिन महेंद्र सिंह इसे मंदिर समिति को देने के पक्ष में हैं.
वहीं पांडुलिपि की प्रमाणिकता स्पष्ट होने के बाद बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष मोहन प्रसाद थपलियाल ने कहा कि कार्बन डेटिंग से तय हो गया है कि पांडुलिपि सही है और यह ठाकुर धन सिंह द्वारा ही लिखी गई है.
पांडुलिपि को लेकर धन सिंह के प्रपौत्र महेंद्र सिंह बताते हैं कि बदरीनाथ की आरती में जिन शब्दों को रखा गया है, वही पांडुलिपि में मौजूद है.
बदरीनाथ विधायक महेंद्र भट्ट बताते हैं कि हाल ही में मुख्यमंत्री के सामने इस पांडुलिपि को ले जाया गया था. जांच के बाद यह तय हो गया कि बदरीनाथ की आरती ठाकुर धन सिंह ने ही लिखी थी. सांस्कृतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण इस पांडुलिपि को लेकर यदि संस्कृति विभाग को सहमति नहीं मिल पाती है तो भविष्य में मंदिर समिति को ही इस पांडुलिपि को संरक्षित करना होगा.