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क्रिसमस को लेकर सेंट फ्रांसिस चर्च में भव्य सजावट, ये हैं अनोखी मान्यताएं - देहरादून में क्रिसमस का त्योहार

मैरी क्रिसमस को लेकर सेंट फ्रांसिस चर्च में तैयारियां पूरी हो गई हैं. वहीं, 25 दिसंबर को विभिन्न मान्यताओं के साथ यीशू के जन्म का उत्सव मनाया जाता है.

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सेंट फ्रांसिस चर्च
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Published : Dec 24, 2019, 8:51 AM IST

Updated : Dec 24, 2019, 10:23 AM IST

देहरादून: पूरे विश्व में 25 दिसंबर मैरी क्रिसमस त्योहार को लेकर तैयारियां चल रही हैं. इसके साथ ही देहरादून के ऐतिहासिक 160 साल पुराने (वर्ष 1856 निर्मित) सेंट फ्रांसिस चर्च में भी हर साल की तरह मैरी क्रिसमस (बड़ा दिन) को लेकर भव्य तैयारियां पूरी हो चुकी हैं.

सेंट फ्रांसिस चर्च में तैयारियां शुरू.

मान्यता के अनुसार, मानव जाति के कल्याण के लिए 2000 साल पहले यीशु का जन्म हुआ था. ऐसे में प्रत्येक 'क्रिसमस ईव' से 4 सप्ताह पहले से कुछ ऐसी तैयारियां धार्मिक भावनाओं के साथ होती है, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं. यीशु के आगमन से चार सप्ताह पहले चार अहम मुद्दों पर क्रिश्चियन अनुयाई को चिंतन मनन कराया जाता है.

ईसाई धर्म के अनुयायियों के अनुसार, सांता क्लॉज जो ईश्वर के प्रेम भाव बांटने के लिए उपहार स्वरूप बच्चों को गिफ्ट देते हैं. उस सांता क्लॉज का वास्तविक पहनावा लाल रंग का होता है, क्योंकि हरा रंग खुशहाली समृद्धि भरा जीवन देने और उसमें जान होने का एहसास दिलाता है. धर्म गुरुओं के मुताबिक, समय दर समय परिवर्तन होने के बाद सांता क्लॉज के पहनावे का रंग हरे से लाल और सफेद करने में अलग-अलग तरह की भ्रांतियां हैं. लेकिन मान्यता के अनुसार, जीवन में नया आयाम लाने के लिए सांता क्लॉज का पहनावा हरे रंग को माना जाता है.

ये भी पढ़ें: निजी दौरे पर मसूरी पहुंची राज्यपाल बेबी रानी मौर्य, मीडिया से बनाई दूरी

ईसाई धर्म गुरूओं के मुताबिक, ऐसी मान्यता है कि यीशु के आगमन से पहले क्रिश्चियन धर्म को मानने वाले एक रीत मनाते हैं. रीत का मतलब प्रेम की एक ऐसी गोलाई से होता है जिसका कोई अंत नहीं है. क्योंकि मान्यता के मुताबिक, ईश्वर के प्रेम का कभी अंत नहीं है. प्रेम की गोलाई में शुरुआत और अंत नहीं देखा जा सकता है.

क्रिसमस से 4 दिन पहले ईसाई धर्म के लोग केरल संगीत का आयोजन करते हैं, जिसमें तीन अलग-अलग टोलियां शाम 5 बजे से लेकर रात 11:30 बजे तक अलग-अलग क्रिश्चियन धर्म के अनुयायियों के घर कैरोल संगीत का आयोजन करते हैं. इस कैरोल संगीत में मसीह के आने की भविष्यवाणी या उसके कुछ अंश और पंक्ति को सुनाया जाता है. उसके बाद परिवार के लिए दुआएं मांगते हुए और आने वाले बड़ा दिन और नए साल की शुभकामनाएं देते हुए टोली दूसरे परिवार की ओर बढ़ती है.

