देहरादून: कोरोना काल में लॉकडाउन कारण लंबे समय तक फुटकर बाजार बंद होने के कारण ऑनलाइन का बाजार खूब तेजी से आगे बढ़ा है. इसी का नतीजा है कि वर्तमान समय में देशभर में बड़ी संख्या में लोग ई-कॉमर्स बाजार की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. आजकल अधिकतर लोग ऑनलाइन शॉपिंग के जरिए ही समान मंगवा रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ ऑनलाइन खरीदारी करने वाले ग्राहकों को आसानी टारगेट कर साइबर ठग भी खूब धोखाधड़ी कर रहे हैं. त्योहारी सीजन में धोखाधड़ी के ये मामले और भी बढ़ रहे हैं. त्योहारी सीजन में साइबर ठग तरह-तरह के लोक लुभावने ऑफर और अन्य तरह के डिस्काउंट का लालच देकर ऑनलाइन के बाजार में फर्जीवाड़े का खेल खेल रहे हैं. ऐसे में ऑनलाइन शॉपिंग से पहले किस तरह से जागरूक होकर किन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना जरूरी है यह जाना बेहद जरूरी है. ताकि साइबर ठगों के बढ़ते मकड़जाल से बचा जा सके.
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फर्जी वेबसाइट और ऐप से बचना जरूरी
किसी भी ऑनलाइन वेबसाइट या ऐप के जरिए खरीदारी करते समय सबसे पहले साइबर ठगों के जाल से बचें. यानी जिस ई-कॉमर्स कंपनी के माध्यम से ऑनलाइन खरीदारी करने जा रहे हैं उसकी सही वेबसाइट को पहले वेरीफाई करना जरूरी है. कई बार ऑनलाइन कंपनियों के मिलते जुलते नाम से ग्राहकों की बैंक डिटेल व डिजिटल वॉलेट डिटेल लेकर साइबर ठगी हो जाती है. यानी ऑनलाइन कंपनी के वेबसाइट में आने वाले यूआरएल एड्रेस को सही से वेरीफाई करना ही समझदारी है.
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किसी भी ऑनलाइन शॉपिंग वाली कंपनी की वेबसाइट और पोर्टल पर बैंक डिटेल डालने से पहले उस ई-कॉमर्स कंपनी के सभी तरह की सही जानकारी को भी वेरीफाई करना जरूरी है. जब तक यह ना हो तब तक कोई भी बैंक डिटेल या डिजिटल वॉलेट की जानकारी साझा ना करें.
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फिशिंग लिंक से बचना जरूरी
कई बार ऑनलाइन में कई तरह के ऐसे लिंक आ जाते हैं जिसमें जैकपोट,लॉटरी लगना या अन्य तरह के बड़े डिस्काउंट जैसे लालच से आपको फसाने की कोशिश की जाती है. इसे फिशिंग लिंक का जाल कहते हैं. साइबर ठग कई बार अनजान लोगों या फिर कुछेक बार जानने वाले लोगों द्वारा भी इस तरह के फिशिंग लिंक क्लिक करने के लिए भेजते हैं. इस तरह के फिशिंग लिंक फेसबुक, मैसेंजर, व्हाट्सएप,ईमेल जैसे तमाम सोशल मीडिया साइट से आते हैं. जिसको क्लिक करते ही ठगी की घटना हो जाती है.
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सामान खरीदने के नाम पर क्यूआर कोड के आड़ से भी साइबर ठगी
उत्तराखंड साइबर पुलिस के मुताबिक, कई बार साइबर ठग सामने वाले व्यक्ति को क्यूआर कोड में पैसा ट्रांसफर करने के नाम पर भी झांसा देकर उनकी गाढ़ी कमाई उड़ा लेते हैं. जबकि इस विषय मे महत्वपूर्ण जानकारी यह है कि क्यूआर कोड से पैसा मिलता नहीं बल्कि पैसा दिया जाता है. उदाहरण के तौर पर ऑनलाइन पोर्टल या वेबसाइट के जरिए आप जब अपना सामान बेचने का ऑफर देते हैं तो सामने वाला यूजर आपके प्रोडक्ट को खरीदने के एवज में भुगतान के लिए अपना क्यूआर कोड देकर उसे स्कैन करने के लिए कहता है. ऐसे में जब आप उसके क्यूआर बारकोड को स्कैन करते हैं तो आपका पैसा ऑटोमेटिक उसको ट्रांसफर हो जाता है.
