देहरादून: उत्तराखंड में बिजली उत्पादन की कमी और बढ़ती डिमांड के बीच बिजली संकट का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. हालांकि विद्युत की कमी के हालात उत्तराखंड ही नहीं बल्कि राष्ट्रव्यापी दिखाई देते हैं, लेकिन ऊर्जा प्रदेश कहे जाने वाले उत्तराखंड में यह समस्या बिजली कटौती की तरफ बढ़ रही है. चिंता की बात यह है कि एक तरफ ऊर्जा निगम कंगाली के दौर से गुजर रहा है, तो दूसरी तरफ निगम करोड़ों की बिजली बाजार से खरीदने को भी मजबूर है.
ऊर्जा प्रदेश में बिजली का संकट: उत्तराखंड में दुनिया भर की तरह ग्लोबल वार्मिंग के चलते तापमान बढ़ रहा है. जिसके कारण इसका सीधा असर कई सेक्टर पर भी पड़ रहा है. राज्य का ऊर्जा सेक्टर भी इनमें से एक है. दरअसल राज्य में बिजली की डिमांड तेजी से बढ़ रही है. हालांकि उसके पीछे नई इंडस्ट्री और काम धंधों का बढ़ना भी वजह है, लेकिन तापमान में बढ़ोत्तरी ने भी ऊर्जा की डिमांड को कई गुना बढ़ा दिया है. स्थिति ये है कि राज्य में बिजली उत्पादन के मुकाबले डिमांड दोगुनी से भी ज्यादा है. अब जानिए कि राज्य में बिजली को लेकर क्या है स्थिति.
उत्तराखंड के बिजली के आंकड़े
राज्य में बिजली की डिमांड 49 मिलियन यूनिट से 51 मिलियन यूनिट के बीच है
बिजली की कुल आपूर्ति 46 से 48 मिलियन यूनिट के बीच है
करीब 400 मेगावाट यूनिट बिजली की हर दिन पड़ रही कमी
हर दिन बड़ी रकम खर्च कर बिजली खरीदने को मजबूर निगम
आकलन के अनुसार 25,000 मेगावाट तक बिजली उत्पादन की राज्य के पास क्षमता
अपनी क्षमता के करीब 22% बिजली ही उत्पादित कर पा रहा है राज्य
राज्य में करीब 11 से ₹12 यूनिट की बिजली ₹6 यूनिट में उपभोक्ताओं को देता है निगम
राज्य की परियोजनाओं से उसकी क्षमता का बिजली उत्पादन भी अधिकतर समय नहीं होता
30 सितंबर को खत्म होगा केंद्र से मिल रहा अतिरिक्त कोटा: उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को गैस आधारित बिजली प्रोजेक्ट के अलावा केन्द्रांश से भी बिजली मिलती है, तब जाकर राज्य कुल डिमांड के करीब पहुंच पा रहा है. खास बात यह है कि इसके बाद भी बिजली की कमी को पूरा नहीं किया जा पा रहा है. ऐसे में खुले बाजार से हर दिन बिजली खरीदी जा रही है. खास बात ये है कि फिलहाल केंद्र सरकार से राज्य को जितना कोटा है, उससे भी 300 मेगावाट बिजली ज्यादा मिल रही है. 30 सितंबर तक ही केंद्र यह अतिरिक्त कोटा राज्य को देगा. ऐसे में 30 सितंबर के बाद यदि केंद्र से अतिरिक्त कोटा नहीं मिला तो बिजली का संकट और भी ज्यादा गहराने लगेगा. हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रियों से मिलकर राज्य को अतिरिक्त कोटा दिए जाने की पैरवी कर चुके हैं. ऊर्जा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम भी बिजली की कमी को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करने की बात कह रहे हैं.