क्रिसमस ट्री का चलन

क्रिसमस ट्री से लेकर गिफ्ट देने के चलन से जुड़ी कुछ बेहद ही खास बातें हैं. क्रिसमस ट्री की कहानी को प्रभु यीशु मसीह के जन्म से भी जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि जब उनका जन्म हुआ था, तब उनके माता-पिता मरियम और जोसेफ को बधाई देने वालों ने सदाबहार फर वृक्ष को सितारों से रोशन किया था. ऐसी मान्यता है कि तभी से सदाबहार फर को क्रिसमस ट्री के रूप में मान्यता मिली.

देहरादून: पूरे विश्व में 25 दिसंबर मैरी क्रिसमस त्योहार को लेकर तैयारियां चल रही हैं. इसके साथ ही देहरादून के ऐतिहासिक 160 साल पुराने (वर्ष 1856 निर्मित) सेंट फ्रांसिस चर्च में भी हर साल की तरह मैरी क्रिसमस (बड़ा दिन) को लेकर भव्य तैयारियां पूरी हो चुकी हैं.

सेंट फ्रांसिस चर्च में तैयारियां शुरू.

मान्यता के अनुसार, मानव जाति के कल्याण के लिए 2000 साल पहले यीशु का जन्म हुआ था. ऐसे में प्रत्येक 'क्रिसमस ईव' से 4 सप्ताह पहले से कुछ ऐसी तैयारियां धार्मिक भावनाओं के साथ होती है, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं. यीशु के आगमन से चार सप्ताह पहले चार अहम मुद्दों पर क्रिश्चियन अनुयाई को चिंतन मनन कराया जाता है.

ईसाई धर्म के अनुयायियों के अनुसार, सांता क्लॉज जो ईश्वर के प्रेम भाव बांटने के लिए उपहार स्वरूप बच्चों को गिफ्ट देते हैं. उस सांता क्लॉज का वास्तविक पहनावा लाल रंग का होता है, क्योंकि हरा रंग खुशहाली समृद्धि भरा जीवन देने और उसमें जान होने का एहसास दिलाता है. धर्म गुरुओं के मुताबिक, समय दर समय परिवर्तन होने के बाद सांता क्लॉज के पहनावे का रंग हरे से लाल और सफेद करने में अलग-अलग तरह की भ्रांतियां हैं. लेकिन मान्यता के अनुसार, जीवन में नया आयाम लाने के लिए सांता क्लॉज का पहनावा हरे रंग को माना जाता है.

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ईसाई धर्म गुरूओं के मुताबिक, ऐसी मान्यता है कि यीशु के आगमन से पहले क्रिश्चियन धर्म को मानने वाले एक रीत मनाते हैं. रीत का मतलब प्रेम की एक ऐसी गोलाई से होता है जिसका कोई अंत नहीं है. क्योंकि मान्यता के मुताबिक, ईश्वर के प्रेम का कभी अंत नहीं है. प्रेम की गोलाई में शुरुआत और अंत नहीं देखा जा सकता है.

क्रिसमस से 4 दिन पहले ईसाई धर्म के लोग केरल संगीत का आयोजन करते हैं, जिसमें तीन अलग-अलग टोलियां शाम 5 बजे से लेकर रात 11:30 बजे तक अलग-अलग क्रिश्चियन धर्म के अनुयायियों के घर कैरोल संगीत का आयोजन करते हैं. इस कैरोल संगीत में मसीह के आने की भविष्यवाणी या उसके कुछ अंश और पंक्ति को सुनाया जाता है. उसके बाद परिवार के लिए दुआएं मांगते हुए और आने वाले बड़ा दिन और नए साल की शुभकामनाएं देते हुए टोली दूसरे परिवार की ओर बढ़ती है.

क्रिसमस ट्री का चलन

क्रिसमस ट्री से लेकर गिफ्ट देने के चलन से जुड़ी कुछ बेहद ही खास बातें हैं. क्रिसमस ट्री की कहानी को प्रभु यीशु मसीह के जन्म से भी जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि जब उनका जन्म हुआ था, तब उनके माता-पिता मरियम और जोसेफ को बधाई देने वालों ने सदाबहार फर वृक्ष को सितारों से रोशन किया था. ऐसी मान्यता है कि तभी से सदाबहार फर को क्रिसमस ट्री के रूप में मान्यता मिली.

