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जौनसार के इन 12 गांवों में मनाई जाएगी नई दीपावली, यहां एक महीने बाद दिवाली मनाने की है परंपरा

जौनसार बावर में दीपावली पर्व एक महीने बाद बूढ़ी दिवाली के रूप में मनाया जाता है, लेकिन इस बार चालदा महासू के समाल्टा में विराजमान होने के कारण समाल्टा खत पट्टी के 12 गांवों में नई दीपावली मनाई जाएगी. इस दौरान पटाखे नहीं फूटेंगे, बल्कि बूढ़ी दिवाली की तरह ही पारंपरिक तरीके से मशाल जलाकर लोग पर्व को मनाएंगे.

Samalta Mahasu Devta Temple
समाल्टा के चालदा महासू मंदिर में दिवाली
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Published : Oct 21, 2022, 4:28 PM IST

विकासनगरः जौनसार बावर के इष्ट देवता के रूप में पूजे जाने वाले चालदा महासू महाराज इनदिनों समाल्टा में विराजमान हैं. ऐसे में यहां 67 साल बाद समाल्टा खत पट्टी के 12 गांवों में नई दीपावली मनाई जाएगी. यहां बूढ़ी दीपावली मनाने की परंपरा है, जो दीपावली के एक महीने बाद मनाई जाती है. इस बार महासू देवता यहां विराजमान हैं तो नई दीपावली मनाने को लेकर ग्रामीण काफी उत्साहित हैं. यह दीपावली जैसे बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है, वैसे ही पारंपरिक तरीके से मनाई जाएगी.

बता दें कि समाल्टा खत पट्टी में बीते साल नवंबर महीने में 67 बाद नवनिर्मित मंदिर में छत्रधारी चालदा महासू देवता विराजमान (Chalda Mahasu Devta Mandir Samalta) हैं. ऐसी मान्यता है कि जिस क्षेत्र में भी चालदा महासू देवता भ्रमण या प्रवास पर रहते हैं, उस खत पट्टी के जितने भी गांव हैं. वहां के ग्रामीण सभी त्योहार देवता को समर्पित कर हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. ऐसे में इस साल समाल्टा खत पट्टी के 12 गांव के ग्रामीण नई दिपावली (Samalta deepawali festival) चालदा महासू देवता के मंदिर प्रांगण में मनाएंगे.

जौनसार के इन 12 गांवों में मनाई जाएगी नई दीपावली.

वहीं, पिछले साल देवता के आगमन की खुशी में भी नई दीपावली का आगाज किया गया था. जबकि, उस दौरान देवता मोहना गांव में विराजमान थे. इस साल चालदा महासू नवनिर्मित मंदिर समाल्टा में विराजमान हैं तो खत वासियों में नई दीपावली मनाने को लेकर काफी उत्साहित हैं. यह दीपावली ठीक वैसे ही मनाई जाएगी, जैसे ग्रामीण बूढ़ी दिवाली मनाते हैं. यहां पटाखे नहीं फूटेंगे, बल्कि मशाल जलाकर पारंपरिक नृत्य का आयोजन किया जाएगा.
ये भी पढ़ेंः देवभूमि में यहां एक महीने के बाद मनाई जाती है दीपावली

महासू देवता के पुजारी रायदत्त जोशी बताते हैं कि छत्रधारी चालदा महाराज जहां भी बंराश भ्रमण पर जाते हैं, वहां सभी साल के त्योहार मनाए जाते हैं. नई दीपावली मनाने को लेकर खत समाल्टा वासियों में भी काफी उत्साह है. वहीं, खत समाल्टा के स्याणा अर्जुन सिंह ने कहा कि 67 साल बाद खत समाल्टा में छत्रधारी चालदा महासू महाराज विराजित है. लिहाजा, मंदिर प्रांगण में दीपावली का पर्व मनाया जाएगा.

