देहरादून: फर्जी रजिस्ट्री घोटाले में एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) को एक और बड़ी कामयाबी मिली है. एसआईटी ने इस मामले में एक और आरोपी देवराज तिवारी को गिरफ्तार किया है. एसआईटी इस मामले में अभीतक 18 लोगों को गिरफ्तार कर चुका है. कल 12 अक्टूबर को एसआईटी ने फर्जी रजिस्ट्री घोटाले के मुख्य आरोपी हुमायूं परवेज को गिरफ्तार किया था.
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दून पुलिस के लगातार प्रहार से सफेदपोश अपराधियों में हडकंप, बचने के हर पैंतरे हो रहे नाकाम!
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चर्चित फर्जी रजिस्ट्री घोटाले में एक और अभियुक्त को #दून_पुलिस ने किया गिरफ्तार!#UttarakhandPolice #UKPoliceStrikeOnCrime #Crime pic.twitter.com/Ju1fKwfV5q
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सहारनपुर के रजिस्ट्रार कार्यालय में तैनात कर्मचारी की गिरफ्तार जल्द: एसआईटी की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे ही इस मामले की परत दर परत खुलती जा रही है. कई बड़े लोग भी एसआईटी की रडार पर है. जैसे ही एसआईटी को उनके खिलाफ पुख्ता सबूत मिलेगे, एसआईटी उन पर कानूनी शिकंजा कसेगी. वहीं, सहारनपुर के रजिस्ट्रार कार्यालय में तैनात बाइंडर की भी जल्द गिरफ्तारी होगी.
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मुख्य आरोपी हुमायूं परवेज ने खोले कई राज: एसएसपी अजय सिंह ने बताया कि कल 12 अक्टूबर को फर्जी रजिस्ट्री घोटाले के मुख्य आरोपी हुमायूं परवेज को गिरफ्तार किया गया था. परवेज ने पूछताछ में कई लोगों के नाम बताए थे, जिनके खिलाफ एसआईटी ने सबूत इकट्टा किए है. उसी के आधार पर गुरुवार 12 अक्टूबर देर रात को एसआईटी ने देवराज तिवारी को गिरफ्तार किया.
ऐसे रचा गया पूरा खेल: दरअसल, मुख्य आरोपी हुमायूं परवेज ने अपने साथियों के साथ मिलकर माजरा ग्राम में जमीन के असली काम लाला सरनीमल और मनीराम से फर्जी बैनामा 1958 का बनाकर जलीलू रहमान और अर्जुन प्रसाद को मालिक दर्शाया गया. इसके आरोपी ने सीमांकन के लिए प्रार्थना पत्र एसडीएम कार्यालय और हाईकोर्ट को प्रेषित कर आदेश करवाए, लेकिन माजरा गांव की 55 बीघा जमीन तत्कालीन जिलाधिकारी ने साल 1958 में रक्षा मंत्रालय के नाम कर दी थी, जो आज भी रक्षा मंत्रालय के कब्जे में है. जिस कारण सीमांकन की कार्रवाही को खारिज किया गया था.
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पेश से वकील है देवराज तिवारी: बता दें कि आरोपी देवराज तिवारी वकील है और 2014 में उसने मदन मोहन शर्मा निवासी दूधली हाल निवासी दिल्ली की तरफ से खसरा नंबर 594 और 595 मौजा माजरा का वाद सिविल सीनियर डिवीजन में कैंट बोर्ड से लड़ा था. साल 2017 में आरोपी ने मदन मोहन शर्मा के वाद को वापस ले लिया गया थ. हालांकि आरोपी देवराज तिवारी ही समीर कामयाब के गोल्डन फॉरेस्ट के केस को भी लड़ रहा था.
वकील ने रचा खेल: पुलिस के मुताबिक समीर और हुमायूं परवेज एक बार देवराज तिवारी के चैंबर में आए थे. तब आरोपी ने बताया कि माज़रा की एक जमीन है, जिसका केस वह मदन मोहन शर्मा दूधली वाले के नाम से लड़ रहा है. आरोपी ने समीर से कहा कि इस केस में जीतने के चांस कम है, लिहाजा कोई ऐसा आदमी मिल जाये, जिसके नाम से रजिस्ट्री हो जाये तो काम हो जायेगा.
सहारनपुर रजिस्ट्रार ऑफिस से जुटाई गई जानकारी: समीर की सहारनपुर में रजिस्ट्रार ऑफिस में पहचान थी तो उसने वहां से जरूरी जानकारी जुटा ली और फिर कुछ दिन बाद आरोपी तिवारी, समीर, हुमायूं परवेज और समीर का साला शमशाद, समीर के किराए के घर सी-15 टर्नर रोड में मिले.