Intro:pls नोट-Ready to spl pkg ( vo& byte) इस spl स्टोरी से संबंधित चर्च के रात की तैयारियों के विसुअल FTP से भी भेजी गई हैं। फोल्डर: " Merry Christmas preparation" summary-मैरी क्रिसमस से पहले कुछ ऐसी है होती धार्मिक भावनाएं, यीशु के आगमन से पूर्व ऋतु और काल की मान्यता.. जहां एक तरफ पूरे विश्वभर में 25 दिसंबर मैरी क्रिसमस त्यौहार को लेकर हर्षोल्लास की तैयारियां चल रही है। वही देहरादून के ऐतिहासिक 160 साल पुराने (वर्ष 1856 निर्मित)सेंट फ्रांसिस सर्च में भी हर वर्ष की तरह इस बार भी मैरी क्रिसमिस ( बड़ा दिन) को लेकर भव्य तैयारियां जोर शोर से चल रही है. मान्यता के अनुसार मानव जाती के कल्याण के लिए 2000 वर्ष पूर्व यीशु का जन्म हुआ था। ऐसे में प्रत्येक "क्रिसमिस ईव" से 4 सप्ताह पहले से कुछ ऐसी तैयारियां धार्मिक भावनाओं के साथ होती है जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। यीशु के आगमन से पहले 4 सप्ताह 4 अहम मुद्दों पर क्रिश्चियन अनुयाई को चिंतन मनन कराया या जाता है: धर्मगुरु ईसाई धर्म गुरुओं के मुताबिक जिस तरह से ऋतु और काल होते हैं, उसी तरह यीशु के धरती पर आगमन से चार सप्ताह पहले आगमन का काल होता है,जिसके लिए सभी क्रिश्चियन धर्म को मानने वाले लोगों को चिंतन मनन और आने वाले कल्याणकारी ईश्वर की उपासना शुरू की जाती हैं, सबसे पहले सप्ताह में भरोसा को लेकर शिक्षा दी जाती है, दूसरे सप्ताह में क्रिश्चन लोगों को "विश्वास" के प्रति समर्पित किया जाता है,तीसरे सप्ताह में यीशु के आने का "आनन्द"का अनुभव कराया जाता है..जबकि चौथे सप्ताह में यीशु की आगमन को लेकर प्रेम की अनुभूति कराई जाती है। इसी तरह 25 दिसंबर से पहले आने वाले 4 सप्ताह में ईसाई धर्म के लोग मान्यता के अनुसार इस तरह से क्रिसमस की तैयारी में जुटे रहते हैं। सैंटा क्लॉस के कपड़ों का कलर लाल और सफेद नहीं बल्कि वास्तविक में हरा होता है ईसाई धर्म के अनुयायियों का मानना है कि सेंटा क्लोज जो ईश्वर के प्रेम भाव बांटने के लिए उपहार स्वरूप बच्चों को गिफ्ट देता है। उस सैंटा क्लॉस का वास्तविक पहनावा हरे रंग का होता है। क्योंकि हरा रंग खुशहाली समृद्धि भरा जीवन देने उसमें जान होने का एहसास दिलाता है। धर्म गुरुओं के मुताबिक समय दर समय परिवर्तन होने के बाद सैंटा क्लॉस के पहनावे का रंग हरे से लाल और सफेद करने में अलग-अलग तरह की भ्रांतियां है. लेकिन मान्यता के अनुसार जीवन में नया आयाम लाने के लिए सैंटा क्लॉस का पहनावा हरे रंग को माना जाता है। बाईट-फौस्टिन जॉन पिंटो, पादरी, (फादर) सेंट फ्रांसिस चर्च देहरादून


