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10 साल पुराने वाहनों को बैन करने से खड़ा होगा संकट, फैसले से पहले सरकार को पढ़नी चाहिए ये रिपोर्ट - उत्तराखंड परिवहन विभाग

लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण को देखते हुए उत्तराखंड सरकार 10 साल पुराने डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का मन बना रही है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि अगर प्रदेश में इन वाहनों पर प्रतिबंध लगता है तो न सिर्फ सरकार को राजस्व का घाटा होगा बल्कि हाजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे.

देहरादून
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Published : Nov 1, 2019, 7:33 PM IST

देहरादन: उत्तराखंड में 10 साल पुराने कमर्शियल डीजल वाहनों पर प्रतिबंध की कवायद तो शुरू की जा रही है, लेकिन इसके पीछे तमाम ऐसे पहलू हैं जो हर किसी के लिए जानने बेहद जरूरी हैं. दरअसल, पर्यावरण संरक्षण के नाम पर उत्तराखंड परिवहन विभाग कमर्शियल वाहनों पर डंडा चलाने की रणनीति तो बना रहा है, लेकिन इस फैसले से कितना और कहां-कहां असर पड़ेगा, यह जानना जरूरी है.

10 साल पुराने डीजल वाहनों पर प्रतिबंधित लगाएगा उत्तराखंड परिवहन विभाग.

करीब 29000 वाहनों के थम जाएंगे पहिए
पूरे उत्तराखंड में 63 ऐसी टैक्सी-मैक्सी यूनियन हैं, जिनके माध्यम से उत्तराखंड का मध्यम वर्ग का व्यक्ति सफर करता है और प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके अलावा छोटे-छोटे पहाड़ी इलाकों से मुख्य मार्ग तक आने वाली कई और भी यूनियन हैं, जो चिह्नित नहीं हैं. जानकारी के अनुसार केवल जनवरी 2019 तक के रजिस्ट्रेशन के आधार पर प्रदेश में कमर्शियल वाहनों की संख्या 39,668 है. जोकि हर साल टैक्स के रूप में सरकार को करोड़ों का राजस्व देते हैं. हर एक वाहन से सीधे तौर पर 5 लोग (वाहन स्वामी, ड्राइवर, मैकेनिक, आरटीओ और बैंक) रोजगार के लिए आश्रित हैं, तो वहीं अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोग रोजाना इन वाहनों से सफर करते हैं.

करोड़ों के राजस्व पर खतरा
सरकार को कमर्शियल वाहनों से मिलने वाले राजस्व पर अगर नजर डाली जाए तो प्रत्येक वाहन हर महीने पैसेंजर टैक्स, फिटनेस टैक्स, स्पीड गवर्नेंस टैक्स, रजिस्ट्रेशन टैक्स (शुरुआत में) सहित तमाम तरह के टैक्स देकर सरकार की जेब भरता है. केवल देहरादून रिस्पना पुल से संचालित होने वाली टैक्सी-मैक्सी यूनियन के 253 वाहन सभी प्रकार के टैक्स मिलाकर हर महीने सरकार को तकरीबन 63 लाख से ज्यादा टैक्स जमा करते हैं. यही नहीं इस तरह के राज्य में 60 से ज्यादा और यूनियन हैं. सरकार को करोड़ों का राजस्व केवल पहाड़ों की लाइफ लाइन कहे जाने वाले 24 घंटो दौड़ते यह वाहन देते हैंं. अब सवाल आता है कि अगर सरकार द्वारा 10 साल पुराने डीजल कमर्शियल वाहनों को प्रतिबंधित किया जाता है तो इसका क्या असर पड़ेगा ?

विकास पर पड़ेगा असर ?
देहरादून रिस्पना पुल से संचालित होने वाली टैक्सी टैक्सी यूनियन के पदाधिकारी प्रमोद नौटियाल का कहना है कि अगर 10 साल पुराने डीजल वाहनों को प्रतिबंधित किया जाता है तो प्रदेश के सभी कमर्शियल वाहनों में से केवल 13 फीसदी वाहन ही शेष बच पाएंगे. अगर उनके यूनियन की बात करें तो रोजाना रिस्पना पुल से डेढ़ सौ गाड़ियां गढ़वाल के अलग-अलग जगहों के लिए निकलती हैं और इतनी ही गढ़वाल के अलग-अलग क्षेत्र से सवारियों को वापस लेकर आती हैं.

पढ़ें- राम मंदिर पर PM मोदी के भाई का बयान, कहा- अब विरोधी भी पक्ष में, जल्द होगा निर्माण

अगर 10 साल पुराने वाहनों को प्रतिबंधित किया जाता है तो देहरादून रिस्पना पुल से संचालित होने वाली 253 गाड़ियों में से केवल 50 गाड़ियां ही शेष बच पाएंगी. उन्होंने बताया कि प्रत्येक गाड़ी न्यूनतम 10 सीटर से लेकर अधिकतम 13 सीटर तक है, तो इस तरह से रोजाना केवल राजधानी देहरादून से 3 से 4 हजार लोग सफर करते हैं. अगर इस सफर में रुकावट आती है तो निश्चित तौर से इसका असर देवभूमि के विकास पर पड़ेगा है.