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बैंक और डिजिटल वॉलेट केवाईसी के नाम पर भी साइबर ठगी
कोरोना काल में अधिकांश लोग घरों में होने के चलते इन दिनों बैंक व डिजिटल वॉलेट की केवाईसी कराने का झांसा देकर साइबर ठग लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. यानी जब भी आपको बैंक व डिजिटल वॉलेट केवाईसी अपडेट करवानी हो तो खुद बैंक जाकर या उनकी ऑफिशल वेबसाइट की सही जानकारी लेकर ही केवाईसी को अपडेट करें.
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ऑनलाइन या बाजार से खरीदारी के समय बैंक डेबिट कार्ड अलग से हो
किसी भी तरह की ऑनलाइन या बाजार में जाकर शॉपिंग करने के दौरान एक ऐसा बैंक एकाउंट वाला शॉपिंग कार्ड अलग से रखना चाहिए, जिसमें कम से कम रुपए हो. यानी अपनी जमा पूंजी व सैलरी अकाउंट या अन्य बड़े अकाउंट वाले बैंक एटीएम व डेबिट कार्ड से ऑनलाइन या डायरेक्ट बाजार जाकर खरीदारी करने का सौदा आपको महंगा पड़ सकता है. ऐसा अक्सर देखा गया है कि जिस बैंक डेबिट कार्ड में अधिक रुपया जमा होता है उससे ही सबसे ज्यादा साइबर ठगी होती है. यानी कम से कम बैलेंस वाले बैंक कार्ड से किसी भी तरह की शॉपिंग करने के दौरान नुकसान होने की कम आशंका रहती है.
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इंटरनेट पर सर्चिंग करने से बचें
साइबर ठगी के बाद यूजर को किसी भी जानकारी के लिए इंटरनेट पर सर्चिंग से बचना होगा. यानी जब साइबर ठगी होने के बाद उसकी शिकायत के लिए इंटरनेट सर्च इंजन पर जाकर बैंक या अन्य तरह के संस्थान के कस्टमर केयर नंबर को सर्च करना कई बार घातक हो जाता है. ऐसे में ठगी की जानकारी देने के लिए बैंक की ऑफिशल साइट या पुलिस के सही नंबरों पर जानकारी देना ही समझदारी है. कई बार गूगल पर बिना किसी जानकारी के सर्च करने से साइबर ठगों के जाल में फिर से फंसने की लापरवाही हो जाती हैं.
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नौकरी ढूंढने के लिए सर्चिंग करना भी कई बार खतरनाक
वहीं, इंटरनेट के सर्च इंजन पर नौकरी पाने के लिए भी जानकारी लेना कई बार साइबर ठगों के जाल में फसने जैसा हो जाता है. ऐसे में किसी भी जॉब या काम पाने के लिए पहले संबंधित संस्थान की ऑफिशल वेबसाइट की जानकारी लेना ही समझदारी है. अन्यथा सर्च इंजन के जरिए जॉब या काम ढूंढने के दौरान साइबर ठगों के जाल में फंस कर ठगी होने की आशंका अधिक रहती है.
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डिजिटल पेमेंट के लिए मोबाइल का सिम से भी होती है साइबर ठगी
उत्तराखंड साइबर पुलिस सर्कल ऑफिसर अंकुश मिश्रा के मुताबिक, कई बार डिजिटल पेमेंट करने के दौरान इस्तेमाल होने वाले मोबाइल सिम से भी साइबर ठगी की घटना सामने आती है. यानी ऑनलाइन खरीदारी और बाजार में शॉपिंग के दौरान डिजिटल पेमेंट ( बैंक स्वाइप कार्ड) के समय जो मोबाइल नंबर दिया जाता है उससे भी कई बार साइबर ठग बैंक डिटेल हैक कर ठगी की घटना को अंजाम देते हैं. ऐसे में डिजिटल पेमेंट के दौरान बैंक एकाउंट में दिए गए मोबाइल नंबर का सिम स्मार्टफोन की जगह सामान्य तरह के मैसेज वाले फोन पर रहेगा तो साइबर ठगी ना के बराबर है. यानी डिजिटल पेमेंट बैंक का नंबर स्मार्टफोन पर रखने से बचना होगा.