देहरादून: आयुर्वेद विवि के पूर्व कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा को आयुर्वेद निदेशालय में ओएसडी बनाने का आदेश निरस्त कर दिया गया है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की नाराजगी के बाद आदेश निरस्त किया गया है. अपर सचिव आयुष डॉ. विजय कुमार जोगदंड ने इस संबंध में आदेश जारी किया है.
आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में तमाम विवादों को झेलते रहे मृत्युंजय मिश्रा एक बार फिर शासन और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए हैं. विपक्षी दल कांग्रेस उनको लेकर हुए आदेश के खिलाफ दिखाई दी है तो सरकार भी इस मामले में बैकफुट पर है. खास बात यह है कि 2 दिन पहले ही सरकार ने मृत्युंजय मिश्रा को आयुर्वेद विश्वविद्यालय में ओएसडी बनाया. लेकिन सरकार अपने इस फैसले पर 48 घंटे भी टिक नहीं सकी. स्थिति यह रही कि आदेश जारी होने के अगले ही दिन सरकार को एक और नया आदेश जारी करना पड़ा, जिसमें मृत्युंजय मिश्रा को फिर से सचिव आयुष के कार्यालय में संबद्ध कर दिया गया.
विवादित अफसर हैं मृत्युंजय मिश्रा: इस मामले की शुरुआत शासन के उस पत्र से हुई जिसमें शासन ने आयुर्वेद विश्वविद्यालय में मृत्युंजय मिश्रा को ओएसडी बनाने का फैसला लिया. मृत्युंजय मिश्रा वही अधिकारी हैं जो लंबे समय तक आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कुलसचिव के पद पर रहे हैं. शासन तो उन्हें कुलसचिव के तौर पर अब भी तवज्जो देता रहा है, लेकिन आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति ने मृत्युंजय मिश्रा को कुलसचिव मानने से साफ इनकार कर दिया था. बहरहाल शासन ने आदेश जारी किया तो मृत्युंजय मिश्रा के खिलाफ विपक्षी दल कांग्रेस ने भी हल्ला बोल कर दिया. विवादित अधिकारी को एक बार फिर महत्वपूर्ण पद देने के खिलाफ आवाज उठाई. विपक्ष के इस विरोध का असर भी हुआ और मृत्युंजय मिश्रा को लेकर 1 दिन बाद ही दूसरा आदेश कर दिया गया, जिसमें मृत्युंजय मिश्रा को फिर से सचिव आयुष के कार्यालय में संबद्ध कर दिया गया.
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शासन का दूसरा आदेश अस्पष्ट! शासन का दूसरा आदेश बेहद अस्पष्ट है. क्योंकि इसमें मृत्युंजय मिश्रा को शासन में अटैच करने के लिए तो आदेश हुआ है, लेकिन निदेशालय में ओएसडी के पद से उन्हें हटाया गया या नहीं इस पर कोई भी स्पष्टता नहीं रखी गयी है. उधर आदेश करने वाले अपर सचिव से इस मामले में संपर्क नहीं हो पाया.
आय से अधिक संपत्ति मामले के लेकर चर्चाओं में रहे मृत्युंजय मिश्रा: बता दें मृत्युंजय मिश्रा काफी लंबे समय तक आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलसचिव बने रहे. इसी दौरान वह तमाम मामलों को लेकर चर्चाओं में आए. आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कर्मचारियों ने कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा के खिलाफ उनकी कार्यप्रणाली को लेकर लंबे समय तक आंदोलन भी किया कई बार बात मुकदमे दर्ज कराने तक भी पहुंची. दूसरी तरफ मृत्युंजय मिश्रा ने भी कर्मचारियों पर मारपीट तक के आरोप लगाए. इसके अलावा मृत्युंजय मिश्रा आय से अधिक संपत्ति को लेकर चर्चाओं में रहे. विश्वविद्यालय में वित्तीय अनियमितताओं पर उनके खिलाफ जांच भी हुई. खास बात यह है कि मृत्युंजय मिश्रा तमाम मामलों को लेकर चर्चाओं में तो रहे लेकिन उनके खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं हो सकी.
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त्रिवेंद्र सरकार में हुआ एक्शन: त्रिवेंद्र सरकार आने के बाद मृत्युंजय मिश्रा की घेराबंदी होती हुई दिखाई दी. विजिलेंस जांच के साथ ही 2018 में उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. 1 साल से भी ज्यादा समय तक जेल में बिताने के बाद मृत्युंजय मिश्रा बाहर आए. साल 2021 में उन्हें एक बार फिर आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कुलसचिव के पद पर तैनाती दे दी गई. इस को लेकर काफी विवाद हुआ. जिसके बाद उन्हें विश्वविद्यालय से हटाकर आयुष सचिव के कार्यालय में संबद्ध कर दिया. तभी से मृत्युंजय मिश्रा आयुष सचिव के कार्यालय में संबंध हैं. लेकिन, आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने उन्हें यह कहते हुए वेतन जारी करने से इनकार कर दिया कि वह आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कर्मचारी नहीं हैं.
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उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारी हैं मृत्युंजय मिश्रा: दरअसल, मृत्युंजय मिश्रा मूल रूप से उच्च शिक्षा विभाग में अधिकारी हैं. वह प्रतिनियुक्ति पर आयुर्वेद विश्वविद्यालय में तैनाती पाए हुए थे. इस दौरान कई आदेश हुए लेकिन हर बार उन्हें राहत देकर आयुर्वेद में जगह दे दी गई. इस बार मृत्युंजय मिश्रा फिर विवादों में हैं. उनकी नियुक्ति के आदेश के 24 घंटे में ही सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा है.