देहरादून: भू बंदोबस्त और पर्वतीय गांवों में चकबंदी कराने की पक्षधर कांग्रेस ने बड़ा ऐलान किया है. कांग्रेस का कहना है कि यदि जनता ने विश्वास जताया तो 2022 में सरकार बनते ही भाजपा सरकार की कैबिनेट में 6 दिसंबर 2018 को लिए गए निर्णय या फिर अक्टूबर 2019 में लिए गए फैसलों को कांग्रेस शून्य घोषित कर देगी.
केदारनाथ विधायक मनोज रावत का कहना है कि उत्तराखंड में जब हरीश रावत सरकार थी, उस दौरान चकबंदी बिल पास कर कानून बनाया गया था. उसके बाद भाजपा की सरकार आने पर नियमावली बनाने में देरी की गई और जब नियमावली बनाई गई तो वह त्रुटिपूर्ण रही.
उसके बाद तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र रावत ने अपने गांव, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गांव, सीडीएस जनरल बिपिन रावत के गांव और सुबोध उनियाल के गांव को चकबंदी के लिए चुना था, लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि भाजपा ने चकबंदी के लिए कोई कदम नहीं बढ़ाया.
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मनोज रावत ने कहा कि पूर्व में हरीश रावत की सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों में चकबंदी कराने के लिए विधानसभा में कानून बनाया और पर्वतीय चकबंदी के लिए अलग विभाग खोला था, लेकिन भाजपा सरकार इन साढ़े 4 सालों में एक भी गांव की चकबंदी नहीं कर पाई.
विधायक मनोज रावत का कहना है कि जब उत्तराखंड बना तो जल, जंगल और जमीन की लड़ाई थी. इस बात को भांपते हुए पंडित एनडी तिवारी की पहले निर्वाचित सरकार ने धारा 154 में संशोधन करके बाहरी व्यक्तियों के लिए 500 स्क्वायर मीटर जमीन पर अपना भवन बनाने की छूट दी. उसके बाद इसका अध्यादेश लाया गया था.
इसके बाद खंडूरी सरकार ने संशोधन करके इसे ढाई सौ वर्ग मीटर कर दिया. भाजपा सरकार ने 6 अक्टूबर 2018 को उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 143 और धारा 154 में परिवर्तन करके संबंधित अध्यादेश लाने का काम किया. 6 दिसंबर 2018 को उसे बिल के रूप में राज्य की विधानसभा में पास कराया.
यदि भाजपा सरकार में थोड़ी सी शर्म बची है, तो उसे श्वेत पत्र जारी कर बताना चाहिए कि इस बिल के कानून बनने और 4 जून के मंत्रिमंडल के फैसले के बाद, राज्य के पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों की कितनी भूमि औद्योगिक प्रयोजन के लिए बिक्री और कितनी औद्योगिक निवेश के लिए दी गई है.