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दून स्कूल के एंट्रेंस एग्जाम से हिंदी हटाए जाने का विरोध, यूएनएस ने देवभूमि का बताया अपमान

देश के प्रतिष्ठित स्कूलों में शुमार दून स्कूल में प्रवेश परीक्षा से हिंदी को हटाए जाने और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाने का उत्तराखंड नवनिर्माण सेना(यूएनएस) ने कड़ा विरोध किया है.

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Published : Dec 11, 2019, 6:50 PM IST

Updated : Dec 11, 2019, 7:32 PM IST

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दून स्कूल

देहरादून: भारत के सबसे प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक दून स्कूल में प्रवेश परीक्षा से हिंदी को हटाये जाने और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाए जाने का देहरादून में विरोध शुरू हो गया है. इसका विरोध कर रही उत्तराखंड नवनिर्माण सेना ने कहा है कि इस संबंध में दून स्कूल संचालन समिति को एक मांगपत्र सौंपकर हिंदी को हटाए जाने का कड़ा विरोध किया गया.

हिंदी हटाने का विरोध

दून स्कूल द्वारा राष्ट्र भाषा हिंदी और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाने से नाराज उत्तराखंड नवनिर्माण सेना के महासचिव सुशील कुमार का कहना है कि यह राष्ट्र तथा देवभूमि की मूल भावनाओं का अपमान है. उन्होंने कहा कि 3 वर्ष पूर्व दून स्कूल की प्रवेश परीक्षा से राष्ट्रभाषा हिंदी को हटाया गया. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस विद्यालय में देश के बड़े राजनीतिक तथा अन्य क्षेत्रों से जुड़ी हस्तियों के बच्चे शिक्षा ले रहे हैं, उनमें किसी के द्वारा भी इस पर कोई प्रश्नचिन्ह या संवाद स्थापित नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि देवभूमि तथा भारत अपनी संस्कृति परंपराओं तथा इतिहास में कितने ही पौराणिक ग्रंथों को संजोए हुए हैं. ऐसे में देव भाषा संस्कृत भाषा ही नहीं बल्कि भारत की संस्कृति तथा काव्यों की आत्मा है.

ऐसे हालात में आजादी से पूर्व चली आ रही व्यवस्थाओं में विद्यालय पाठ्यक्रम में हिंदी भाषा को वैकल्पिक करने का निर्णय संस्कृति की पहचान और सशक्तिकरण पर कुठाराघात है. सुशील कुमार का यह भी कहना है कि 8 से 9 साल पहले तक हिंदी पाठ्यक्रम में गढ़वाली तथा कुमाऊंनी साहित्य भी पाठ्यक्रम का हिस्सा रहे. ऐसे में उन्हें हटाया जाना स्कूल की देवभूमि के प्रति सोच को दर्शाता है. उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि दुनिया के विभिन्न देशों से दून स्कूल में शिक्षक लिए जाते हैं जिनको देवभूमि की संस्कृति तथा परंपराओं की कोई पहचान नहीं है. उन्होंने प्रश्न उठाते हुए कहा कि क्या दून स्कूल प्रशासन को देश में कोई योग व्यक्ति नजर नहीं आता जो साल दर साल स्कूल में हेडमास्टर के पद पर बाहरी देश के व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है. दरअसल, देश के प्रतिष्ठित स्कूलों में शुमार दून स्कूल में प्रवेश परीक्षा से हिंदी को हटाए जाने और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाने को लेकर कई गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े किए गए हैं.

यह भी पढ़ेंः श्राइन बोर्ड नाम बदलकर हुआ चारधाम देवस्थानम प्रबंधन विधेयक, विपक्ष ने किया वॉक आउट

नवनिर्माण सेना का कहना है कि हम किसी अन्य भाषा के विरोधी नहीं हैं, क्योंकि भारत की संस्कृति मैं नहीं हम में समाहित है, किंतु राष्ट्रभाषा हिंदी तथा देवनागरी संस्कृत को समाप्त करके अन्य भाषाओं का विकास किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा. इस परिप्रेक्ष्य में दून स्कूल संचालन समिति को एक मांग पत्र सौंपा गया जिसमें यह कहा कि उत्तराखंड नवनिर्माण सेना ने कहा कि संगठन किसी अन्य भाषा का विरोधी नही है, किंतु राष्ट्र भाषा हिंदी तथा देवनागरी संस्कृत को समाप्त कर अन्य भाषाओं का विकास किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं है. संगठन स्कूल प्रशासन से मांग करता है कि हिंदी भाषा को प्रवेश परीक्षा में सम्मलित किया जाय तथा गढ़वाली एवम कुमाऊंनी साहित्य को समाहित कर विद्यार्थियों को पढ़ाया जाय. साथ ही देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक के स्थान पर नियमित पाठक्रम में सम्मलित कर संस्कृति को सम्मान प्रदान करें.

