विकासनगरः जौनसार बावर के समाल्टा स्थित छत्रधारी चालदा महासू मंदिर में हर्षोल्लास के साथ देव दीपावली मनाई गई. इस मौके पर हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने शिरकत की. जहां ग्रामीणों ने होला (मशाल) जलाकर दिवाली का जश्न मनाया. रातभर ग्रामीण पारंपरिक गीतों पर जमकर झूमे. साथ ही महासू देवता से खुशहाली की कामना की.
बता दें कि जौनसार बावर के इष्ट देवता के रूप में पूजे जाने वाले छत्रधारी चालदा महासू महाराज इनदिनों समाल्टा में विराजमान (Chalda Mahasu Devta Mandir Samalta) हैं. ऐसे में समाल्टा एवं उद्पाल्टा खत पट्टी के ग्रामीणों को छत्रधारी चालदा महासू महाराज के मंदिर में 67 साल बाद देव दिवाली मनाने का मौका मिला है. खत पट्टी के कई गांवों के ग्रामीणों ने हाथ में भीमल की सूखी लकड़ियों के मशाल हाथों में लिए मंदिर पहुंचे. जहां पुजारी और खत स्याणाओं की ओर से मशाल जलाए गए.
वहीं, ग्रामीणों ने एक दूसरे के मशाल जलाकर महासू देवता के जयकारे लगाए और ढोल दमाऊं की थाप पर गीत गाए. साथ ही गांव से थोड़ी दूरी पर होला (मशाल) लेकर डिब्सा जलाया और जश्न मनाया. वहीं, मताड गांव के लोगों ने मंदिर परिसर में पौराणिक गीत गाकर महासू देवता की स्तुति की. साथ ही पारंपरिक वाद्य यंत्र हुड़का बजाकर खुशहाली की कामना की.
मताड गांव से पहुंचे मनीष ने कहा कि जब भी छत्रधारी चालदा महाराज जौनसार क्षेत्र के किसी भी खत पट्टी में विराजमान रहते है तो वहां पर उनके गांव के सभी लोग पारंपरिक महासू देवता के गीत गाते हैं. इस गीत के जरिए देवता से क्षेत्र की खुशहाली की कामना करते हैं. यहां बूढ़ी दीपावली मनाने की परंपरा है. ऐसे में देवता के यहां विराजमान होने पर जैसे बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है, वैसे ही पारंपरिक तरीके से दिवाली मनाई गई.
चालदा महाराज मंदिर सेवा समिति समाल्टा के अध्यक्ष सरदार सिंह ने कहा कि 67 साल बाद चालदा महासू की कृपा दृष्टि से क्षेत्र के लोगों को दिवाली मनाने का सौभाग्य मिला है. पहली बार समाल्टा और उद्पाल्टा खत पट्टी के ग्रामीणों ने देव दिवाली मनाई है. ग्रामीण महासू देवता से अपनी मनौती मांग रहे हैं. जबकि, मताड के ग्रामीण अपने क्षेत्र की सुख समृद्धि के लिए पुराने गीत के माध्यम से देवता से प्रार्थना कर रहे हैं.
वहीं, सूचना विभाग के उपनिदेशक कलम सिंह चौहान ने कहा कि पूरे देश में दीपावली का जश्न मनाया जा रहा है. जहां भी छत्रधारी चालदा महासू महाराज विराजमान (Chalda Mahasu Temple Samalta) रहते हैं, उस खत पट्टी में देवता की दीपावली मनाने की परंपरा है. लोगों में दीपावली को लेकर काफी (Samalta deepawali festival) उत्साह है.
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जानिए बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपराः गौर हो कि जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में बूढ़ी दिवाली (budhi diwali celebrated in jaunsar bawar) मुख्य दीपावली के ठीक एक महीने के बाद मनाई जाती है. पहाड़ में बूढ़ी दीवाली मनाने के पीछे लोगों के अपने अलग-अलग तर्क हैं. जनजाति क्षेत्र के बड़े-बुजुर्गों की मानें तो पहाड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की सूचना देर से मिलने के कारण लोग एक माह बाद बूढ़ी दीवाली मनाते हैं.
जबकि, अधिकांश लोगों का मत है कि जौनसार-बावर कृषि प्रधान क्षेत्र होने की वजह से यहां लोग खेतीबाड़ी के कामकाज में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं. जिस कारण वह इसके ठीक एक माह बाद बूढ़ी दीवाली का जश्न परपंरागत तरीके से मनाते हैं. ग्रामीणों की मानें तो अत्यधिक कृषि कार्य होने के चलते कई गांव मुख्य दीपावली का जश्न नहीं मना पाते थे. ऐसे में ग्रामीणों को समय पर अपनी फसलों को काटना होता था. साथ ही सर्दियों से पहले सभी काम निपटाना होता था.
ग्रामीण जब खेती बाड़ी से संबंधित सभी काम पूरा कर लेते थे, तब जौनसार बावर में लोग दीपावली मनाते थे. ऐसे में ग्रामीण दीपावली के ठीक एक महीने के बाद पांच दिवसीय बूढ़ी दिवाली का जश्न मनाते हैं. बूढ़ी दीपावली या दिवाली में जौनसार बावर के हर गांव का पंचायती आंगन तांदी, झैंता, हारूल पारंपरिक लोक नृत्य गुलजार रहता है. प्रवासी लोग अपने घर लौटकर इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं. इस दौरान पूरे जौनसार बावर में पांरपरिक संस्कृति की अलग ही रौनक देखने को मिलती है.
जौनसार बावर समेत हिमाचल के ईष्ट देवता हैं महासूः बता दें कि प्रसिद्ध महासू देवता (Char Mahasu Devta) चार भाई हैं. जिनमें बोठा महासू, बाशिक महासू, पवासी महासू और चालदा महासू हैं. बोठा महासू हनोल मंदिर (Hanol Mahasu Temple) में विराजमान हैं. जबकि, बाशिक महाराज का मंदिर मैंद्रथ में स्थित है. वहीं, पवासी देवता का मंदिर हनोल के कुछ ही दूरी पर ठडियार में है. वहीं, चालदा महासू को छत्रधारी महाराज भी कहते हैं. चालदा महासू जौनसार बावर के जनजाति क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में भी इष्ट देव के रूप में पूजे जाते हैं.