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सेवाभाव से समाज के लिए मिसाल बनते डॉ. उपाध्याय, मेडिकल फील्ड को पेशा नहीं जिम्मेदारी माना

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Published : Jun 30, 2022, 1:50 PM IST

Updated : Jun 30, 2022, 7:22 PM IST

सेवाभाव का अनूठा जज्बा लिये दून मेडिकल कॉलेज के कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर अमर उपाध्याय (Doctor amar upadhyay cardiologist doon medical college) काम कर रहे हैं. डॉक्टर अमर उपाध्याय लोगों के दर्द को समझते हुए हर वर्ग के लोगों तक इलाज पहुंचाना चाहते हैं. उनकी कोशिश रहती है कि किसी की भी इलाज न मिलने से मौत न हो. डॉक्टरी के पेशे को अमर उपाध्याय अभी भी शुद्ध रूप से सेवा का जरिया मानते हैं.

Doon Medical College cardiologist Dr Amar Upadhyay became an example for the society with service
सेवाभाव से समाज के लिए मिसाल बनते डॉ. उपाध्याय

देहरादून: कभी सेवाभाव के रूप में देखा जाने वाला मेडिकल फील्ड अब शुद्ध मुनाफे की व्यापारिक दौड़ में पूरी तरह शामिल हो गया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण चिकित्सकों का सरकारी सिस्टम से मोहभंग होना है. पैसे कमाने की अंधी दौड़ के बीच बेहतर स्वास्थ्य सुविधा गरीब परिवारों से दूर होती जा रही है. चिकित्सक सरकारी अस्पतालों की जगह निजी संस्थानों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. इस दौर में एक चिकित्सक ऐसा भी है जिन्होंने इस परिपाटी के ठीक उलट काम करने का इरादा बनाया हुआ है. तभी तो इस विशेषज्ञ चिकित्सक ने निजी चिकित्सा संस्थान की मोटी तनख्वाह छोड़कर सरकारी सिस्टम में गरीबों और जरूरतमंदों का इलाज करने की ठानी है.

देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज में तैनात डॉक्टर अमर उपाध्याय (Doctor amar upadhyay cardiologist doon medical college) भी उन्हीं चिकित्सकों में शामिल हैं, जो आज भी अपने पेशे को सेवाभाव के रूप में मानते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग केवल एक कार्डियोलॉजिस्ट के भरोसे चल रहा है. चौंकाने वाली बात यह है कि जब सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बॉन्ड भरकर कम फीस पर एमबीबीएस करने वाले छात्र भी बॉन्ड तोड़कर सरकारी अस्पतालों में काम नहीं करना चाहते, तब डॉ अमर उपाध्याय ने विशेषज्ञ चिकित्सक होने के बावजूद देहरादून के एक निजी अस्पताल से नौकरी छोड़ कर दून मेडिकल कॉलेज में अपनी सेवाएं देने का मन बनाया.

सेवाभाव से समाज के लिए मिसाल बनते डॉ. उपाध्याय

पढ़ें- विकास या विनाश: लाडपुर-सहस्रधारा रोड के लिए कटेंगे 2200 पेड़, पर्यावरणविदों ने लिया बचाने का संकल्प
मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले डॉक्टर अमर उपाध्याय ने भी सरकारी मेडिकल कॉलेज से ही एमबीबीएस किया. शायद वह जानते हैं कि गरीब और मध्यम परिवार महंगी स्वास्थ्य सुविधाओं के सामने कितना लाचार हो जाता है. यही वजह है कि उन्होंने सरकारी अस्पताल में ज्यादा से ज्यादा मरीजों को अपनी सेवाएं देने का फैसला लिया. डॉ अमर उपाध्याय जानते हैं कि सरकारी सेवा में दिल के मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले प्रशिक्षित कर्मियों की भारी कमी है. लिहाजा वह मेडिकल कॉलेज में न केवल अब तक दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए 300 से ज्यादा छात्रों को सामान्य प्रशिक्षित कर रहे हैं, बल्कि दून मेडिकल कॉलेज के कर्मियों को भी वो वर्कशॉप के जरिए अपने प्रयासों से जानकारियां देने की कोशिश करते रहे हैं.