मांग पत्र सौंपने के बाद सुशील कुमार करना है कि 3 वर्ष पूर्व प्रवेश परीक्षा हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषा में हुआ करती थी जिसमें हिंदी के प्रश्न प्रखर हुआ करते थे, लेकिन 3 वर्ष पहले जर्मनी से नियुक्त किए गए हेड मास्टर आने के बाद घटनाक्रम परिवर्तित होता चला गया और हिंदी को हटा दिया गया. इसके साथ ही संस्कृत को वैकल्पिक कर दिया गया.अब कक्षा आठवीं तक संस्कृत को वैकल्पिक कर दिया गया है. यह राष्ट्र के सशक्तिकरण की दिशा में विपरीत कदम है. उन्होंने कहा कि जल्द ही राज्यपाल व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री को भी इससे अवगत कराया जाएगा.

देहरादून: भारत के सबसे प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक दून स्कूल में प्रवेश परीक्षा से हिंदी को हटाये जाने और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाए जाने का देहरादून में विरोध शुरू हो गया है. इसका विरोध कर रही उत्तराखंड नवनिर्माण सेना ने कहा है कि इस संबंध में दून स्कूल संचालन समिति को एक मांगपत्र सौंपकर हिंदी को हटाए जाने का कड़ा विरोध किया गया.

हिंदी हटाने का विरोध

दून स्कूल द्वारा राष्ट्र भाषा हिंदी और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाने से नाराज उत्तराखंड नवनिर्माण सेना के महासचिव सुशील कुमार का कहना है कि यह राष्ट्र तथा देवभूमि की मूल भावनाओं का अपमान है. उन्होंने कहा कि 3 वर्ष पूर्व दून स्कूल की प्रवेश परीक्षा से राष्ट्रभाषा हिंदी को हटाया गया. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस विद्यालय में देश के बड़े राजनीतिक तथा अन्य क्षेत्रों से जुड़ी हस्तियों के बच्चे शिक्षा ले रहे हैं, उनमें किसी के द्वारा भी इस पर कोई प्रश्नचिन्ह या संवाद स्थापित नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि देवभूमि तथा भारत अपनी संस्कृति परंपराओं तथा इतिहास में कितने ही पौराणिक ग्रंथों को संजोए हुए हैं. ऐसे में देव भाषा संस्कृत भाषा ही नहीं बल्कि भारत की संस्कृति तथा काव्यों की आत्मा है.

ऐसे हालात में आजादी से पूर्व चली आ रही व्यवस्थाओं में विद्यालय पाठ्यक्रम में हिंदी भाषा को वैकल्पिक करने का निर्णय संस्कृति की पहचान और सशक्तिकरण पर कुठाराघात है. सुशील कुमार का यह भी कहना है कि 8 से 9 साल पहले तक हिंदी पाठ्यक्रम में गढ़वाली तथा कुमाऊंनी साहित्य भी पाठ्यक्रम का हिस्सा रहे. ऐसे में उन्हें हटाया जाना स्कूल की देवभूमि के प्रति सोच को दर्शाता है. उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि दुनिया के विभिन्न देशों से दून स्कूल में शिक्षक लिए जाते हैं जिनको देवभूमि की संस्कृति तथा परंपराओं की कोई पहचान नहीं है. उन्होंने प्रश्न उठाते हुए कहा कि क्या दून स्कूल प्रशासन को देश में कोई योग व्यक्ति नजर नहीं आता जो साल दर साल स्कूल में हेडमास्टर के पद पर बाहरी देश के व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है. दरअसल, देश के प्रतिष्ठित स्कूलों में शुमार दून स्कूल में प्रवेश परीक्षा से हिंदी को हटाए जाने और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाने को लेकर कई गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े किए गए हैं.

यह भी पढ़ेंः श्राइन बोर्ड नाम बदलकर हुआ चारधाम देवस्थानम प्रबंधन विधेयक, विपक्ष ने किया वॉक आउट

नवनिर्माण सेना का कहना है कि हम किसी अन्य भाषा के विरोधी नहीं हैं, क्योंकि भारत की संस्कृति मैं नहीं हम में समाहित है, किंतु राष्ट्रभाषा हिंदी तथा देवनागरी संस्कृत को समाप्त करके अन्य भाषाओं का विकास किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा. इस परिप्रेक्ष्य में दून स्कूल संचालन समिति को एक मांग पत्र सौंपा गया जिसमें यह कहा कि उत्तराखंड नवनिर्माण सेना ने कहा कि संगठन किसी अन्य भाषा का विरोधी नही है, किंतु राष्ट्र भाषा हिंदी तथा देवनागरी संस्कृत को समाप्त कर अन्य भाषाओं का विकास किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं है. संगठन स्कूल प्रशासन से मांग करता है कि हिंदी भाषा को प्रवेश परीक्षा में सम्मलित किया जाय तथा गढ़वाली एवम कुमाऊंनी साहित्य को समाहित कर विद्यार्थियों को पढ़ाया जाय. साथ ही देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक के स्थान पर नियमित पाठक्रम में सम्मलित कर संस्कृति को सम्मान प्रदान करें.