जानिए बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपराः गौर हो कि जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में बूढ़ी दिवाली (budhi diwali celebrated in jaunsar bawar) मुख्य दीपावली के ठीक एक महीने के बाद मनाई जाती है. पहाड़ में बूढ़ी दीवाली मनाने के पीछे लोगों के अपने अलग-अलग तर्क हैं. जनजाति क्षेत्र के बड़े-बुजुर्गों की मानें तो पहाड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की सूचना देर से मिलने के कारण लोग एक माह बाद बूढ़ी दीवाली मनाते हैं.

जबकि, अधिकांश लोगों का मत है कि जौनसार-बावर कृषि प्रधान क्षेत्र होने की वजह से यहां लोग खेतीबाड़ी के कामकाज में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं. जिस कारण वह इसके ठीक एक माह बाद बूढ़ी दीवाली का जश्न परपंरागत तरीके से मनाते हैं. ग्रामीणों की मानें तो अत्यधिक कृषि कार्य होने के चलते कई गांव मुख्य दीपावली का जश्न नहीं मना पाते थे. ऐसे में ग्रामीणों को समय पर अपनी फसलों को काटना होता था. साथ ही सर्दियों से पहले सभी काम निपटाना होता था.

ग्रामीण जब खेती बाड़ी से संबंधित सभी काम पूरा कर लेते थे, तब जौनसार बावर में लोग दीपावली मनाते थे. ऐसे में ग्रामीण दीपावली के ठीक एक महीने के बाद पांच दिवसीय बूढ़ी दिवाली का जश्न मनाते हैं. बूढ़ी दीपावली या दिवाली में जौनसार बावर के हर गांव का पंचायती आंगन तांदी, झैंता, हारूल पारंपरिक लोक नृत्य गुलजार रहता है. प्रवासी लोग अपने घर लौटकर इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं. इस दौरान पूरे जौनसार बावर में पांरपरिक संस्कृति की अलग ही रौनक देखने को मिलती है.

जौनसार बावर समेत हिमाचल के ईष्ट देवता हैं महासूः बता दें कि प्रसिद्ध महासू देवता (Char Mahasu Devta) चार भाई हैं. जिनमें बोठा महासू, बाशिक महासू, पवासी महासू और चालदा महासू हैं. बोठा महासू हनोल मंदिर (Hanol Mahasu Temple) में विराजमान हैं. जबकि, बाशिक महाराज का मंदिर मैंद्रथ में स्थित है. वहीं, पवासी देवता का मंदिर हनोल के कुछ ही दूरी पर ठडियार में है. वहीं, चालदा महासू को छत्रधारी महाराज भी कहते हैं. चालदा महासू जौनसार बावर के जनजाति क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में भी इष्ट देव के रूप में पूजे जाते हैं.

विकासनगरः जौनसार बावर के इष्ट देवता के रूप में पूजे जाने वाले चालदा महासू महाराज इनदिनों समाल्टा में विराजमान हैं. ऐसे में यहां 67 साल बाद समाल्टा खत पट्टी के 12 गांवों में नई दीपावली मनाई जाएगी. यहां बूढ़ी दीपावली मनाने की परंपरा है, जो दीपावली के एक महीने बाद मनाई जाती है. इस बार महासू देवता यहां विराजमान हैं तो नई दीपावली मनाने को लेकर ग्रामीण काफी उत्साहित हैं. यह दीपावली जैसे बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है, वैसे ही पारंपरिक तरीके से मनाई जाएगी.

बता दें कि समाल्टा खत पट्टी में बीते साल नवंबर महीने में 67 बाद नवनिर्मित मंदिर में छत्रधारी चालदा महासू देवता विराजमान (Chalda Mahasu Devta Mandir Samalta) हैं. ऐसी मान्यता है कि जिस क्षेत्र में भी चालदा महासू देवता भ्रमण या प्रवास पर रहते हैं, उस खत पट्टी के जितने भी गांव हैं. वहां के ग्रामीण सभी त्योहार देवता को समर्पित कर हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. ऐसे में इस साल समाल्टा खत पट्टी के 12 गांव के ग्रामीण नई दिपावली (Samalta deepawali festival) चालदा महासू देवता के मंदिर प्रांगण में मनाएंगे.

जौनसार के इन 12 गांवों में मनाई जाएगी नई दीपावली.