पढ़ें- पेड़ों को नुकसान पहुंचाया तो होगी कड़ी कार्रवाई, बिजली के तार और होर्डिंग पर HC सख्त

दून मेडिकल कॉलेज में जूनियर रेजिडेंट बताती हैं कि दिल के रोगों को लेकर वह डॉक्टर अमर उपाध्याय से काफी कुछ सीख रही हैं. उनका प्रयास रहता है कि वह भी डॉक्टर अमर उपाध्याय की तरह लोगों को अपनी सेवाएं दे सकें.

बेहतर स्वास्थ्य सुविधा पाना हर व्यक्ति का अधिकार है, लेकिन चिकित्सकों की कमी और उपकरणों का अभाव अक्सर मरीजों की जान पर बना देता है. उत्तराखंड में लगातार दिल के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. खासतौर पर कोरोना की एंट्री के बाद दून मेडिकल कॉलेज में ही अकेले हर दिन 25 से 30 मरीज पहुंच रहे हैं. दून मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट अमर उपाध्याय कहते हैं कि मरीजों की संख्या काफी ज्यादा है, जिनको इलाज देने की हर संभव कोशिश की जाती है. डॉक्टर अमर उपाध्याय कहते हैं कि किसी भी चिकित्सक के लिए मरीज का बेहतर इलाज करना ही उसके लिए संतोष की बात होती है.

पढ़ें- विकास या विनाश: लाडपुर-सहस्रधारा रोड के लिए कटेंगे 2200 पेड़, पर्यावरणविदों ने लिया बचाने का संकल्प

उत्तराखंड में पहाड़ों पर जहां सामान्य सी बीमारियों के लिए भी इलाज की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, वहां पर कार्डियोलॉजिस्ट के साथ कार्डियो की महंगी मशीनें होने की उम्मीद करना बेमानी है. इसी स्थिति को देखते हुए डॉ अमर उपाध्याय ने उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य के लिए एक प्लान भी तैयार किया है. यह प्लान दिल के मरीजों को चिकित्सकों की कमी और उपकरणों के अभाव के बावजूद प्राथमिक उपचार देने से जुड़ा हुआ है, ताकि दिल के मरीजों की अचानक से बिना उपचार के ही जान ना जाए. इस प्लान के तहत डिजिटल रूप से उपचार किया जा सकता है.

मेडिकल फील्ड को कभी भी पेशा ना मानने वाले डॉक्टर अमर उपाध्याय इसे एक जिम्मेदारी बताते हैं. वो कहते हैं कि मरीज के बेहतर इलाज में जो संतोष है वो बाकी किसी में नहीं. पैसा जरूरी हो सकता है, लेकिन जरूरतमंदों को स्वास्थ्य सेवाएं मिलना ज्यादा जरूरी है.

देहरादून: कभी सेवाभाव के रूप में देखा जाने वाला मेडिकल फील्ड अब शुद्ध मुनाफे की व्यापारिक दौड़ में पूरी तरह शामिल हो गया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण चिकित्सकों का सरकारी सिस्टम से मोहभंग होना है. पैसे कमाने की अंधी दौड़ के बीच बेहतर स्वास्थ्य सुविधा गरीब परिवारों से दूर होती जा रही है. चिकित्सक सरकारी अस्पतालों की जगह निजी संस्थानों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. इस दौर में एक चिकित्सक ऐसा भी है जिन्होंने इस परिपाटी के ठीक उलट काम करने का इरादा बनाया हुआ है. तभी तो इस विशेषज्ञ चिकित्सक ने निजी चिकित्सा संस्थान की मोटी तनख्वाह छोड़कर सरकारी सिस्टम में गरीबों और जरूरतमंदों का इलाज करने की ठानी है.

देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज में तैनात डॉक्टर अमर उपाध्याय (Doctor amar upadhyay cardiologist doon medical college) भी उन्हीं चिकित्सकों में शामिल हैं, जो आज भी अपने पेशे को सेवाभाव के रूप में मानते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग केवल एक कार्डियोलॉजिस्ट के भरोसे चल रहा है. चौंकाने वाली बात यह है कि जब सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बॉन्ड भरकर कम फीस पर एमबीबीएस करने वाले छात्र भी बॉन्ड तोड़कर सरकारी अस्पतालों में काम नहीं करना चाहते, तब डॉ अमर उपाध्याय ने विशेषज्ञ चिकित्सक होने के बावजूद देहरादून के एक निजी अस्पताल से नौकरी छोड़ कर दून मेडिकल कॉलेज में अपनी सेवाएं देने का मन बनाया.