देहरादन: उत्तराखंड में 10 साल पुराने कमर्शियल डीजल वाहनों पर प्रतिबंध की कवायद तो शुरू की जा रही है, लेकिन इसके पीछे तमाम ऐसे पहलू हैं जो हर किसी के लिए जानने बेहद जरूरी हैं. दरअसल, पर्यावरण संरक्षण के नाम पर उत्तराखंड परिवहन विभाग कमर्शियल वाहनों पर डंडा चलाने की रणनीति तो बना रहा है, लेकिन इस फैसले से कितना और कहां-कहां असर पड़ेगा, यह जानना जरूरी है.

10 साल पुराने डीजल वाहनों पर प्रतिबंधित लगाएगा उत्तराखंड परिवहन विभाग.

करीब 29000 वाहनों के थम जाएंगे पहिए
पूरे उत्तराखंड में 63 ऐसी टैक्सी-मैक्सी यूनियन हैं, जिनके माध्यम से उत्तराखंड का मध्यम वर्ग का व्यक्ति सफर करता है और प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके अलावा छोटे-छोटे पहाड़ी इलाकों से मुख्य मार्ग तक आने वाली कई और भी यूनियन हैं, जो चिह्नित नहीं हैं. जानकारी के अनुसार केवल जनवरी 2019 तक के रजिस्ट्रेशन के आधार पर प्रदेश में कमर्शियल वाहनों की संख्या 39,668 है. जोकि हर साल टैक्स के रूप में सरकार को करोड़ों का राजस्व देते हैं. हर एक वाहन से सीधे तौर पर 5 लोग (वाहन स्वामी, ड्राइवर, मैकेनिक, आरटीओ और बैंक) रोजगार के लिए आश्रित हैं, तो वहीं अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोग रोजाना इन वाहनों से सफर करते हैं.

करोड़ों के राजस्व पर खतरा
सरकार को कमर्शियल वाहनों से मिलने वाले राजस्व पर अगर नजर डाली जाए तो प्रत्येक वाहन हर महीने पैसेंजर टैक्स, फिटनेस टैक्स, स्पीड गवर्नेंस टैक्स, रजिस्ट्रेशन टैक्स (शुरुआत में) सहित तमाम तरह के टैक्स देकर सरकार की जेब भरता है. केवल देहरादून रिस्पना पुल से संचालित होने वाली टैक्सी-मैक्सी यूनियन के 253 वाहन सभी प्रकार के टैक्स मिलाकर हर महीने सरकार को तकरीबन 63 लाख से ज्यादा टैक्स जमा करते हैं. यही नहीं इस तरह के राज्य में 60 से ज्यादा और यूनियन हैं. सरकार को करोड़ों का राजस्व केवल पहाड़ों की लाइफ लाइन कहे जाने वाले 24 घंटो दौड़ते यह वाहन देते हैंं. अब सवाल आता है कि अगर सरकार द्वारा 10 साल पुराने डीजल कमर्शियल वाहनों को प्रतिबंधित किया जाता है तो इसका क्या असर पड़ेगा ?

विकास पर पड़ेगा असर ?
देहरादून रिस्पना पुल से संचालित होने वाली टैक्सी टैक्सी यूनियन के पदाधिकारी प्रमोद नौटियाल का कहना है कि अगर 10 साल पुराने डीजल वाहनों को प्रतिबंधित किया जाता है तो प्रदेश के सभी कमर्शियल वाहनों में से केवल 13 फीसदी वाहन ही शेष बच पाएंगे. अगर उनके यूनियन की बात करें तो रोजाना रिस्पना पुल से डेढ़ सौ गाड़ियां गढ़वाल के अलग-अलग जगहों के लिए निकलती हैं और इतनी ही गढ़वाल के अलग-अलग क्षेत्र से सवारियों को वापस लेकर आती हैं.

पढ़ें- राम मंदिर पर PM मोदी के भाई का बयान, कहा- अब विरोधी भी पक्ष में, जल्द होगा निर्माण

अगर 10 साल पुराने वाहनों को प्रतिबंधित किया जाता है तो देहरादून रिस्पना पुल से संचालित होने वाली 253 गाड़ियों में से केवल 50 गाड़ियां ही शेष बच पाएंगी. उन्होंने बताया कि प्रत्येक गाड़ी न्यूनतम 10 सीटर से लेकर अधिकतम 13 सीटर तक है, तो इस तरह से रोजाना केवल राजधानी देहरादून से 3 से 4 हजार लोग सफर करते हैं. अगर इस सफर में रुकावट आती है तो निश्चित तौर से इसका असर देवभूमि के विकास पर पड़ेगा है.