Body:क्रिसमस ट्री का रंग एक सन्देश के लिए हरा होता है.. ईसाई धर्म गुरुओं के मुताबिक ऐसी मान्यता है कि यीशु के आगमन से पहले क्रिश्चियन धर्म को मानने वाले एक रीत मनाते हैं। रीत का मतलब प्रेम की एक ऐसी गोलाई से होता है जिसका कोई अंत नहीं है.. क्योंकि मान्यता के मुताबिक ईश्वर के प्रेम का कभी अंत नहीं है... प्रेम की गोलाई में शुरुआत और अंत नहीं देख पाते हैं... इसी के दृष्टिगत उस प्रेम की गोलाई को हरे रंग से बनाया जाता है जिसे "क्रिसमस ट्री" के रूप में सजाया जाता हैं।ऐसी मान्यता है हरा रंग जीवन देने और उसमें जान है ऐसा प्रतीत कराता है। क्रिसमस से 4 दिन पहले केरल संगीत का आयोजन सभी ईसाई परिवारों में किया जाता है. ईसाई धर्म के लोगों के मुताबिक ऐसी मान्यता है कि यीशु मसीह का जन्म मानव प्रेम करुणा और उनके कल्याण के लिए हुआ है इसलिए मानव को अनंत जीवन देने के लिए धरती पर वह आते हैं इसलिए से बड़ा दिन भी कहा जाता है। क्रिसमस से 4 दिन पहले ईसाई धर्म के लोग केरल संगीत का आयोजन करते हैं,जिसमें तीन अलग-अलग टोलियां शाम 5:00 बजे से लेकर रात 11:30 बजे तक अलग-अलग क्रिश्चियन धर्म के अनुयायियों के घर कैरल संगीत का आयोजन करते हैं, इस कैरल संगीत में मसीह के आने की भविष्यवाणी या उसके कुछ अंश और पंक्ति को सुनाया जाता है, उसके बाद परिवार के लिए दुआएं मांगते हुए और आने वाले बड़ा दिन और नए साल की शुभकामनाएं देते हुए टोली दूसरे परिवार की ओर बढ़ती है। बाईट-फौस्टिन जॉन पिंटो, पादरी, (फादर) सेंट फ्रांसिस चर्च देहरादून


Conclusion:क्रिसमस की रात और अगले दिन का कार्यक्रम सेंट फ्रांसिस चर्च के फादर के मुताबिक 25 दिसंबर की रात 12:00 बजे के बाद सभी गिरजा ग्रुप में केरल संगीत का आयोजन होता है जिसमें यीशु मसीह के आगमन की पंक्तियां सुनाई जाती है उसके बाद पूजन विधि की जाती है आमतौर पर प्रार्थना सभा कहा जाता। इसके बाद 25 तारीख की सुबह पहले 8:00 बजे अंग्रेजी में सभी गिरजाघर ओ चर्चों में प्रार्थना सभाएं होती हैं और 9:30 बजे सुबह हिंदी में प्रार्थना सभाओं का आयोजन होता है। इस कार्यक्रम के बाद प्रत्येक शहर के अनुयाई लोग चरणी या क्रीम यानी यीशु मसीह के दर्शन के लिए आते हैं इसी दौरान क्रिश्चियन धर्म के अनुयाई दुआएं मन्नतें मांगने के साथ ही ईश्वर से आशीष पाने चर्च में पहुंचते हैं। देहरादून के ऐतिहासिक सेंट फ्रांसिस चर्च के फादर के मुताबिक अक्सर ऐसा पाया जाता है जितने भी लोग यीशु मसीह की जन्म के बाद दर्शन के लिए आते हैं उनकी कुछ न कुछ अपनी कहानी होती है बीते वर्ष जो उनको ईश्वर से बरकते मिली है उसका वह धन्यवाद देते हैं और आने वाले नए साल के लिए मनोकामनाएं मांगते हैं। बाईट-फौस्टिन जॉन पिंटो, पादरी, (फादर) सेंट फ्रांसिस चर्च देहरादून
Last Updated : Dec 24, 2019, 10:23 AM IST
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