सेवाभाव से समाज के लिए मिसाल बनते डॉ. उपाध्याय

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मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले डॉक्टर अमर उपाध्याय ने भी सरकारी मेडिकल कॉलेज से ही एमबीबीएस किया. शायद वह जानते हैं कि गरीब और मध्यम परिवार महंगी स्वास्थ्य सुविधाओं के सामने कितना लाचार हो जाता है. यही वजह है कि उन्होंने सरकारी अस्पताल में ज्यादा से ज्यादा मरीजों को अपनी सेवाएं देने का फैसला लिया. डॉ अमर उपाध्याय जानते हैं कि सरकारी सेवा में दिल के मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले प्रशिक्षित कर्मियों की भारी कमी है. लिहाजा वह मेडिकल कॉलेज में न केवल अब तक दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए 300 से ज्यादा छात्रों को सामान्य प्रशिक्षित कर रहे हैं, बल्कि दून मेडिकल कॉलेज के कर्मियों को भी वो वर्कशॉप के जरिए अपने प्रयासों से जानकारियां देने की कोशिश करते रहे हैं.

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दून मेडिकल कॉलेज में जूनियर रेजिडेंट बताती हैं कि दिल के रोगों को लेकर वह डॉक्टर अमर उपाध्याय से काफी कुछ सीख रही हैं. उनका प्रयास रहता है कि वह भी डॉक्टर अमर उपाध्याय की तरह लोगों को अपनी सेवाएं दे सकें.

बेहतर स्वास्थ्य सुविधा पाना हर व्यक्ति का अधिकार है, लेकिन चिकित्सकों की कमी और उपकरणों का अभाव अक्सर मरीजों की जान पर बना देता है. उत्तराखंड में लगातार दिल के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. खासतौर पर कोरोना की एंट्री के बाद दून मेडिकल कॉलेज में ही अकेले हर दिन 25 से 30 मरीज पहुंच रहे हैं. दून मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट अमर उपाध्याय कहते हैं कि मरीजों की संख्या काफी ज्यादा है, जिनको इलाज देने की हर संभव कोशिश की जाती है. डॉक्टर अमर उपाध्याय कहते हैं कि किसी भी चिकित्सक के लिए मरीज का बेहतर इलाज करना ही उसके लिए संतोष की बात होती है.

पढ़ें- विकास या विनाश: लाडपुर-सहस्रधारा रोड के लिए कटेंगे 2200 पेड़, पर्यावरणविदों ने लिया बचाने का संकल्प

उत्तराखंड में पहाड़ों पर जहां सामान्य सी बीमारियों के लिए भी इलाज की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, वहां पर कार्डियोलॉजिस्ट के साथ कार्डियो की महंगी मशीनें होने की उम्मीद करना बेमानी है. इसी स्थिति को देखते हुए डॉ अमर उपाध्याय ने उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य के लिए एक प्लान भी तैयार किया है. यह प्लान दिल के मरीजों को चिकित्सकों की कमी और उपकरणों के अभाव के बावजूद प्राथमिक उपचार देने से जुड़ा हुआ है, ताकि दिल के मरीजों की अचानक से बिना उपचार के ही जान ना जाए. इस प्लान के तहत डिजिटल रूप से उपचार किया जा सकता है.

मेडिकल फील्ड को कभी भी पेशा ना मानने वाले डॉक्टर अमर उपाध्याय इसे एक जिम्मेदारी बताते हैं. वो कहते हैं कि मरीज के बेहतर इलाज में जो संतोष है वो बाकी किसी में नहीं. पैसा जरूरी हो सकता है, लेकिन जरूरतमंदों को स्वास्थ्य सेवाएं मिलना ज्यादा जरूरी है.

Last Updated : Jun 30, 2022, 7:22 PM IST
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