Intro:Note- ये स्पेशल स्टोरी है।

एंकर- उत्तराखंड में 10 साल पुराने व्यवसाय की डीजल वाहनों पर प्रतिबंध को लेकर कवायद शुरू की जा रही है लेकिन इसके पीछे तमाम ऐसे पहलू हैं जो हर किसी के लिए जानने बेहद जरूरी है दरअसल पर्यावरण संरक्षण के नाम पर उत्तराखंड परिवहन विभाग कमर्शियल वाहनों पर डंडा चलाने की रणनीति तो बना रहा है लेकिन इसके फैसले लेकिन इस फैसले से कितना और कहां-कहां असर पड़ेगा यह जानना बेहद जरूरी है।



Body:करीब 29000 वाहनों के थम जाएंगे पहिए--

पूरे उत्तराखंड में 63 ऐसी टैक्सी-मैक्सी यूनियन है जिनके माध्यम से उत्तराखंड का मध्यम वर्ग का व्यक्ति सफर करता है और प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा छोटे-छोटे पहाड़ी इलाकों से मुख्य मार्ग तक आने वाली कई और भी यूनियने है जोकि चिन्हित नहीं है। मिली जानकारी के अनुसार केवल जनवरी 2019 तक के रजिस्ट्रेशन के आधार पर प्रदेश में व्यवसायिक वाहनों की संख्या 39668 है। जो कि हर साल टैक्स के रूप में सरकार को करोड़ों का राजस्व देते हैं। हर एक वाहन से सीधे तौर पर 5 लोग- वाहन स्वामी, ड्राइवर, मैकेनिक, आरटीओ और बैंक रोजगार के लिए आश्रित हैं तो वहीं अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोग रोजाना इन वाहनों से सफर करते हैं।

टैक्स के रूप में हर साल करोड़ों के राजस्व पर खतरा---

सरकार को व्यवसायिक वाहनों से जाने वाले राजस्व पर अगर नजर डाली जाए तो प्रत्येक वाहन हर महा पैसेंजर टैक्स, फिटनेस टैक्स, स्पीड गवर्नेंस टैक्स, शुरुआत में रजिस्ट्रेशन टैक्स सहित तमाम तरह के टैक्स देकर सरकार की जेब भरता है। केवल देहरादून रिस्पना पुल से संचालित होने वाली टैक्सी-मैक्सी यूनियन के 253 वाहन सभी प्रकार के टैक्स मिलाकर हर माह सरकार को तकरीबन 63 लाख से ज्यादा टैक्स जमा करती है। यही नहीं इस तरह कि राज्य में 60 से ज्यादा ओर यूनियने है। इस तरह से करोड़ों का राजस्व सरकार को केवल पहाड़ों की लाइफ लाइन कही जाने वाले 24 घंटो दौड़ते यह वाहन देते हैं। अब सवाल आता है कि अगर सरकार द्वारा 10 साल पुराने डीजल कमर्शियल वाहनों को प्रतिबंधित किया जाता है तो इसका क्या असर पड़ेगा।

रोजाना हजारों लोगों के आवागमन के साथ प्रदेश के विकास पर पड़ेगा सीधा असर-
देहरादून रिस्पना पुल से संचालित होने वाली टैक्सी टैक्सी यूनियन के पदाधिकारी प्रमोद नौटियाल का कहना है कि अगर 10 साल पुराने डीजल वाहनों को प्रतिबंधित किया जाता है तो प्रदेश के सभी व्यवसायिक वाहनों में से केवल 13 फ़ीसदी वाहन ही शेष बच पाएंगे। प्रमोद बताते हैं कि केवल उन्हीं के यूनियन की बात करें तो रोजाना रिस्पना पुल से डेढ़ सौ गाड़ियां गढ़वाल के अलग-अलग जगहों के लिए निकलती है और इतनी ही गढ़वाल के अलग-अलग क्षेत्र से सवारियों को वापिस लेकर आती है। अगर 10 साल पुराने वाहनों को प्रतिबंधित किया जाता है तो देहरादून रिस्पना पुल से संचालित होने वाली 253 गाड़ियों में से केवल 50 गाड़ियां ही शेष बच पाएंगी। उन्होंने बताया कि प्रत्येक गाड़ी न्यूनतम 10 सीटर से लेकर अधिकतम 13 सीटर तक है तो इस तरह से रोजाना केवल राजधानी देहरादून से 3 से 4 हजार लोग सफर करते हैं और अगर इस सफर में रुकावट आती है तो निश्चित तौर से इसका असर देव भूमि के विकास पर पड़ना तय है।

बाइट- प्रमोद नौटियाल, अध्यक्ष टैक्सी टैक्सी यूनियन रिस्पना पुल देहरादून


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