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देहरादून चाय बागान की सीलिंग की जमीन की खरीद-फरोख्त में हुआ भारी फर्जीवाड़ा, यहां जुड़ रहे हैं तार - ईटीवी भारत उत्तराखंड

Tea garden देहरादून के लाडपुर में चाय बागान की लगभग साढ़े चार एकड़ जमीन का फर्जीवाड़ा हुआ है. इस मामले में विवादित भूमि मालिक संतोष अग्रवाल का नाम और पता शामिल है.

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Published : Jul 29, 2023, 1:10 PM IST

देहरादून: चाय बागान की सीलिंग की जमीन की खरीद-फरोख्त का फर्जीवाड़ा अभी भी जारी है. दरअसल लाडपुर में चाय बागान की लगभग साढ़े चार एकड़ जमीन का फर्जीवाड़ा सामने आया है. इस जमीन को असम के पते पर मोती लाल अग्रवाल ने खरीदा है. अहम बात यह है कि जिस पते पर इस जमीन की रजिस्ट्री हुई है, वह पता इस मामले में विवादित भूमि मालिक संतोष अग्रवाल का भी है.

बता दें कि चाय बागान की जमीन लाडपुर, रायपुर, चकरायपुर, नथनपुर, मसूरी और विकासनगर में है. आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी कि सीलिंग की जमीन को कुछ भूमाफिया अफसरों के साथ साठगांठ कर खरीद-फरोख्त कर रहे हैं. हाईकोर्ट के आदेश के बाद जिला प्रशासन थोड़ा सतर्क हुआ. इस मामले की सुनवाई एडीएम शिव बरनवाल कर रहे हैं. जांच के दौरान पता चला कि संतोष अग्रवाल ने न केवल अपनी मृत मां के नाम की चाय बागान की सीलिंग की जमीन की खरीद-फरोख्त की है, बल्कि पर्लव्यू होटल भी बना दिया है, जो कि पूरी तरह से अवैध है.

संतोष अग्रवाल ने फर्जीवाड़ा कर अपनी मां के नाम से 1952 की रजिस्ट्री की आड़ में चकरायपुर के खसरा नंबर 203, 204 और 205 की अवैध तरीके से बेचने का प्रयास किया है. उसने सहारनपुर में कुछ लोगों के खिलाफ अपनी जमीन होने का दावा कर केस दर्ज करा दिया. जबकि यह जमीन सीलिंग की है और इस पर सरकार का हक है. इस बीच जमीन का एक और दावेदार उमेश कुमार सामने आया और उमेश ने इन्हीं खसरा नंबरों पर 1984 की रजिस्ट्री के आधार पर देहरादून में केस दर्ज करा दिया और इस जमीन पर अपना कब्जा बताया है.
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आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी का कहना है कि इसी गैंग ने लाडपुर में खसरा नंबर 80/3, 19 सितम्बर 1975 की रजिस्ट्री के आधार पर साढ़े चार एकड़ भूमि मोतीलाल अग्रवाल के नाम पर खरीदी. अहम बात यह है कि मोती लाल अग्रवाल के निवास का पता भी वही है जो संतोष अग्रवाल का है. दोनों ही असम निवासी हैं और एक ही पते पर रहते हैं. मोतीलाल ने इसी तरह से मसूरी में भी एक रजिस्ट्री चंद्रबहादुर की जमीन की कराई. सरकार ने जांच में इसे फर्जी पाया है. इस संबंध में 21 जून 2022 को इसकी शिकायत एसडीएम, एडीएम और डीएम से भी की, लेकिन शासन ने इसकी जांच नहीं करवाई है. चूंकि यह मामला अरबों रुपये के फर्जीवाड़े का है और गैंग के तार कई राज्यों में फैले हुए हैं. ऐसे में इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए.
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देहरादून: चाय बागान की सीलिंग की जमीन की खरीद-फरोख्त का फर्जीवाड़ा अभी भी जारी है. दरअसल लाडपुर में चाय बागान की लगभग साढ़े चार एकड़ जमीन का फर्जीवाड़ा सामने आया है. इस जमीन को असम के पते पर मोती लाल अग्रवाल ने खरीदा है. अहम बात यह है कि जिस पते पर इस जमीन की रजिस्ट्री हुई है, वह पता इस मामले में विवादित भूमि मालिक संतोष अग्रवाल का भी है.

बता दें कि चाय बागान की जमीन लाडपुर, रायपुर, चकरायपुर, नथनपुर, मसूरी और विकासनगर में है. आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी कि सीलिंग की जमीन को कुछ भूमाफिया अफसरों के साथ साठगांठ कर खरीद-फरोख्त कर रहे हैं. हाईकोर्ट के आदेश के बाद जिला प्रशासन थोड़ा सतर्क हुआ. इस मामले की सुनवाई एडीएम शिव बरनवाल कर रहे हैं. जांच के दौरान पता चला कि संतोष अग्रवाल ने न केवल अपनी मृत मां के नाम की चाय बागान की सीलिंग की जमीन की खरीद-फरोख्त की है, बल्कि पर्लव्यू होटल भी बना दिया है, जो कि पूरी तरह से अवैध है.

संतोष अग्रवाल ने फर्जीवाड़ा कर अपनी मां के नाम से 1952 की रजिस्ट्री की आड़ में चकरायपुर के खसरा नंबर 203, 204 और 205 की अवैध तरीके से बेचने का प्रयास किया है. उसने सहारनपुर में कुछ लोगों के खिलाफ अपनी जमीन होने का दावा कर केस दर्ज करा दिया. जबकि यह जमीन सीलिंग की है और इस पर सरकार का हक है. इस बीच जमीन का एक और दावेदार उमेश कुमार सामने आया और उमेश ने इन्हीं खसरा नंबरों पर 1984 की रजिस्ट्री के आधार पर देहरादून में केस दर्ज करा दिया और इस जमीन पर अपना कब्जा बताया है.
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आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी का कहना है कि इसी गैंग ने लाडपुर में खसरा नंबर 80/3, 19 सितम्बर 1975 की रजिस्ट्री के आधार पर साढ़े चार एकड़ भूमि मोतीलाल अग्रवाल के नाम पर खरीदी. अहम बात यह है कि मोती लाल अग्रवाल के निवास का पता भी वही है जो संतोष अग्रवाल का है. दोनों ही असम निवासी हैं और एक ही पते पर रहते हैं. मोतीलाल ने इसी तरह से मसूरी में भी एक रजिस्ट्री चंद्रबहादुर की जमीन की कराई. सरकार ने जांच में इसे फर्जी पाया है. इस संबंध में 21 जून 2022 को इसकी शिकायत एसडीएम, एडीएम और डीएम से भी की, लेकिन शासन ने इसकी जांच नहीं करवाई है. चूंकि यह मामला अरबों रुपये के फर्जीवाड़े का है और गैंग के तार कई राज्यों में फैले हुए हैं. ऐसे में इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए.
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