उत्तराखंड में बढ़ती जा रही है बिजली की डिमांड: ग्लोबल वॉर्मिंग का राज्य में असर यह है कि लगातार गर्मी को लेकर पिछले कई रिकॉर्ड टूट रहे हैं. सितंबर महीने की पहली ही तारीख को रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया था. जाहिर है कि बढ़ती गर्मी के कारण लोगों की डिमांड भी बढ़ रही है. हालत यह है कि कम बारिश और बढ़ते तापमान के कारण AC, कूलर और पंखों की डिमांड बाजार में बढ़ गई है. देहरादून के मुख्य बाजार के बड़े व्यापारी कहते हैं कि इस बार एयर कंडीशनर की डिमांड में 10% तक की बढ़ोत्तरी हो गई है. बड़ी बात यह है कि देहरादून में ही नहीं बल्कि मसूरी में भी अब AC की डिमांड बढ़ रही है. जाहिर है कि यह स्थिति गर्म होते वातावरण की ओर संकेत दे रही है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि एक समय मसूरी जैसे हिल स्टेशन में पंखों की भी आवश्यकता नहीं होती थी, लेकिन अब AC भी लगाए जाने लगे हैं.
हिल स्टेशंस पर भी ग्लोबल वॉर्मिंग की मार: राजधानी देहरादून समेत प्रदेश भर के विभिन्न शहरों समेत हिल स्टेशंस में भी वातावरण को लेकर काफी बदलाव आया है. इसकी वजह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्लोबल वॉर्मिंग को माना जाता है. लेकिन स्थानीय स्तर पर भी होने वाला प्रदूषण इसमें अहम भूमिका निभाता है. पर्यावरण पर बारीकी से नजर रखने वाले वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं. हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट कहते हैं कि लगातार बढ़ते कंक्रीट के जंगल इस समस्या को व्यापक कर रहे हैं. जिससे इसका असर तापमान पर पड़ रहा है. यही नहीं लोगों के एयर कंडीशनर का उपयोग करने से भी प्रदूषण बढ़ा है और इसका भी वातावरण पर सीधा असर हो रहा है.
'वातावरण को सबसे इफेक्ट करने वाली दो सबसे बड़ी चीज हैं, सोलर का रिफ्लेक्शन जिसमें कंक्रीट का कंस्ट्रक्शन है, बढ़ते हुए शहरों में एयर कंडीशनर का सबसे ज्यादा यूज़ हो रहा है. चीन के बाद भारत सबसे ज्यादा रेफ्रिजरेटर में यूज़ होने वाली गैसों का उपयोग कर रहा है. इसकी वजह से वातावरण सबसे ज्यादा गर्म हो रहा है.'
1 अक्टूबर से हो सकती है बिजली की किल्लत: अभी सर्दियां शुरू नहीं हुई हैं और हल्की बारिश भी राज्य को मिल रही है. इसके बावजूद बिजली की डिमांड काफी ज्यादा दिखाई दे रही है. जबकि सर्दियां आने के बाद डिमांड में और भी ज्यादा बढ़ोत्तरी संभव है. साथ ही 30 सितंबर के बाद केंद्र से 300 मेगावाट बिजली न मिलने पर स्थित और भी खराब हो सकती है. इन सभी स्थितियों के बीच यह संभव है कि बिजली कटौती के हालातों से राज्य को गुजरना पड़े. वैसे उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड पहले ही कई बार बिजली के दामों में बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव भेज चुका है और इसके पीछे की वजह महंगी बिजली बाजार से खरीदना भी बताया गया है. उधर ऊर्जा निगम का खजाना भी खाली हो चुका है. शायद ही कारण है कि ऊर्जा निगम की तरफ से राज्य सरकार को वित्तीय मदद की डिमांड पूर्व में की गई थी. हालांकि राज्य सरकार की तरफ से निगम को कोई राहत नहीं दी गई. ऐसे में ओवरड्राफ्ट के जरिए किसी तरह ऊर्जा निगम अपनी स्थिति को संभाले हुए हैं.
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बिजली संकट से जूझ रहे अनेक राज्य: वैसे यह स्थिति केवल उत्तराखंड के लिए नहीं है, बल्कि देश के तमाम राज्यों में ऊर्जा संकट की स्थिति बनी हुई है. खास तौर पर जब से कोयले की कमी हुई, तबसे कोयला आधारित बिजली प्लांट प्रभावित हुए हैं. उत्तराखंड समेत देश की राजधानी दिल्ली, पंजाब, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य भी बिजली की कमी से जूझ रहे हैं. उधर नार्थ ईस्ट के कुछ राज्यों में भी ऐसा ही संकट है.
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