मांग पत्र सौंपने के बाद सुशील कुमार करना है कि 3 वर्ष पूर्व प्रवेश परीक्षा हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषा में हुआ करती थी जिसमें हिंदी के प्रश्न प्रखर हुआ करते थे, लेकिन 3 वर्ष पहले जर्मनी से नियुक्त किए गए हेड मास्टर आने के बाद घटनाक्रम परिवर्तित होता चला गया और हिंदी को हटा दिया गया. इसके साथ ही संस्कृत को वैकल्पिक कर दिया गया.अब कक्षा आठवीं तक संस्कृत को वैकल्पिक कर दिया गया है. यह राष्ट्र के सशक्तिकरण की दिशा में विपरीत कदम है. उन्होंने कहा कि जल्द ही राज्यपाल व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री को भी इससे अवगत कराया जाएगा.

Intro:भारत के सबसे प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक दून स्कूल में स्कूल प्रवेश परीक्षा से हिंदी को हटाये जाने और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाए जाने का देहरादून में विरोध शुरू हो गया है। उत्तराखंड नवनिर्माण सेना ने कहां है कि कल यानी 11 दिसंबर को इस संबंध में दून स्कूल संचालन समिति को एक मांग पत्र सौंप कर हिंदी को हटाए जाने पर नाराजगी जाहिर की जाएगी


Body: देहरादून स्थित देश के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में से एक दून स्कूल द्वारा राष्ट्र भाषा हिंदी और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाने से से नाराज उत्तराखंड नवनिर्माण सेना के महासचिव सुशील कुमार का कहना है कि यह राष्ट्र तथा देवभूमि की मूल भावनाओं का अपमान है। उन्होंने कहा कि 3 वर्ष पूर्व दून स्कूल की प्रवेश परीक्षा से राष्ट्रभाषा हिंदी को हटाया गया यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस विद्यालय में देश के बड़ी राजनीतिक तथा अन्य क्षेत्रों से जुड़ी हस्तियों के बच्चे शिक्षा ले रहे हैं उनमें किसी के द्वारा भी इस पर कोई प्रश्नचिन्ह या संवाद स्थापित नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि देवभूमि तथा भारत अपनी संस्कृति परंपराओं तथा इतिहास में कितने ही पौराणिक ग्रंथों को संजोए हुए हैं ऐसे में देव भाषा संस्कृत भाषा ही नहीं बल्कि भारत की संस्कृति तथा काव्यों की आत्मा हैं, ऐसे हालात में आजादी से पूर्व चली आ रही व्यवस्थाओं में विद्यालय पाठ्यक्रम में दे भाषा को वैकल्पिक करने का निर्णय संस्कृति की पहचान और सशक्तिकरण पर कुठाराघात है।
बाइट- सुशील कुमार ,महासचिव ,नवनिर्माण सेना

सुशील कुमार का यह भी कहना है कि 8 से 9 साल पहले तक हिंदी पाठ्यक्रम में गढ़वाली तथा कुमाऊनी साहित्य भी पाठ्यक्रम का हिस्सा रहे, ऐसे में उन्हें हटाया जाना स्कूल की देवभूमि के प्रति सोच को दर्शाता है। उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि दुनिया के विभिन्न देशों से दून स्कूल में शिक्षक लिए जाते हैं जिनको देवभूमि की संस्कृति तथा परंपराओं की कोई पहचान नहीं है। उन्होंने प्रश्न उठाते हुए कहा कि क्या दून स्कूल प्रशासन को देश में कोई योग व्यक्ति नजर नहीं आता जो साल दर साल स्कूल में हेडमास्टर के पद पर बाहरी देश के व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है
बाईट-सुशील कुमार, महासचिव, उत्तराखंड नवनिर्माण सेना


Conclusion:दरअसल देश के प्रतिष्ठित स्कूलों में शुमार द दून स्कूल में प्रवेश परीक्षा से हिंदी को हटाए जाने और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाने को लेकर कई गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े किए गए हैं। नवनिर्माण सेना का कहना है कि हम किसी अन्य भाषा के विरोधी नहीं हैं, क्योंकि भारत की संस्कृति मैं नहीं हम में समाहित है, किंतु राष्ट्रभाषा हिंदी तथा देवनागरी संस्कृत को समाप्त करके अन्य भाषाओं का विकास किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा इस परिपेक्ष में 11 दिसंबर को दून स्कूल संचालन समिति को एक मांग पत्र सौंपा जाएगा और और उत्तराखंड के राज्यपाल और मानव संसाधन मंत्री को इस घटनाक्रम से भी अवगत कराया कराया जाएगा।
Last Updated : Dec 11, 2019, 7:32 PM IST
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