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दस्तावेजों से की गई छेड़छाड़: पुलिस के मुताबिक सभी आरोपियों ने तय किया कि जमीन की रजिस्ट्री उसके मूल मालिक लाला सरणी मल से हुमायूं के पिता जलीलू रहमान और लालामणि राम से आरोपी के पिता अर्जुन प्रसाद के नाम पर करवाई जायेगी और बाद में जो भी पैसा मिलेगा, उसको सब आपस में बांट लेंगे.
पुराने पेपरों से बनाई गई रजिस्ट्री: योजना के मुताबिक समीर कामयाब पुराने पेपर लेने के लिए सहारनपुर गया और अब्दुल गनी कबाड़ी की दुकान से पुरानी रद्दी के कोरे पेपर लाया जो रजिस्ट्री बनाने में काम आने थे. उसके बाद हुमायूं और समीर कामयाब सहारनपुर रिकॉर्ड रूम में फर्जी रजिस्ट्री लगाने से सम्बन्धित जानकारी लेने सहारनपुर गए, जहाँ उन्होनें देव कुमार निवासी मोहल्ला नवीन नगर सहारनपुर जो रिकार्ड रूम में बाइंडर का काम करता था और पहले से ही समीर का परिचित था, उससे रजिस्ट्री बदलने के संबंध में जानकारी ली.
देव कुमार ने बताया कि साल 1958 की जिल्द का कोई इंडेक्स नहीं बना हुआ है, तुम इसी साल की फर्जी रजिस्ट्री बना कर तैयार कर लो और साइज के लिए देव कुमार ने किसी अन्य रजिस्ट्री की फोटो स्टेट दी और उसके बाद ये दोनों समीर कामयाब के घर पहुंचे.
चाय के पानी डुबाकर तैयार किए गए पेपर: फर्जी रजिस्ट्री तैयार करने के लिए पेपर की बिल्कुल सही साइज की कटिंग और लाइनिंग समीर ने की थी. छपाई समीर कामयाब ने कार्ड वालों के यहां से करवाई. उसके बाद फर्जी रजिस्ट्री के पेपर को कॉफी या चाय के पानी में डुबा कर उन्हें सुखाते हुए उन पर प्रेस कर तैयार किये गए.
इसके बाद लाला सरणीमल और लाला मणिराम की 55 बीघा जमीन खसरा नंबर 594, 595 की साल 1958 की फर्जी रजिस्ट्री हुमायूं के पिताजी जलीलू रहमान और आरोपी तिवारी के पिता अर्जुन प्रसाद के नाम पर आरोपी के घर पर सब लोगों के सामने तैयार की गयी.
तीन लाख में बिका कर्मचारी: फर्जी रजिस्ट्री तैयार होने के बाद उसे सहारनपुर के रिकॉर्ड रूम में जिल्द में चिपकाने के लिए तीन लाख रुपए देव कुमार निवासी सहारनपुर को देने की बात हुई, तीन लाख रुपए और फर्जी रजिस्ट्री लेकर शमशाद को भेजा गया, जिसने देव कुमार को 3 लाख रुपये और फर्जी रजिस्ट्री चिपकाने के लिए दे दी.
दो-तीन दिन बाद उसकी नकल समीर कामयाब, वकील अहमद और हुमायूं परवेज सहारनपुर से निकलवा कर ले आए और लाला सरणीमल और लाला मणिराम वाली 55 बीघा जमीन की पैमाइश करने के लिए हुमायू द्वारा एसडीएम के यहां एक वाद दायर किया गया और उसकी एक फाइल हाईकोर्ट में भी चला दी थी.
सारों मंसूबों को फिर गया पानी: हाई कोर्ट के आदेश से संयुक्त टीम द्वारा भूमि का निरीक्षण किया गया और हुमायूं परवेज को कागज दिखाने को भी कहा, लेकिन जमीन साल 1958 में ही तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा रक्षा मंत्रालय को हस्तान्तरित की गयी थी, जिस कारण हुमायूं परवेज का वाद खारिज हो गया और सारे मंसूबों पर पानी फिर गया.
एसएसपी अजय सिंह ने बताया कि फर्जी रजिस्ट्री मामले में अब तक तीन गैंग सामने आ चुके है. तीसरे गैंग ने थाना क्लेमन टाउन में वन विभाग द्वारा 55 बीघा जमीन रक्षा मंत्रालय को दे दी गई थी, लेकिन उसमे सहारनपुर रजिस्ट्रार कार्यालय के बाइंडर द्वारा फर्जीवाड़ा करके बैनामे बदले गए थे. जिस मामले में गुरुवार को हुमायू की अरेस्टिंग हुई थी और उससे मिली जानकारी के बाद इसी मामले में देवराज तिवारी को गिरफ्तार किया गया है.