वहीं, पिछले साल देवता के आगमन की खुशी में भी नई दीपावली का आगाज किया गया था. जबकि, उस दौरान देवता मोहना गांव में विराजमान थे. इस साल चालदा महासू नवनिर्मित मंदिर समाल्टा में विराजमान हैं तो खत वासियों में नई दीपावली मनाने को लेकर काफी उत्साहित हैं. यह दीपावली ठीक वैसे ही मनाई जाएगी, जैसे ग्रामीण बूढ़ी दिवाली मनाते हैं. यहां पटाखे नहीं फूटेंगे, बल्कि मशाल जलाकर पारंपरिक नृत्य का आयोजन किया जाएगा.
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महासू देवता के पुजारी रायदत्त जोशी बताते हैं कि छत्रधारी चालदा महाराज जहां भी बंराश भ्रमण पर जाते हैं, वहां सभी साल के त्योहार मनाए जाते हैं. नई दीपावली मनाने को लेकर खत समाल्टा वासियों में भी काफी उत्साह है. वहीं, खत समाल्टा के स्याणा अर्जुन सिंह ने कहा कि 67 साल बाद खत समाल्टा में छत्रधारी चालदा महासू महाराज विराजित है. लिहाजा, मंदिर प्रांगण में दीपावली का पर्व मनाया जाएगा.

जानिए बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपराः गौर हो कि जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में बूढ़ी दिवाली (budhi diwali celebrated in jaunsar bawar) मुख्य दीपावली के ठीक एक महीने के बाद मनाई जाती है. पहाड़ में बूढ़ी दीवाली मनाने के पीछे लोगों के अपने अलग-अलग तर्क हैं. जनजाति क्षेत्र के बड़े-बुजुर्गों की मानें तो पहाड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की सूचना देर से मिलने के कारण लोग एक माह बाद बूढ़ी दीवाली मनाते हैं.

जबकि, अधिकांश लोगों का मत है कि जौनसार-बावर कृषि प्रधान क्षेत्र होने की वजह से यहां लोग खेतीबाड़ी के कामकाज में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं. जिस कारण वह इसके ठीक एक माह बाद बूढ़ी दीवाली का जश्न परपंरागत तरीके से मनाते हैं. ग्रामीणों की मानें तो अत्यधिक कृषि कार्य होने के चलते कई गांव मुख्य दीपावली का जश्न नहीं मना पाते थे. ऐसे में ग्रामीणों को समय पर अपनी फसलों को काटना होता था. साथ ही सर्दियों से पहले सभी काम निपटाना होता था.

ग्रामीण जब खेती बाड़ी से संबंधित सभी काम पूरा कर लेते थे, तब जौनसार बावर में लोग दीपावली मनाते थे. ऐसे में ग्रामीण दीपावली के ठीक एक महीने के बाद पांच दिवसीय बूढ़ी दिवाली का जश्न मनाते हैं. बूढ़ी दीपावली या दिवाली में जौनसार बावर के हर गांव का पंचायती आंगन तांदी, झैंता, हारूल पारंपरिक लोक नृत्य गुलजार रहता है. प्रवासी लोग अपने घर लौटकर इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं. इस दौरान पूरे जौनसार बावर में पांरपरिक संस्कृति की अलग ही रौनक देखने को मिलती है.

जौनसार बावर समेत हिमाचल के ईष्ट देवता हैं महासूः बता दें कि प्रसिद्ध महासू देवता (Char Mahasu Devta) चार भाई हैं. जिनमें बोठा महासू, बाशिक महासू, पवासी महासू और चालदा महासू हैं. बोठा महासू हनोल मंदिर (Hanol Mahasu Temple) में विराजमान हैं. जबकि, बाशिक महाराज का मंदिर मैंद्रथ में स्थित है. वहीं, पवासी देवता का मंदिर हनोल के कुछ ही दूरी पर ठडियार में है. वहीं, चालदा महासू को छत्रधारी महाराज भी कहते हैं. चालदा महासू जौनसार बावर के जनजाति क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में भी इष्ट देव के रूप में पूजे जाते हैं.

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